Thursday, February 23, 2023

नई पौध

 

              

       छोटे भाई राहुल के प्रिंसिपल का ख़त पढ़ते ही राजेश के पैरों तले ज़मीन खिसक गई । जैसे किसी ने हजारों किलो का वजन उसके सर पे दे मारा हो । आँखों के आगे अपाहिज पापा औऱ शांत मम्मी की  दयनीय स्तिथि उसकी आँखों के आगे से एक चलचित्र की भांति निकल गई । प्रिंसिपल साहब ने साफ-साफ शब्दों में लिखा था । डिअर राजेश जी, आपने जिस बच्चे को हमारे सपुर्द किया था मुझे बड़े दुख के साथ बताना पड़ रहा है कि आजकल वो बहुत ही बुरी संगत में पड़ चुका है । हमारे दायरे से वो बाहर निकल चुका है । प्लस टू का इस साल बोर्ड का इम्तिहान है ग्याहरवीं में अव्वल आये हुए राहुल की सिगरेट शराब की लत ने उसे पूरी तरह घेर लिया है । क्लास भी उसने अब मिस करनी शुरू कर दी है । आप लोगों की मेहनत से मैं भली भांति परिचित हूँ इसीलिए आपको सूचित करना मेरा फ़र्ज़ भी था औऱ अपने स्कूल के वास्ते  एक रिक्वेस्ट भी । राहुल जैसे ब्रिलियंट स्टूडेंट से हमारे स्कूल को इस साल बहुत उम्मीदें भी हैं । कुछ बातों को मुझे यहाँ लिखते हुए भी शर्म आ रही है इसलिए कृपया थोड़े को ज्यादा समझिए ।
द्वारा---रामदयाल
प्रिंसिपल
पी टी एस स्कूल,
तकूरपुर, दिल्ली
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         इतनी गहरी चोट के बाद राजेश बिल्कुल टूट गया । उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करे । उसे वो दिन याद आ गया जब अपने कानपुर के मेडिकल कॉलेज में जब वो फाइनल ईयर के बच्चों को फेयरवेल देने में व्यस्त था । कॉलेज के होनहार छात्रों में से एक होने के कारण वो मशहूर तो था ही । इस वक़्त तीसरे साल के इम्तिहान देने थे । अगले साल राजेश के नाम के आगे डॉक्टर लिखा जाना था । उस दिन उसे कॉलेज के आफिस से संदेसा मिला था कि जल्द रुड़की के अस्पताल पहुँचों ।  जिस दिन उनके पापा को सरकार ने उनके  अच्छे और यू पी जिले के अपने गांव औऱ आसपास के गांवों के लोगों में अनपढ़ और छोटी जाति के लोगों में पढ़ाई की उमंग जगाई थी और आसपास के 37 गांवों में सो प्रतिशत लिट्रैसी हो चुकी थी उसी उपलक्ष्य में उन्हें अवार्ड के लिए सरकार की तरफ से बुलाया गया था ।

     अवार्ड लेकर जब वापिस आते हुए उनकी कार का एक्सीडेंट हुआ और वो हमेशा के लिए अपाहिज हो गए । मम्मी ने रो रो कर बुरा हाल कर लिया था

                          

                घर के हालात ने पढ़ाई छोड़ने को मजबूर कर दिया । पापा के इलाज औऱ दो बहनों की शादी में सारी जमा पूंजी खत्म ही गयी । बड़ी कोठी से छोटे से मकान में आ गए । इस बीच मैंनें दर्जी का काम सीख कर थोड़ा कमाना भी शुरू कर दिया था । राहुल अभी छोटा था । वो नौंवी क्लास में पढ़ता था । पढ़ाई में अच्छा था । ये सोच के राहुल की पढ़ाई बीच में न छूट जाए उसने किसी की जान पहचान से इंदौर में एक एक्सपोर्ट हॉउस में एक्सपोर्ट हेड की नॉकरी जॉइन कर ली । जब उसने घर छोड़ा तो राहुल से वादा किया था कि जब तक वो डॉक्टर नहीं बन जायेगा-- "मैं वापिस नहीं आऊँगा औऱ तुझे किसी बात की कमी नहीं आने दूंगा" औऱ राहुल ने भी वादा किया था कि पापा मम्मी का ख्याल रखूँगा औऱ पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने की कोशिश करूंगा ।

                   लेकिन आज वो सब  कोई मायने रखता नज़र नहीं आ रहा था । हाथ में प्रिंसिपल साहब का खत लिए अपने छोटे से कमरे में सुबह से बिना कुछ खाये-पिये लेटा, न जाने क्या-क्या दिमाग़ से गुजरने लगा । ऐसा लगा  जैसे अब ज़िन्दगी में सब कुछ खत्म हो चुका है । आँखों के अश्क़ बिल्कुल सूख चुके थे । अपने एक्सपोर्ट हाउस भी नहीं वो नहीं गया । घड़ी की तरफ नज़र गयी रात के तीन बजे चुके थे । सर उसका ऐसे लगा कि अभी फट ही जायेगा । अब उसकी नज़र  लेटे-लेटे छत के चलते पंखे पर टिक गई ।

                           ◆◆◆
तीन दिन बाद------

            राहुल स्कूल से आया ही था कि बाहर डाकिया एक रजिस्ट्री ले कर आया ।  राहुल ने डाकिए से पूछा- कहाँ से आई है भैया ?

