◆◆◆वृदाश्रम◆◆◆
राम गोपाल वृद्धाश्रम में कैरम बोर्ड के चैंपियन बन गए थे । उनका फाइनल मुकाबला हमेशा अपने साथी किशन लाल जी से ही हुआ करता था । बहुत कम समय में ही उनकी दोस्ती, दो ज़िस्म एक जान जैसी हो गयी थी । आपस में घर की हर बात साझा कर लिया करते थे ।
राम गोपाल के वृदाश्रम में आने से पहले किशन लाल ही इस वृद्धाश्रम के चैंपियन हुआ करते थे । उन्होंने बताया था कि उनके चार बेटे थे सभी बाहर सेटल हो चुके थे । तीन जापान में औऱ एक यु.एस.ए में । सारे अपने पिता को बहुत प्यार करते थे और सभी उन्हें अपने साथ ले जाने के लिए तत्पर रहते थे । बहुत ही अच्छे कर्म किये हैं उन्होंने यही कहा करते थे कि उनको ऐसे प्यार करने वाले बेटे मिले, मगर किशन लाल उनके साथ नही जाना चाहते थे । पत्नि के देहांत के बाद वो इस उम्र में अमेरका या जापान जाना, जैसे ज़िन्दगी खत्म होना मानते थे ।
कहा करते थे भारत से बाहर कहाँ दिल लगेगा ? वो खुद ही सबकी राजी ख़ुशी से जयपुर के इस वृद्धाश्रम में आ गए थे ।
कभी सोचा भी नहीं था कि दूर कहीं दुनियाँ में कभी ऐसा भी होगा वो भी हमारे साथ ।
राम गोपाल के किशन लाल से, कैरम में प्रतिद्वंदी होने के बावजूद काफी प्रगाड़ संबंध हो चुके थे ।
एक दिन शाम के नाश्ते के वक़्त सारे बुज़ुर्ग लॉन में चाय नाश्ता कर रहे थे कि किशन लाल के बेटे वृद्धाश्रम आये हम सबके पाँव छुए औऱ अपने पिता किशन लाल जी को बताया कि वो अब अमेरिका से वापिस आ गया है क्योंकि अब उसका तबादला दिल्ली हो गया है इसलिए उन्हें अपने साथ वापिस ले जाने के लिए आया है ।
ये सुन जहां किशन लाल जी को खुशी हुई दूसरी तरफ़ रामगोपाल जी पर मायूसी सी छा गयी ।
एक-एक कर, धीरे-धीरे उनका सामान जैसे-जैसे बाहर गाड़ी में जाता जा रहा था राम गोपाल जी का दिल पता नही क्यों बैठता जा रहा था ।
ऐसा नहीं था कि उन्हें किशन लाल को परिवार मिल जाने का राम गोपाल जी को कोई ग़म था । ग़म बस उन्हें, साथ छूट जाने का महसूस होने लगा था ।
सामान सारा चला गया । किशन लाल जाते वक्त अपने दोस्त रामगोपाल को बड़े ही गर्म जोशी से मिले ।
अब किशन लाल उनका ज़िगरी दोस्त विदा हो चुका था ।
राम गोपाल उन्हें विदा कर मायूस हो कर अपने कमरे में चले गए और आराम चेयर पर बैठ सामने नीम के वृक्ष पर चिड़ियों का चहचहाना सुनते-सुनते अपनी पुरानी यादों में खोते चले गए ।
रामगोपाल अपनी दुनियाँ से किस तरह दूर आये
पश्चिम विहार में वो अपनी पत्नी आशा के साथ कितने मज़े में थे । रोज सैर को पार्क में जाते वहॉं कई दोस्त बने हुए थे जो रोज की दिनचर्या में शामिल थे ।
उनमें एक डॉक्टर राजवीर भी था जो वक़्त-वक़्त पर रामगोपाल को अच्छी-अच्छी सलाह दिया करता था ।
वक़्त बड़ी सादगी से कट रहा था । छोटी सी परचून की दुकान थी पश्चिम पूरी में । पर अच्छा गुज़ारा हो जाता था । एक ही बेटा था अजय गोपाल । बड़ा ही होनहार था । उसका दिमाग गाड़ी के पुर्जों औऱ औज़ारों में बहुत चलता था । बाहरवीं तक तो जैसे तैसे फीस का जुगाड़ हो गया लेकिन इंजीनियरिंग के लिए पिता राम गोपाल के पास उतना सरमाया नहीं था ।
पार्क में उसने इस बात का ज़िक्र डाक्टर राजवीर से भी किया । कोई भी जुगाड़ न होने पर रामगोपाल परेशान रहने लगा ।
