Friday, February 24, 2023

सवा रुपया

 

उस दिन मैं बहुत खुश था । मेरे ताऊ जी टूर से वापिस आये थे । क्योंकि जब भी वो टूर से वापिस आते थे तो हमारी जेब खर्ची में इज़ाफ़ा हो जाया करता था । वो रहते तो यूपी में थे लेकिन जब भी टूर से वापिस आते थे तो दिल्ली में हमारे घर पर रुक कर जाते थे । मैं उस वक़्त छठी क्लास में पढ़ता था ।
उस दिन बरसात कहे बस मैं ही मैं हूँ। उन दिनों हमें जेब खर्च के लिए रोज़ के 25 पैसे मिला करते थे लेकिन उस दिन ताऊ जी ने मुझे एक रुपया दिया ।
सस्ता ज़माना सवा रुपये में पांच छः  लोगों की पार्टी हो जाया करती थी । दस पैसे का समोसा था उन दिनों ।
अब मेरे पास उस दिन सवा रुपया था । मैं हवाओं में था की आज जश्न होगा । फ़टाफ़ट नहा धोकर तैयार हो गए । मम्मी को बोला अभी तक नाश्ता भी नहीं बना ?
मम्मी बोली आज क्या हुआ इतनी जल्दी ? अभी तो छः  भी नहीं बजे ?
-मम्मी मुझे आज जल्दी जाना है ।
-अरे बेटा रात को ही बता देता न ।
-मैं मन में सोच रहा था पहले कैसे बता देता ? पता थोड़े ही था कि ताऊ जी आ जाएंगे ?
बस फ़टाफ़ट नाश्ता किया बस्ता उठाया औऱ छतरी तान ली ।
भाई ने कहा --"बरसात है मैं साइकिल पर छोड़ आता हूँ।"
मैनें मना करते हुए कहा- -"नहीं-नहीं मैं चला जाऊंगा ।"
घर से निकलते ही मैं उछलता कूदता गली में ही अपने क्लास के दोस्त प्रिंस का  दरवाजा खटका दिया । प्रिंस के पिता जी हमारे स्कूल में ही इंग्लिश के अध्यापक थे ।
उसने आँखें मलते-मलते ही दरवाजा खोला औऱ बोला -"आज मैं स्कूल नहीं जाउँगा ।" वो अक्सर बरसात वाले दिन छुट्टी कर लिया करता था ।
मेरा तो बस मूड ही आफ हो गया । वह मेरा ज़िगरी दोस्त था ।
मैंनें मुट्ठी खोल के उसे करारा-करारा एक का नोट और चवन्नी दिखाई ।
ये देख उसकी तो जैसे बाछें खिल गयीं । बिना नहाए ही उसने भी फ़टाफ़ट नाश्ता किया औऱ हम तेज़ होती बारिश में भीगी-भीगी सड़क पर झूमते हुए दोनों स्कूल पहुँच गए ।

अब क्लास में आज हम सभी चारों दोस्त पहुंच चुके थे ।
प्रिंस, सुभाष, नवीन औऱ मैं । बार-बार हम चारों आधी छुट्टी के इंतज़ार में कभी एक दूसरे को देख रहे थे, तो कभी उस करारे एक के नोट को, कि उसी वक़्त मास्टर जी ने सबसे पहले नवीन को उठाया और पूछा -- "बताओ इस सवाल में इसका क्षेत्रफल कैसे निकलेगा "
वो चुप !!, सवाल पर ध्यान ही नहीं था तो बताते क्या?
चारों को एक एक करके मास्टर ने फड़तोड़ लगा दी ।
मास्टर जी की मार खा कर थोड़ी देर बाद चारो एक दूसरे को देख फिर हँसने लगे ।
क्लास में सुरेश, आदर्श औऱ अजय हमारी दोस्ती से जलते थे वो भी हमारे ऊपर हँस रहे थे ।

आख़िर आधी छुट्टी हुई हम चारों लाला जी की केंटीन में पहुँचे । चारों ने आपस में सलाह करके चार प्लेट आलू-पूरी औऱ चार चाय का ऑर्डर दिया ।
मैनें फ़टाफ़ट जेब में हाथ डाला तो मेरे तो होश ही उड़ गए? चवन्नी तो हाथ में आई, एक रुपया गायब था ।

सामने की टेबल पर देखा तो सुरेश, आदर्श औऱ अजय जो कभी केंटीन आये ही नहीं, आज हँस-हँस कर आलू-पूरी खा रहे थे ।😟😟😟

हर्ष महाजन 'हर्ष'

                    ◆◆◆◆समाप्त"◆◆◆◆


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