डाकिए ने कहा - "इंदौर से कोई एक्सपोर्ट हाउस ही लिखा है"
"एक्सपोर्ट हाउस से ?"----राहुल ने मन ही मन गुनगुनाया ।

अमूमन भाई साहब,  ड्राफ्ट ही रजिस्ट्री में भेजा करते हैं ? और अभी तो चार पांच दिन पहले ही तो रजिस्ट्री आयी है अब ये दुबारा क्यों ? राहुल ने थोड़े अजीब से कंधे उचका कर डाकिए को सिग्नेचर कर के वो रजिस्ट्री ले ली । उसने फटाफट लिफाफा खोला तो उसमें दो लैटर निकले । एक एक्सपोर्ट हॉउस से जिसमें लिखा था ।

डिअर राहुल जी,
आपको आपके भाई के हाथ का लिखा ये लैटर प्रेषित कर रहे हैं । कृपया वसूल पाएं ।

नीचे
एक्सपोर्ट हॉउस की मोहर लगी थी ।

साथ में एक दूसरा लैटर भाई राजेश का था ।

राहुल ये सब देख अब परेशान हो गया कि ये सब क्या है ये भाई का लैटर एक्सपोर्ट हाउस ने क्यूँ भेजा ?

राहुल ने सिसकना शुरू कर दिया और जल्दी से राहुल का लैटर खोला और पढ़ना शुरू किया--------जैसे ही उसने पढ़ा प्रिय राहुल उसके अश्क़ों ने अपनी धारा तेज़ कर दी ।

                   प्रिय राहुल मेरे छोटे भाई आज मुझे यहॉं आए तीन वर्ष हो चुके हैं तुम्हारी पढ़ाई में अत्यधिक रूचि को देखते हुए मैंने दो शिफ्टों में काम शुरू कर दिया है । यहाँ दोनों शिफ्ट के बाद रात को जब वक़्त मिलता है तो तेरे लिए कल कुछ कपड़े भी सील दिए हैं दो तीन दिन में जब भी वक़्त मिला तुम्हें कूरियर भी करा दूँगा । आजकल  तेरे काँधों पर तुम्हारी पढ़ाई के इलावा हमारे बूढ़े माँ बाप का बोझ जो डाल के आया हूँ  वो भी ज्यादा लग रहा होगा न ? चिंता न कर जब मैं घर आऊँगा तुझे बिल्कुल आजाद कर दूंगा । मुझे उम्मीद है जब तुम डॉक्टर बन जाओगे तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहेगा औऱ मेरा क्या-मेरी जिंदगी तो बस अब तेरे लिए ही है । कुछ कमी लगे तो बताना ज़रूर । पापा के उस बड़े एक्सिडेंट के बाद मैनें  खुदा से वादा जो किया था न ? जब तक तुझे डॉक्टर की डिग्री नही मिलेगी तो मैं अपनी ज़िंदगी इस दुनियाँ में व्यर्थ ही समझूँगा औऱ न ही  घर आऊँगा।

तेरा भाई राजेश

                   लैटर को सीने से लगा वो छत पर चला गया / भाई को याद कर सो-सो  बार मुआफी मांगने लगा । उसके मन में आया कि छत से छलांग लगा दूं । पवित्र आत्मा को आज मैंने इतना दुखी कर दिया ?

भाई तुम कहाँ हो ?

सच भाई ! एक मौक़ा बस ! एक मौका ! हाथ जोड़ता फ़लक की ओर देखता हुआ ।

मैं , भाई  !! ये साबित कर दूँगा जो पौध आप लगा कर गए  थे वो  मुरझाई नहीं है । आपके आने तक देखना कितनी औऱ कैसे फलती हुई हरी भरी लहराती हुई मिलेगी ।

बस एक बार--बस एक मौका दे दो भैया ???

                    उसने देखा उसके कंधे पर किसी का हाथ आया है । पीछे मुड़ के देखा तो माँ थी ।

माँ ने पूछा --- "क्या हुआ बेटा  ?"

पहले से ही टूटी माँ को भला राहुल क्या कहता ?

