पंकज औऱ रावी गुलमर्ग में अभी बस से उतरे ही थे कि उनकी छह साल की राशिता बर्फ में दौड़ पड़ी । रावी उसको आवाज मारती हुई उसके पीछे-पीछे दौड़ पड़ी ।
पंकज बस से नीचे उतर, रावी को उसके साथ हंसते खेलते देख, मन में बहुत खुश हुआ ।
एक तरफ खड़ा ही वो सोच रहा था इस बार छठा साल था वादियों में आने का । वो हर साल आते थे तभी राशिता को हर जगह की पहचान हो गयी थी । इसी लिये वो निडर होकर भाग रही थी ।
बेटी राशिता जब थक हार कर वापिस आयी तो रावी भी हांफ रही थी और राशिता को बोल रही थी --- "इस तरह मत सता बेटा बर्फ कच्ची है कहीं दब न जाना ?"
जब वो पास आई तो गले से लगाकर उसे बोली --"सहेली को तो खो दिया था अब तुझे नहीं खोना चाहती । मुझसे दूर न जाया कर । मेरे पास ही रह कर खेल बेटा ।"
राशिता फिर माँ का हाथ छुड़ा कर मम्मी,मम्मी करती हुई बर्फ की ओर भागने लगी ।
पंकज दोनों को देख-देख कर दूर बैठा मुस्कराता रहा । थोड़ी देर बाद तीनों एक रेस्टोरेंट में बैठे थे कि पीछे से एक जानी पहचानी आवाज आई-- "निशिता?"
रावी ने हैरान होकर पीछे मुड़कर देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ ।
वो सिद्धार्थ था । उसकी बचपन की जिगरी दोस्त का पति ।
सिद्धार्थ किसी लड़की को आवाज मार रहा था औऱ वो भी "निशिता" को ?
ये कैसे हो सकता है?
सिद्धार्थ जिसको आवाज लगा रहा था । वो लड़की भी बड़ी खुश नजर आ रही थी ।
रावी ने पंकज को आवाज लगाई तो उसने वहीं से बताया -- "मैं भी देख रहा हूँ रावी ! वही देख रहा हूँ । पर है तो वो सुंदर न?"
"पर इसका नाम भी निशिता ?"--रावी ने बड़बड़ाया और आगे कहा--
"जब हम इंदौर छोड़ कर दिल्ली शिफ्ट हुए थे तो उसके बाद सिद्धार्थ से कभी मुलाक़ात भी तो नहीं हुई न । हम भी अपने औऱ अपने बच्चे में बिजी हो गए और न ही सिद्धार्थ ने कभी कांटेक्ट किया"
सिद्धार्थ उस लड़की के साथ बहुत खुश था । उस लड़की के हाथ में नया-नया चूड़ा भी था । इसका मतलब सिद्धार्थ ने शादी कर ली थी ।
"चलो अच्छा हुआ" --पंकज ने कहा ।
रावी नए चूड़े में उस लड़की को देख पुराने ख्यालों में खोती चली गयी ।
आठ साल पहले जब उसके पापा की दिल्ली ट्रांसफर हुई थी तो रामनगर में ही वो मकान पसंद आया था ।
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निशिता रामनगर सेकेंडरी स्कूल की छठी क्लास में पढ़ती थी । अपने स्कूल के सबसे शरारती बच्चों में उसका नाम दर्ज था । क्लास में उसकी अजीब सी शरारतों से उसकी क्लास टीचर इंदु बहुत परेशान हो जाती थी । लेकिन वो पढ़ाई में हमेशा अव्वल आया करती थी । इसलिए इंदु मैडम उसकी सब शरारतें माफ कर दिया करती थी ।
अपनी कॉलोनी में भी अपनी हम उम्र बच्चों में उसका बहुत ही रुआब था । रोज़ कोई न कोई नई गेम को ईजाद कर वो अपने ही रूल बनाकर खेल शुरू कर दिया करती थी । सभी बच्चे उसकी हाँ में हाँ मिलाया करते थे । मुहल्ले का हर बच्चा उसकी बातों के बीच इसलिए बोलने से डरता था कि वो उसे गेम से बाहर ही न करदे । उसकी हर बात मानने की सबको आदत सी हो गयी थी ।
ज़ुबाँ की तीखी निशिता अपने माँ बाप की इकलौती संतान थी । देव बाबू और कमलेश को अपनी बेटी पर बहुत नाज़ था । इतनी छोटी उम्र में वो हर काम में उन्हें परफेक्ट लगती थी ।
निशिता ने माँ को आकर बताया कि उनकी कॉलोनी में एक नई फैमिली शिफ्ट होकर आयी है वो लोग बहुत अच्छे है । उनकी भी एक बेटी है रावी, जो उसके जितनी ही है । उसने भी उसी के स्कूल में दाखिला ले लिया है ।
माँ ने हंसते हुए कहा--"फ़िर तो तेरी टीम और बड़ी हो जाएगी?"
