हम दोनों
आज दुपहर हमारी सोसाइटी की अचानक लाइट चली गई तो जेनरेटर ऑन होते ही लाइट फिर ट्रिप कर गई । क्योंकि सभी फ्लैट्स की एमसीबी नीचे ही लगीं थी । गार्ड आकर पता नहीं कब एमसीबी उठाता । गर्मी बहुत थी तो मैंने सोचा मैं खुद ही नीचे जाकर एमसीबी उठा आता हूं । इसलिए मुझे नीचे जाना पड़ा ।
आज मुद्दत बाद घर से निकला था वो भी एम०सी० बी० को उठाने के लिए । लिफ्ट में घुसते ही जैसे मैंने ग्राउंड फ्लोर का बटन दबाया तो बस एक झटका लगा और लिफ्ट चली और रास्ते में ही अटक गई ।
पता नहीं किसकी शक्ल देखी थी कि मूहर्त ही गलत हुआ । हां याद आया जब घर का दरवाजा खोला था तो ऊपर से कोई शख्स टोपी पहन कर सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था । अब खैर शक्ल तो मुझे याद नहीं ।
तीसरी मंजिल से लिफ्ट पकड़ी थी और दूसरी पर पहुंचने से पहले ही रास्ते में अटक गई । गर्मी से वैसे ही जान निकली जा रही थी । मुकद्दर खराब हाथ में मोबाइल भी नहीं लिया कि बस नीचे गया और आया ।
पत्नी भी मेरे से थोड़ी देर पहले ही बाहर निकली थी दूध लेने के लिए तो मैं मेन डोर पर ताला ठोक आया था । अब फिकर ये भी थी कि पत्नी दूध लेकर घर पहुंचेगी तो उसे घर पर ताला मिलेगा और वो फिक्र करेगी कि मैं कहां चला गया ।
मुसीबत ये थी कि लिफ्ट का इंटरकॉम देखा वो भी काम नहीं कर रहा था । उसकी तार ही किसी ने काट दी थी । अब किसी को फोन करके बता भी नहीं सकता था कि मैं लिफ्ट में फंसा हूं ।
लिफ्ट का दरवाजा भी बहुत पीटा । लेकिन सुनने वाला कोई नहीं था । भरी दुपहरी का वक्त था । सभी लोग अपने अपने घरों में ए०सी० चला कर आराम फरमा रहे थे । बाहर कौन घूमेगा?
सारी सोसाइटी में वैसे भी कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था । दरवाजे को पीटना भी व्यर्थ ही लग रहा था क्योंकि पीटने की आवाज को लोग तो यही समझ रहे होंगे कि कोई लेबर काम कर रही है उसी की आवाज होगी ?
पसीने से पूरी तरह लथपथ हो चुका था । घबराहट अलग हो रही थी । कोई उपाय नजर ही नहीं आ रहा था ।
अचानक दिमाग ने करवट ली और इंटरकॉम की लटकती तार पर मेरी नजर गई तो सोचा इसे किसी तरह जोड़ कर देखते हैं ।
तार दांतों से छील कर देखी तो जुगाड बनता दिखाई दिया । किसी तरह दोनों हाथों से जोड़ कर फोन का हैंडल कानों को लगाकर देखा तो फोन चालू था ।
थोड़ी सी जान में जान आई और मैंने 9 नंबर लगाकर गेट पर फोन लगा दिया । किस्मत अच्छी थी । गेट पर गार्ड ने फोन उठा भी लिया और उसे संदेसा भी दे दिया कि एक घंटे से लिफ्ट में फंसे पड़े हैं भैया जरा भाग के कुछ करो ।
गार्ड भी अच्छा था, फौरन भागता हुआ आया और उसने मेन फेस की लाइन को एक बार ऑफ एंड ऑन किया तो लिफ्ट हरकत में आ गई ।
दिल को बड़ी राहत और सकून मिला कि लिफ्ट नीचे को उतरने लगी ।
लिफ्ट का दरवाजा खुला तो एक ठंडी हवा की लहर ने बदन को छुआ तो सांस में सांस आई । ऐसे लगा कि जैसे बड़े दिनों बाद जेल से छूटे हों ।लिफ्ट से बाहर आकर बड़ी राहत मिली ।
लेकिन अगले ही क्षण एक और झटका लगा और मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा । मेरे सामने वाली लिफ्ट से मेरी धर्म-पत्नी भी हांफती हुई उस लिफ्ट से बाहर निकली । उसकी हालत तो मेरे से भी ज्यादा खस्ता और बदतर थी । क्योंकि वो तो मेरे से काफी पहले घर से निकली थी ।
तो हम दोनों पति पत्नी इन दोनों खस्ता लिफ्टों के शिकार हो गए ।
गार्ड को मैनें कोटि-कोटि धन्यवाद किया ।
अब हम पति-पत्नी आमने-सामने हुए तो दोनों के मुंह से एक जैसे शब्द इकट्ठे निकले - "न जाने आज निकलते वक्त किसका मुंह देखा था?"
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~ समाप्त~
🌿हर्ष महाजन🌿
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यह कहानी एक काल्पनिक रचना है और इसमें दिखाए गए सभी पात्र और पात्रों के नाम,स्थान और इसमें होने वाली सभी घटनाएं पूर्णतया: काल्पनिक हैं । इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या घटना या स्थान से समानता पूर्णत: संयोग मात्र ही हो सकता है । इस कहानी का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति, धार्मिक समूह सम्प्रदाय, संस्था, संस्थान, राष्ट्रीयता या किसी भी व्यक्ति वर्ग , लिंग जाति या धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कतई नहीं है ।
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