Sunday, July 4, 2021

बैडरूम-(भाग-6)

 

:कास्ट:
देवदत्त के रिश्तों के अनुसार

दादा/दादी
छुटमल दत्त/मालती दत्त

बाऊजी(पिता जी) = ईश्वर दत्त
माता जी =  कृश्णा देवी दत्त

तीन भाई:
प्रताप दत्त/लक्ष्मी दत्त/देवदत्त
राधा/,कमला/सन्तोष
*****
प्रताप दत्त/तूलिका दत्त
इनके बच्चे
भूषण/रिया/टिया/दिया

लक्ष्मीदत्त/कोटिलया
इनके बच्चे और उनकी पत्नी
1 सुधीर/देविका
2 कबीर/रीना
3 कृतिका

देवदत्त/सुहासिनी

इनके बच्चे
1) राजेश/कामिनी/पिंटू
2) मुकेश दत्त/एकता/अभि/अकेली
3)लेता
प्रिया -- नॉकरानी
★★★★★★★★★★★★★★★★

देवदत्त को जब होश आया तो उन्होंने अपने को पलंग पर लेटा पाया ।

डाक्टर साहब उनके पास खड़े हो हिदायतें बता रहे थे । चेक- अप कर उन्होंने बताया कि वो अब बिल्कुल ठीक हैं । थोड़ा स्ट्रेस ज़्यादा होने की वजह से ऐसा हुआ है । दवाई मैनें लिख दी है दिन में तीन बार देनी है । अगर फिर छाती में दर्द महसूस हो तो ये गैस की गोली है फिर से दे देना ।

लक्ष्मीदत्त ने डॉक्टर से पूछा कि क्या ये दिल्ली ट्रैवेल कर सकते हैं ?

"हाँ हाँ क्यों नहीं, कुछ नहीं है इन्हें " -- जा सकते हैं बिना कोई चिंता किये ।

           अभी तक सभी लोग कमरे में बैचेन से बैठे थे । सुहासिनी बहुत परेशान थी । देवदत्त के बेहोश होते ही लक्ष्मी दत्त ने उनके हाथ से फ़ोन लिया और कामिनी से बात की ।

कामिनी ने बताया--- "कि पिन्टू, दादू को बहुत याद कर रहा था ।"

रुक कर फिर बोली---
"बस इसी भागा दौड़ी में वो सीढ़ियों से गिर गया है । राजेश उसे अस्पताल ले गए हैं अब मैं भी जा रही हूँ । पर ताऊ जी--बाबू जी को बात करते करते क्या हुआ??"

लक्ष्मी दत्त ने बात को टालते हुए कहा कुछ नही हुआ कुछ नही हुआ । लो माँ से बात करो-- कहते हुए सुहासिनी को फ़ोन दे दिया ।

सुहासिनी ने कामिनी से बात की औऱ तसल्ली देते हुए कहा --- "तुम जल्द अस्पताल जाओ और बताओ कि उसका क्या हाल है ?"

  "तेरे बाबूजी अभी ठीक नही लग रहे हम जल्द वापिस आने की तैयारी करते हैं ।"

"क्या हुआ बाबू जी को?"---कामिनी ने चिंता जताई

लक्ष्मीदत्त ने अपने एजेंट से शाम की गाड़ी से वापिसी की टिकट बुक करवा दी ।
★★★★★★★★★

      गाड़ी चल पड़ी । दोनों सीट नीचे की थीं इसलिए आमने-सामने बैठ कर उनका सफ़र शुरू हुआ । घर जाने के नाम पर देवदत्त फिर ग़मगीन हो होने लगे ।

सुहासिनी ने कामिनी को फोन लगाया और पिन्टू का हाल पूछा तो उसने कहा -- 'मम्मी पाँच टाँके लगे हैं । कल ये लोग हमें छुट्टी दे देंगे ।"

इतना सुन देवदत्त को भी तसल्ली हुई ।

इतने में गाड़ी में चाय वाला आया, उससे दो कप चाय लेकर दोनों धीरे-धीरे पीने लगे ।

दोनों में कोई ख़ास बातचीत नहीं हो रही थी ।

चाय पीते-पीते सुहासिनी ने देवदत्त से न चाहते हुए भी पूछ ही लिया  ।

"अजी आप कुछ बता रहे थे  प्रताप भाई साहब औऱ लक्ष्मी भाई साहब में क्या कुछ  हुआ था  ? कि वो घर ही छोड़ के चले गए ।"

