Friday, July 9, 2021

वार्ड नंबर 23

 



            उस दिन राजेश जल्दी में था तो नाश्ता छोड़ ऑटो लेकर वो नई दिल्ली स्टेशन पहुँचा, भागते हुए ट्रैन पकड़ ही ली । आज ड्यूटी पानीपत लगी थी ।

सीट मिलते ही भूख की तरफ ध्यान गया ।

ट्रैन में कोल्ड ड्रिंक बेचले वाले की आवाज़ धीरे-धीरे पास आने लगी । हर माल मिलेगा 10 रुपैया , हर माल मिलेगा 10 रुपैया । हमारे कम्पार्टमेंट में आते ही उसने उसे आवाज़ दी - ए कैम्पा ? 

राजेश ने एक फैंटा औऱ दो वेफर्स के पैकेट लिए औऱ 10-10 के तीन नॉट दिए ।

"क्या बाऊजी आप भी न !! पहली बार इस गाड़ी मा बैठे हो का" -- मुस्कराता हुआ वो वेंडर फिर उसे बोला ।----"10 रुपैया में भी कोई चीज़ आता है का ?"

      साथ में बैठे हुए पैसेंजर भी सभी हँस पड़े औऱ जिस-जिस ने जो लिया उसके वो बिना पूछे पैसे भी देते जा रहे थे और वो वेंडर आराम से बिना कुछ कहे लेता भी जा रहा था ।

राजेश ने उसे कहा तू खुद ही तो आवाज़ लगा रहा था हर माल मिलेगा 10 - 10  रुपये ?

वो मजाकिया अंदाज में बोला - बाऊजी ऐसा नहीं बोलेंगे तो आप जैसे लोग बुलायेंगे कैसे ??

"अच्छा कितने पैसे हुए बताओ ?" --राजेश ने पूछा ।

"साहब 70 रुपैया दे दो बस?"- उसने लापरवाही से कहा ।

राजेश ने उसे 70 रुपये दिए और वो चला गया ।

भूख लगी थी सो राजेश जल्दी-जल्दी फैंटा के साथ वेफर्स खाने लगा ।

थोड़ी देर के सफ़र के बाद साथ बैठे हुए शख्स ने पूछ ही लिया -- क्या आप पहली बार इस गाड़ी में चल रहे हो?

हाँ में सर हिलाते हुए राजेश ने उसे भी शालीनता से वेफर्स आगे करते हुए, भी पूछ लिया ।

उसने हाथ से,उसके  हाथ को पीछे करते हुए मना किया  -- नहीं आप खाइये ।

उसने फिर बताया ये राजू था जिससे आपने ये खाने का सामान लिया है । ये किसी अमीर बाप की औलाद है । एम.बी.ए है ।

        ये सुन राजेश को जैसे झटका सा लगा । उसके हाथ में पकड़े वेफर्स मुँह तक न पहुँच पाए और उससे वापिस पूछ लिया ।

एम.बी.ए ?? यहॉं कैसे पहुँच गया ये?- राजेश ने उत्सुकता वंश पूछा ।

"बेरोजगारी इसे यहॉं ले आयी" - उस शख्स ने कहा औऱ आगे बताने लगा --
       एक दिन राजू फ़ुर्सत में था औऱ गाड़ी में पैसेंजर भी बहुत कम थे तो उसने अपनी बर्बादी की कहानी अपनी ज़ुबानी हमको सुनाई थी ।

इसको बचपन से नंबर गेम बहुत पसन्द था।  उस दिन उसने कहा:-

             23 नंबर का मेरी ज़िंदगी में बहुत महत्व रहा है औऱ वार्ड नंबर 23 का तो कुछ खास ही महत्व रहा था ।  जहां पर मेरी ज़िन्दगी ही बदल गई ।
   मेरे साथ जब-जब नंबर 23 का खेल चला  तो माँ ने भी मुझे बताया कि मेरा जन्म भी (लंबी सांस लेते हुए) वार्ड नंबर 23 में ही हुआ ।  सोचो तो-- ज़िन्दगी की शुरुआत यहीं से हुई । उस वक़्त पँजाब के बीचों-बीच पटियाला शहर के ब्लॉक 23 में हनारी रिहाईश रही ।
               रोड के साथ लगने के कारण हमारे निगम में भी खास अहमियत रही । मगर, जितनी इस वार्ड की अहमियत राजनीति कारों को थी उतनी मेरे लिए भी क्यूँकि ये भी वार्ड नंबर 23 में ही पड़ता था मेरा फ़ेवरिट नंबर-23  । लेकिन यह वार्ड उतना ही अविकसित भी था । वार्ड में आने पर ऐसा लगता था जैसे यहॉं के लोग अनदेखी का शिकार थे ।
         स्कूल में भी रोल नंबर 23 रहा । जब ग्याहरवीं का बोर्ड का इम्तिहान हुआ तो भी आखिरी दो डिजिट 23 ही रहे । रोल नंबर 29023 था ।
आगे की पढ़ाई दिल्ली में हुई । इत्तफ़ाक़ देखो खालसा कॉलेज में एडमिशन हुआ तो 23 जुलाई को ही फीस जमा हुई ।
जब कॉलेज आना जाना शुरू हुआ तो बस नंबर  23 सीधे इंद्रपुरी से मोरिस नगर खालसा कालेज जाया करती थी ।
मेरी मोटर साइकिल का नंबर भी यही निकला  DHY 23 ..
जब इतना कुछ कुदरत द्वारा ही होने लगा तो मेरी दिलचस्पी भी इसमें ही होने लगी ।
अब जो भी चीज़ लेनी होती तो दिलचस्पी 23 नंबर में ही होने लगी ।
एक दिन लाटरी का टिकट खरीदा ।  उस पर नंबर देखा तो वो भी 23.
सोचा कि देखते हैं कि लाटरी लगती है कि नहीं ?
ये सोच दिलचस्पी औऱ भी बढ़ गयी ।
रिजल्ट आया तो 1 करोड़ की लॉटरी मेरे नाम निकली । मन में कई अरमान पल रही थी सोचा पूरे लूँगा ।
             अब तलक मैं एम.बी.ए की पढ़ाई पूरी कर चुका था । लाटरी ने मेरा दिमाग एक दम बदल दिया था । अच्छी अच्छी कंपनियों की नॉकरी मैंने ठुकरा दी थी ।

          अब तक मुझे ये अहसास होने लगा था कि नंबर 23 मेरी जिंदगी का अब अहम हिस्सा है । अब मुझे ओर कुछ बड़ा करना है इसी धुन में दिन बीतने लगे ।

मैंने अपनी ज़िंदगी का रुख़ अब 'घोड़ों की रेस' की ओर मोड़ दिया ।
धीरे-धीरे मैं बर्बाद होता चला गया । यहॉं तक कि अब घर से पैसे मिलने भी बंद हो गये । पिता जी तो बहुत ही ख़फ़ा हो गए थे । मुझे देखते ही आग बबूला हो जाते थे ।
रेस का चस्का ऐसा लगा कि उधार इतना हो गया कि अब जूते पड़ने की नोबत आ गयी । पिता की गुडविल की वजह से जिन्होंने मुझे उधार दिया । अब वो तकाज़ा करने घर पहुंचने लगे ।
         आख़िर पिता जी ने एक दिन अचानक मुझे घर से निकाल दिया । घर से निकाले जाने का मुझे
इतना सदमा लगा कि मैं वो सह न सका ।

         उसके बाद का कुछ अर्सा मेरी यादाश्त से ही बाहर हो गया । जब मुझे अपने आप का अहसास होना शुरू हुआ तो मैंने अपने आपको आगरा के मानसिक अस्पताल में पाया । जिसे आओ लोग पागल खाना कहते हैं ।

                    देखो न !! वहां भी नंबर 23 ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा । मैं जहाँ दाख़िल था ! उसका नाम वार्ड नंबर 23 था । ये वार्ड उस अस्पताल का सबसे खतरनाक वार्ड था । चार साल वहाँ रहा ।
वहॉं भी मेरे कुछ दोस्त बने जो धीरे-धीरे ठीक हो रहे थे ।
जिस दिन मुझे छुट्टी मिली और मैं अस्पताल से बाहर आया तो मेरी दुनियाँ बदल चुकी थी । मैं बिल्कुल अकेला था । मेरे पास अब वही सामान था जो मुझे दाख़िल करते वक़्त जमा हुआ होगा । पैसों के नाम पर कुल तेहरह सौ रुपये ।

सवाल ये था कि कहाँ जाऊँ ? इसी धुन में में स्टेशन पहुँचा । अभी सोच ही रहा था किधर जाऊँ ?

चलते-चलते एक कुली से टकरा गया । उसने भी चलते चलते कहा भाई देख़ के चलो औऱ आगे बढ़ गया । मैंने उसे आवाज़ लगाई - हे भाई !

आवाज सुन वो पीछे मुड़ा औऱ बोला खाली नही हूँ। मैंने उसे रोका । मेरी नज़र उसके टोकन बैज पर पड़ी । फिर इत्तफ़ाक़ देखो वो भी नम्बर 23.
मैंने उसे आने साथ काम लगाने के लिए पूछा । उसने मना करते हुए कहा दिया कि अब कहाँ है साहब । बहुत मुश्किल है । कोई जगह खाली नही है पर मैं काम के लिए आपकी हेल्प कर सकता हूँ।
वो मुझे ले ताज एक्सप्रेस में चढ़ गया ।
उस गाड़ी में एक बुजुर्ग था जो चाय- चाय की आवाज़ लगा रहा था । उसके साथ उसने मिलवाया । उसकी सिफारिश से अब मैं यहॉं हूँ ।

लेकिन नंबर 23 जब जब मेरी ज़िंदगी में खुद आया तो फायदा हुआ लेकिन मैंने जब चाह कर लाने की कोशिश की तो बर्बाद हो गया ।

तभी दोस्त में हमेशा यही बोलता हूँ -- हर माल मिलेगा 10 रुपैया - हर माल मिलेगा 10 रुपैया ।

इतने में गाड़ी रुकी --सामने देखा तो पानीपत ।

राजेश ने अपना बैग उठाया और ट्रेन से नीचे उतरते हुए देख रहा था कि राजू भी साथ वाले डिब्बे से नीचे उतरा । 

राजेश की उससे बात करने की इच्छा थी । इसलिए उसे आवाज़ लगाई ।
वो पास आया तो राजेश ने  पूछा--- राजू ! तुम्हारा असली नाम क्या है ?

राजू ने हंसते हुए जवाब दिया-- राजू ही है सर !!
यही नाम है ।

ज़ोर देने पर राजू दर्द महसूस करते हुए बोला--राजू ही रहने दो साहब । अगर असल नाम बाहर आया तो दिल्ली शहर का बहुत बड़ा नाम बदनाम हो जाएगा सर ।

जाने दो -जाने दो !!

फिर मुलाकात होगी उसी ट्रैन में ।--राजू कहता हुआ और हाथ से बाय-बाय करता हुआ दूर निकल गया ।

--हर्ष महाजन

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फिर वो अज़नबी कौन था ?

 

     फिर वो अज़नबी कौन था !!

          उस दिन राजेश बहुत खुश था । उसकी शादी की पांचवी साल गिरह थी । घर में एक छोटा सा फंक्शन रखा था इसलिये उसने सोचा आफिस (बैंक) से जल्दी घर लौट कर पत्नी कामनी के काम में कुछ मदद कर दूँगा ।



अपने बोस से आज्ञा ले, खर्चे के लिए उसने अपने अकाउंट से पाँच हज़ार निकलवाये औऱ बैंक से बाहर निकल गया ।

      अपनी गाड़ी निकाली और  घर की ओर रवाना हो चला । ख्यालों में मस्त--कॉलेज के दिनों के उन दोस्तों को आज उसे मिलना था जो कभी उसके हमनशीं औऱ हमबगल हुआ करते थे ।

बहुत खुश था वो जल्दी से घर पहुंचना चाहता था ।

घर के नज़दीक वाली आख़री लाल बत्ती के पास भीड़ देख ठिठक गया । उसने गाड़ी थोड़ी धीमी कर ली थी । शायद कोई एक्सीडेंट हुआ था । कुछ पल के लिए उसने गाड़ी रोकी । लेकिन अगले ही पल ये सोच कि खामखाँ घर लेट हो जाऊँगा उसने गाड़ी को आगे बढ़ा दिया ।

घर पहुँच उसने गाड़ी खड़ी की औऱ अंदर पहुँचा, वहाँ तैयारी अभी आधी अधूरी ही थी ।

माँ बाबूजी दोस्त यार कुछ नज़दीकी रिश्तेदार सब एक दूसरे से बतिया रहे थे । सब खुश थे । उसने माँ से पूछा- 'माँ कामनी कहाँ है ? सारा काम पड़ा है कहीं दिखाई नहीं दे रही ।"

"वो बेटा -- केक लेने गयी है, बोल रही थी आफिस से आकर तुम कहाँ भागते फ़िरोगे" -- माँ सुहासिनी ने मुस्कुराते हुए फट से जवाब दिया ।

ये सुन मुस्कुराते हुए सोचने लगा कि चलो ये भी अच्छा हुआ कामिनी ने ये काम भी निपटा दिया औऱ टेबल को आँगन में खिसकाने लगा । साथ में राजेश का दोस्त हरि भी साथ देने लगा  ।

इस बीच राजेश का मोबाइल दो बार बजा लेकिन बिना देखे काल बंद कर रहा था  । अबकि बार फ़ोन बजा तो हरि ने बोला --- "यार बात कर लो न, कोई ज़रूरी काल भी तो हो सकती है ?"

घंटी फिर से बज उठी । इस बार घंटी बजी तो राजेश ने फ़ोन पर नंबर देखा तो बोला -- "ओए ये तो कामिनी का है"

फ़ोन  पिक कर जैसे ही हेलो बोला--उधर से एक अज़नबी औऱ भारी भरकम आवाज ने बड़े ही शालीनता से पूछा --- "आप राजेश जी बोल रहे हैं ?"

"आप कौन ? कामिनी कहाँ है ?" -- राजेश घबराया हुआ बोला औऱ कई प्रश्न दाग दिए ।

देखिये मैं  "आल इंडिया मेडिकल अस्पताल" से रमेश रोहतगी बोल रहा हूँ जिसका ये फ़ोन है उसका एक्सीडेंट हो गया है और वो यहाँ एम्स में दाख़िल है । मैंने उनके फ़ोन से ही आख़िरी काल को डायल कर दिया है । आप अगर इन्हें जानते हैं तो मेहरबानी कर के उनके किसी रिश्तेदार को  इन्फॉर्म कर दीजिए" ----उसने आग्रह किया ।

कामिनी के फ़ोन से एक अज़नबी इंसान की आवाज में,  ये सब सुन कर राजेश सुन्न हो कुछ बोल ही नहीं पाया ।

लड़खड़ाती आवाज में उसने बस यही कहा-- "हाँ मैं कामिनी का हस्बैंड बोल रहा हूँ  उनको~~~~।"

             हरि, राजेश को घबराते हुए बात करते देख उसने, उससे फ़ोन खींच लिया और उस अजनबी से बात की । उसने जो-जो बताया --- फ़ोन बंद कर,  माँ बाबूजी को सलीके से सुना दिया कि भाभी का छोटा सा एक्सिडेंट हुआ है  । बाबूजी को तसल्ली देते हुए कहा - " वैसे घबराने वाली कोई बात नहीं है, कामिनी भाभी ठीक है "

हरि के खुद के पैरों तले ज़मीन खिसक चुकी थी ।

            माँ, बाबूजी औऱ राजेश,  इन तीनों को लेकर हरि ने अपनी गाड़ी एम्स की ओर दौड़ा दी ।  राजेश को याद आ रहा था उसने अपने घर के नज़दीक वाली रेड लाइट पर एक एक्सीडेंट देखा तो था । रुका भी था । क्या वो कामिनी थी?  वो फिर खुद को कोसने लगा कि मुझे गाड़ी से उतर कर देखना चाहिए था यही सब बुदबुदाता जा रहा था ।

                 अस्पताल पहुँच, माँ बाबूजी को बाहर बिठा,  हरि औऱ राजेश सीधे इमरजेंसी विभाग पहुँचे । वहाँ पर सभी की ज़ुबाँ एक ही एक्सीडेंट की  चर्चा में थी । हरि सब समझ चुका था ।

पूछ ताछ कर उन्हें पता लगा कि कामिनी को आपरेशन थियेटर ले जाया जा चुका है ।

               राजेश के कान में वही भारी भरकम आवाज अभी तक बड़े ही जोरों से बज रही थी । कामिनी का फ़ोन उसी के पास था ।

उसके बारे में इधर-उधर पूछा तो किसी से कुछ मालूम न चला ।

तीन घंटे हो चुके थे ऑपेरशन चलते हुए । इतने में लाँज में कामिनी के नाम की अनाउंसमेंट हुई ।

