"ज़िन्दगी में मुझे कभी किसी चीज़ का ख़ौफ़ नही रहा, सिर्फ कुत्ते हैं जिनसे मुझे डर लगता है" - राजेश के ये लफ्ज़ एक डायलॉग की तरह मुझे आज तक नहीं भूले । वो ये अक्सर बोला करता था ।
उस दिन आफिस से वापिस आते वक्त मेरी मुलाकात मेरे दोस्त राजेश से हुई । वो अपने बाइक पर था मैं अपनी बाइक पर ।
मुद्दतों बाद की ये मुलाक़ात ने उसी वक़्त कहीं बैठने का प्रोग्राम तय कर लिया । रेस्टोरेंट ठीक रहेगा ये सोच दोनों ने अपनी-अपनी बाइक करोल बाग की तरफ घुमा ली ।
रेस्टोरेंट में कोल्ड ड्रिंक के साथ कुछ स्नैक्स ऑर्डर कर दिए । खाते-खाते राजेश ने अपने हाथ का टोस्ट अचानक बाहर की तरफ उछाल दिया । मैनें उत्सुकता वंश उस ओर देखा कि राजेश ने किसलिए ऐसा किया ? टोस्ट रेस्टोरेंट के बाहर एक काला कुत्ता उसे खा रहा था ।
जब मैंने काले कुत्ते की तरफ देख रहा था तो राजेश मेरी ओर तिरछी आँख से देख़ थोड़ा मुस्कराया और फिर हम दोनों ने इतना जोर से ठहाका लगाया कि सारे रैटोरेंट में बैठे लोग हमारी ओर देखने लगे ।
असल में स्कूल के वक़्त राजेश को कुत्तों से बहुत डर लगा करता था । इतना ख़ौफ़ की कोई भी कुत्ता उसके पास से गुज़र भी जाता, तो उसकी पेंट गीली हो जाया करती थी ।
बाकी हर चीज़ में उससे बहादुर हमारी क्लास में कोई नहीं था ।
उसके पापा और हमने भी उसके इस डर को निकालने की बहुत कोशिश की पर नाकाम रहे ।
वो काला कुत्ता टोस्ट खाने के बाद अंदर की तरफ आने लगा क्योंकि टोस्ट फेंकने वाले को उसने देख लिया था । मेरी तो हँस-हंस कर जान निकली जा रही थी ये सोच कर की राजेश ने ख़ुद ही ये पंगा ले लिया । अब उसकी पेंट गीली होनी शुरू होगी ये सोच कर अजीब भी लग रहा था ।
लेकिन मैं हैरान था । उसके अंदर अब डर नाम की कोई चीज़ नहीं थी । राजेश उस कुत्ते के साथ ऐसा बर्ताव करने लगा जैसे वो उसी ने पाला हुआ हो ।
मैनें उससे पूछ लिया भाई ये करिश्मा कैसे हुआ ?
उसने फिर अपनी दास्ताँ सुनाई ।
उसने बताया कि
आफिस में जब भी थोड़ा लेट हो जाता था तो पापा का फ़ोन आ जाया करता था कि जमाना बहुत खराब है जल्दी घर आ जाय कर बेटा ।
" पापा मैं इतना कमजोर नहीं हूँ जो किसी से डर जाऊं ? (दिल में कह देता था सिर्फ कुत्ते को छोड़कर।"
एक दिन आफिस में बहुत ज्यादा काम होने के कारण मुझे देर हो गई। मैं अपना सारा काम पूरा कर 10 बजे रात में ऑफिस से घर आ रहा था । उन दिनों बाइक भी नहीं थी । ज्यादा रात होने के कारण मुझे आधी दूर तक तो ऑटो मिला नहीं फिर आधी दूरी मैं पैदल चल कर आ रहा था । ठंड का समय था और सड़क पर सन्नाटा और सिर्फ कुत्ते के भौंकने की आवाजें आ रही थी । उनकी आवाज सुन मैं बहुत घबरा गया और डरते हुए आगे बढ़ रहा था अंधेरा ज्यादा हो गया था । कुछ दूरी पर कुछ लड़के शराब पीकर सड़क पर घूम रहे थे । उन लड़कों की नजर मुझ पर पड़ गयी और वो मुझे लूटने की कोशिश करने लगे । मैनें उन लोगों से बख़्श देने की बहुत गुहार लगाई पर उन्होंने मेरा बैग छीना और भागने लगे । मेरी चीखों की आवाज सुन वो कुत्तों का झुंड भागते चोरों के पीछे हो लिया । वो लोग मेरा बैग छोड़ अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गए । उसके बाद मैं अपने आपको सुरक्षित महसूस करने लगा । मैं हैरान था कि वो कुत्ते मेरे पास आने लगे । मैं डरता हुआ वहीं सीधा खड़ा हो गया । मैनें देखा उनमें से एक कुत्ता मेरा बैग मुँह में दबाए आया और मेरे पांवों के पास लाकर रख दिया । फिर वो सारे कुत्तों का झुंड मेरे चारों तरफ पूँछ हिलाने लगा । मैनें सुना था जब कोई कुत्ता तुम्हारे पास आता हुआ पूँछ हिलाए तो समझो कि वो तुमसे प्यार चाहता है । मैनें डरते डरते उनके सर पर हाथ फेरा । वो मेरे साथ खड़ा होने की कोशिश करने लगे । धीरे धीरे मेरा सारा डर काफूर हो गया ।
रास्ते भर यही सोचते हुए आ रहा था कि "मैं बचपन से जिन कुत्तों से डरा कारता था उन कुत्तों ने आज मेरी जान बचाई , मैं बेवजह उनसे इतना डर रहा था । और ये सोचता हुआ कि इस दुनियाँ में इंसान से बड़ा कोई जानवर कोई नहीं है । तब से कुत्तों का डर मेरे मन से बाहर हो गया । अब मैं उन्हें जब मौका मिले कुछ न कुछ खिलाता रहता हूँ।
राजेश की ये कहानी सुन हम दोनों ने फिर से एक ठहाका लगाया और रेस्टोरेंट से बाहर की ओर चल दिये ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
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