देवदत्त के चेहरे पर फिर से पीड़ा के भाव साफ़-साफ़ पढ़े जा सकते थे ।

सुहासिनी इस बात को महसूस कर रही थी ।

सीधे बैठ देवदत्त ने सुहासिनी को बताना शुरू किया ।
*****************
बुढापा इतना तंग नहीं करता सुहासिनी जितना ओलाद का रवैया ।

यही सब की वजह से हमारा इतना बड़ा परिवार बिखर गया ।

हमारे दादा छुटमल दत्त और दादी मालती दत्त पँजाब के जाने माने कारोबारी थे ।

ये सुन सुहासिनी बीच में ही बोल उठी --- क्या दादी भी ?

हाँ दादी मालती दत्त ही तो थी जिसने पाकिस्तान से उजड़ कर आये सारे ख़ानदान को अपने शातिर दिमाग़ से दुबारा खड़ा कर दिया था ।

वो अपने मायके से ही ये हुनर साथ लेकर लायी थी और सारे खानदान में उसका बड़ा दबदबा था ।

अपने चारों भाइयों में हमारे दादा जी सबसे छोटे थे ।
लेकिन चारों भाइयों में सुर एक ही था । सबका एक दूसरे के बिना एक पल भी नहीं गयज़रता था ।

अगर कुछ छूट पुट होती भी थी तो शाम तलक सब नार्मल हो ही जाते थे ।
उनमें
1) सबसे बड़े गैंडामल दत्त
2) उनसे छोटे छज्जुमल दत्त
3) तीसरे नंबर पर टूडूमल दत्त
4) चौथे पर हमारे दादा जी छुटमल दत्त

औऱ दादा छुटमल दत्त यानि हमारे दादा जी की आगे की चार संताने थी ।

एक हमारे बाऊजी (ईश्वर दत्त) औऱ
तीन प्यारी सी बहिनें-- लाजवंती/प्रकाशी औऱ गुणवंती ।

           ऐसे नाम सुन सुहासिनी  मुँह बनाती हुई बोली ---"ये कैसे नाम हुए भला ?"

             देवदत्त मुस्कुराते हुए बोले-- "पहले ऐसे ही नाम हुआ करते थे ।"
 
       फ़िर आगे कहते हुए देवदत्त बोले  -- "दादी मालती दत्त के  एक ही इशारे पर  बाज़ार बंद हो जाता था औऱ एक ही इशारे पर बाज़ार खुल जाता था ।"

"ऐसा ????"---- सुहासिनी आश्चर्य चकित हुई ।

हाँ में सर हिलाते हुए देवदत्त फिर बोले--- "ऐसा ही बाऊजी बताते थे।"

पाकिस्तान से आने के बाद मालती इंडस्ट्रीज के कारोबार को फ़िर एक झटका तब लगा ।

जब दादी मालती को अचानक दिल का दौरा पड़ा और एक ही झटके में वो चल बसीं ।

चारो भाइयों में मन मुटाव हो, उससे पहले ही हमारे दादू छुटमल दत्त ने मालती इंडस्ट्रीज की सारी  यूनिट्स को बराबर बराबर बांट देने की बात की ।

ये आइडिया हमारे बड़े भाई साहब प्रताप जी का था । काम पढ़े लिखे कारोबार की अंदर तक समझ थी उन्हें ।

उन दिनों लक्ष्मी भाई साहब को इन बातों की समझ नहीं थी । वो माँ कृश्णा का लाडला था ।

हालाँकि इसे बाँटने की बात पर दादाजी  बाकि कोई भाई राज़ी नहीं था ।

लेकिन हमारे बड़े भाई साहब प्रताप दत्त का दिमाग़ पूरा अपनी दादी के दिमाग़ जैसा ही शातिर था । पूरा कारोबारी । कारोबार की एक-एक चीज़ दादी के नक्शे कदम पर थी । पर दिल का एकदम नर्म औऱ कागज़ी ।