उसकी परेशानी देख, एक दिन डाक्टर राजवीर ने उसे अपनी किडनी बेचने की इस्लाह दी । उस बात से रामगोपाल एक दम चुप हो गया । ये देख डाक्टर राजवीर ने उन्हें कहा पहले आप अच्छे से दो दिन सोच लो । कुछ देना भी नहीं पड़ेगा और शरीर को कोई नुकसान भी नहीं होगा औऱ तुम्हारा काम भी हो जाएगा ।
दो दिन सोच कर रामगोपाल ने ये डील कर, बेटे अजय को आई.आई.रुड़की से उसकी पढ़ाई के लिए फीस जमा करवाई । वहां रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज में उसने बहुत नाम कमाया । दो तीन लड़कों ने मिल कर कुछ ऐसे प्रोजेक्ट में काम किया कि भारत को उन पर गर्व महसूस होने लगा ।
उन कल पुर्जों से जहाजों के निर्माण में लागत बहुत कम होने वाली थी । उसके लिए भारत की तरफ से उसे अमेरिका भेज दिया गया । रामगोपाल जी को उस पर आगे की पढ़ाई में कोई खर्चा नहीं करना पड़ा ।
किडनी की बात का राम गोपाल ने किसी को भनक तक भी न लगने दी । न ही अपनी पत्नी को इसका पता चलने दिया औऱ डॉक्टर राजवीर को भी हिदायत दे दी कि वो भी किसी से इस बात का ज़िक्र न करे ।
तीन साल वहाँ बिताने के बाद वो दिल्ली वापिस आ गया मगर साथ में एक सुंदर सी भारतीय मूल की बहु भी लेकर लाया ।
पत्नी आशा के बहु कमलेश के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध बने । गृहस्थी के साथ ज़िन्दगी की गाड़ी भी अच्छे से आगे चलने लगी ।
एक दिन अचानक दिल दौरा पड़ने से पत्नी आशा ये दुनियाँ छोड़ गई । राम गोपाल धीरे-धीरे अकेला पड़ने लगा । दोनों बहु बेटा काम से लेट आते । अब राम गोपाल भी अपनी दुकान देर से बंद कर घर आता ।
कई बार तो एक ही घर में रहते हुए कई-कई दिन तक बेटे के साथ बात भी नहीं होती थी क्यूँकि कभी वो सोया होता तो कभी राम गोपाल ।
इतवार की छुट्टी होती थी । राम गोपाल का घर पे रहना बहु कमलेश को खटकने लगा । रोज़ किसी न किसी बात पर आपस में झगड़े होने लगे । काम वाली बाई को भी अपने साथ मिलाकर वो साजिशें करने लगी ।
फिर एक दिन तो राम गोपाल जीते जी जैसे मर गया ।
बहु कमलेश ने बेटे अजय को उसके सामने ही बुलाकर रामगोपाल पर घिनौना इल्ज़ाम धर दिया कि बाबूजी की उस पर बुरी नज़र रखते हैं ।
इस बात का उनके दिल और इतनी गहरी चोट लगी कि उसी पल राम गोपाल ने उस घर को अलविदा कह दिया औऱ सीधे इस वृदाश्रम में आकर आश्रय लिया ।
जो बच्चा अपने बाबूजी पर अपनी जान छिड़कता था । बाबू जी बाबूजी करता थकता न था । उस दिन उस बेटे ने न उन्हें रोकने की कोशिश की न ही उस बात की तह तक जाने की । बस मूक बन खड़ा रहा ।
जिस औलाद के लिए उन्होंने अपनी ज़िन्दगी दाव पर लगा दी वही उनकी जिंदगी नरक कर गया ।
इसी सोच में डूबे रामगोपाल एक दम तब चोंके जब अचानक उन्हें डाक्टर राजवीर की आवाज़ सुनाई दी ।
"अरे"--- राजवीर तुम इतने अरसे बाद यहाँ ??----"मेरे तो भाग खुल गए"--- रामगोपाल की जैसे अपने साथी किशन लाल का साथ छूट जाने का ग़म कुछ पल के लिए कम होता लगा ।
"तुम दिल्ली से कब आये ? चाय पियोगे न" -- रामगोपाल किचन में जाते हुए बोले ।
डाक्टर सर हिलाते हुए बस ये बोले कि रामगोपाल आज एक आपरेशन था जयपुर अस्पताल में उसके लिए बुलाया था मुझे एक स्पेशलिस्ट के तौर पर ।
"यहॉं तुम्हारे पास बस एक दोस्ती का कर्ज उतारने आया हूँ बस"----डॉक्टर राजवीर ने कहा ।
"क्या क़र्ज़, छोड़ो न?-- एक दोस्त मिलने आ गया सब क़र्ज़ उतर गए" ----चाय का कप राजवीर के हाथ में देते हए रामगोपाल बोले ।
"तुम बहुत भोले हो रामगोपाल"-- डॉक्टर राजवीर ने बड़ी ही संजीदगी से रामगोपाल की तरफ देखते हुए कहा ।