मुस्कराते हुए वो उछलती हुई बाहर खेलने चली गयी । बाहर उसने देखा सब उसकी दोस्त एक जगह बैठकर ज़मीन की तरफ कुछ गौर से देख रहे हैं । वही सब देखने निशिता जब वहां पहुंची तो उसे अच्छा नही लगा । उसने देखा रावी ज़मीन पर बैठी उन सबको कोई गेम सीखा रही थी और बाकि सब बड़े ही चाव से उसकी गेम को दिल लगाकर समझ भी रहे थे । इस बात से निशिता थोड़ी ख़फ़ा हो गयी । उसने दूर से अपनी दो तीन सहेलियों के नाम लेकर ऐसे आवाज़ लगाई जैसे उसे कुछ पता ही नही ।
उसकी सहेलियों ने भी उसकी आवाज को सुना-अनसुना कर दिया । उसको इस बात से बहुत ठेस लगी । अगले दिन उसने थोड़ा पहले जाकर कुछ लड़कियां इकट्ठी की और फिर अपनी गेम में रूल चालू किये । इतने में रावी भी आ गयी । रावि को जब उसने अपने ही रूल्स बताये तो उसने मानने से इनकार कर दिया । बोलने की तहज़ीब और प्यार ने सभी लड़कियों को धीरे-धीरे उसी की तरफ मोड़ दिया ।
इस तरह आखिर में निशिता अकेली रह गयी औऱ वो उदास रहने लगी थी ।
रावी दिल की बहुत अच्छी इंसान थी । उसे ये बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था । धीरे-धीरे निशिता स्कूल में भी सभी से अलग-थलग पड़ने लगी थीं औऱ अपने में ही उदास-उदास रहने लगी थी ।
ये बात रावी को भी परेशान करने लगी थी । उसने एक दिन निशिता को अपने पास बुलाया और दोस्ती का हाथ आगे बढ़ा दिया ।
निशिता ये देख एकदम भावुक हो उठी और उसने उसको गले से लगा लिया । उसने उसे बड़ी गर्मजोशी के साथ स्वीकार कर लिया और उनकी दोस्ती आगे चल कर परवान चढ़ने लगी ।
निशिता ने हंसते हुए रावि को बताया कि तूने तो मुझे हर जगह निल कर दिया रावी । मेरा पूरी कॉलोनी में और स्कूल में पूरा रुआब था ।
रावी ने भी उसे हंसते हुए जवाब दिया--"अब भी तेरा ही रुआब है निशिता । चिंता न कर ।" और दोनों हँस पड़ी ।
हर क्षेत्र में दोनों आगे-आगे रहने लगीं । एक दूसरे के बगैर वो कोई भी काम नहीं करती थी । स्कूल से घर आकर मुहल्ले के बच्चों को इकट्ठा कर खेलना । फिर रावी, निशिता को अपने घर की छत पर ले जाकर घंटो बातें करना ।
निशिता ने रावी को अपनी इच्छा बताते हुए कहा-- "रावी मुझे पहाड़ों पर सैर करने की बहुत इच्छा है एग्जाम खत्म होंगे तो कोई ऐसा प्रोग्राम हो जाए कि कहीं पहाड़ों की ओर घूमने का कार्यक्रम बन जाये ।"
"अरे निशिता अभी हम बहुत छोटे हैं । खुद का प्रोग्राम कैसे बन सकता है? एग्जाम सर पर हैं उसकी तैयारी कर पहले बाद में देखते हैं ।"--मुस्कराते हुए रावी ने उसे समझाया ।
इन्हीं चर्चाओं के बीच उनमें कभी खटपट तो कभी सुलह । इसी तरह दिन बीतते चले गए । पढ़ाई में रावी ज्यादा तेज थी औऱ निशिता भी कम तेज़ न थी लेकिन रावी के नंबर ज्यादा आते थे ।
इसी तरह स्कूल पास कर ग्रेजुएशन का वक़्त आया तो दोनों एक साथ एक जगह एडमिशन लेना चाहती थीं । लेकिन कहीं भी उनका नंबर इकट्ठे नहीं आया । आखिर रावी ने पूना इंजीनिरिंग कॉलेज में एडमिशन ले लिया औऱ वो पूना चली गयी ।