मुझे तो वो अपना बेटा ही समझते थे । अब तो वी बाहर ही हैं ।

प्रताप दत्त भाई साहब ने ही सबको समझाया कि टैक्स के चलते हमें अब ये कारोबार को अलग-अलग  नाम से करना ही होगा ।

इसके पीछे औऱ भी बहुत महत्वपूर्ण कारण प्रताप ने बाऊजी को बताया था कि आगे आने वाले वक्त में दादा जी के भाइयों के बच्चे भी बड़े हो जाएंगे ।

तब अगर  किसी बात पर झगड़े के चलते अलग हुए तो बहुत दिक्कत होगी ।

अभी तो चार हिस्से होंगे । अगर आगे चल कर हिस्से हुए तो हमारे हिस्से तो कुछ भी नहीं आएगा ।

सबके तीन-तीन लड़के हैं । दो तीन साल बाद वो सभी एक-एक करके हिस्सेदार  बन जायेंगे । टोटल तेहरह हिस्से जाएंगे  ।  उन सबके हिस्से में चार चार हिस्से आएंगे और हमारे हिस्से में सिर्फ एक ।

हमारे दादा जी को ये बात समझ में आ गयी औऱ उन्होंने प्रताप को आगे बढ़ने के लिए बोल दिया ।

ये सारी बातें --- घर आकर वो दादी कृश्णा देवी से ज़रूर शेयर करते थे । लक्ष्मी दत्त दादी के साथ बैठा सब बातें सुना करता था । दादा जी -- दादी के आगे प्रताप के तारीफों के पल बांध दिया करते थे ।

बड़े शातिर तरीके से क़ारोबार के यूनिट्स चार भागों में बाँट कर अलग काट दिए गए और सभी के सामने कागज़ की चार पर्चियाँ बनाई । हर पर्ची में एक एक हिस्सा दर्ज कर दिया औऱ फोल्ड करके एक मटके में डाल दीं ।

फ़िर एक छोटे बच्चे को बुलाकर उसके हाथों  से अलग-अलग नाम बोलकर पर्चियाँ उठवाईं ।

ऐसा करने से सब के मन में कोई द्वेष भाव भी पैदा नहीं हुआ औऱ सारा कारोबार रातों रात चार हिस्सों में बँट गया ।

मगर जिस मोटर पार्ट्स के समूह की पर्ची हमारे दादा जी की निकली वो बहुत ही मुश्किल से मिलने वाली आइटमें थीं ।

मगर बाऊजी को पता था कि प्रताप ये सब संभाल लेगा ।

मगर बाउजी ने ये भी बताया -- कि बाँटना इस लिए ज़रूरी था

कि मालती दादी के बाद कोई इतने रुआब से एक दूसरे को इकट्ठा नहीं रख सकता था ।

हमारे बच्चे भी अब बड़े हो रहे थे ।  इकट्ठा रखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा ही था ।

दादा जी तो वैसे ही नर्म दिल औऱ पूजा पाठ वाले इंसान थे ।

प्रताप का शातिर दिमाग ये जानता  औऱ समझता था कि अब सब भाइयों की उम्मीद  हमारे दादा जी से ही होगी कि वो ही सारा काम देखें ।

मालती  दादी के होते हुए वो तो सब--- बस नाम के ही डायरेक्टर बने हुए थे । सुबह तैयार होकर ऑफिस जाना भर ही उनका काम था ।

जब कारोबार बँट गया तो पता लगा धीरे-धीरे बाद में एक-एक कर वो तीनोँ भाइयों का काम खत्म हो गया था ।

सिर्फ हमारे दादा जी का वक़्त आसमान छू रहा था ।

प्रताप ने चाइना से सभी आइटमों का आयात शुरू कर दिया था ।

बाऊजी, लक्ष्मीदत्त को भी अलग से प्रताप के  वो सारे गुर बताया करते थे । जिसकी वजह से कारोबार आगे बढ़ रहा था औऱ किस तरह प्रताप ने वक़्त रहते कारोबार को चार हिस्से में बाँट दिया ।