हरि औऱ राजेश तेजी से काउंटर की ओर दौड़े ।

वहाँ से पता लगा कि ऑपरेशन ठीक-ठाक हो गया है । आप में से एक लोग पांचवे तल पर डाक्टर अमित से मिल सकते हैं इस के लिए ये स्लिप है ले लीजिये ।

जल्दी से राजेश औऱ हरि लिफ्ट की ओर भागे ।

लिफ्ट मैन से कुछ बातचीत कर दोनों ऊपर पहुंचे ।
डाक्टर से मुलाकात हुई - उन्होंने बताया कि पेशेंट अभी बेहोश है । 36 घंटे इंतज़ार करनी होगी ।
सर में 67 टाँके लगे हैं ।

राजेश ने बताया - "मैं कामिनी का हसबैंड हूँ ।"

डाक्टर ने बताया - 'ये तो अच्छा हुआ उनके भाई साहब एन वक़्त पे उन्हें यहॉं ले आये ।"

"उनके भाई ???---ये सुन चोंकते हुए दोनों हरि औऱ राजेश ने एक दूसरे की ओर देखा ।

"हाँ वो हैं न रमेश रोहतगी ?" - डाक्टर ने आगे
कहा -- "वो थे इसीलिए शायद उनके बचने के चाँस बने हुए हैं ।"

डाक्टर भी अपने इस कामयाब आपरेशन पर ख़ुश लग रहा था और आगे कहने लगा - सच बताएं तो, जैसे ही हमें ये पता चला कि आपकी पत्नी का ब्लड ग्रुप माइनस बी है,  हमारी तो हालत ही खराब हो गयी थी । ये ब्लड ग्रुप तो बहुत रेयर ग्रुप है । स्टॉक में भी नहीं था । सब ब्लड बैंक्स को लाइटनिंग कॉल भेजी गई ।"

डाक्टर ने फिर कहा---"रमेश रस्तोगी को पता चलते ही उन्होंने बताया चिंता न करें उसका ब्लड ग्रुप माइनस बी है उन्होंने  सारी ज़िम्मेवारी अपने ऊपर ले सारे फार्म भरे और देखिये न उनका रेयर ब्लड ग्रुप -बी (माइनस बी) जो मिलने की संभावना, न के बराबर ही होती है  डायरेक्ट कामिनी को चढ़ाना पड़ा ।"

"रोहतगी जी कहाँ हैं इस वक़्त?"--राजेश औऱ हरि ने उत्सुकता वंश दोनों ने इकट्ठे पूछा ।

"वो भी अभी अंदर ही हैं रिकवरी रूम में । उन्हें अभी आराम की सख्त जरूरत है । अपनी जान खतरे में डाल उन्होंने एक की जगह आधी यूनिट फालतू ब्लड लेने की इज़ाज़त दी ।" ---डाक्टर अमित ने बताया ।

ये ग्रुप अस्पताल में भी नहीं था ।

हरि औऱ राजेश कामिनी के साथ रमेश के अच्छा होने की दुआएं मांगने लगे ।

              अगले दिन रमेश रोहतगी को बाहर भेज दिया गया । एक 30 -- 35 साल का गोरा चिट्टा जवान ।   उसने एक्सीडेंट से लेकर अस्पताल का सफ़र कैसे सब विस्तार से बताया ।

                उसने बताया --- "कि वो तो बाई चांस उधर से गुज़र रहा था कि अचानक एक बहुत तेज़ मिनी बस एक लेडी को उड़ाती हुई निकल गयी । लेडी के हाथ में शायद केक था जो आसमान में उछला । मैं मोटर साइकिल पे था । पुलिस ने उसको गिरफ्तार तो कर लिया है ।"

रमेश अपनी मोटर साइकिल को लेने जाने की बात कह वहाँ से जाना चाहता था ।

अब हरि औऱ राजेश दोनों  हाथ जोड़े उसके आगे गए और समझ नही आ रहा था कि उनका अब कैसे धन्यवाद दें ----इस असमंझस को देख रमेश समझ गया ।

             वो  खुद आगे बढ़ा और उसने दोनों को तसल्ली दी कि उसने अपना फर्ज़ निभाया है । वो मेरी भी बहिन है अगर आप इज़ाज़त दें तो । मेरी कोई बहिन नहीं है उसे बहिन मान लूँ ।

राजेश की ऑंखें अश्क़ों से तरबतर हो गईं ।

उसने कहा मुझे अब उस रेड लाईट से अपनी मोटर साइकिल उठानी है , मैं अभी चलता हूँ------- 'फिर आता हूँ" -- ये कह के वो शख्स कामिनी का मोबाइल राजेश के हाथों में सौंप अलविदा कह--- हाथ हिलाता चला गया ।

                     पंद्रह दिन के ख़ौफ़ भरे दिन देखने के बाद  राजेश औऱ हरि कामिनी को लेकर अस्पताल से विदा होने के लिए बाहर आये ।

लेकिन वो शख्स (रमेश रोहतगी) इन 15 दिनों में एक बार भी अस्पताल नहीं आया ।

परेशानी में दिमाग इतना ख़राब कि उस शख्स से   उसका नंबर तक लेना भी वो भूल गए ।

अस्पताल का रिकॉर्ड देखा तो उसमें उसके एड्रेस की जगह उन्हीं का एड्रेस लिखा था ।

शायद कामिनी के फ़ोन से देख कर लिखवा दिया होगा। । ये सोच के अपने आप को तसल्ली दी कि उसने कामिनी को अपनी बहिन माना है तो शायद वो घर पर ज़रूर आएगा ।

कामिनी को ले हम घर पहुँचे ।

पांच छः दिन बाद शाम को चाय के वक़्त कामिनी भी सब के साथ कुर्सी पर बैठ गयी । अब कामिनी अच्छे से अपने भाव में आने लगी थी । साल गिरह का वो दिन सहसा ही याद आ लगा ।

एक्सीडेंट का वो पूरा सीन उसके मस्तिश्क पटल पर ऐसे घूम गया कि अचानक वो बोल उठी -- "बाबूजी वो बुजुर्ग कहाँ गया ? वो कौन था ?? जिसने मुझे गौद में लपका ?  मुझे ज़मीन पर गिरने नहीं दिया उसने ।"

सभी चोंक गए और हैरान होकर राजेश ने पूछा -- "कौन बुज़ुर्ग ??"

राजेश यही समझ रहा था कि वो शायद रमेश रोहतगी की बात कर रही है ।

कामिनी ने फिर वो सीन दोहराया--- " मैं जब केक लेकर लौट रही थी तो एक बस ने मुझे पीछे से जोर से टक्कर मारा और मैं आसमान की तरफ 10-12 फुट ऊपर उछली । जब मैं नीचे गिरने लगी तो वो बुज़ुर्ग जिसकी बहुत लंबी सफेद दाढ़ी थी सफेद पगड़ी औऱ सफेद कुर्ता पायजामा ।  उसने मुझे अपनी गोद में लपक लिया ।  बाबूजी मेरी एक नज़र उनके चेहरे पर पड़ी, क्या नूर था । उसके बाद मुझे क्या हुआ कुछ पता नहीं ।

लेकिन अब राजेश सोच में पड़ गया । ये अज़नबी अगर रमेश रोहतगी था तो उसकी दाढ़ी नहीं थी ।

राजेश की भौहें तन गईं औऱ सोचने लगा ।

फिर?

फिर वो अजनबी कौन  था ?

---हर्ष महाजन 'हर्ष'

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ज़िगरी दोस्त

 

जिगरी दोस्त
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"लाला एक पाव मसूर की दाल देना"-- हरि को एक सुरीली आवाज  आई ।

हरि अभी दुकान में झाड़-पोंछ कर ही रहा था सुबह सुबह--

पीछे मुड़ के देखा तो अपने मोहल्ले में ही काम करने वाली कान्ता सामने खड़ी थी ।

उसने इंतज़ार करने को बोल हरि ने काम निपटा, धूप बत्ती जलाई । उसे दाल तौल के दे दी । पैसे लिए -- माथे से लगाये और गल्ले में डाल दिये ।

और गद्दी पर आकर बैठ गया ।

सुबह कई ग्राहक यूँ छूट-पुट सामान लेने आते रहे । इतने में सामने की गली से एक बुजुर्ग एक छोटे बच्चे को जबर्दस्ती खींचता हुआ ला रहा था ।

पास आया तो पता लगा कि वो बच्चा शायद स्कूल न जाने की जिद्द कर रहा था

इतने में वो उसकी दुकान के नज़दीक आ गया । यहीं पर उसके रिक्शे ने आना था । रिक्शा जैसे ही आया बच्चा ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा ।

आख़िर उस बुज़ुर्ग ने बच्चे से कहा- "बेटा पढ़ेगा तो बड़ा आदमी बनेगा न । नहीं तो मेरे जैसा ही बनेगा ?  या  फिर रेहड़ी  लगाएगा क्या ??"

नादान बच्चे को क्या मालूम कि वो क्या कह गए ।

वो बुज़ुर्ग उसको रिक्शा में बिठा चला गया ।

हरि अपनी पुरानी यादों में खोता चला गया । बुज़ुर्ग की बातें उसके मस्तिक्ष में छाने लगी ।
पुराने दिन--क्या मस्ती भरे दिन थे---हर विदा में  नाम था । क्रिकेट में अच्छा बॉलर था । आवाज़ इतनी अच्छी सभी दीवाने थे । पार्टियों में गाने गाकर छा जाया करता था ।

वर्ष 1973 -- वो ग्याहरवीं कक्षा में था ।
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उस दिन वो छत पर अपने बोर्ड के  इम्तिहान की तैयारी में मशगूल था कि अचानक उसका दोस्त राजेश साथ वाली छत से दीवार फाँद कर आया और बोला - "चल हरि खड़ा हो लिबर्टी पर बॉबी फ़िल्म लगी है । ताबड़ तोड़ फ़िल्म है सुना है बहुत ही बेहतरीन फ़िल्म है ।"

"नहीं यार"-- हरि ने मुँह बनाते हुए कहा--"इम्तिहान सर पे हैं मुझे कुछ नहीं आता । अब सब मटरगश्ती खत्म"

कह हरि फिर अपनी पढ़ाई में लग गया ।

राजेश ने उसे फिर कहा - "तू समझ नहीं रहा । मैं टिकट ले आया हूँ। बड़ी मुश्किल से मिली हैं । आजकल टिकट की ब्लैक चल रही है । लेकिन मैं तेरी खातिर ले आता हूँ।  तीन घंटे की ही तो बात है । फ़िल्म देख के सीधे घर ही आ जाएँगे । तुम आकर देर रात तक पढ़ लेना फिर । तेरा दिमाग तो अच्छा है ही"

दिमाग की बात तो तब होगी न जब मैं पढ़ूँगा ?

लेकिन हरि के मन में भी चोर जागने लगा और सोचने लगा कि बॉबी फ़िल्म दुबारा पता नहीं कब लगेगी । चलो देख ही लेते हैं ।

राजेश को अब चिढ़ होने लगी औऱ फिर बोला- "देख हरि ये दोस्ती है क्या? वक़्त पड़ने पर दगा दे तू ? चल उठ"

कह राजेश ने बांह से पकड़ उसे उठा दिया ।

फ़िल्म देख़ दोनों मस्ती मारते हुए रात गयारह बजे घर पहुँचे ।

आगे की तरह पिता जी से डाँट खाई और सो गया ।

अब ये सिलसिला होना उसके साथ आम सी बात थी । राजेश उसका जिगरी दोस्त था । उसकी बात टालने की उनकी कभी हिम्मत न हूई । राजेश भी कभी उसकी बात नहीं टालता था ।

इसी आपादापी में, वक़्त रेत की तरह हाथ से फिसलता जा रहा था । इम्तिहान की तैयारी पीछे छूटती जा रही थी ।

राजेश के पिता का तो बहुत ही बड़ा बिज़नेस था । कपड़े के जाने माने व्यापारी थे । पैसे की कोई कमी नहीं थी ।

कमी तो हरि को भी नहीं थी लेकिन फिज़ूल खर्ची से बचने की कोशिश करता था ।

इम्तिहान वाले दिन हरि बहुत घबराया हुआ था । वाणिज्य का इम्तिहान औऱ उसे ऐसा लगता था कि जैसे उसे कुछ नहीं आता था । छमाही इम्तिहान में  फेल होने जैसे ही नंबर आये थे । इस बार किसी तरह वो अच्छे नंबरों से पास होना चाहता था । पढ़ के वो कुछ बनना चाहता था । स्कूल जाते हुए  रास्ते में उसे राजेश मिला ।

उसने उसे समझाया - "घबराओ मत सब ठीक हो जायेगा ।"

राजेश का सेंटर दूसरे स्कूल में था । वो बेफिक्र सा अपनी साइकिल पर फर्राटे से निकल गया ।

किसी तरह इम्तिहान खत्म हो गए ।

2 जून 1973

उस दिल रिजल्ट आना था । स्कूल पहुंचे तो वहॉं भीड़ लगी थी । हरि एक तरफ खड़ा हो गया । दिल घबरा रहा था ।

अचानक पीछे से आवाज़ आयी -- "मुबारक हो भाई"

मुड़ के देखा तो उसकी  क्रिकेट की टीम का कप्तान राहुल था ।

उसके गले लग के उसने उसको भी बधाई दी ।

आगे बढ़ के उसने फिर ख़ुद अपना रिजल्ट देखा ।

वो पास था ।

लेकिन नंबर 54 प्रतिशत ही थे ।

वो सोच रहा था कि बिना पढ़े इतने नंबर आ गए । अगर पढ़ लेता तो अच्छे नंबर आ जाते ।

इंजीनिरिंग करने का ख्वाब पाला था उसने ।

शाम को राजेश मिला उसके 62 प्रतिशत मार्क्स थे । ये सुन हरि को अंदर से महसूस हुआ कि इसी की वजह से तो उसके नंबर कम आये थे ।

रात को उस दिन फिर दोस्तों ने जश्न मनाया । हरि के मन में ठेस थी । उसने कई पुराने ग़मगीन गाने सुनाए । लेकिन महफ़िल में फिर भी चार चांद लग गए ।

कॉलेजों के फार्म भरे जा रहे थे ।
बड़ी मशक्कत के बाद  तीसरी लिस्ट में साऊथ के एक कॉलेज "रामलाल आनंद कालेज"  में बी.काम (पास) स्ट्रीम में उसे एडमिशन मिल गया ।

राजेश को नार्थ के "खालसा कॉलेज" में बी.काम (आनर्स ) में एडमिशन मिल गया ।

दोनों ने कॉलेज जाना शुरू कर दिया । हुनर के चलते एक साल के भीतर-भीतर हरि का नाम कॉलेज के हर विद्यार्थी की ज़ुबाँ पे था ।

क्रिकेट के मैचों की वजह से फिर हरि औऱ राजेश की मुलाकातें होने लगीं । राजेश खालसा कालेज की टीम में सेलेक्ट हुआ था ।

हरि के प्रति उसके कॉलेज के विद्यार्थियों की निष्ठा देख़ अब राजेश को भी रश्क होने लगा । लेकिन वो ख़ुश था कि हरि की वजह से उसको भी लोग अब जानने लगे थे ।

अब कभी म्यूसिक की वजह से तो कभी क्रिकेट की वजह से, तो कभी कॉलेज के कई और क्रिया-कलापों की वजह से हरि के लेक्चर मिस होने लगे थे ।

इम्तिहान के दिनों में भी कभी-कभी मैच की प्रैक्टिस के लिए बुला लिया जाता ।

फिर रातों को देर रात तक पढ़ाई ।

वक़्त फिर हाथों से खिसकना शुरू हो गया । कोर्स ज़ियादा वक़्त कम । दिमाग अच्छा होते हुए कहाँ चूक ही रही थी हरि को ये सब समझ तो आता था लेकिन देखते देखते वक़्त खिसकता ही चला जाता था । 

न चाहते हुए भी पार्टियों  में उसे बुलाया जाना । क्योंकि उसके बिना पार्टियों में रौनक ही नहीं होती थी ।

कॉलेज में मशहूर होकर भी वो सब कुछ जैसे खोता चला गया ।

एक तरफ इतना आउट स्टैंडिंग स्टूडेंट के ढ़ेरों सर्टिफिकेट्स दूसरी तरफ स्टडी में गिरता ग्राफ ।

धीरे-धीरे कॉलेज के आखिरी साल औऱ आख़री महीनों में सभी स्टूडेंट अपनी अपनी पढ़ाई में व्यस्त होते चले गए । मिलना मिलाना कम होता गया ।

हरि ने सोचा था अब जाकर लेक्चररों से कुछ हेल्प ले लूंगा । लेकिन जब स्टूडेंट्स ने आना बंद कर दिया तो भी अब कम ही आते थे ।

धीरे-धीरे उसे वक़्त की नज़ाक़त का अहसास होने लगा था लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।