"क्यूँ ऐसी क्या बात है ऐसे क्यूँ कह रहे हो?"---रामगोपाल कहते हुए मुस्कुराने लगे ।
"मेरे दिल पे एक बोझ था जो आज मैं उतारने आया हूँ "----कहते हुए राजवीर अब एक दम गम्भीर था ।
रामगोपाल अपनी चेयर से खड़े हो गया ।
"यार पहेलियाँ न बुझाओ साफ-साफ कहो जो कहना है" -- रामगोपाल पहले ही किशन लाल के जाने से परेशान था इस लिए झल्लाया हुआ बोला ।
"तेरी किडनी बेचने की इस्लाह तेरे ही बेटे की थी मेरी नहीं "---- ये कह कर राजवीर ने रामगोपाल के आगे बम फोड़ा औऱ कहता चला गया ।
उसने मेरे पाँव में पड़, गिड़गिड़ा कर कहा था-- "कि मेरी ज़िंदगी का सवाल है चचा, आप ही बाबू जी से बात करो कि आजकल तो किडनी बेचकर बहुत से पैसे मिल जाते हैं औऱ उन्हें कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा"
पहले तो मुझे भी विश्वास नहीं हुआ कि आपका इतना छोटा बेटा ऐसा कुछ भी कह सकता है?
"तुमसे बात करने के लिए वो कई बार मेरे घर मुझे कहने आया"--- राजवीर ने अपने दिल में पछतावे में-- ये सारी बातें कह कर अपना बोझ हल्का किया ।
रामगोपाल को ऐसा झटका लगा !! कि चाय का कप हाथ से छिटक कर दूर जा गिरा ।
मेरा ही बेटा ?~~ मेरी ही किडनी का सौदागर निकला ?
वो धड़ाम से अपनी चेयर पर सन्न से बैठ गया । उसके दिल ओ दिमाग ने काम करना जैसे बंद कर दिया हो । जैसे बेहोशी की हालत हो उसके मुँह से धीरे धीरे धबद फूटे---
"ऐसी साज़िश?
और तुम भी ?"
-- इतना कह रामगोपाल ने राजवीर को हाथ जोड़ते हुए औऱ अश्क़ों का सैलाब लिए हुए औऱ फिर उसके कॉलर को झिंझोड़ते हुए कहा- "तुमने अगर मेरे साथ एक पल की भी सच्ची दोस्ती निभाई होती तो ये सच्चाई मुझे यहॉं बताने नहीं आये होते । मुझे कम से कम अपने ऊपर गुमाँ तो रहता कि मैंने ख़ुद से ये सेक्रिफाईस किया था ।"
रो रो कर कहता हुआ उसके बदन से लुढकता हुआ ज़मीन पर बैठ गया ।
"ये बता कर तुमने मुझे जीते जी ही मार दिया राजवीर"--- रामगोपाल लगभग गहरी चोट से सिसकते हुए बोले ।
"हाँ रामगोपाल ! (थोड़ा रुककर) मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ । ये गुनाह के साथ तब से मैं अकेले जी रहा था । न दिन में चैन न रातों को" ----अब राजवीर बोले जा रहा था बिना देखे की रामगोपाल पर क्या बीत रही है ।
"अजय मेरे पास फिर आया था मकान के पेपर्स आपसे साइन करवा कर देने के लिए, मैंनें उसे धक्के मार के भगा दिया ।"---इतना कह कर राजवीर झुक कर रामगोपाल से बहुत देर तक मुआफ़ी मांगता रहा ।
डॉक्टर राजवीर के जाने के थोड़ी देर बाद रामगोपाल अपनी चेयर से उठे और नहाने चले गये ।
सुबह जब चाय नाश्ते पर सब इकट्ठा हुए तो रामगोपाल उनमें नहीं थे ।
कुछ देर इंतज़ार करने के बाद सभी ने सोचा शायद तबियत न खराब हो । एक ने बोला उसका दोस्त किशन लाल चला गया न । शायद इसलिए उदास होगा ।
यही बात करते -करते उन्होंने रामगोपाल को आवाज़ लगाते हुए उसके कमरे के दरवाजे को अंदर धकेल दिया ।
अंदर का सीन देख सब स्तब्ध थे ।
हर्ष महाजन "हर्ष"
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Disclaimer
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All the characters and events depicted in this story are fictitious. Any resemblance to a character or name of person living or dead is purely coincidental.
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