निशिता को इस बात का बहुत ही धक्का लगा । उसने भी दिल्ली के एक आर्ट्स कॉलेज में उसने एडमिशन ले लिया । दोनों अपनी-अपनी ज़िंदगी में बिजी होती चली गईं ।
अब जब कभी रावी दिल्ली आती तो घर आकर वो सबसे पहले निशिता के घर उसे मिलने जाती । वो भी उसको मिल कर बहुत खुश होती औऱ निशिता उसको पहाड़ों की याद ज़रूर करवाती औऱ रावी से कहती भी कि कभी इकट्ठे प्रोग्राम बनाने के लिए । लेकिन निशिता की तबियत को देखते हुए रावी उसे बस प्रॉमिस ही करती ।
रावी ने नोट किया जिस तरह से निशिता पहले चंचल थी वह उस तरह से अब नहीं रही थी । अंदर से वो टूटती जा रही थी । पूछने पर भी वो रावी को कुछ भी नहीं बताती थी । बात करते हुए भी उसे सांस चढ़ जाती थी । उसकी तबियत अब ठीक नहीं रहती थी । डॉक्टर ने जो भी कभी टेस्ट लिखा उसने वो सभी टेस्ट करवाती लेकिन कभी उसमें कुछ नहीं निकलता । सब कुछ नार्मल ही आता था । फिर भी न जाने क्यों उसकी सेहत दिन पर दिन गिरती ही जा रही थी ।
चार साल बीत गए । रावी ने अपनी इंजीनियरिंग और निशिता ने अपना फाइन आर्ट्स & डिजाईंन का कोर्स अच्छे नंबरों से पूरा कर लिया ।
मुक़द्दर से दोनों की शादी भी एक ही शहर, इंदौर में औऱ अच्छे घरों में हो गयी । रावी और पंकज तो एक ही आफिस में थे ।
निशिता अपने पति सिद्धार्थ के खाली वक़्त में हमेशा नेचर से सम्बन्धिन्त बातें करके खुश होती । सिद्धार्थ ने उसे प्रॉमिस किया कि वो जल्द काश्मीर या किसी ऐसी जगह का टूर ज़रूर बनाएंगे जिसमें पहाड़ ही पहाड़ हों ।
रावी औऱ पंकज अपनी नॉकरी में बहुत बिजी रहने लगे लेकिन फिर भी जब भी वक़्त मिलता वो छोटी मोटी जगह सैर को निकल जाते ।
धीरे-धीरे उनका एक दूसरे के घरों में आना जाना भी शुरू हुआ और उनके पति भी एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने लगे थे । दोनों में अच्छी दोस्ती भी हो गयी थी ।
एक दिन पंकज जब ऑफिस में अपनी सीट पर कंप्यूटर पर बैठा काम कर रहा था कि उसको मेल का नोटिफिकेशन आया । उसने झट से खोला तो देखा उसका यूएसए के प्रोजेक्ट के लिए चयन हो गया है ।
वो सीट से उठ कर रावी की सीट की ओर बताने के लिए भागा तो वो भी इधर ही आ रही थी । उसे भी वैसा ही नोटिफिकेशन मिला था ।
बस फिर क्या था दोनों ने अपनी पैकिंग शुरू कर दी । शादी से पहले ही उनकी बाहर जाने की तमन्ना थी औऱ शादी के बाद उसने रावी का भी उसमें नाम दर्ज करवा दिया था । वो इच्छा युंकि उस दिन पूरी हुई थी । दो दिन बाद उन्हें निकलना था ।
अब सबसे बड़ा काम निशिता को बताना था । बिजी लाइफ के चलते उसके घर भी गए काफ़ी दिन हो गए थे ।
ऑफिस से घर आकर सबसे पहले दोनों उसके घर ये खुश खबरी सुनाने गए तो देखा उसके घर ताला लगा था ।
पड़ौस से पता चला कि रात निशिता की तबीयत अचानक खराब हो गयी थी तो उसे उसके पति अस्पताल ले गया था । अभी तक तो वो आये नहीं । अस्पताल का नाम पता कर वो वहां पहुंचे तो पता लगा उसके प्लेटलेट्स कम हो गए थे । लेकिन अब अस्पताल वालों ने उसको चढ़ा दिए थे । अब वो घर वापिस आ ही रहे थे ।