फाइनल इम्तिहान हुए । फिर वही 54 परसेंट मार्क्स ।

राजेश बड़ा ख़ुश था 72% मार्क्स लेकर पास हुआ ।

इतने में जोर से हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी वो (हरि) अपने ख्वाबों से अचानक बाहर निकला ।

उसकी दुकान के सामने एक बहुत बड़ी सफेद रंग की आड़ी गाड़ी आकर खड़ी हुई । बार-बार हॉर्न की आवाज ने हरि का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया  ।

दरवाजा खुला एक कोट पेंट में एक अंग्रेज की तरह इंसान बाहर आया । पहचानते देर नहीं लगी ।
वो राजेश ही था ।
दोनों बड़ी गर्म जोशी से मिले । हरि उसे आने घर ले गया । पुराने दिन याद करते हुए उन्होंने आज पार्टी देकर जश्न किया ।

लेकिन आज जश्न में वो मज़ा नहीं था जो उन दिनों आया करता था । आज दोनों ने शराब पी । दोनों की वजह अलग अलग थी ।

राजेश खुशी में पी रहा था  और हरि अपनी नाकामयाबी पर ।

फिर वह दर्द भरे नग्में ।

अपना गोल न पाने की कसक ।

पूछने पर----
राजेश ने बताया-कि कॉलेज करने के बाद वो अमेरिका चला गया । वहीं एम.एस. किया । थोड़ी देर जॉब की  । फैमिली को वहीं बुला लिया था । अब  वहीं पर  पापा का बिजनेस फल फूल रहा है मैं वही सब देख रहा हूँ ।

"तुम बताओ जैसे गुज़र रही है ?" --राजेश ने हरि के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा ।

  मत पूछ दोस्त--मेरा वक़्त औऱ मेरा कॅरिअर रेत की तरह मुट्ठी से फिसलता ही चला गया । देख लो पापा की परचून की दुकान फर्राटे से चला रहा हूँ।

ये कह हरि ख़ुद ही जोर से हा हा हा कर हँसने लगा ।

लेकिन उसकी हँसी में उसकी रज़ा बिल्कुल भी शामिल नहीं थी ।

----हर्ष महाजन

◆◆◆


बैडरूम - ( भाग-9)

 


         ट्रैन से उतर कर देवदत्त औऱ सुहासिनी अभी कुली को बुला ही रहे थे कि अचानक उनका फ़ोन बज उठता है । वो कुली को छोड़ फ़ोन को पिक कर हैलो बोलते हैं । उधर से कोई आवाज नहीं आती । सो तीन चार बार फिर हेलो बोलते हैं,  मगर उधर से कोई आवाज़ नहीं आती तो वो बंद करने के लिए आगे से देखते हैं तो फ़ोन पहले ही बंद होता है । देवदत्त उसे चैक करते हैं तो फ़ोन की बैटरी खत्म हुई होती है ।

फ़ोन को देखते हुए अज़ीब सा मुँह बनाते हुए फ़ोन को जेब में रख फिर से कुली को आवाज़ लगाते हैं ।

सुहासिनी को देवदत्त जी की चाल ढाल से यही महसूस हो रहा था कि घर जाना उनको बोझ सा लग रहा है । उसने पूछ ही लिया।
"अजी आप  उदास क्यूँ हो ?"

"सुहासिनी --- मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा" --देवदत्त ने धीरे से कहा  ।

                   "आप बच्चों के बारे में ज़्यादा मत सोचा करो । उनका वक़्त है सब ठीक हो जाएगा"---सुहासिनी ने देवदत्त को सांत्वना देते हुए कहा ।

इतने में कुली ने  सामान उठा कर कहा -  "किधर जाना है पहाड़ गंज की तरफ या----"

कुली की बात पूरी भी नही हुई कि देवदत्त ने कहा पहाड़गंज की तरफ ।

कुली ने सामान उठाया और वो दोनों, कुली के पीछे-पीछे स्टेशन से बाहर आ गए ।

बाहर आकर देवदत्त ने कुली से प्रीपेड टैक्सी बूथ की तरफ इशारा किया ही था कि देवदत्त को किसी ने आवाज़ लगाई ।

आवाज़ कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी । दोनों ने पीछे मुड़ कर देखा जो दोनों हैरान ।

सुहासिनी ने एक दम जल्दी- जल्दी पल्लू संभाला और उनके पाँव पड़ते हुए बोली - "अरे जेठ जी आप?"

देवदत्त ने प्रताप को गले लगाया  औऱ पूछा -- "तुम यहाँ स्टेशन पर?"

(देवदत्त ने अपनी शंका दूर करते हुए पूछ लिया क्यूँकि उन्हें तो एयरपोर्ट पर होना चाहिए था )

"कनाडा से कब आये ?" -- देवदत्त ने फिर पूछा ।

"कल" - प्रताप बोला ।

इतने में कुली ने बीच में ही टोका और पैसे मांगे ।

             पैसे देकर वो बुकिंग काउंटर की ओर बढ़ने लगे तो प्रताप ने कहा हमारी गाड़ी में ही चलो ।

देवदत्त ने टोका -- "तुम्हारा काम ?"

प्रताप ने कहा वो सब हो गया है ।
"तो फिर घर चलो" -- देवदत्त ने कहा ।

गाड़ी में बैठ फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ ।

प्रताप ने बच्चों का हाल पूछा तो सुहासिनी ने झट से जवाब दिया सब अच्छा चल रहा है और फिर सुहासिनी ने भी पूछ लिया भाभी तूलिका औऱ टिया,दिया कैसी हैं ?

"सब ठीक हैं । टिया दिया अपने बच्चों में मस्त हैं और ये तूलिका बिज़नेस वोमेन बन चुकी है । फुरसत ही नही है उसे किसी से बात करने की" --हँसते हुए आगे कहा --"देखो न उसी के टूर पर दिल्ली आया हूँ "

देवदत्त अभी तक चुप ही बैठे थे । उन्होंने प्रताप को बोला - "भाई साहब ज़रा फ़ोन मिलाना जरा राजेश या कामिनी को हमारा दोनों का तो फ़ोन ही डिस्चार्ज हो गये हैं ।"

इतने में प्रताप ने कामिनी का फ़ोन मिला कर देवदत्त के हाथ में दे दिया ।

देवदत्त ने फ़ोन सुहासिनी को दे दिया ।

सुहासिनी ने फ़ोन लिया और कान से लगा लिया ।

उधर से कामिनी की आवाज़ आयी-- "हेलो" 

तो सुहासिनी बिना किसी भूमिका के बोली-- "हेलो कामिनी ? पिन्टू कैसा है?"

        उधर से कामिनी का तो जैसे फुट-फुट कर ये हाल हो गया कि उस से बोला ही नहीं जा रहा था ।

माँ बाबू जी का सुबह से कोई फ़ोन न मिल पाना और फिर उनकी कोई खबर भी न मिल पाना और एक के ऊपर एक पहाड़ टूटना । सब एक दम साथ गुबार बन कामिनी के गले में जैसे अटक गया हो ।

सुहासिनी भी घबरा गई और पूछने लगी -- "क्या हुआ बताओ बेटा ?"

    "जल्दी आ जाओ माँ, बाबूजी (रोते-रोते) जल्दी आ जाओ यहाँ कुछ भी ठीक नहीं है"-- कामिनी बोलती चली गयी ।

देवदत्त औऱ प्रताप दोनों ही सुहासिनी की बातें ध्यान से सुन रहे थे ।

देवदत्त ने सुहासिनी को पिन्टू का हाल पूछने को कहा ।

फ़ोन कट चुका था ।

प्रताप ने फिर फ़ोन मिलाया औऱ फ़ोन पिक होने का इंतज़ार करने लगा ।

फ़ोन पिक हुआ--उधर से अबकी किसी आदमी की आवाज़ थी ।

प्रताप ने पूछा - आप कौन?

सर में राजेश का दोस्त हरि बोल रहा हूँ।  कामिनी बात करने की हालत में नहीं हैं ।

👌🏻प्रताप ने झट से पूछा - क्या हुआ कामिनी को?"

हरि का नाम सुनते ही प्रताप से देबदत ने फ़ोन ले लिया औऱ पूछा- हरि ? सब ठीक है न ?

हरि ने हकलाते हए बोला -- "अंकल आप बस जल्द आ जाइये"

"तुम कुछ बताते क्यों नहीं ?"-- देवदत्त हरि को लगभग डांटते हुए बोला।

हरि ने फ़ोन फिर कामिनी के हाथ में दे दिया ।

अब कामिनी ने फ़ोन लेकर कहा - बाबूजी आप कहाँ है ? जहां भी हैं सीधे चंगाराम अस्पताल पहुंच जाइये ।

देवदत्त को कामिनी के जोर-जोर से रोने की आवाजें आने लगी औऱ फ़ोन फिर बंद हो गया ।

देवदत्त ने टैक्सी ड्राइवर को बोला गाड़ी सीधे चंगाराम राम अस्पताल ले चलो जल्दी ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'

◆◆◆◆◆
क्रमश:
भाग-10
Coming soon


बैडरूम -(भाग-8)

 



           ★★शुरू से अभी-तक"★★

            राजेश और कामिनी अपने माता पिता, देवदत्त और सुहासिनी को अपनी कोठी में शिफ्ट होने हेतु एक दिन पहले उन्हें दिखाने के लिए ले जाते हैं । पिता देवदत्त को अच्छा नही लगता क्योंकि सारी कोठी में उन्हें अपने लिए कोई बैडरूम दिखाई नहीं देता  । राजेश औऱ  कामिनी मार्केट में सामान लेने गए होते हैं तो देवदत्त और  सुहासिनी दादी कृष्णा दत्त  के बीमार होने का बहाना बनाकर वहां से लुधियाना अपने भाई लक्ष्मी दत्त के पास चले जाते हैं ।
वहाँ जाकर उन्हें अपनी  सारी गाथा सुनाते हैं । भाई लक्ष्मीदत्त, देवदत्त को समझाते हैं कि तुम्हें अपने बेटे से बात करनी चाहिए थी । हालांकि भाई लक्ष्मी दत्त बहुत पहले से देवदत्त को लुधियाना  आने के लिए प्रेरित करते रहे थे ।
इधर राजेश और कामिनी दोनों परेशान हो जाते हैं | पोते  पिन्टू को दादू देवदत्त से काफी मोह होता है तो वो रो रो कर बेहाल हो जाता है । बार-बार जब राजेश और कामिनी बाबूजी जी को फोन करते हैं तो देवदत्त फोन आफ कर देते हैं ।
देवदत्त औऱ लक्ष्मीदत्त में फिर उनके पिता जी  ईश्वर दत्त  द्वारा जब विल बनाई गई थी उसमें जो देवदत्त को गिले  शिकवे थे उसके बारे में काफी बहस होती है  । लक्ष्मीदत्त ने जोर डाला कि ऊपर वाला पहला तल अब तुम्हारा है बहुत बढ़िया है अगर बेटे से कुछ ऐसा हो  भी जाता है  तो तुम सब यहीं आ जाना । वैसे तुम्हें कोई गलत फहमी भी हो सकती है तुम्हें उस से बात कर के आना चाहिए था, उन्होंने फिर कहा । इसी दुविधा और बात चीत करते करते रात हो जाती है  और दोनों देवदत्त और सुहासिनी पहले तल पर  सोने चले जाते हैं । सुबह-सुबह कामिनी का फोन आता है पिन्टू सीढ़ियों से गिर गया है  उसका सर फट जाता  है । वो कहती है  तुम जल्दी आ जाओ । पिन्टू की खबर सुन देवदत्त बेहोश हो जाता है । शाम की गाड़ी से देवदत्त और कामिनी लुधियाना से दिल्ली की ओर रवाना हो जाते हैं ।
इधर राजेश पिन्टू को अस्पताल ले जाता है । बाद में कामिनी भी घर बंद कर चाबी पडौसी मालती को दे कर अस्पताल चली जाती हैं । पीछे से अमेरिका से राजेश का छोटा भाई मुकेश आ जाता है | पड़ोसन मालती से मिलता है वो उसे बताती है कि वो लोग उसे पिन्टू की बात बताती  हैं |
मुकेश अस्पताल पहुंच जाता है पिंटू आई.सी. यू भरती होता है | | आपरेशन ठीक ठाक हो जाता है मुकेश और कामिनी घर पर आ जाते हैं |
राजेश अस्पताल में ही रुक जाता है | पिता देवदत और माँ सुहासिनी ने सुबह गाडी से दिल्ली पहुंचना होता है |
राजेश सुबह ट्रेन के आने के वक्त के हिसाब से सुबह सात बजे बाबूजी को फोन लगाता है |
बाबूजी फोन उठाते हैं फिर काट देते हैं |

इससे राजेश बहुत परेशान हो जाता है ।

★★★★★★★★★★

अब आगे ------

       घर पर मुकेश और भाभी कामिनी सारी रात बतियाते हुए बहुत देर से सोते हैं तो सुबह नींद बहुत देर से खुलती है |
सुबह के दस बज जाते हैं मुकेश की नींद खुलती है |
वो घडी देखता है दस बज चुके होते हैं |

वो भाभी कामिनी को जा कर उठाता है - "भाभी लेट हो गए हैं जल्दी उठो"

कामिनी हडबडाहट में उठती है |

        घडी देख कर वो भी परेशान हो जाती है  और राजेश की चिंता होने लगती है मुकेश को बोलती है मुकेश भय्या --"क्या भय्या का फ़ोन नहीं आया ?"

"नहीं" मुकेश ने छोटा सा जवाब दिया |

            कामिनी घबरा जाती है मुकेश से  कहती है  -- सुबह  से  इंतज़ार  कर  रहे होंगे  आज बाबू जी ने भी आना था "

ये कहती हुई राजेश को फ़ोन लगाती है | फोन की बेल बजती रहती है | वो उठाता नहीं है ।

  मुकेश और कामिनी अब और परेशान हो जाते हैं |
उनके दिमाग में परेशानी ये की न राजेश ने उसे  फोन  किया  न  ही वो खुद फोन पिक कर रहे हैं |  ये क्या माजरा है ,?

कुछ सोच कर कामिनी बाबू जी को फोन लगाती है |
बाबूजी का फोन स्विच आफ आता  है |

ये सोच कर कि बाबूजी का फोन डिस्चार्ज हुआ हो सकता है तो वो मम्मी का फोन लगाती है |
वो भी स्विच आफ आता है |
अब दोनों और भी ज़्यादा घबरा  जाते हैं |
             जल्दी से तैयार हो बिना कुछ खाए वो अस्पताल पहुँचते हैं |

ऊपर जहां पिंटू का आपरेशन हुआ होता है वहाँ लॉबी में राजेश नहीं होता | अंदर डॉक्टर की खोज करते हैं तो वो अभी आया ही नहीं होता |

कामिनी फिर आस पास और पेशेंट्स के रिश्तेदार होते हैं उनसे पूछती है - " यहाँ जो हमारे बेटे के पिता रात को रुके थे उनका कुछ पता है कहाँ गए हैं ?

उनमें से एक ने कहा -- जो रात को ये वाला कम्बल ले के सोए थे ? ( कम्बल दिखाता हुआ )

कामिनी ने झट से कहा --"हाँ हाँ यही यही"
वो शख्स एक दम से बोला _ मैडम वो तो सुबह जब जमादार आया तो उसने बताया कि कोई आदमी यहाँ बेहोश पड़ा है ? तो उसे इमरजेंसी वार्ड में ले गये थे वहीँ जा कर पता कीजिये |

कामिनी पर तो जैसे पहाड़ टूट पडा | वो दोनों भागते हुए इमरजेंसी वार्ड की और दौड़े |

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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क्रमश:

भाग-9
Coming soon

बैडरूम-(भाग-7)

 





         
                     ●अभी तक●

               राजेश औऱ कामिनी पिन्टू के साथ जब मार्केट से देर से लौटते हैं तो अंधेरा हो चुका होता है ।  नई कोठी में राजेश औऱ कामिनी परेशान हो जाते हैं । राजेश अंदर जाकर पहले सभी लाइटें जलाता है । फिर दोनों अंदर देखते हैं कि तो बाबूजी औऱ माँ सुहासिनी भी घर में नहीं हैं । ये देख दोनों औऱ ज़्यादा परेशान हो जाते हैं । पिन्टू भी दादू-दादू करता इधर-उधर देखने को दौड़ता है औऱ देखते-देखते जब नहीं मिलते तो वो रोने लगता है ।
                      राजेश को कुछ सूझता ही नहीं कभी बाहर तो कभी अंदर । फिर सामने वाले घर की छत से कोई बताता है कि दो बुज़ुर्ग परेशान से लग रहे थे इस घर के आगे से ऑटो पर कहीं निकले हैं ।

कामिनी फिर राजेश को बोलती है कि बाबू जी को फ़ोन लगाओ ?