कारोबार को अभी एक औऱ झटका लगना बाक़ी था ।

सन 65 की लड़ाई ।

लड़ाई छिड़ने के बाद  हमारा बिज़नेस पूरी तरह ठप हो गया ।

चाइना से सामान आना बंद जो हो गया था।
 
उन दिनों प्रताप भाई साहब और तूलिका भाभी के यहॉं जुड़वा बच्चे पैदा हुए ।

भूषण और रिया ।

हमारे दादा छुटमल दत्त बाऊजी ईश्वर दत्त और भाई साहब प्रताप ने मिलकर फिर कारोबार को मज़बूती से खड़ा कर लिया ।

26 नवंबर सन 1970 का दिन अभी तक मुझे याद है । जब दादा छुटमल दत्त हमें छोड़ कर चले गए ।

मैं उन दिनों बहुत छोटा था । लेकिन उनके जाने पर मैं रोया बहुत था ।

उनके जाने के बाद प्रताप भाई साहब ने लक्ष्मी भाई साहब को भी आफिस जॉइन करवाया ।

अभी तक लक्ष्मी भाई साहब सिर्फ उगाही के लिए ही भेजे जाते थे ।

गाड़ी ने एकदम झटका मारा । शायद कोई स्टेशन आ गया था ।

सुहासिनी ने गाड़ी की खिड़की से बाहर स्टेशन का नाम पढ़ने की कोशिश की --/लेकिन  कुछ खास दिखाई नहीं दे रहा था ।

अंधेरा बढ़ गया था और हमारा डिब्बा स्टेशन से आगे निकल कर खड़ा था ।

इतने में----

गाड़ी में काफी वाले कि आवाज़ जोर जोर से आने लगी । सुहासिनी ने देवदत्त से पूछा-- "आप लोगे काफी?"

हाँ में सर हिला दिया उन्होंने ।

काफी का सिप लेते हुए देवदत्त ने फिर कहना शुरू किया ।

यहीं वक़्त था  लक्ष्मी दत्त ने बाऊजी के कान भरने शुरू किये ।  दबाव में लाने के लिए दादी को भी बात कर कर के पका दिया करता था ।

मुझे पढ़ाई के लिए दबाव डालते रहे थे कि पढ़ लिख के बड़ा अफसर बनना है ।

अब तीनों मिलकर कारोबार आगे बढ़ाने लगे।  लक्ष्मी और कोटिलया भाभी के बच्चे भी बड़े होने लगे ।

बच्चों की वजह से कई बार घर में झगड़े का माहौल भी बनने लगा ।

मुझे भी थोड़ी-थोड़ी समझ आने लगी थी कि वो सब लक्ष्मी भाई साहब की लालची नज़रें काम कर रहीं थीं ।

फिर एक दिन वो हुआ जिसका किसी को कतई भी अंदाज़ा नहीं  था ।

दिवाली का त्यौहार था । हम सब पटाखों में व्यस्त थे । भाई प्रताप कारोबार के सिलसिले में गुजरात गए हुए थे ।

बाऊजी आफिस में कम्पनी के एम्प्लाइज के साथ पूजा करने चले तो लक्ष्मी भाई को उन्होंने जब बोला --- तो बग़ै साहब ने तबियत का बहाना बनाकर जाने से मना कर दिया । बाऊजी को अटपटा तो लगा मगर वो कुछ बोले नहीं ।

भूषण, रिया, सुधीर, कबीर औऱ मैं दीयों, पटाखों औऱ फुलझड़ियों में मज़ा लूटने लगे ।

मैं घर के सामने बड़े बड़े बम फोड़ने में व्यस्त हो गया और बच्चे अपनी मस्ती में कभी ऊपर कभी नींचे भागने में ।

कभी वो लोग मेरे से फुलझड़ी जलवा कर ले जाते तो कभी चकरी लेकर ।

बहुत स्टाक था जलाने को । मैं और सामने घर से कई लोग मिल कर त्यौहार का मज़ा ले रहे थे ।

बमों का इतना शोर था कि कुछ और सुनाई ही नही दे रहा था ।

इतने में सामने वाले छत से किसी ने मेरे ऊपर पानी फेंका ।

मुझे बड़ा गुस्सा आया ।

मैंने गाली निकाल कर ऊपर देखा । वहॉं से एक आँटी चिल्ला रही थी ---" देव देव देव देखो तुम्हारी पहले तल पे आग । जल्दी जाओ ।"

हम सब ऊपर भागे ।

बॉथरूम से आग की लपटें बाहर की तरफ आ रहीं थीं ।

देखा - तो बाथरूम की बाहर से किसी ने कुंडी लगा दी थी ।

देवदत्त कहते कहते सिसकने लगे ।

मुझे इसमें साज़िश की बू आने लगी थी ।

दरवाजे की कुंडी बाहर से किसने लगाई ?