रावी ने निशिता को अपनी खुश खबरी सुनाई । निशिता ख़ुश तो हुई मगर फिर उदास भी हो गयी । रावी समझ गयी कि निशिता उदास क्यों हो गयी थी । उसने उसके साथ प्रॉमिस किया । अबकी बार जैसे ही थोड़ी छुट्टियां मिली और इंडिया का टूर लगा न तो आते ही वादियां घूमने का प्रोग्राम ज़रूर बनाएंगे । यही बातें करते हुए वो घर पहुँचे औऱ बाजार से डिन्नर मंगा कर किया । निशिता रावी से मिलकर बहुत खुश थी ।
वीसा की कार्यवाही पूरी कर रावी औऱ पंकज दोनों यूएसए निकल गए । वहां जाकर वो अपने प्रोजेक्ट में इतने बिजी हो गए कि उन्हें इंडिया में किसी से भी बात करते महीनों बीत जाते ।
इंडिया में निशिता की तबीयत संभलने पर नहीं आ रही थी । उसी बीच निशिता बीमारी में ही प्रेग्नेंट हो गयी । डॉक्टर के पास अबॉर्शन के लिए पहुंचे तो उन्होंने जान का खतरा बता कर अबॉर्शन कराने के लिए मना कर दिया ।
एक दिन निशिता को रावी का फोन आया ।
फोन उठाते ही रावी बोलती चली गयी--"निशिता सॉरी आ ही नहीं पाई । बहुत बिजी हो गए थे हम दोनों । ऊपर से प्रेग्नेंट भी हो गयी हूँ । तुम सुनाओ कैसी हो?"
उधर से कोई भी जवाब न आने पर रावी ने फिर बोला-- "हेलो निशिता?"
उधर से निशिता की जगह सिद्धार्थ की बहुत ढीली सी आवाज आई-- "रावी ! निशिता इस वक़्त बात करने के लायक नहीं है । वो काफी दिनों से बैड पर ही है । तुम्हें मिलने का उसका बहुत मन है । रोज़ तुम्हें ही याद करती है । अगर आना हो सके तो उसकी आख़िरी ख्वाहिश पूरी हो जाएगी ।"
"आखिरी ख्वाहिश ? क्या बात कर रहे हो ? ऐसी बातें तो मत करो सिद्धार्थ !!"--रावी ने उदास स्वर में कहा ।
सिद्धार्थ सिसकते-सिसकते फिर बोला-- "वो प्रेग्नेंट भी है और डॉक्टर ने कहा है कि निशिता अब अपने आख़िरी वक़्त से जूझ रही है ।"
"आख़िरी वक़्त? क्या कह रहे हो?"
"हाँ ! उसे ब्लड कैंसर है । औऱ आख़िरी स्टेज पर है"
"ओह ! गॉड"
"अच्छा रावी, उसको दवाई देने का वक़्त हो गया है । फिर बात करता हूँ"-- सुबकते हुए सिद्धार्थ बोला औऱ फोन रख दिया ।
पंकज को जब निशिता के बारे में पता चला तो उसके पाँवों तले से ज़मीन सरक गयी । औऱ मन ही मन बोला --"बस इतनी सी ज़िन्दगी ?"
रावी की तो रो रो कर जान ही निकली जा रही थी ।
पंकज ने उसी वक़्त अपने एजेंट को बोलकर, इंदौर की दो टिकट बुक कराई औऱ वो तीसरे दिन दोनों इंदौर राजधानी अस्पताल पहुंचे ।
सिद्धार्थ उन्हें अस्पताल के बाहर ही केमिस्ट से दवाई लेता हुआ मिल गया ।
दोनों को देख कर उसकी खोई हुई आशा फिर से जाग उठी । उसने बताया कि निशिता आपको याद कर-कर के बेहाल हो रही थी । उसकी आँखों की पुतलियाँ तुम्हारी याद में बंद ही नहीं हो रही थी । कहती है अगर पुतलियां बन्द की तो ऐसा न हो कि खुले ही नहीं ।
अब तबीयत कैसी है उसकी ?