               पर कई बार फोन लगाया जो मिलता नहीं है । इतने में बाबू जी का फ़ोन ख़ुद से आ जाता है ।

    वो राजेश को बताते हैं कि ताऊ जी का फ़ोन आया था लुधियाना से । 

                      दादी कृश्णा दत्त की तबियत अचानक खराब हो जाती है उन्हें अस्पताल दाखिल कराया है ।

          इसलिए वो लुधियाना जा रहे हैं । राजेश ने लुधियाना ताऊ जी को फ़ोन लगाकर खुद भी आने की बात पूछी तो उन्होंने मना कर दिया ।

★★★★★★★★■★★★★★★★★

अब आगे:-

   राजेश निढाल हो, अंदर पलंग पर लेट जाता है । कामिनी पिन्टू को चुप कराने में लग जाती है ।

लेटे-लेटे राजेश ने कामिनी को बोला-- "कामिनी ?"

"हूँ "-- कामिनी भी अनमनी सी बोलती है ।

"किस्मत  कितनी खराब है हमारी---जो दिन हमने यहां आने के लिए चुना उसी दिन ये सब होना था ?"-- राजेश लगभग भरी सी आवाज में बोला ।

                 "हाँ -- ऊपर वाले के आगे तो कोई भी नहीं है न "---कामिनी अनमनी सी बोली और आगे कहा - "लेकिन बाकि सब तो ठीक है लेकिन, बाबूजी !! अचानक, बिना बताए ही चले गए?
थोड़ा सा रुक भी तो सकते थे"

राजेश ने बीच में ही टोकते औऱ खिसियाते हुए कहा-- "बाबूजी का तो तुम्हें पता ही है । वो किसी भी काम में एक पल भी इंतज़ार नही करते । उनका स्वभाव ही ऐसा है ।"

                      "पर कामिनी इस नई कोठी से भी अब मेरा मन खट्टा हो गया है, महूर्त ही सही नहीं निकला ।" -- राजेश ने ढीली आवाज़ में कहा ।

           "ये क्या कहे जा रहे हो आप"--खून पसीने की कमाई लगी है इस पर ।"---- थोडी गुस्से में पर लाडले अंदाज़ में कामिनी ने कहा ।

        "हाँ ये तो है ।"--राजेश ने कहा -
"बहुत थक गया हूँ ।"

"अब तुम खड़े हो जाओ घर वापिस चलना है अंधेरा औऱ बढ़ जाएगा और ट्रैफिक भी फिर ज़ियादा हो जाएगा ।"---कामिनी एक ही सांस में ये सब कह गयी ।

राजेश बोला -- "आज रहने दो, सुबह चलेंगे । हिम्मत भी नही है और अब मूड भी नहीं है ।"

कामिनी की गोद में पिन्टू अब तक रो-रो कर सो चुका था ।

           कामिनी ने उसे गोद से उतार कर पलंग पर सुला दिया और बोली---"खाने का क्या करोगे ?
भूखे ही रहोगे क्या?

       "मेरे बस की तो नहीं है दुबारा अब बाज़ार जाकर सामान लाया जाए ?"--कामिनी असहाय सी बोली ।

राजेश ने कहा ---मुझे भूख तो वैसे भी नही है ये जो खाने का सामान ले कर आये है ना, इसी में से कुछ कोल्ड ड्रिंक के साथ खा पी लेते हैं"

"औऱ ये पिन्टू?? -- आधी रात को जो उठ के मांगेगा  ?"-- कामिनी भिन्नाई ।

" तो इसका मतलब , मार्केट जाना ही पड़ेगा ?  फिर ऐसा करते है घर ही चलते हैं" -- राजेश ने सलाह दी ।

"नहीं अब मूड बदल गया है यहीं पड़ौस से किसी से दूध का पैकेट पूछती हूँ मिल जाये तो" --  कामिनी बोली औऱ उठ कर बाहर चली गयी ।

दूध लाकर गर्म किया और पिन्टू को उठा कर नींद में ही थोड़ा-थोड़ा कर पिला दिया ।

दोनों ने भी उस सामान में से थोड़ा बहुत खाया और सो गए ।

        सुबह जल्दी उठ वो कोठी से विकास पुरी के लिए निकल लिए ।

★★★★★★★★★★★★★★★★★

                ●   पिन्टू बेहोश   ●

        विकास पूरी पहुंचते ही राजेश ने दरवाजा खोला और सीधे बाथरूम गया फ्रेश होने के लिए । कामिनी ने सामान उठाकर अंदर रक्खा ।

पिन्टू दादू-दादू बोलता हुआ,  यहाँ भी हर कमरे में ढूँढने लगा । कहीं न मिलने पर वो फिर रोने लगा ।
रोते-रोते वो ऊपर छत पे गया ।

        उसे पता था दादू रोज इस वक़्त  छत पर पौधों को पानी देने जाते हैं । कामिनी ने जानते हुए भी पिन्टू को बाबूजी के बारे में कुछ नहीं बताया कि वो परेशान न करे ।

इतने में सीढ़ियों से धड़-धड़-धड़ कोई चीज़ गिरने की आवाज़ के साथ पिन्टू की चीख की आवाज सुनाई दी और उसी पल सब शांत हो गया ।

राजेश बाथरूम में था कामिनी तो ऐसे हो गयी जैसे काटो तो खून नहीं ।

       कामिनी ने जोर से  बाथरूम का दरवाजा खटखटाते हुए बोलती जा रही थी --"पिन्टू -- वो --पिन्टू गिर गया । सर फट गया उसका जल्दी निकलो-"-कामिनी चिल्लाती जा रही थी ।

      चीखना चिल्लाना इतना जोर जोर से हुआ कि पडौसी इकट्ठा हो गये ।

इतने में राजेश बाहर आया और ये सब देख सुन फटाफट तैयार हो उसने गाड़ी स्टार्ट की ।

        पडौसी, हरि ने पिन्टू को उठाया और चंगाराम अस्पताल के लिए निकल पड़े ।

इधर कामिनी ने सीधे बाबूजी को फोन मिलाया लेकिन उनका फोन लग नही रहा था ।

कामिनी ने फिर ताऊजी का फोन मिलाया । फोन मिल रहा था पर कोई पिक नहीं कर रहा था ।

कुछ देर बाद फ़ोन उठा तो बाबू जी ने ही उठाया ।
कामिनी ने रोते-रोते बताया पिन्टू आपको ढूंढता ढूंढता  सीढ़ियों से गिर गया बाबूजी । जल्दी आ जाओ वो बोलती जा रही थी ।

उधर बाबूजी पिन्टू की बात सुन बेहोश हो गये तो लक्ष्मी ताऊजी  ने फोन ले कर बात की ।

कामिनी ने जब बदली आवाज सुनी तो पूछा --"बाबूजी कहां गए । वो ठीक तो हैं ना ?"

             लक्ष्मीदत्त ताऊ जी ने कहा-- "नहीं वो ठीक हैं वापिसी की तैयारी कर रहे हैं  तू चिंता न कर जल्दी पहुँच जाएंगे तुम पिन्टू का तब तक अस्पताल में इंतजाम करो।"

इतने में फोन डिस्कनेक्ट हो गया ।

           फोन रख कामिनी कुछ ज़रूरी सामान लेकर घर को ताला लगा चाबी पड़ौस में मालती आँटी को दे वो अस्पताल को चल दी ।

★★★★★★★★★★★★★★★★★

      ● पिन्टू औऱ ऑपेरशन थियेटर

         राजेश ने अस्पताल के एमरजेंसी वार्ड के आगे गाड़ी रोकी । तीन मेल नर्स फटाफट बेहोश पिन्टू को अंदर ले गए । डॉक्टरों की टीम ने उसे चेक कर सीधे ऑपरेशन थियेटर के लिए ले गए ।

                थोड़ी देर में अंदर से डाक्टर ने एक स्लिप बाहर भेजी औऱ एक संदेसा ये कि ब्लड का इंतज़ाम जितनी जल्दी होगा ऑपरेशन उतनी जल्दी शुरू होगा ।

        हरि ने देखा --उस स्लिप में कुछ दवाईयां औऱ चार बोतल ब्लड लाने को कहा गया है ।

हरि ने राजेश को स्लिप दिखाई और दवाइयाँ लेने चला गया ।

राजेश परेशान इधर-उधर अपने दोस्तों को ब्लड के लिए फोन घुमाने लगा पर कहीं से कोई रेस्पॉन्स नहीं मिल पा रहा था ।

राजेश अब घबराकर अस्पताल के बाहर आ गया । बाहर उसने कामिनी को ऑटो से उतरते देखा तो उसके दिल को थोड़ी राहत मिली ।

राजेश ने कामिनी को सारी बात बताई ।

कामिनी ने सारी स्तिथि को भांपते हुए राजेश को ढांढस बंधाया औऱ बोली -- "आप चिंता न करें सब ठीक हो जाएगा ।"

स्तिथि को संभालते हुए उसने समझदारी से काम लिया ।

कामिनी के इतना कहने भर से ही राजेश को थोड़ी होशियारी सी महसूस हुई ।

"चलो अंदर चलते हैं"---कामिनी फिर बोली ।

इतने में हरि भी दवाइयाँ लेकर पहुँच गया । तीनों फिर ऊपर गए ।
ऊपर जाते ही कामिनी ने डॉक्टर  को दवाइयाँ दीं ।

डाक्टर ने फ़िर पूछा -- "ब्लड का इंतजाम हो गया क्या?"

कामिनी बोली - "डाक्टर साहब हम कहाँ जाएँ ब्लड लेने ?"

डाक्टर ने अब साफ-साफ शब्दों में कह दिया - "मैडम बच्चे का बहुत खून बह चुका है ये न हो बच्चा~~~~~"

कहता हुआ डॉक्टर अंदर चला गया ।

राजेश को तीन महीने पहले जॉन्डिस हुआ था इसलिये वो ब्लड दे नहीं सकता था ।

कामिनी ने अस्पताल के ब्लड बैंक जाकर डॉक्टर की पर्ची के अनुसार  खुद अपना ब्लड दिया और डाक्टर को आकर बता दिया ।

डॉक्टर ने बोला - "मैं ऑपेरशन शुरू कर रहा हूँ। एक बोतल जैसे ही खत्म होगी तो उसके बाद के लिए इंतज़ाम कर के रखना ।
नहीं तो ऑपेरशन में मुश्किल हो सकती है ।"

अब तीन बोतल ब्लड का औऱ इंतज़ाम करना था ।

राजेश वहॉं अस्पताल के बाहर लोगों से अपने बच्चे के लिए  ब्लड देने की अपील कर रहा था ।
एक आदमी अभी-अभी ऑटो से उतर उसे पेमेंट कर रहा था । राजेश जल्दी से पेमेंट करते हुए शख्स से ब्लड के लिए अपील करने लगा ।

वो शख्स जैसे ही मुड़ा --राजेश हैरान हो कर उसे देखने लगा औऱ बरबस ही मुँह से निकल गया---- "मुक्की तुम !! ~~~~ यहाँ कैसे??"

मुकेश ने बोला -- "सब बातें छोड़ो पहले ये बताओ ब्लड कहाँ देना है ?

राजेश हैरान होकर उसे देखने लगा और सोचने लगा उसे ये सब कैसे मालूम हुआ ? आँखें नम हो गईं ।

ये देख मुकेश बोला--"घबराओ नहीं भैया सब ठीक हो जाएगा ।"

साथ में एक दोस्त भी था - "इसे पहचाना भैया?" -- उस शख्स की तरफ इशारा करता हुआ मुकेश बोला ।

राजेश ने उसकी तरफ देख पहचानते हुए बोला -- "ओ हो ये वो योगेश, जो रफी के गाने गाता था । वही है न ?"

ये सुन योगेश भी नमस्कार भाई साहब कहता हुआ हँस पड़ा ।

दोनों ने अंदर जाकर ब्लड दिया ।

ऑपेरशन दो घंटे चला

       " डाक्टर ने बताया सब ठीक हो गया है पांच-पांच टाँके दो जगह लगे हैं बच्चा खतरे से बाहर है"  --- डॉक्टर ने बाहर आकर खुशी-खुशी बताया ।

               कामिनी ने राजेश को बताया कि माँ का दो बार फोन आ चुका है । राजधानी में बैठे हैं सुबह पहुंचेंगे ।

           राजेश ने अपने मन की बात कामिनी को बताई -- "कामिनी एक बात बार-बार मन में खटक रही है ।"

कामिनी ने झट से पूछा - "क्या?"

"बाबूजी जब से गये हैं, उन्होंने एक बार भी ख़ुद मुझसे बात नही की ?" -- राजेश के स्वर में दर्द झलक रहा था ।

रुक कर फिर बोला - "हमसे कुछ भूल तो नहीं हो गयी या हमारी तरफ से कोई बात उन्हें बुरी तो नहीं लगी ?"

"अब ये तो वो ही बता सकते हैं"-- कामिनी ने भी दो टूक जवाब देते हुए कहा ।

रात को राजेश अस्पताल में रुक गया । हरि तीनों को ले घर चला गया ।

देवर भाभी की सारी रात एक दूसरे की ख़ैर पूछते औऱ बतियाते निकली ।

अस्पताल में राजेश की रात भी आँखों-आंखों में निकल गयी ।

राजेश ने घड़ी देखी--- सुबह के सात बज चुके थे ।

सोचा ट्रेन आ चुकी होगी ।

ये सोच बाबूजी को फ़ोन लगाकर पूछता हूँ कि इस वक़्त वो कहाँ पहुँचे हैं।

फोन लगाया बाबूजी ने ही उठाया ।

"कहाँ हो बाबूजी ?"-- जैसे ही राजेश ने पूछा ।

उधर से फ़ोन कट गया ।

राजेश ने फिर कई बार फोन कर के देखा -- माँ और बाबूजी दोनों का फ़ोन अब स्विच ऑफ आने लगा था ।

उसे कुछ झटका सा महसूस हुआ फ़ोन बंद होने के बाद भी कान से लगा का लगा  ही रह गया ।

---हर्ष महाजन
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क्रमश:

भाग-8
Coming soon





         
                     ●अभी तक●

               राजेश औऱ कामिनी पिन्टू के साथ जब मार्केट से देर से लौटते हैं तो अंधेरा हो चुका होता है ।  नई कोठी में राजेश औऱ कामिनी परेशान हो जाते हैं । राजेश अंदर जाकर पहले सभी लाइटें जलाता है । फिर दोनों अंदर देखते हैं कि तो बाबूजी औऱ माँ सुहासिनी भी घर में नहीं हैं । ये देख दोनों औऱ ज़्यादा परेशान हो जाते हैं । पिन्टू भी दादू-दादू करता इधर-उधर देखने को दौड़ता है औऱ देखते-देखते जब नहीं मिलते तो वो रोने लगता है ।
                      राजेश को कुछ सूझता ही नहीं कभी बाहर तो कभी अंदर । फिर सामने वाले घर की छत से कोई बताता है कि दो बुज़ुर्ग परेशान से लग रहे थे इस घर के आगे से ऑटो पर कहीं निकले हैं ।

कामिनी फिर राजेश को बोलती है कि बाबू जी को फ़ोन लगाओ ?

               पर कई बार फोन लगाया जो मिलता नहीं है । इतने में बाबू जी का फ़ोन ख़ुद से आ जाता है ।

    वो राजेश को बताते हैं कि ताऊ जी का फ़ोन आया था लुधियाना से । 

                      दादी कृश्णा दत्त की तबियत अचानक खराब हो जाती है उन्हें अस्पताल दाखिल कराया है ।

          इसलिए वो लुधियाना जा रहे हैं । राजेश ने लुधियाना ताऊ जी को फ़ोन लगाकर खुद भी आने की बात पूछी तो उन्होंने मना कर दिया ।

★★★★★★★★■★★★★★★★★

अब आगे:-

   राजेश निढाल हो, अंदर पलंग पर लेट जाता है । कामिनी पिन्टू को चुप कराने में लग जाती है ।

लेटे-लेटे राजेश ने कामिनी को बोला-- "कामिनी ?"

