ट्रैन से उतर कर देवदत्त औऱ सुहासिनी अभी कुली को बुला ही रहे थे कि अचानक उनका फ़ोन बज उठता है । वो कुली को छोड़ फ़ोन को पिक कर हैलो बोलते हैं । उधर से कोई आवाज नहीं आती । सो तीन चार बार फिर हेलो बोलते हैं, मगर उधर से कोई आवाज़ नहीं आती तो वो बंद करने के लिए आगे से देखते हैं तो फ़ोन पहले ही बंद होता है । देवदत्त उसे चैक करते हैं तो फ़ोन की बैटरी खत्म हुई होती है ।
फ़ोन को देखते हुए अज़ीब सा मुँह बनाते हुए फ़ोन को जेब में रख फिर से कुली को आवाज़ लगाते हैं ।
सुहासिनी को देवदत्त जी की चाल ढाल से यही महसूस हो रहा था कि घर जाना उनको बोझ सा लग रहा है । उसने पूछ ही लिया।
"अजी आप उदास क्यूँ हो ?"
"सुहासिनी --- मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा" --देवदत्त ने धीरे से कहा ।
"आप बच्चों के बारे में ज़्यादा मत सोचा करो । उनका वक़्त है सब ठीक हो जाएगा"---सुहासिनी ने देवदत्त को सांत्वना देते हुए कहा ।
इतने में कुली ने सामान उठा कर कहा - "किधर जाना है पहाड़ गंज की तरफ या----"
कुली की बात पूरी भी नही हुई कि देवदत्त ने कहा पहाड़गंज की तरफ ।
कुली ने सामान उठाया और वो दोनों, कुली के पीछे-पीछे स्टेशन से बाहर आ गए ।
बाहर आकर देवदत्त ने कुली से प्रीपेड टैक्सी बूथ की तरफ इशारा किया ही था कि देवदत्त को किसी ने आवाज़ लगाई ।
आवाज़ कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी । दोनों ने पीछे मुड़ कर देखा जो दोनों हैरान ।
सुहासिनी ने एक दम जल्दी- जल्दी पल्लू संभाला और उनके पाँव पड़ते हुए बोली - "अरे जेठ जी आप?"
देवदत्त ने प्रताप को गले लगाया औऱ पूछा -- "तुम यहाँ स्टेशन पर?"
(देवदत्त ने अपनी शंका दूर करते हुए पूछ लिया क्यूँकि उन्हें तो एयरपोर्ट पर होना चाहिए था )
"कनाडा से कब आये ?" -- देवदत्त ने फिर पूछा ।
"कल" - प्रताप बोला ।
इतने में कुली ने बीच में ही टोका और पैसे मांगे ।
पैसे देकर वो बुकिंग काउंटर की ओर बढ़ने लगे तो प्रताप ने कहा हमारी गाड़ी में ही चलो ।
देवदत्त ने टोका -- "तुम्हारा काम ?"
प्रताप ने कहा वो सब हो गया है ।
"तो फिर घर चलो" -- देवदत्त ने कहा ।
गाड़ी में बैठ फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ ।
प्रताप ने बच्चों का हाल पूछा तो सुहासिनी ने झट से जवाब दिया सब अच्छा चल रहा है और फिर सुहासिनी ने भी पूछ लिया भाभी तूलिका औऱ टिया,दिया कैसी हैं ?
"सब ठीक हैं । टिया दिया अपने बच्चों में मस्त हैं और ये तूलिका बिज़नेस वोमेन बन चुकी है । फुरसत ही नही है उसे किसी से बात करने की" --हँसते हुए आगे कहा --"देखो न उसी के टूर पर दिल्ली आया हूँ "
देवदत्त अभी तक चुप ही बैठे थे । उन्होंने प्रताप को बोला - "भाई साहब ज़रा फ़ोन मिलाना जरा राजेश या कामिनी को हमारा दोनों का तो फ़ोन ही डिस्चार्ज हो गये हैं ।"
इतने में प्रताप ने कामिनी का फ़ोन मिला कर देवदत्त के हाथ में दे दिया ।
देवदत्त ने फ़ोन सुहासिनी को दे दिया ।
सुहासिनी ने फ़ोन लिया और कान से लगा लिया ।
उधर से कामिनी की आवाज़ आयी-- "हेलो"
तो सुहासिनी बिना किसी भूमिका के बोली-- "हेलो कामिनी ? पिन्टू कैसा है?"
उधर से कामिनी का तो जैसे फुट-फुट कर ये हाल हो गया कि उस से बोला ही नहीं जा रहा था ।
माँ बाबू जी का सुबह से कोई फ़ोन न मिल पाना और फिर उनकी कोई खबर भी न मिल पाना और एक के ऊपर एक पहाड़ टूटना । सब एक दम साथ गुबार बन कामिनी के गले में जैसे अटक गया हो ।
सुहासिनी भी घबरा गई और पूछने लगी -- "क्या हुआ बताओ बेटा ?"
"जल्दी आ जाओ माँ, बाबूजी (रोते-रोते) जल्दी आ जाओ यहाँ कुछ भी ठीक नहीं है"-- कामिनी बोलती चली गयी ।
देवदत्त औऱ प्रताप दोनों ही सुहासिनी की बातें ध्यान से सुन रहे थे ।
देवदत्त ने सुहासिनी को पिन्टू का हाल पूछने को कहा ।
फ़ोन कट चुका था ।
प्रताप ने फिर फ़ोन मिलाया औऱ फ़ोन पिक होने का इंतज़ार करने लगा ।
फ़ोन पिक हुआ--उधर से अबकी किसी आदमी की आवाज़ थी ।
प्रताप ने पूछा - आप कौन?
सर में राजेश का दोस्त हरि बोल रहा हूँ। कामिनी बात करने की हालत में नहीं हैं ।
👌🏻प्रताप ने झट से पूछा - क्या हुआ कामिनी को?"
हरि का नाम सुनते ही प्रताप से देबदत ने फ़ोन ले लिया औऱ पूछा- हरि ? सब ठीक है न ?
हरि ने हकलाते हए बोला -- "अंकल आप बस जल्द आ जाइये"
"तुम कुछ बताते क्यों नहीं ?"-- देवदत्त हरि को लगभग डांटते हुए बोला।
हरि ने फ़ोन फिर कामिनी के हाथ में दे दिया ।
अब कामिनी ने फ़ोन लेकर कहा - बाबूजी आप कहाँ है ? जहां भी हैं सीधे चंगाराम अस्पताल पहुंच जाइये ।
देवदत्त को कामिनी के जोर-जोर से रोने की आवाजें आने लगी औऱ फ़ोन फिर बंद हो गया ।
देवदत्त ने टैक्सी ड्राइवर को बोला गाड़ी सीधे चंगाराम राम अस्पताल ले चलो जल्दी ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
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क्रमश:
भाग-10
Coming soon
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