"कुछ नहीं माँ बस ऐसे ही"---राहुल अब भी सिसक रहा था।

माँ ने फिर पूछा-- "भाई की याद आ रही है?"

हाँ में सर हिला कर अपना सर माँ की गोद में रख दिया ।

अब वो सोचने लगा पापा मम्मी को क्या कहूंगा ?

माँ को लगा जैसे उसका सर तप रहा है । उसे नीचे ले जाकर बुखार देखा तो तीन था ।

डॉक्टर से दवा ली, दो दिन बाद बुखार तो उतर गया लेकिन कमज़ोरी से वो उठ नहीं पा रहा था ।

माँ ने सरसरी तौर पर पूछ लिया कि बेटा दो दिन पहले एक रिजिस्ट्री आयी थी वो कहाँ है तेरे पापा पूछ रहे थे ?

राहुल अचानक इस प्रश्न से घबरा गया । कौन सा माँ ?

"जी दो दिन पहले आया था?"---माँ ने रसोई से ही पूछा ।

"वो हमारा नहीं था माँ ?"---राहुल ने झूठ कहा।

राहुल को इतनी कमजोरी थी कि वो उठ नहीं पा रहा था । भाई की चिंता ने उसे तोड़ दिया ।

बुधवार का दिन था --स्कूल से छुट्टी किये हुए, राहुल को आज तीसरा दिन था ।  राहुल का दिमाग़ चल नहीं पा रहा था । माँ ने एक कप चाय दी तो वो सिप-सिप कर चाय पीने लगा ।

आज फिर डाकिए की आवाज आई----"राहुल तुम्हारे नाम का एक पार्सल आया है ।"

राहुल कप छोड़ तेजी से दरवाजे की ओर भागा ।

पापा बोले-- 'ये राहुल को क्या हुआ अभी तो ये उठ नहीं पा रहा था अब ये गोली की तरह दौड़ा गया??

माँ ने बलाएँ उतारते हुए कहा भाई का प्यार हिम्मत लाता है जी । कहते हुए दो अश्क़ अपने आँचल में समेट लिए ।

राहुल ने पार्सल खोला  तो उसमें अपने कपड़े देख फिर रोने लगा । जब कपड़े सारे देख लिए तो नीचे उसे एक पर्ची मिली ।

पर्ची उठा कर देखा तो---
वो चार चार फुट की छलांगे लगाने लगा ।

माँ ने आवाज लगाई बेटा बुखार है अभी आराम करो । पापा मम्मी के मना करने के बावजूद , न न करते हुए वो तैयार होकर स्कूल को निकल गया ।

       रास्ते में उसने अपनी जेब से वो पर्ची फिर निकाली औऱ पढ़ने लगा ।

          मेरे प्रिय राहुल --अपना ख्याल रखना । पौध मुरझाने न पाए ।-----  -मैं यहॉं बिलकुल ठीक- ठाक हूँ ।

तेरा भाई राजेश औऱ फिर उसके सिग्नेचर ।

★★★★■■★★★★★

12 साल बाद

राजेश 12 साल बाद वापिस दिल्ली लौटा ।

           ज़िन्दगी की चाल ने उसे इतना तोड़ा कि वो अपनी चाल ही भूल गया था । दिन रात की मेहनत औऱ फ़िक्र ने उसे बहुत ही कमज़ोर औऱ बूढ़ा बना दिया था । 37 की उम्र में ही वो 55-60 का लगने लगा था । बाल पूरे सफेद हो चुके थे । हाथ में वही थैला जिसमें माँ ने जाते वक्त रोटियां बांध के दीं थी ।

नई दिल्ली स्टेशन से ऑटो लेकर वो उत्तम नगर अपने घर के बाहर पहुंचा । वहॉं एक प्लेट लगी थी शिफ्टेड टू---एड्रेस ।

ज़्यादा दूर नहीं था । धीरे-धीरे वो वहां पहुँचा ।

       हैरानी से देखते हुए ...ये तो बंगला बना हुआ था । ऊपर लिखा था "लेखराज हाउस" और दरवाजे पर मोटा-मोटा गोल्ड प्लेटेड अक्षरों में राजेश राज गोल्ड मेडलिस्ट लिखा था ।
नीचे एक कोने में छोटा सा डॉ राहुल राज ।

     राजेश ये सब देख अंदर से बहुत ही भावुक हो गया । न चाहते हुए भी उसकी आँखों से अश्रु  की धारा बहती चली गयी ।

          राजेश अश्क़ लिए मन ही मन अब मुस्करा रहा था ।  वो सोच रहा था मेरी ये पौध सच में अब फल-फूल रही है ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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Disclaimer
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All characters, places and events depicted in this laghu katha/kahaani are entirely fictitious. Any similarity to actual events or persons, living or dead, is purely coincidental.


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