"हूँ "-- कामिनी भी अनमनी सी बोलती है ।

"किस्मत  कितनी खराब है हमारी---जो दिन हमने यहां आने के लिए चुना उसी दिन ये सब होना था ?"-- राजेश लगभग भरी सी आवाज में बोला ।

                 "हाँ -- ऊपर वाले के आगे तो कोई भी नहीं है न "---कामिनी अनमनी सी बोली और आगे कहा - "लेकिन बाकि सब तो ठीक है लेकिन, बाबूजी !! अचानक, बिना बताए ही चले गए?
थोड़ा सा रुक भी तो सकते थे"

राजेश ने बीच में ही टोकते औऱ खिसियाते हुए कहा-- "बाबूजी का तो तुम्हें पता ही है । वो किसी भी काम में एक पल भी इंतज़ार नही करते । उनका स्वभाव ही ऐसा है ।"

                      "पर कामिनी इस नई कोठी से भी अब मेरा मन खट्टा हो गया है, महूर्त ही सही नहीं निकला ।" -- राजेश ने ढीली आवाज़ में कहा ।

           "ये क्या कहे जा रहे हो आप"--खून पसीने की कमाई लगी है इस पर ।"---- थोडी गुस्से में पर लाडले अंदाज़ में कामिनी ने कहा ।

        "हाँ ये तो है ।"--राजेश ने कहा -
"बहुत थक गया हूँ ।"

"अब तुम खड़े हो जाओ घर वापिस चलना है अंधेरा औऱ बढ़ जाएगा और ट्रैफिक भी फिर ज़ियादा हो जाएगा ।"---कामिनी एक ही सांस में ये सब कह गयी ।

राजेश बोला -- "आज रहने दो, सुबह चलेंगे । हिम्मत भी नही है और अब मूड भी नहीं है ।"

कामिनी की गोद में पिन्टू अब तक रो-रो कर सो चुका था ।

           कामिनी ने उसे गोद से उतार कर पलंग पर सुला दिया और बोली---"खाने का क्या करोगे ?
भूखे ही रहोगे क्या?

       "मेरे बस की तो नहीं है दुबारा अब बाज़ार जाकर सामान लाया जाए ?"--कामिनी असहाय सी बोली ।

राजेश ने कहा ---मुझे भूख तो वैसे भी नही है ये जो खाने का सामान ले कर आये है ना, इसी में से कुछ कोल्ड ड्रिंक के साथ खा पी लेते हैं"

"औऱ ये पिन्टू?? -- आधी रात को जो उठ के मांगेगा  ?"-- कामिनी भिन्नाई ।

" तो इसका मतलब , मार्केट जाना ही पड़ेगा ?  फिर ऐसा करते है घर ही चलते हैं" -- राजेश ने सलाह दी ।

"नहीं अब मूड बदल गया है यहीं पड़ौस से किसी से दूध का पैकेट पूछती हूँ मिल जाये तो" --  कामिनी बोली औऱ उठ कर बाहर चली गयी ।

दूध लाकर गर्म किया और पिन्टू को उठा कर नींद में ही थोड़ा-थोड़ा कर पिला दिया ।

दोनों ने भी उस सामान में से थोड़ा बहुत खाया और सो गए ।

        सुबह जल्दी उठ वो कोठी से विकास पुरी के लिए निकल लिए ।

★★★★★★★★★★★★★★★★★

                ●   पिन्टू बेहोश   ●

        विकास पूरी पहुंचते ही राजेश ने दरवाजा खोला और सीधे बाथरूम गया फ्रेश होने के लिए । कामिनी ने सामान उठाकर अंदर रक्खा ।

पिन्टू दादू-दादू बोलता हुआ,  यहाँ भी हर कमरे में ढूँढने लगा । कहीं न मिलने पर वो फिर रोने लगा ।
रोते-रोते वो ऊपर छत पे गया ।

        उसे पता था दादू रोज इस वक़्त  छत पर पौधों को पानी देने जाते हैं । कामिनी ने जानते हुए भी पिन्टू को बाबूजी के बारे में कुछ नहीं बताया कि वो परेशान न करे ।

इतने में सीढ़ियों से धड़-धड़-धड़ कोई चीज़ गिरने की आवाज़ के साथ पिन्टू की चीख की आवाज सुनाई दी और उसी पल सब शांत हो गया ।

राजेश बाथरूम में था कामिनी तो ऐसे हो गयी जैसे काटो तो खून नहीं ।

       कामिनी ने जोर से  बाथरूम का दरवाजा खटखटाते हुए बोलती जा रही थी --"पिन्टू -- वो --पिन्टू गिर गया । सर फट गया उसका जल्दी निकलो-"-कामिनी चिल्लाती जा रही थी ।

      चीखना चिल्लाना इतना जोर जोर से हुआ कि पडौसी इकट्ठा हो गये ।

इतने में राजेश बाहर आया और ये सब देख सुन फटाफट तैयार हो उसने गाड़ी स्टार्ट की ।

        पडौसी, हरि ने पिन्टू को उठाया और चंगाराम अस्पताल के लिए निकल पड़े ।

इधर कामिनी ने सीधे बाबूजी को फोन मिलाया लेकिन उनका फोन लग नही रहा था ।

कामिनी ने फिर ताऊजी का फोन मिलाया । फोन मिल रहा था पर कोई पिक नहीं कर रहा था ।

कुछ देर बाद फ़ोन उठा तो बाबू जी ने ही उठाया ।
कामिनी ने रोते-रोते बताया पिन्टू आपको ढूंढता ढूंढता  सीढ़ियों से गिर गया बाबूजी । जल्दी आ जाओ वो बोलती जा रही थी ।

उधर बाबूजी पिन्टू की बात सुन बेहोश हो गये तो लक्ष्मी ताऊजी  ने फोन ले कर बात की ।

कामिनी ने जब बदली आवाज सुनी तो पूछा --"बाबूजी कहां गए । वो ठीक तो हैं ना ?"

             लक्ष्मीदत्त ताऊ जी ने कहा-- "नहीं वो ठीक हैं वापिसी की तैयारी कर रहे हैं  तू चिंता न कर जल्दी पहुँच जाएंगे तुम पिन्टू का तब तक अस्पताल में इंतजाम करो।"

इतने में फोन डिस्कनेक्ट हो गया ।

           फोन रख कामिनी कुछ ज़रूरी सामान लेकर घर को ताला लगा चाबी पड़ौस में मालती आँटी को दे वो अस्पताल को चल दी ।

★★★★★★★★★★★★★★★★★

      ● पिन्टू औऱ ऑपेरशन थियेटर

         राजेश ने अस्पताल के एमरजेंसी वार्ड के आगे गाड़ी रोकी । तीन मेल नर्स फटाफट बेहोश पिन्टू को अंदर ले गए । डॉक्टरों की टीम ने उसे चेक कर सीधे ऑपरेशन थियेटर के लिए ले गए ।

                थोड़ी देर में अंदर से डाक्टर ने एक स्लिप बाहर भेजी औऱ एक संदेसा ये कि ब्लड का इंतज़ाम जितनी जल्दी होगा ऑपरेशन उतनी जल्दी शुरू होगा ।

        हरि ने देखा --उस स्लिप में कुछ दवाईयां औऱ चार बोतल ब्लड लाने को कहा गया है ।

हरि ने राजेश को स्लिप दिखाई और दवाइयाँ लेने चला गया ।

राजेश परेशान इधर-उधर अपने दोस्तों को ब्लड के लिए फोन घुमाने लगा पर कहीं से कोई रेस्पॉन्स नहीं मिल पा रहा था ।

राजेश अब घबराकर अस्पताल के बाहर आ गया । बाहर उसने कामिनी को ऑटो से उतरते देखा तो उसके दिल को थोड़ी राहत मिली ।

राजेश ने कामिनी को सारी बात बताई ।

कामिनी ने सारी स्तिथि को भांपते हुए राजेश को ढांढस बंधाया औऱ बोली -- "आप चिंता न करें सब ठीक हो जाएगा ।"

स्तिथि को संभालते हुए उसने समझदारी से काम लिया ।

कामिनी के इतना कहने भर से ही राजेश को थोड़ी होशियारी सी महसूस हुई ।

"चलो अंदर चलते हैं"---कामिनी फिर बोली ।

इतने में हरि भी दवाइयाँ लेकर पहुँच गया । तीनों फिर ऊपर गए ।
ऊपर जाते ही कामिनी ने डॉक्टर  को दवाइयाँ दीं ।

डाक्टर ने फ़िर पूछा -- "ब्लड का इंतजाम हो गया क्या?"

कामिनी बोली - "डाक्टर साहब हम कहाँ जाएँ ब्लड लेने ?"

डाक्टर ने अब साफ-साफ शब्दों में कह दिया - "मैडम बच्चे का बहुत खून बह चुका है ये न हो बच्चा~~~~~"

कहता हुआ डॉक्टर अंदर चला गया ।

राजेश को तीन महीने पहले जॉन्डिस हुआ था इसलिये वो ब्लड दे नहीं सकता था ।

कामिनी ने अस्पताल के ब्लड बैंक जाकर डॉक्टर की पर्ची के अनुसार  खुद अपना ब्लड दिया और डाक्टर को आकर बता दिया ।

डॉक्टर ने बोला - "मैं ऑपेरशन शुरू कर रहा हूँ। एक बोतल जैसे ही खत्म होगी तो उसके बाद के लिए इंतज़ाम कर के रखना ।
नहीं तो ऑपेरशन में मुश्किल हो सकती है ।"

अब तीन बोतल ब्लड का औऱ इंतज़ाम करना था ।

राजेश वहॉं अस्पताल के बाहर लोगों से अपने बच्चे के लिए  ब्लड देने की अपील कर रहा था ।
एक आदमी अभी-अभी ऑटो से उतर उसे पेमेंट कर रहा था । राजेश जल्दी से पेमेंट करते हुए शख्स से ब्लड के लिए अपील करने लगा ।

वो शख्स जैसे ही मुड़ा --राजेश हैरान हो कर उसे देखने लगा औऱ बरबस ही मुँह से निकल गया---- "मुक्की तुम !! ~~~~ यहाँ कैसे??"

मुकेश ने बोला -- "सब बातें छोड़ो पहले ये बताओ ब्लड कहाँ देना है ?

राजेश हैरान होकर उसे देखने लगा और सोचने लगा उसे ये सब कैसे मालूम हुआ ? आँखें नम हो गईं ।

ये देख मुकेश बोला--"घबराओ नहीं भैया सब ठीक हो जाएगा ।"

साथ में एक दोस्त भी था - "इसे पहचाना भैया?" -- उस शख्स की तरफ इशारा करता हुआ मुकेश बोला ।

राजेश ने उसकी तरफ देख पहचानते हुए बोला -- "ओ हो ये वो योगेश, जो रफी के गाने गाता था । वही है न ?"

ये सुन योगेश भी नमस्कार भाई साहब कहता हुआ हँस पड़ा ।

दोनों ने अंदर जाकर ब्लड दिया ।

ऑपेरशन दो घंटे चला

       " डाक्टर ने बताया सब ठीक हो गया है पांच-पांच टाँके दो जगह लगे हैं बच्चा खतरे से बाहर है"  --- डॉक्टर ने बाहर आकर खुशी-खुशी बताया ।

               कामिनी ने राजेश को बताया कि माँ का दो बार फोन आ चुका है । राजधानी में बैठे हैं सुबह पहुंचेंगे ।

           राजेश ने अपने मन की बात कामिनी को बताई -- "कामिनी एक बात बार-बार मन में खटक रही है ।"

कामिनी ने झट से पूछा - "क्या?"

"बाबूजी जब से गये हैं, उन्होंने एक बार भी ख़ुद मुझसे बात नही की ?" -- राजेश के स्वर में दर्द झलक रहा था ।

रुक कर फिर बोला - "हमसे कुछ भूल तो नहीं हो गयी या हमारी तरफ से कोई बात उन्हें बुरी तो नहीं लगी ?"

"अब ये तो वो ही बता सकते हैं"-- कामिनी ने भी दो टूक जवाब देते हुए कहा ।

रात को राजेश अस्पताल में रुक गया । हरि तीनों को ले घर चला गया ।

देवर भाभी की सारी रात एक दूसरे की ख़ैर पूछते औऱ बतियाते निकली ।

अस्पताल में राजेश की रात भी आँखों-आंखों में निकल गयी ।

राजेश ने घड़ी देखी--- सुबह के सात बज चुके थे ।

सोचा ट्रेन आ चुकी होगी ।

ये सोच बाबूजी को फ़ोन लगाकर पूछता हूँ कि इस वक़्त वो कहाँ पहुँचे हैं।

फोन लगाया बाबूजी ने ही उठाया ।

"कहाँ हो बाबूजी ?"-- जैसे ही राजेश ने पूछा ।

उधर से फ़ोन कट गया ।

राजेश ने फिर कई बार फोन कर के देखा -- माँ और बाबूजी दोनों का फ़ोन अब स्विच ऑफ आने लगा था ।

उसे कुछ झटका सा महसूस हुआ फ़ोन बंद होने के बाद भी कान से लगा का लगा  ही रह गया ।

---हर्ष महाजन
◆◆◆◆◆
क्रमश:

भाग-8
Coming soon

Sunday, July 4, 2021

बैडरूम-(भाग-6)

 

:कास्ट:
देवदत्त के रिश्तों के अनुसार

दादा/दादी
छुटमल दत्त/मालती दत्त

बाऊजी(पिता जी) = ईश्वर दत्त
माता जी =  कृश्णा देवी दत्त

तीन भाई:
प्रताप दत्त/लक्ष्मी दत्त/देवदत्त
राधा/,कमला/सन्तोष
*****
प्रताप दत्त/तूलिका दत्त
इनके बच्चे
भूषण/रिया/टिया/दिया

लक्ष्मीदत्त/कोटिलया
इनके बच्चे और उनकी पत्नी
1 सुधीर/देविका
2 कबीर/रीना
3 कृतिका

देवदत्त/सुहासिनी

इनके बच्चे
1) राजेश/कामिनी/पिंटू
2) मुकेश दत्त/एकता/अभि/अकेली
3)लेता
प्रिया -- नॉकरानी
★★★★★★★★★★★★★★★★

देवदत्त को जब होश आया तो उन्होंने अपने को पलंग पर लेटा पाया ।

डाक्टर साहब उनके पास खड़े हो हिदायतें बता रहे थे । चेक- अप कर उन्होंने बताया कि वो अब बिल्कुल ठीक हैं । थोड़ा स्ट्रेस ज़्यादा होने की वजह से ऐसा हुआ है । दवाई मैनें लिख दी है दिन में तीन बार देनी है । अगर फिर छाती में दर्द महसूस हो तो ये गैस की गोली है फिर से दे देना ।

लक्ष्मीदत्त ने डॉक्टर से पूछा कि क्या ये दिल्ली ट्रैवेल कर सकते हैं ?

"हाँ हाँ क्यों नहीं, कुछ नहीं है इन्हें " -- जा सकते हैं बिना कोई चिंता किये ।

           अभी तक सभी लोग कमरे में बैचेन से बैठे थे । सुहासिनी बहुत परेशान थी । देवदत्त के बेहोश होते ही लक्ष्मी दत्त ने उनके हाथ से फ़ोन लिया और कामिनी से बात की ।

कामिनी ने बताया--- "कि पिन्टू, दादू को बहुत याद कर रहा था ।"

रुक कर फिर बोली---
"बस इसी भागा दौड़ी में वो सीढ़ियों से गिर गया है । राजेश उसे अस्पताल ले गए हैं अब मैं भी जा रही हूँ । पर ताऊ जी--बाबू जी को बात करते करते क्या हुआ??"

लक्ष्मी दत्त ने बात को टालते हुए कहा कुछ नही हुआ कुछ नही हुआ । लो माँ से बात करो-- कहते हुए सुहासिनी को फ़ोन दे दिया ।

सुहासिनी ने कामिनी से बात की औऱ तसल्ली देते हुए कहा --- "तुम जल्द अस्पताल जाओ और बताओ कि उसका क्या हाल है ?"

  "तेरे बाबूजी अभी ठीक नही लग रहे हम जल्द वापिस आने की तैयारी करते हैं ।"

"क्या हुआ बाबू जी को?"---कामिनी ने चिंता जताई

लक्ष्मीदत्त ने अपने एजेंट से शाम की गाड़ी से वापिसी की टिकट बुक करवा दी ।
★★★★★★★★★

      गाड़ी चल पड़ी । दोनों सीट नीचे की थीं इसलिए आमने-सामने बैठ कर उनका सफ़र शुरू हुआ । घर जाने के नाम पर देवदत्त फिर ग़मगीन हो होने लगे ।

सुहासिनी ने कामिनी को फोन लगाया और पिन्टू का हाल पूछा तो उसने कहा -- 'मम्मी पाँच टाँके लगे हैं । कल ये लोग हमें छुट्टी दे देंगे ।"

इतना सुन देवदत्त को भी तसल्ली हुई ।

इतने में गाड़ी में चाय वाला आया, उससे दो कप चाय लेकर दोनों धीरे-धीरे पीने लगे ।

दोनों में कोई ख़ास बातचीत नहीं हो रही थी ।

चाय पीते-पीते सुहासिनी ने देवदत्त से न चाहते हुए भी पूछ ही लिया  ।

"अजी आप कुछ बता रहे थे  प्रताप भाई साहब औऱ लक्ष्मी भाई साहब में क्या कुछ  हुआ था  ? कि वो घर ही छोड़ के चले गए ।"

देवदत्त के चेहरे पर फिर से पीड़ा के भाव साफ़-साफ़ पढ़े जा सकते थे ।

सुहासिनी इस बात को महसूस कर रही थी ।

सीधे बैठ देवदत्त ने सुहासिनी को बताना शुरू किया ।
*****************
बुढापा इतना तंग नहीं करता सुहासिनी जितना ओलाद का रवैया ।

यही सब की वजह से हमारा इतना बड़ा परिवार बिखर गया ।

हमारे दादा छुटमल दत्त और दादी मालती दत्त पँजाब के जाने माने कारोबारी थे ।

ये सुन सुहासिनी बीच में ही बोल उठी --- क्या दादी भी ?