मैंने जब कुंडी खोली -- तो  केरोसीन की भभक तेजी से बाहर आई ।

        पूछने पर किसी को पता न था कि भूषण कब ऊपर आया औऱ कब औऱ कैसे बाथरूम में घुसा ।

औऱ कब~~~~~?

जल्द उसे अस्पताल ले जाया गया ।

"है भगवान" -- सुगासिनी बहुत डरी सहमी सी बोली ।

पुलिस अस्पताल पहुँची तो सबके ब्यान लिए गए ।

अब भूषण के ब्यान की इंतज़ार होने लगी ।

लक्ष्मी भाई साहब का चेहरा पीला पड़ा हुआ था । उसे पता लग चुका था कि भूषण अभी ज़िंदा है ।

             पुलिस कांस्टेबल वहीं तैनात हो गया जैसे ही उसे होश आये तो वो ब्यान के लिए बुला लेंगे ।

आख़िर भूषण को सुबह -- थोड़ा होश आया ।

पुलिस को जो भूषण ने ब्यान दर्ज करवाए उस से सारा परिवार स्तब्ध रह गया ।

उसने लिखवाया लक्ष्मी चाचू ने उसे गिफ्ट देने के लिए ऊपर बुलाया । मुझे गिफ्ट दी । हाथ की घड़ी । जो अस्पताल में डॉक्टर ने उसकी कलाई  से उतार ली थी ।

( पुलिस ने जब्त कर मालखाने में जमा करवा दी थी ।)

भूषण आगे ब्यान दिया:-
उसके बाद उसको सब जगह मोमबत्ती जलाने को कहा ।

जब सभी बनेरों पर मोमबत्ती उसने जला ली  तो चाचू ने दो मोमबत्ती औऱ दी और कहा ये बाथरूम में जला आओ ।

मैं बाथरूम में चला गया । जैसे ही मैं बाथरूम जाकर मोमबत्ती चलाने लगा बाहर से चाचू ने दरवाजा बंद कर दिया । मैन सोचा कि बंद कर के कुछ कर रहे होंगे ।

उसके बाद मैंने देखा  धीरे धीरे मेरे पैर गीले होने लगे हैं और कुछ केरोसीन जैसे बदबू आने लगी । दरवाजे के नीचे से पेट्रोल और केरोसीन अंदर आने लगा था  ।  घबरा कर मेरे हाथ से जलती हुई मोमबत्ती छूट कर नीचे गिर गयी  ।  मोमबत्ती नीचे गिरते ही एकदम चारो तरफ आग ही आग हो गयी ।  

उसके बाद का उसे होश नहीं रहा ।

दो दिन बाद भूषण ने प्राण त्याग दिए ।

सुहासिनी ये सब सुन परेशान हो गयी ।

तूलिका भाभी औऱ माँ रो रो कर बेहाल हो रही थी । घर का होनहार चिराग़ बुझ चुका था । वो प्रताप भाई साहब की तरह ही हुनर मंद था ।

इस सारे प्राकरण में प्रताप भाई साहब एक दम खामोश हो गए ।

उन्हें सब कुछ समझ आ चुका था ।

उनका दिमाग किसी ओर ही धुन में काम कर रहा था ।

सारे मोहल्ले में थू थू होने लगी थी । मालती दादी ने जो ख्याति बनाई थी वो सबको अब डूबती नज़र आने लगी थी ।