"खुद ही चल के देख लो। "- सिद्धार्थ ने कहा ।
उसने ये भी बताया कि निशिता एक कन्या को जन्म दे चुकी है ।
"फिर तो मुबारक हो आपको । अब वो ठीक भी ही जाएगी ।"---रावी कहने लगी तो सिद्धार्थ ने टोक दिया ।
"नहीं रावी, बच्चे के चलते उसका प्रॉपर इलाज भी नहीं हो पाया । बच्चे को नुकसान न हो जाये इसलिए कीमो हो नहीं सकती थी । बच्चा गिरा नहीं सकते थे । बस -~~"--कहते-कहते सिद्धार्थ फिर सिसक पड़ा ।
पंकज ने उसके कंधे पर हाथ रख दिलासा दिया ।
अब तक वो तीनों चलते-चलते निशिता के पास पहुंच चुके थे ।
उन्हें देखते ही निशिता में जैसे करंट दौड़ गया । खुशी के मारे वो खिल गयी । सिद्धार्थ ये सब देख रहा था । कितने महीनों बाद उसके मुंह पर ऐसी हँसी देखी थी उसने । पता नहीं इतनी हिम्मत कहां से आई उसमें कि वो बैड पर उठ बैठी औऱ हाथ फैला कर रावी को गले से लगा लिया औऱ दोनों ने बड़ी देर तक एक दूसरे को छोड़ा ही नहीं ।
फिर एकदम खुद को छुड़ा कर निशिता पीछे होती हुई नाराज़ होकर बोली-- "तुम बहुत झूठी हो । तुमने मेरे साथ ठीक नहीं किया, कोई भी प्रॉमिस, पूरा नहीं किया ।"
" अब देखना निशिता, मैं तब तक वापिस नहीं जाउँगी, जब तक तुम ठीक न हो जाओ बस । फिर यहाँ से सीधे वादियों में"--कहते हुए आंसुओं में नहा रही थी रावी ।
"अब बहुत देर हो चुकी है रावी । सच्चाई को झुठलाना ठीक नहीं । पर तुझसे एक प्रॉमिस चाहिए । पूरा करोगी ?"--निशिता, रावी का हाथ अपने हाथ में लेती हुई बोली ।
"अरे बोल तो सही ? तेरे लिए तो जान भी हाज़िर है पगली"--रावि आंसू बहाती हुई बोली ।
"नहीं नहीं ! जान नहीं चाहिए तेरी । बस क्या तू इस नन्ही सी जान को माँ का प्यार दे पाएगी? इस मासूम को पहाड़ों की सैर करा पाएगी?"--निशिता कहते हुए बड़ी उम्मीद भरी नजरों से उसे देख रही थी जैसे भीख मांग रही हो ।
इतना सुन रावी सुन्न पड़ गयी । वो सोचने लगी ये फैसला वो अकेले कैसे ले सकती थी ? उसने दया भाव से पहले पंकज की ओर देखा तो उसने हल्के से सर हिलाते हुए हामी भरी तो फिर उसने सिद्धार्थ की ओर देखा तो उसने दोनों हाथ जोड़कर सर नीचे झुका लिया ।
अब रावी ने अपने आपको उस परी को संभालने के लिए बिल्कुल तैयार पाया ।
हाँ में सर हिलाते हुए रावी ने जैसे ही सर हिलाया, निशिता ने अपने दिल के टुकड़े को उसके हाथों में सौंपते हुए कहा-- "ये लो ये राशिता अब तेरी हुई ।"
"राशिता?"--रावी विस्मय में थी ।
रिशिता ने कहा--"हाँ, रावी का "रा" औऱ निशिता का "शिता" । हो गया न "राशिता" ?"
राशिता को रावी के हाथों में सौंप निशिता ने जैसे अपने आपको बड़ा हल्का महसूस किया और एक लंबी सकूँ की सांस ली ।
जो उसकी वो आख़िरी सांस थी ।
💐💐💐समाप्त💐💐💐
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