हाँ दादी मालती दत्त ही तो थी जिसने पाकिस्तान से उजड़ कर आये सारे ख़ानदान को अपने शातिर दिमाग़ से दुबारा खड़ा कर दिया था ।

वो अपने मायके से ही ये हुनर साथ लेकर लायी थी और सारे खानदान में उसका बड़ा दबदबा था ।

अपने चारों भाइयों में हमारे दादा जी सबसे छोटे थे ।
लेकिन चारों भाइयों में सुर एक ही था । सबका एक दूसरे के बिना एक पल भी नहीं गयज़रता था ।

अगर कुछ छूट पुट होती भी थी तो शाम तलक सब नार्मल हो ही जाते थे ।
उनमें
1) सबसे बड़े गैंडामल दत्त
2) उनसे छोटे छज्जुमल दत्त
3) तीसरे नंबर पर टूडूमल दत्त
4) चौथे पर हमारे दादा जी छुटमल दत्त

औऱ दादा छुटमल दत्त यानि हमारे दादा जी की आगे की चार संताने थी ।

एक हमारे बाऊजी (ईश्वर दत्त) औऱ
तीन प्यारी सी बहिनें-- लाजवंती/प्रकाशी औऱ गुणवंती ।

           ऐसे नाम सुन सुहासिनी  मुँह बनाती हुई बोली ---"ये कैसे नाम हुए भला ?"

             देवदत्त मुस्कुराते हुए बोले-- "पहले ऐसे ही नाम हुआ करते थे ।"
 
       फ़िर आगे कहते हुए देवदत्त बोले  -- "दादी मालती दत्त के  एक ही इशारे पर  बाज़ार बंद हो जाता था औऱ एक ही इशारे पर बाज़ार खुल जाता था ।"

"ऐसा ????"---- सुहासिनी आश्चर्य चकित हुई ।

हाँ में सर हिलाते हुए देवदत्त फिर बोले--- "ऐसा ही बाऊजी बताते थे।"

पाकिस्तान से आने के बाद मालती इंडस्ट्रीज के कारोबार को फ़िर एक झटका तब लगा ।

जब दादी मालती को अचानक दिल का दौरा पड़ा और एक ही झटके में वो चल बसीं ।

चारो भाइयों में मन मुटाव हो, उससे पहले ही हमारे दादू छुटमल दत्त ने मालती इंडस्ट्रीज की सारी  यूनिट्स को बराबर बराबर बांट देने की बात की ।

ये आइडिया हमारे बड़े भाई साहब प्रताप जी का था । काम पढ़े लिखे कारोबार की अंदर तक समझ थी उन्हें ।

उन दिनों लक्ष्मी भाई साहब को इन बातों की समझ नहीं थी । वो माँ कृश्णा का लाडला था ।

हालाँकि इसे बाँटने की बात पर दादाजी  बाकि कोई भाई राज़ी नहीं था ।

लेकिन हमारे बड़े भाई साहब प्रताप दत्त का दिमाग़ पूरा अपनी दादी के दिमाग़ जैसा ही शातिर था । पूरा कारोबारी । कारोबार की एक-एक चीज़ दादी के नक्शे कदम पर थी । पर दिल का एकदम नर्म औऱ कागज़ी ।

मुझे तो वो अपना बेटा ही समझते थे । अब तो वी बाहर ही हैं ।

प्रताप दत्त भाई साहब ने ही सबको समझाया कि टैक्स के चलते हमें अब ये कारोबार को अलग-अलग  नाम से करना ही होगा ।

इसके पीछे औऱ भी बहुत महत्वपूर्ण कारण प्रताप ने बाऊजी को बताया था कि आगे आने वाले वक्त में दादा जी के भाइयों के बच्चे भी बड़े हो जाएंगे ।

तब अगर  किसी बात पर झगड़े के चलते अलग हुए तो बहुत दिक्कत होगी ।

अभी तो चार हिस्से होंगे । अगर आगे चल कर हिस्से हुए तो हमारे हिस्से तो कुछ भी नहीं आएगा ।

सबके तीन-तीन लड़के हैं । दो तीन साल बाद वो सभी एक-एक करके हिस्सेदार  बन जायेंगे । टोटल तेहरह हिस्से जाएंगे  ।  उन सबके हिस्से में चार चार हिस्से आएंगे और हमारे हिस्से में सिर्फ एक ।

हमारे दादा जी को ये बात समझ में आ गयी औऱ उन्होंने प्रताप को आगे बढ़ने के लिए बोल दिया ।

ये सारी बातें --- घर आकर वो दादी कृश्णा देवी से ज़रूर शेयर करते थे । लक्ष्मी दत्त दादी के साथ बैठा सब बातें सुना करता था । दादा जी -- दादी के आगे प्रताप के तारीफों के पल बांध दिया करते थे ।

बड़े शातिर तरीके से क़ारोबार के यूनिट्स चार भागों में बाँट कर अलग काट दिए गए और सभी के सामने कागज़ की चार पर्चियाँ बनाई । हर पर्ची में एक एक हिस्सा दर्ज कर दिया औऱ फोल्ड करके एक मटके में डाल दीं ।

फ़िर एक छोटे बच्चे को बुलाकर उसके हाथों  से अलग-अलग नाम बोलकर पर्चियाँ उठवाईं ।

ऐसा करने से सब के मन में कोई द्वेष भाव भी पैदा नहीं हुआ औऱ सारा कारोबार रातों रात चार हिस्सों में बँट गया ।

मगर जिस मोटर पार्ट्स के समूह की पर्ची हमारे दादा जी की निकली वो बहुत ही मुश्किल से मिलने वाली आइटमें थीं ।

मगर बाऊजी को पता था कि प्रताप ये सब संभाल लेगा ।

मगर बाउजी ने ये भी बताया -- कि बाँटना इस लिए ज़रूरी था

कि मालती दादी के बाद कोई इतने रुआब से एक दूसरे को इकट्ठा नहीं रख सकता था ।

हमारे बच्चे भी अब बड़े हो रहे थे ।  इकट्ठा रखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा ही था ।

दादा जी तो वैसे ही नर्म दिल औऱ पूजा पाठ वाले इंसान थे ।

प्रताप का शातिर दिमाग ये जानता  औऱ समझता था कि अब सब भाइयों की उम्मीद  हमारे दादा जी से ही होगी कि वो ही सारा काम देखें ।

मालती  दादी के होते हुए वो तो सब--- बस नाम के ही डायरेक्टर बने हुए थे । सुबह तैयार होकर ऑफिस जाना भर ही उनका काम था ।

जब कारोबार बँट गया तो पता लगा धीरे-धीरे बाद में एक-एक कर वो तीनोँ भाइयों का काम खत्म हो गया था ।

सिर्फ हमारे दादा जी का वक़्त आसमान छू रहा था ।

प्रताप ने चाइना से सभी आइटमों का आयात शुरू कर दिया था ।

बाऊजी, लक्ष्मीदत्त को भी अलग से प्रताप के  वो सारे गुर बताया करते थे । जिसकी वजह से कारोबार आगे बढ़ रहा था औऱ किस तरह प्रताप ने वक़्त रहते कारोबार को चार हिस्से में बाँट दिया ।

कारोबार को अभी एक औऱ झटका लगना बाक़ी था ।

सन 65 की लड़ाई ।

लड़ाई छिड़ने के बाद  हमारा बिज़नेस पूरी तरह ठप हो गया ।

चाइना से सामान आना बंद जो हो गया था।
 
उन दिनों प्रताप भाई साहब और तूलिका भाभी के यहॉं जुड़वा बच्चे पैदा हुए ।

भूषण और रिया ।

हमारे दादा छुटमल दत्त बाऊजी ईश्वर दत्त और भाई साहब प्रताप ने मिलकर फिर कारोबार को मज़बूती से खड़ा कर लिया ।

26 नवंबर सन 1970 का दिन अभी तक मुझे याद है । जब दादा छुटमल दत्त हमें छोड़ कर चले गए ।

मैं उन दिनों बहुत छोटा था । लेकिन उनके जाने पर मैं रोया बहुत था ।

उनके जाने के बाद प्रताप भाई साहब ने लक्ष्मी भाई साहब को भी आफिस जॉइन करवाया ।

अभी तक लक्ष्मी भाई साहब सिर्फ उगाही के लिए ही भेजे जाते थे ।

गाड़ी ने एकदम झटका मारा । शायद कोई स्टेशन आ गया था ।

सुहासिनी ने गाड़ी की खिड़की से बाहर स्टेशन का नाम पढ़ने की कोशिश की --/लेकिन  कुछ खास दिखाई नहीं दे रहा था ।

अंधेरा बढ़ गया था और हमारा डिब्बा स्टेशन से आगे निकल कर खड़ा था ।

इतने में----

गाड़ी में काफी वाले कि आवाज़ जोर जोर से आने लगी । सुहासिनी ने देवदत्त से पूछा-- "आप लोगे काफी?"

हाँ में सर हिला दिया उन्होंने ।

काफी का सिप लेते हुए देवदत्त ने फिर कहना शुरू किया ।

यहीं वक़्त था  लक्ष्मी दत्त ने बाऊजी के कान भरने शुरू किये ।  दबाव में लाने के लिए दादी को भी बात कर कर के पका दिया करता था ।

मुझे पढ़ाई के लिए दबाव डालते रहे थे कि पढ़ लिख के बड़ा अफसर बनना है ।

अब तीनों मिलकर कारोबार आगे बढ़ाने लगे।  लक्ष्मी और कोटिलया भाभी के बच्चे भी बड़े होने लगे ।

बच्चों की वजह से कई बार घर में झगड़े का माहौल भी बनने लगा ।

मुझे भी थोड़ी-थोड़ी समझ आने लगी थी कि वो सब लक्ष्मी भाई साहब की लालची नज़रें काम कर रहीं थीं ।

फिर एक दिन वो हुआ जिसका किसी को कतई भी अंदाज़ा नहीं  था ।

दिवाली का त्यौहार था । हम सब पटाखों में व्यस्त थे । भाई प्रताप कारोबार के सिलसिले में गुजरात गए हुए थे ।

बाऊजी आफिस में कम्पनी के एम्प्लाइज के साथ पूजा करने चले तो लक्ष्मी भाई को उन्होंने जब बोला --- तो बग़ै साहब ने तबियत का बहाना बनाकर जाने से मना कर दिया । बाऊजी को अटपटा तो लगा मगर वो कुछ बोले नहीं ।

भूषण, रिया, सुधीर, कबीर औऱ मैं दीयों, पटाखों औऱ फुलझड़ियों में मज़ा लूटने लगे ।

मैं घर के सामने बड़े बड़े बम फोड़ने में व्यस्त हो गया और बच्चे अपनी मस्ती में कभी ऊपर कभी नींचे भागने में ।

कभी वो लोग मेरे से फुलझड़ी जलवा कर ले जाते तो कभी चकरी लेकर ।

बहुत स्टाक था जलाने को । मैं और सामने घर से कई लोग मिल कर त्यौहार का मज़ा ले रहे थे ।

बमों का इतना शोर था कि कुछ और सुनाई ही नही दे रहा था ।

इतने में सामने वाले छत से किसी ने मेरे ऊपर पानी फेंका ।

मुझे बड़ा गुस्सा आया ।

मैंने गाली निकाल कर ऊपर देखा । वहॉं से एक आँटी चिल्ला रही थी ---" देव देव देव देखो तुम्हारी पहले तल पे आग । जल्दी जाओ ।"

हम सब ऊपर भागे ।

बॉथरूम से आग की लपटें बाहर की तरफ आ रहीं थीं ।

देखा - तो बाथरूम की बाहर से किसी ने कुंडी लगा दी थी ।

देवदत्त कहते कहते सिसकने लगे ।

मुझे इसमें साज़िश की बू आने लगी थी ।

दरवाजे की कुंडी बाहर से किसने लगाई ?

मैंने जब कुंडी खोली -- तो  केरोसीन की भभक तेजी से बाहर आई ।

        पूछने पर किसी को पता न था कि भूषण कब ऊपर आया औऱ कब औऱ कैसे बाथरूम में घुसा ।

औऱ कब~~~~~?

जल्द उसे अस्पताल ले जाया गया ।

"है भगवान" -- सुगासिनी बहुत डरी सहमी सी बोली ।

पुलिस अस्पताल पहुँची तो सबके ब्यान लिए गए ।

अब भूषण के ब्यान की इंतज़ार होने लगी ।

लक्ष्मी भाई साहब का चेहरा पीला पड़ा हुआ था । उसे पता लग चुका था कि भूषण अभी ज़िंदा है ।

             पुलिस कांस्टेबल वहीं तैनात हो गया जैसे ही उसे होश आये तो वो ब्यान के लिए बुला लेंगे ।

आख़िर भूषण को सुबह -- थोड़ा होश आया ।

पुलिस को जो भूषण ने ब्यान दर्ज करवाए उस से सारा परिवार स्तब्ध रह गया ।

उसने लिखवाया लक्ष्मी चाचू ने उसे गिफ्ट देने के लिए ऊपर बुलाया । मुझे गिफ्ट दी । हाथ की घड़ी । जो अस्पताल में डॉक्टर ने उसकी कलाई  से उतार ली थी ।

( पुलिस ने जब्त कर मालखाने में जमा करवा दी थी ।)

भूषण आगे ब्यान दिया:-
उसके बाद उसको सब जगह मोमबत्ती जलाने को कहा ।

जब सभी बनेरों पर मोमबत्ती उसने जला ली  तो चाचू ने दो मोमबत्ती औऱ दी और कहा ये बाथरूम में जला आओ ।

मैं बाथरूम में चला गया । जैसे ही मैं बाथरूम जाकर मोमबत्ती चलाने लगा बाहर से चाचू ने दरवाजा बंद कर दिया । मैन सोचा कि बंद कर के कुछ कर रहे होंगे ।

उसके बाद मैंने देखा  धीरे धीरे मेरे पैर गीले होने लगे हैं और कुछ केरोसीन जैसे बदबू आने लगी । दरवाजे के नीचे से पेट्रोल और केरोसीन अंदर आने लगा था  ।  घबरा कर मेरे हाथ से जलती हुई मोमबत्ती छूट कर नीचे गिर गयी  ।  मोमबत्ती नीचे गिरते ही एकदम चारो तरफ आग ही आग हो गयी ।  

उसके बाद का उसे होश नहीं रहा ।

दो दिन बाद भूषण ने प्राण त्याग दिए ।

सुहासिनी ये सब सुन परेशान हो गयी ।

तूलिका भाभी औऱ माँ रो रो कर बेहाल हो रही थी । घर का होनहार चिराग़ बुझ चुका था । वो प्रताप भाई साहब की तरह ही हुनर मंद था ।

इस सारे प्राकरण में प्रताप भाई साहब एक दम खामोश हो गए ।

उन्हें सब कुछ समझ आ चुका था ।

उनका दिमाग किसी ओर ही धुन में काम कर रहा था ।

सारे मोहल्ले में थू थू होने लगी थी । मालती दादी ने जो ख्याति बनाई थी वो सबको अब डूबती नज़र आने लगी थी ।

पुलिस बार-बार घर चक्कर लगाने लगी ।

बाऊजी की तबियत आहिस्ता- आहिस्ता खराब होने लगी ।

लक्ष्मीदत्त को रोज़ सुबह थाने बुलाया जाने लगा औऱ वो शाम को टूटे हुए घर आने लगे ।

अगले दिन जैसे ही पुलिस लक्ष्मी भाई साहिब को लेने आती । भाभी कोटिलया प्रताप भाई साहब (जेठ जी ) के पाँव पड़ रो रो कर मुआफी की गुहार करने लगी ।

उसी बीच बाऊजी को एक बहुत जबरदस्त  दिल का दौरा पड़ा ।
प्रताप भाई साहब ने मुझे साथ लिया और उन्हें अस्पताल ले गए ।
मुझे याद है सुहासिनी --
( देवदत्त कहते कहते बहुत छुपाने की कोशिश की मगर उस वक़्त बहुत भावुक हो चुके थे औऱ सिसकने लगे )
तीन दिन तक हम घर वापिस नहीं आये । वहीं अस्पताल में ही रहे औऱ बाऊजी आई.सी.यु में ।

       चौथे दिन डाक्टर ने बताया कि बाऊजी अब खतरे से बिल्कुल बाहर हैं । आप उन्हें मिल सकते हैं ।

प्रताप भाई साहब ने मेरी तरफ देखा जैसे पूछ रहे हों कि चलेगा साथ ?