पुलिस बार-बार घर चक्कर लगाने लगी ।

बाऊजी की तबियत आहिस्ता- आहिस्ता खराब होने लगी ।

लक्ष्मीदत्त को रोज़ सुबह थाने बुलाया जाने लगा औऱ वो शाम को टूटे हुए घर आने लगे ।

अगले दिन जैसे ही पुलिस लक्ष्मी भाई साहिब को लेने आती । भाभी कोटिलया प्रताप भाई साहब (जेठ जी ) के पाँव पड़ रो रो कर मुआफी की गुहार करने लगी ।

उसी बीच बाऊजी को एक बहुत जबरदस्त  दिल का दौरा पड़ा ।
प्रताप भाई साहब ने मुझे साथ लिया और उन्हें अस्पताल ले गए ।
मुझे याद है सुहासिनी --
( देवदत्त कहते कहते बहुत छुपाने की कोशिश की मगर उस वक़्त बहुत भावुक हो चुके थे औऱ सिसकने लगे )
तीन दिन तक हम घर वापिस नहीं आये । वहीं अस्पताल में ही रहे औऱ बाऊजी आई.सी.यु में ।

       चौथे दिन डाक्टर ने बताया कि बाऊजी अब खतरे से बिल्कुल बाहर हैं । आप उन्हें मिल सकते हैं ।

प्रताप भाई साहब ने मेरी तरफ देखा जैसे पूछ रहे हों कि चलेगा साथ ?

मैं भी उठ खड़ा हुआ और उनजे साथ अंदर जाने को तैयार ही गया ।

हम पन्द्रह मिनट तक अंदर रहे ।

पूरी तरह मौन ....

मगर दस मिनट तक दोनों की आँखों ही आँखों में जो मौन बातें हुईं और वहां से निकलते वक्त बाऊजी जी को जो चैन मिला । सुहासिनी उसे मैं आज भी महसूस कर सकता हूँ ।

भाई साहब ने आई सी यू रूम से बाहर निकलते हुए बाऊजी की बाजू को दबाते हुए कहा -- चिंता मत कीजियेगा । सब ठीक हो जाएगा ।

उस दिन पहली बार हम अस्पताल से घर गए ।

घर पहुँचते ही भाई लक्ष्मी प्रताप के पाँव पड़ के मुआफी  मांगी और धन्यवाद भी किया ।

मुझे उस वक़्त तो कुछ समझ नहीं आया कि ये सब क्या हुआ ।
मगर बाद में पता चला कि भाई साहब प्रताप ने खानदान की नाक न कट जाए इसलिए अपने गहरे रसूक को इस्तेमाल कर सारा केस ही रफा दफा करवा दिया । किसी को कानों कान खबर भी न हुई ।

बाऊजी जी और प्रताप भाई साहब की मौन बातचीत का इतना गहरा मतलब मुझे बाद में समझ आया ।

"फिर ?"-😢,- पूछते हुए सुहासिनी की आँखें इस वक़्त नम ही चुकीं थीं ।

फिर क्या ?

उसके बाद धीरे-धीरे प्रताप भाई ज़्यादा ग़मगीन औऱ मौन रहने लगे गए औऱ अपनी बेटी की तरफ ध्यान देना शुरू किया ।

बाद में उनकी दो बेटियां और हुईं टिया औऱ दिया ।

एक-एक कर अपनी बेटियों को पढ़ाना शुरू किया ।

बड़ी बेटी को तो हमारी शादी से पहले ही कनाडा सेटल कर दिया ।
तब तक मेरी नॉकरी भी लग गयी थी।

प्रताप भाई साहब को मेरी शादी की चिंता बहुत रहती थी । उसके बाद वो मुझे ही बेटा मानते थे ।

उन्हीं के रसूक में तुम्हारे पिता जी से बात कर  मेरे लिए तुम्हारा हाथ मांग लिया औऱ हमारी शादी धूम धाम से हुई ।

गाड़ी अब धीरे-धीरे चलने लगी थी शायद कोई स्टेशन आने वाला था ।

सुहासिनी ने उठ कर इधर उधर देखा कोई कोल्ड ड्रिंक वाला दिखाई दे जाए ।

खिड़की से बाहर बूट पालिश वाले को पाँच रुपये देकर बोला जा कोई कोल्ड ड्रिंक वाले को भेज ।

वो पाँच मिनट में खुद ही के आया । उससे दोनों बोतल लेकर सुहासिनी ने उसे पचास रूपये दिए ।

अब देवदत्त औऱ सुहासिनी बोतल पीते पीते कुछ हल्का महसूस करने लगे ।

सुहासिनी ने फिर पूछा-- "तो प्रताप जेठ जी ने कभी कोई बात ही नहीं छेड़ी?"