मैं भी उठ खड़ा हुआ और उनजे साथ अंदर जाने को तैयार ही गया ।

हम पन्द्रह मिनट तक अंदर रहे ।

पूरी तरह मौन ....

मगर दस मिनट तक दोनों की आँखों ही आँखों में जो मौन बातें हुईं और वहां से निकलते वक्त बाऊजी जी को जो चैन मिला । सुहासिनी उसे मैं आज भी महसूस कर सकता हूँ ।

भाई साहब ने आई सी यू रूम से बाहर निकलते हुए बाऊजी की बाजू को दबाते हुए कहा -- चिंता मत कीजियेगा । सब ठीक हो जाएगा ।

उस दिन पहली बार हम अस्पताल से घर गए ।

घर पहुँचते ही भाई लक्ष्मी प्रताप के पाँव पड़ के मुआफी  मांगी और धन्यवाद भी किया ।

मुझे उस वक़्त तो कुछ समझ नहीं आया कि ये सब क्या हुआ ।
मगर बाद में पता चला कि भाई साहब प्रताप ने खानदान की नाक न कट जाए इसलिए अपने गहरे रसूक को इस्तेमाल कर सारा केस ही रफा दफा करवा दिया । किसी को कानों कान खबर भी न हुई ।

बाऊजी जी और प्रताप भाई साहब की मौन बातचीत का इतना गहरा मतलब मुझे बाद में समझ आया ।

"फिर ?"-😢,- पूछते हुए सुहासिनी की आँखें इस वक़्त नम ही चुकीं थीं ।

फिर क्या ?

उसके बाद धीरे-धीरे प्रताप भाई ज़्यादा ग़मगीन औऱ मौन रहने लगे गए औऱ अपनी बेटी की तरफ ध्यान देना शुरू किया ।

बाद में उनकी दो बेटियां और हुईं टिया औऱ दिया ।

एक-एक कर अपनी बेटियों को पढ़ाना शुरू किया ।

बड़ी बेटी को तो हमारी शादी से पहले ही कनाडा सेटल कर दिया ।
तब तक मेरी नॉकरी भी लग गयी थी।

प्रताप भाई साहब को मेरी शादी की चिंता बहुत रहती थी । उसके बाद वो मुझे ही बेटा मानते थे ।

उन्हीं के रसूक में तुम्हारे पिता जी से बात कर  मेरे लिए तुम्हारा हाथ मांग लिया औऱ हमारी शादी धूम धाम से हुई ।

गाड़ी अब धीरे-धीरे चलने लगी थी शायद कोई स्टेशन आने वाला था ।

सुहासिनी ने उठ कर इधर उधर देखा कोई कोल्ड ड्रिंक वाला दिखाई दे जाए ।

खिड़की से बाहर बूट पालिश वाले को पाँच रुपये देकर बोला जा कोई कोल्ड ड्रिंक वाले को भेज ।

वो पाँच मिनट में खुद ही के आया । उससे दोनों बोतल लेकर सुहासिनी ने उसे पचास रूपये दिए ।

अब देवदत्त औऱ सुहासिनी बोतल पीते पीते कुछ हल्का महसूस करने लगे ।

सुहासिनी ने फिर पूछा-- "तो प्रताप जेठ जी ने कभी कोई बात ही नहीं छेड़ी?"

देवदत्त ने फिर एक लंबा और गहरा साँस लिया औऱ कहा ---" ,हाँ सुहासिनी !! मैंने ज़िन्दगी में ऐसा इन्सान कभी नहीं देखा"

"कितना बड़ा  दिल उनका ? इतना सेक्रिफाईस ?"--सुहासिनी ने फिर कहा ।

"फिर ?"-- सुहासिनी ने फिर पूछा ।

बाकि दोनों बेटियों को भी कनाडा सेटल कर अब वो ख़ुद भी वहॉं जाने की तैयारी करने लगे थे ।

"पर तुमने मुझसे तो कभी बात नहीं कि इस बारे में"--सुहासिनी बोली ।

"क्या बात करता ? वो तो मुझे भी कहने लगे थे साथ चलने के लिए" -- देवदत्त मुँह में बड़बड़ाते हुए बोले -- "लेकिन हमारे बच्चे अभी छोटे थे ।"

लक्ष्मी भाई साहब तो बस बाऊजी औऱ माता जी की चमचा गिरी में ही लगे रहते थे । ख़ुश थे कि प्रताप भाई चले जायेंगे ।

जब मैं भी सेटल हो गया । बहिनों की शादियां भी हो गयीं ।

तब प्रताप भाई ने धीरे-धीरे कारोबार को हाशिये पे ला खड़ा किया ।

बाऊजी प्रताप की कार-गुजारी से भली-भांति वाकिफ थे ।

लेकिन वो चुप थे ।

लक्ष्मी भाई साहब को किसी बात की खबर तक न लगने दी ।

लेकिन लक्ष्मी भाई ये ज़रूर कहने लगे थे कि अब इस कारोबार में वो मजा नही रहा ।

मगर बाऊजी को बार बार दबाव डालने में लगे थे कि कारोबार उनके नाम कर दो ।

आपकी तबीयत भी ठीक नहीं रहती ।

अब बाऊजी को भी पता था कि अब कारोबार में रह ही कुछ नही गया तो

उसी साल अपना सब कुछ समेट कर, भाई प्रताप, इंडिया को अलविदा कह  गए ।

उनके जाने के बाद का तो तुम्हें पता ही है कि आमदनी घटती गयी । घर में बात-बात पर झगड़े होने लगे ।

लक्ष्मी भाई साहब के दोनों बच्चों की पढ़ाई के चलते बहुत पैसा लग रहा था ।

जब भी लक्ष्मी भाई कारोबार कु बात करते बाऊजी जी प्रताप के आने की बात कह टाल जाते ।

बाऊजी जी को लक्ष्मी भाई साहब पर तरस भी आ जाता था । बच्चों की पढ़ाई का सारा खर्चा बाऊजी उठा रहे थे ।

मुझे ये अच्छा नहीं लगता था ।

ऐसा लगने लगा था कि लक्ष्मी भाई साहब सब कुछ हड़पने के चक्कर में थे ।

बाऊजी की तबियत वैसे ही ठीक नहीं थी । यही वजह रही थी कि बाऊजी ने हम दोनों को बुलाकर बताया भी औऱ इस्लाह भी ली थी । मैंने उस दिन प्रताप को भी शामिल करने की बात भी कही थी ।
पर पिता जी ने कहा कि उस से बात हो गयी है ।

फिर जो बात हुई तुम्हें पता ही है ।
सुहासिनी अब ग़मगीन थी ।

गाड़ी फिर रुकी ।

कुली एकदम अंदर गुसे । सामान उठवा कर गाड़ी से बाहर के गए ।

देवदत्त ने टैक्सी बुलाने के लिए जैसे ही फ़ोन उठाया फ़ोन की घंटी बज उठी ।

---हर्ष महाजन

◆◆◆◆◆

क्रमश:

भाग-7
Coming soon


Wednesday, June 30, 2021

बैडरूम- भाग-5

 

बैडरूम- भाग-5
◆◆◆◆◆◆

                           नई दिल्ली  टी-3 इंद्रागांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट  पर उतरते ही मुकेश दत्त ने बाबूजी ( देवदत्त ) को फ़ोन लगाया और कई बार फ़ोन डायल किया मगर फोन स्विच ऑफ ही आता रहा । 

मुकेश का धैर्य अब जवाब देने लगा था । घर पहुँचने से पहले अपने आने की सूचना देना चाहता था ।

बड़े भाई राजेश से तो वह बात भी नहीं करना चाहता था ।

प्लेन में बेल्ट-6 की अनाउंसमेंट सुन वो अपने सामान की ओर अग्रसर हुआ ।  बार बार  फ़ोन ट्राई किये जा रहा था लेकिन स्विच ऑफ की आवाज सुन-सुन कर वो पकने लगा था । अब झुंझलाहट भी होने लगी ।

फिर उसने पत्नी एकता को काल मिलाया और उसे सूचित किया कि वो ठीक-ठाक पहुँच गया है । उसको  कहा कि बाबूजी का फ़ोन नहीं लग रहा तुम ही उधर से इतला दे देना और रखते रखते फिर कहा - "सुनों फ़ोन न लगे तो भाई साहब ( राजेश) को ही इत्तला कर देना ।"

मुकेश ने अपना सामान रेढू पर रखा औऱ टैक्सी स्टैंड से - विकास पूरी के लिए टैक्सी ले ली ।

टैक्सी में सफ़र शुरू होते ही उसके मस्तिष्क में जैसे हलचल होने लगी ।  सोचने लगा --चार साल हो चुके हैं उसे अपना घर छोड़े हुए ।

चार साल बाद घर जा रहा हूँ।

हर छह महीने बाद एयरपोर्ट के पास होटेल में रुक कर  कार्यवाही की तरह वहीं से वापिस अमेरिका लौट जाना !  जैसे एक प्रक्रिया सी बन गयी थी ।

टाटा समूह की नामी ग्रामी कंपनी में एक अच्छे पद पर पहुँच चुका था  मुकेश । ये सोचकर भी उसमें अहम भाव बढ़ने लगा था ।

मुकेश गहरी सोचों में डूबता चला गया ।

      एकता हर ट्रिप पर जोर देती थी कि बाबूजी को इस बार ज़रूर मिल के आना और हर बार मैं उसे कोई न कोई बहाना बनाकर बेवकूफ बना दिया करता था । लेकिन वो अंदर से सब समझ जाया करती थी ।

बाबूजी से एकता को बहुत प्यार था ।  वो भी तो उसका बहुत ख्याल रखते थे ।

इस बार तो एकता ने मुकेश को धमकी ही दे डाली थी । अबकि बार अगर बाबूजी के पास नहीं हो कर आये ? तो मैं अगली बार दिल्ली जाने के बाद वापिस नहीं आऊंगी ।

बस उसी का कहना मानते हुए  इस बार घर जाने को तैयार हो गया था ।

उसे अच्छी तरह याद है 25 जून 2017 का वो मनहूस दिन जिस दिन उसने घर छोड़ा था ।

छोटी सी ही तो बात थी !!

मैंने बाबूजी से यही तो बोला था कि दूसरे तल पर भी एक टॉयलेट बनवा दो, सुबह-सुबह सभी को नीचे आना पड़ता है और नीचे एक टॉयलेट में लाइन लग जाती है ।

लेकिन बाबूजी ने कहा था अगले साल देखेंगे ।
लेकिन भैया को पिछले साल एक बार ही कहने से पहले तल पर टॉयलेट बनवा दिया था ।

ये सोच मैंने भी कह दिया कि --"अगर नहीं बनवाना तो मैं भी यहाँ नहीं रहूँगा ।"

मेरी कम्पनी  मुझे यू.ए.स में चल रहे प्रोजेक्ट में भेजना चाहती थी और मैने अगले दिन हाँ करने के लिए सोच कर सो गया था ।

एकता उन दिनों मायके गयी हुई थी । बस सुबह उठा और ऑफिस जाते वक़्त बाबूजी को बोला --- बाबूजी मुझे कंपनी एक प्रोजेक्ट के लिए बाहर भेज रही है । अगर तंग होकर ही घर पर रहना है तो मै आज प्रोजेक्ट पर साईन कर दूँगा ।

लेकिन बाबूजी ने इस बात पर कोई जवाब ही नहीं दिया था ।

भाई राजेश भी मूक बने खड़े देखते रहे थे । उन्होंने भी किसी तरह की रोकने की कोई कोशिश नहीं की ।
उस दिन घर छोड़ते वक़्त बाबूजी ने, अगर एक बार भी, पीछे से आवाज लगायी होती तो-------।

तो मन कभी भी गगर से जाने की न सोचता ।

गुस्से में मेरे मुँह से काल ने वो शब्द निकलवा दिए पर----
मेरा मन कतई नहीं था बाबूजी औऱ माँ को ऐसे छोड़कर जाने का ।

न जाने उस दिन वक़्त ने क्या करवट ली कि कदम इतने भारी लगने लगे थे,  कि जैसे किसी ने जकड़ लिए हैं ।

आखिरी कदम तक--उम्मीद थी, कि बाबूजी मुझे किसी हालत में मुझे घर से दूर नहीं जाने देंगे ।

मुझे लगता था--- जैसे दुनियाँ में सबसे ज़्यादा प्यार बाबूजी,  मुझे ही करते हैं ।
 
ये कैसा वक़्त था --जो ख़ुद, मैंने ही खरीद लिया ।

लेकिन......आख़िरी कदम दहलीज़ से पार हो गया--- पीछे से कोई आवाज नहीं आई ।

औऱ उस दिन के बाद मैनें  कभी  फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा ।

इस बार एकता ने जोर देकर  कहा था कि घर होकर और बाबूजी से मिलकर आना ।

वो और बच्चे तो दो महीने पहले अपने भाई राकेश के साथ आ कर वापिस गयी थी ।

टैक्सी अभी भी फर्राटे भर रही थी । जैसे-जैसे टैक्सी आगे बढ़ रही थी मुकेश के दिल की धड़कन भी तेज़ हो रही थी । बाहर देखा तो सब कुछ बदल बदला सा नज़र आ रहा था । धौला कुआँ क्रास हो रहा था । इतने में फ़ोन की

घंटी बज उठी । देखा तो एकता का था ।

बोलो एकता बात हुई ??

एकता बोली--मुकेश !! वहां से कोई भी फ़ोन नहीं पिक कर रहा ।
बाबूजी का फोन मुझे भी स्विच ऑफ ही आ रहा है ।

भैया उठा नही रहे ।

भाभी कामिनी का मिला रही हूँ, वो भी आउट ऑफ रीच ही आ रहा है ।

जैसे ही मिलता है, मैं वापिस तुम्हें फ़ोन करती हुँ -- एकता थोड़ी अपसेट होते हुए कहा ।

ये सुन मुकेश भी थोड़ा  अपसेट हुआ कि आख़िर सब के फ़ोन अचानक क्यूँ पहुंच से बाहर हो गए ?

एक मन ये सोचने लगा----"कहीं मेरे आने की ख़बर तो नहीं लग गई इन्हें ?"
और जानकर सब हमारा फ़ोन न पिक कर रहें हों ?

दूसरा मन---"नहीं, नहीं ---ऐसा नहीं हो सकता । वो तो बल्कि मेरे आने से ख़ुश ही होंगे ।"

इसी दुविधा में टैक्सी में बैठा मुकेश घड़ी में टाईम देखने लगा ।

सुबह के छह बजे थे ।

ओ हो -- अभी तो वक़्त ही क्या हुआ है ? अभी तो सब सो ही रहे होंगे -- ये सोच मुकेश को जैसे कुछ तसल्ली हुई ।

विकास पूरी ब्लाक बी पहुँचते पहुँचते सात बज गए । मुकेश ने टैक्सी ब्लाक का मेंन गेट पार कर तीसरे मकान के आगे रुकवा दी । टैक्सी से उतर सामान उतरवाया और बिल देकर टैक्सी वाले को विदा कर अपने घर की ओर रुख़ किया ।

बाहर का गेट खोलने के लिए जैसे ही उसे अंदर धकेला --- उस पर ताला हिलने लगा ।

ये देख़ मुकेश इधर- उधर बगले झाँकने लगा ।

गली में दरवाज़े के आगे सामान रख  --- मुकेश सोचने लगा कि अब क्या किया जाए ।

इतने में पड़ौस से एक औरत सफाई करती हुई बाहर निकली । 

मुकेश ने उसे पहचान कर  आवाज लगाई --- "मालती आँटी ?"

मालती ने मुँह उठाकर उसकी ओर देखा और पहचानने की कोशिश करने लगी ।

ये देख़ - मुकेश ने ख़ुद अपनी पहचान बताई--- "आँटी मैं मुकेश ।"

"पहचाना नहीं मुझे ??"--मुकेश ने दोहराया ।

"ओ~~~~मुक्की ?"--मालती पहचानते हुए बोली ।

"अरे तुम कब आये ?"--- आगे आते हुए मालती बोली ।

सामान बाहर पड़ा देख़ वो बोली- 'तुम्हें नहीं पता?"

मुकेश ने प्रश्न भरी निगाहों से मालती की ओर देखा ।

"सारे अस्पताल गए हुए हैं" - मालती ने बताया ।

"अस्पताल ?" - हैरान होते हुए मुकेश ने पूछा ।

"पिन्टू गंगाराम अस्पताल में दाख़िल है ना ?''--मालती ने जैसे कोई राज़ खोला हो ।

"क्या हुआ उसे ?"