देवदत्त ने फिर एक लंबा और गहरा साँस लिया औऱ कहा ---" ,हाँ सुहासिनी !! मैंने ज़िन्दगी में ऐसा इन्सान कभी नहीं देखा"

"कितना बड़ा  दिल उनका ? इतना सेक्रिफाईस ?"--सुहासिनी ने फिर कहा ।

"फिर ?"-- सुहासिनी ने फिर पूछा ।

बाकि दोनों बेटियों को भी कनाडा सेटल कर अब वो ख़ुद भी वहॉं जाने की तैयारी करने लगे थे ।

"पर तुमने मुझसे तो कभी बात नहीं कि इस बारे में"--सुहासिनी बोली ।

"क्या बात करता ? वो तो मुझे भी कहने लगे थे साथ चलने के लिए" -- देवदत्त मुँह में बड़बड़ाते हुए बोले -- "लेकिन हमारे बच्चे अभी छोटे थे ।"

लक्ष्मी भाई साहब तो बस बाऊजी औऱ माता जी की चमचा गिरी में ही लगे रहते थे । ख़ुश थे कि प्रताप भाई चले जायेंगे ।

जब मैं भी सेटल हो गया । बहिनों की शादियां भी हो गयीं ।

तब प्रताप भाई ने धीरे-धीरे कारोबार को हाशिये पे ला खड़ा किया ।

बाऊजी प्रताप की कार-गुजारी से भली-भांति वाकिफ थे ।

लेकिन वो चुप थे ।

लक्ष्मी भाई साहब को किसी बात की खबर तक न लगने दी ।

लेकिन लक्ष्मी भाई ये ज़रूर कहने लगे थे कि अब इस कारोबार में वो मजा नही रहा ।

मगर बाऊजी को बार बार दबाव डालने में लगे थे कि कारोबार उनके नाम कर दो ।

आपकी तबीयत भी ठीक नहीं रहती ।

अब बाऊजी को भी पता था कि अब कारोबार में रह ही कुछ नही गया तो

उसी साल अपना सब कुछ समेट कर, भाई प्रताप, इंडिया को अलविदा कह  गए ।

उनके जाने के बाद का तो तुम्हें पता ही है कि आमदनी घटती गयी । घर में बात-बात पर झगड़े होने लगे ।

लक्ष्मी भाई साहब के दोनों बच्चों की पढ़ाई के चलते बहुत पैसा लग रहा था ।

जब भी लक्ष्मी भाई कारोबार कु बात करते बाऊजी जी प्रताप के आने की बात कह टाल जाते ।

बाऊजी जी को लक्ष्मी भाई साहब पर तरस भी आ जाता था । बच्चों की पढ़ाई का सारा खर्चा बाऊजी उठा रहे थे ।

मुझे ये अच्छा नहीं लगता था ।

ऐसा लगने लगा था कि लक्ष्मी भाई साहब सब कुछ हड़पने के चक्कर में थे ।

बाऊजी की तबियत वैसे ही ठीक नहीं थी । यही वजह रही थी कि बाऊजी ने हम दोनों को बुलाकर बताया भी औऱ इस्लाह भी ली थी । मैंने उस दिन प्रताप को भी शामिल करने की बात भी कही थी ।
पर पिता जी ने कहा कि उस से बात हो गयी है ।

फिर जो बात हुई तुम्हें पता ही है ।
सुहासिनी अब ग़मगीन थी ।

गाड़ी फिर रुकी ।

कुली एकदम अंदर गुसे । सामान उठवा कर गाड़ी से बाहर के गए ।

देवदत्त ने टैक्सी बुलाने के लिए जैसे ही फ़ोन उठाया फ़ोन की घंटी बज उठी ।

---हर्ष महाजन

◆◆◆◆◆

क्रमश:

भाग-7
Coming soon


2 comments:

  1. बहुत ही सस्पेंस भरी । इंतज़ार अगले भाग का ।

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