"कल सुबह वो बाहर कहीं से आये थे ।"- मालती फिर बोली और बोलती चली गयी ।

"गाड़ी से उतर वो सीधा दादू दादू कर अंदर भागा । नीचे कमरे में उन्हें न पाकर वो ऊपर भागा ।"

"उसे शायद पता था सुबह दादू छत पर पौधों को पानी देने ज़रूर जाते हैं ।"

'उन्हें जब वहां भी नहीं मिले तो वो फिर दादू दादू करता नीचे की ओर वापिस दौड़ा ।"

     "सीढ़ियां उतरते वक़्त वो बस संभाल न पाया, गिरता चला गया । सर बुरी तरह फट सा गया  उसका ।"

"फटाफट उसे अस्पताल ले गए ।  बेहोश हो गया था बेचारा । बहुत खून बह गया था ।"

रुक कर मालती फिर बोली: -- "हाँ चाबी दे गए हैं मुझे --आप सामान तो अंदर रखो ?"

"राजू (राजेश) को फ़ोन मिला लो न ?"- मालती फिर बोली ।

"आँटी सुबह से मिला रहा हूँ दोनों का फ़ोन नही लग रहा । न भाई का न भाभी का ।"---मुकेश ने कहा 

"मुझे जल्दी अस्पताल जाना चाहिए ।"

"हाँ हाँ आओ हमारे घर ही  फ्रेश हो कर चाय पीकर आप निकल जाना ।"

अस्पताल में कोई वार्ड वगैरह कुछ ????---मुकेश ने पूछा ।

मालती जितना जानती थी उतना बताने लगी---"हाँ रात को राजू सामान व कपड़े लेने आया था, तो बता तो रहा था किए को फ़ोन पर----कुछ नई बिल्ड़िंग में आई सी यू~~~"

"आई सी यू???"- मुकेश घबराया हुआ बोला ।

"आँटी फिर मैं जल्दी निकलता हूँ ।"

"उन्हें ज़रूरत पड़ सकती है ।"

"आप मेरा ये बैग आप ही अंदर रख देना ।"

कह कर फ़ोन पर टैक्सी बुक करवाता हुआ बाहर से ही मेन रोड़ की ओर निकल गया ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
◆◆◆◆◆◆

क्रमश:

भाग-6
Coming soon


Tuesday, June 29, 2021

बैडरूम- (भाग-4)

 

बैडरूम- (भाग-4)

★★★★★★★★
लुधियाना- मॉडल टाउन
वक्त:         सुबह - ढाई बजे
जगह:        वही पुरानी पुश्तैनी हवेली ।
*************

           पहली मंजिल पर बने अपने चार आलीशान कमरों में से एक में देवदत्त आधी रात, परेशान से पलंग पर कभी इधर कभी उधर करवटें बदल रहा था ।

नींद नदारद !!
आँखों से कोसों दूर लग रही थी ।
खुली आंखें, कभी कमरे की छत की तरफ निहारते हुए,
तो कभी साथ में बेसुध सोई, पत्नी सुहासिनी की तरफ ।

अज़ीब उलझनों से रूबरू हो रहे थे देवदत्त ।

अचानक सुहासिनी ने करवट बदली,

उन्नीदी सी हल्की सी नज़र उसकी देवदत्त पर पडी । तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठी ।

क्या हुआ ?
नींद नहीं आ रही क्या ??

चाँद की रोशनी खिड़की से अंदर की ओर झाँक रही थी । उसकी रोशनी में देवदत्त की नम आंखों ने न चाहते हुए भी चुगली कर दी ।

ये देख़ सुहासिनी का दिल सहम सा गया ।

उठ कर जल्दी से उन्हें हिलाया ।

सर पर धीरे-धीरे हाथ फेरते हुए कहा-  आप चिंता न कीजिये, सब ठीक हो जाएगा ।

थोड़ा रुक कर सुहासिनी फिर बोली---आपके घर में ---आपके साथ इतना कुछ हुआ, पर आज तक आपने मेरे साथ कुछ भी साझा नही किया । कभी भी अपना दिल हल्का नहीं किया ।
कब तक अकेले ये सब ढ़ोते फिरोगे ?

देवदत्त अभी भी छत की तरफ शून्य में देख रहे थे ।

उनके चेहरे पर बार-बार पीड़ा के भाव आने जाने लगे ।

सुहासिनी रुक कर फिर बोली--
सब कुछ क्या अपने अंदर सीने में दबा कर ही रक्खोगे ?

सुहासिनी पलंग से उठी और साथ टेबल पर पड़े जग से एक गिलास पानी का देवदत्त को दिया ।

एक घूंट पी कर गिलास वापिस पकड़ा दिया ।

सुहासिनी ने हिम्मत कर देवदत्त से बोला--- मन हल्का करोगे तो अच्छा लगेगा ।

देवदत्त ने एक बार सुहासिनी की तरफ भीगी निगाहों से देखा जैसे सोच रहे हों कि बात करूँ या न करूँ ।

तो अचानक ही सुहासिनी भावुक हो अश्क़ों से उलझ गई । शायद ऐसा मौका पहली बार ही आया था जो देवदत्त ने ऐसी निगाहों से उसकी तरफ देखा हो ।

देवदत्त ने सुहासिनी के माथे पर एक छोटा सा प्यार का तोहफा दिया और मुसलसल बोलते चले गए -

सुहासिनी---- पता नहीं ----रात से ही
दिमाग में हज़ारों उलझते प्रश्न बार बार कौंध रहे हैं ।

मेरे साथ ही क्यूँ ऐसा होता आया है ? 

भाई लक्ष्मी सदा से ही गिरगिट की तरह रंग बदलते आये हैं ।

बाऊजी जब विल बना रहे थे तो मैंने एक माकूल सलाह दी थी कि हम भाई बहिनों में सभी को बराबर हिस्सा लिख दीजियेगा । कोई झंझट ही नहीं रहेगा ।

ये सुन - बाऊ जी को बहुत अच्छा भी लगा था ।

हम तीन भाई और तीन बहने
छह ही तो थे ।
तीन भाई --प्रताप, लक्ष्मी और मैं
औऱ तीन बहिनें---राधा, कमला औऱ संतोष ।

लेकिन रात भी नहीं बीती ।

बाऊजी ने मुझे बुलाया और बताया कि विल में उन्होंने बहिनों का नाम न शामिल करने का सोचा है ।

इतना सुन सुहासिनी ने देवदत्त को बीच में ही टोका कि---बाऊजी ने अगर विल लिखनी ही थी तो चुपचाप लिखते न । जो उनके मन में था लिख देते । सबको बुलाकर पूछने की क्या ज़रूरत थी ?

देवदत्त थोड़ी देर चुप हो गए । फिर बात का संदर्भ समझाते हुए बोले --- असल हमारे बड़े भाई साहब औऱ भाई के बीच दुश्मनी भाव काफी मुखर हो चुका था जिसकी वजह से प्रताप भाई साहब घर छोड़ गए थे ।

ऐसी क्या बात हुई उन दोनों के बीच  ? आपने तो आज तक कभी जिक्र ही नही किया और न   किसी ओर ने बताया ??

सुहासिनी अब परेशान सी दिखने लगी ।

देवदत्त ने फिर आगे कहा--- मैं उस वक़्त बहुत छोटा था । लेकिन वो भयानक मंज़र याद करते हुए आज भी दिल दहल जाता है । तुम्हारे आने से  बहुत पहले की बात है ।
बहुत लंबी कहानी है इस बारे में फिर कभी बात करेंगे ।

"लेकिन"-- सुहासिनी ने फ़िर कहा -----
"जब मेरी शादी हुई तो वो हमारे साथ ही तो थे भूतल पर ।
हम पहले तल पर और लक्ष्मी जेठ जी दूसरे तल पर । हाँ -- मेरे आने के बाद दो तीन साल बाद ही वो चले गए थे ।"

हाँ--देवदत्त ने कहा ।

अब सुहासिनी --- देवदत्त को ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगी  ।

देवदत्त ने आगे कहा----
इसलिए बाऊजी सब को बताकर विल लिखना चाहते थे ।
उनकी तबियत ठीक नहीं रहती थी और बाद में झगड़े न हों । शायद उन्हें अहसास होगा इस बात का ।

देवदत्त बिना ये महसूस किए कि सुहासिनी क्या सोच रही है ? अपनी बात कहते चले गए । बाऊजी ने विल  ।

दीवार की तरफ देखते हुए देवदत्त फिर बोले---

बहिनों का क्या क़सूर था ?
बाऊजी का दिमाग क्यूँ बदला ? औऱ किसने बदला ?

भाई साहब ने रातो रात बाऊजी का दिमाग ऐसे कैसे बदल दिया था ?

हालांकि सबसे बड़े भाई प्रताप दसवीं पास थे ।
मगर भाई लक्ष्मी तो पढ़े लिखे भी नहीं थे ।
लेकिन शातिर बहुत थे ।

जब मैंने उस विल पर आपत्ति की तो ---- बाऊजी ने सीधा फरमान सुना दिया कि जो कह दिया वैसे ही होगा ।

इस बात पर मैंने गुस्से में कह दिया ---मुझे भी फिर कुछ नहीं चाहिए । मैंने ये सोचकर कहा कि इस बात से बाऊजी पर असर होगा वो मान जाएंगे ।

लेकिन ऐसा कुछ न हुआ ।

मैंने फिर जोर से कहा---  "मैं भी अब यहाँ से चला जाऊँगा ।"

मेरे ऐसा कहने पर भी बाऊजी पर जैसे कोई असर ही नहीं हुआ ।
भाई लक्ष्मी ने न जाने ऐसा क्या जादू किया था उन पर ।

भाई लक्ष्मी भी वहीं खड़े मौन हो मेरा ये फैसला सुन रहे थे ।
वो भी एक शब्द न बोले ।

सबसे बड़े भाई साहब प्रताप बहुत पहले घर छोड़ कर कनाडा चले गए थे ये तुम्हें पता ही था ।

बड़े भाई लक्ष्मी ने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया.........?

ते सभी प्रश्नों के साथ
अगले दिन मैंने तुम्हारे साथ अपना आत्म सम्मान लिए ये घर छोड़ दिया ।

आज सताईस साल हो गए उस बात को----जब मैंने ये आलीशान घर छोड़ा । भूले नहीं जाते वो पल ।

छोटे छोटे तीन बच्चों के साथ बिना कोई सामान उठाये इस घर को अलविदा बोल दिया था ।

जब घर छोड़ा ---उस वक़्त भी भाई साहब मूक क्यूँ बने रहे ?

"ये तो हमें भी समझ नहीं आया था" --सुहासिनी बीच में ही बोली ।

जब अपना उल्लू सीधा हो गया , बच्चे पढ़ लिख गए ? बाऊजी को नाकारा कर सारा धंधा अपने हाथ में ले,  जैसे तैसे अपनी गलती मान कर हमसे रिश्ता तो कायम कर ही लिया उन्होंने ।

लेकिन वो मेरे दिल में जगह तो नहीं बना पाए और न ही बना पाएंगे ।
एक लंबी सांस लेते हुए देवदत्त ने आगे कहा--
सत्ताईस साल....बाऊ जी को याद कर आँखे अब भी नम हो जाती हैं ।  उन्हें नाज़ था लक्ष्मी भाई साहब पर । पता नहीं क्या विश्वास था ? लेकिन अचानक वी दुनियाँ छोड़ गए और कॅरोना का हवाला देकर किसी को बुलाया भी नहीं ?

उनके जाने के वाद तो----
बार-बार भाई मुझे फ़ोन कर कर लुधियाना बुलाते---- पर मेरा मन यहाँ आने को इज़ाज़त ही नहीं देता था ।

इतिहास किस तरह अपने आप को दोहराता है ।

कहते कहते देवदत्त दो बार सिस्के औऱ फिर बोले----

सुहासिनी -----हमने !!

अपने एक-एक बच्चे को बड़ी तन्मयता से पढ़ाया लिखाया । बड़ा बनाया । मुकेश दत्त एम.बी. ए कर के टाटा में नॉकरी करता हुआ अमेरिका निकल गया ।

एक बार क्या गया बस वहीं का हो गया । उससे तो मुझे पहले ही कोई उम्मीद नहीं थी ।

"मगर -- राजेश"----इतना कह कर देवदत्त फिर परेशान हो उठे ।

सुहासिनी अब तक जो चुप चाप सुन रही थी अचानक टूट कर सुबक पड़ी औऱ बोली--- आप भी तो ----जब छोटे ने -- जाने की बात कही थी--तो मौन ही रहे थे न ?

कहते हुए रो पड़ी औऱ कहा-
"है तो आप ही का बेटा न वो ।"

देवदत्त वह बोले:-----
"हाँ ---सुहासिनी"---कहा न--- "इतिहास अपने आप को दोहराता ज़रूर है ।"

"पर राजेश ?"---कहते हुए प्रश्न चिन्ह की तरह सुहासिनी की तरफ देख देवदत्त बोला ।

'अब भी तो वही कर रहे हो' -- सुहासिनी अटकते हुए बोली ।

बिना उसे कुछ कहे आप वहाँ से क्यूँ निकले ?

देखते तो सही वो क्या करता है ?

फिर इस उम्र में भी क्या कोई कमी है आपके पास ?

जी.एम. के पद से सेवा निवृत्त हुए हो । अच्छी पेंशन मिलती है । आहे उसके बाद भी अच्छी कम्पनी में अच्छे पद पर हो । सेवा निवृत्त के बाद भी मोटी इनकम है ।
बेटी - 'लता' की अच्छे घर में शादी भी कर दी । दामाद भी हमारी बहुत इज़्ज़त करता है ।

तीनों ही बच्चे कभी भी पलट के हमारे आगे नहीं बोले ।

"अब और क्या चाहिए आपको" - सुहासिनी ने कहते हुए समझाया ।
सामने घड़ी पर सुहासिनी की नज़र पड़ी तो चोंक गयी...
(सुबह के छह बज चुके थे ।)
चलो उठो अब:-

'सबसे अच्छा परिवार है हमारा' - कहते हुए जैसे ही सुहासिनी उठी ।
बाहर से जेठ लक्ष्मी दत्त की मोटी आवाज कमरे तलक चलती हुई आई -- देवदत्त, बहु ठीक ही तो कह रही है ।

'सबसे अच्छा परिवार है हमारा'
औऱ बहुत बड़ा परिवार है ।

जेठ जी की आवाज सुन सुहासिनी उठ के बाहर निकल गयी ।

औऱ देवदत्त  एकदम उठ के बैठ गए ।

लक्ष्मी भाई फिर बोले--- 'देवदत्त'  अब तुम भी सब यहीं आ जाओ । इतना बड़ा घर है । जब से गये हो तुम्हारी भाभी रोज़ आपकी धरोहर (घर) की साफ सफाई ज़रूर करवाती है ।
कहती है पता नही किस दिन देवर जी आ जायें ।
देखो न आपका बैडरूम कितना सजा के रखा है ।

देवदत्त बोले--- हाँ भाई साहब सजा तो है लेकिन:-

_*किसी घर में एक साथ रहना परिवार नहीं कहलाता । एक दूसरे को समझना और एक दूसरे की परवाह करना परिवार कहलाता है ।*_

भाई लक्ष्मी, देवदत्त की बात सुन एक दम चुप हो गए ।

ये बात उन्हें गहरी चोट कर गयी ।
उदास स्वर में बोले:- तो तुमने हमें मुआफ़ नहीं किया ?

देवदत्त ने ये सुन कहा- अगर ऐसी कोई बात होती तो क्या मैं यहॉं आता ?
लेकिन भाई साहब--सताईस साल ज़िन्दगी के यूँ ही निकल गए ।

भाई लक्ष्मी ने देवदत्त को पलंग से खींच कर गले से लगाया औऱ पीठ थपथपाते हुए कहा --सब ठीक हो जाएगा ।

चलो नीचे चलो बेटे राजेश का कई बार फ़ोन आ लिया । उसको फ़ोन कर लो । बोल रहा था तुम्हारा फ़ोन बन्द आ रहा है ।

तुमने आफ कर रखा है क्या?

नहीं बस वो चार्जर ही नही लाये न हम--धीरे से देवदत्त ने बोला ।

चलो नीचे चल के चार्ज कर लेना ।
नीचे पहुँचते ही राजेश का फ़ोन फिर दनदना उठा । लक्ष्मी दत्त ने फ़ोन उठाने की बजाय सीधे देवदत्त के हाथ में दे दिया ।

देवदत्त ने फ़ोन कान से लगाया ही था उधर से चीखने चिल्लाने की आवाज़ें आने लगी ।

क्या हुआ ??---क्या हुआ??
उधर से कामिनी की एक ही आवाज़ आयी वो~~~~बाऊजी ~~~पिंटू....

ये सुन देवदत्त वहीँ छाती पर हाथ रख नीचे झुकते चले गए ।

क्या हुआ---क्या हुआ---

चारों ओर गूँजने लगा ।



-----हर्ष महाजन

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भाग-5

प्रकाशित हो चुका है ।