Tuesday, February 28, 2023

बंटवारा

 

◆◆◆

एक एक्सीडेंट में वालदैन की मौत के बाद राजेश को दिल्ली आए तीन साल बीत चुके थे । नास्ता तैयार कर उस दिन राजेश ने अपना बैग उठाया और मौसम सुहाना देखकर ऑफिस के लिए घर से निकल पड़ा । उस दिन उसकी तबियत ठीक नहीं थी । मन मचला रहा था । ऐसे हो रहा था जैसे खाया पीया सब बाहर आ जायेगा । ऑफिस कोई ज्यादा दूर भी नहीं बस तीन किलीमेटर के फासले पर ही था । इसलिए उसने बस में जाने की बजाय पैदल जाना ही उचित समझा । अगर बस में बैठ कर सब कुछ बाहर आ गया तो कई लोगों के कपड़े कपड़े भी खराब होंगे और बेइज्जती होगी सो अलग ।

अभी वो ये सब सोचते-सोचते एक किलोमीटर ही गया होगा कि उसका जी और भी ज्यादा मचलाने लगा तो वो रास्ते में आये पार्क की दीवार के साथ खड़ा होकर वोमिटिंग आने की इंतजार करने लगा । खड़े खड़े पांच मिनट हो गए लेकिन तबीयत कुछ सुधरी नहीं और आस पास सब घूमता हुआ नजर आने लगा । उसमें इतनी हिम्मत नहीं लग रही थी कि वो अब घर वापिस जा सके । घबराहट और पसीने भी आने लगे थे । उसने देखा जहां वो खड़ा था उसके पांच दस कदम पर ही पार्क का गेट था । वो दीवार के सहारे पकड़-पकड़ कर पार्क में जाने की कोशिश करने लगा । लेकिन उसको अब चक्कर आने लगे थे । उसने अपने आपको किसी तरह  संभाला और फिर गेट पर ही खड़ा हो गया । आसमान गड़गड़ाने लगा । सर उठाकर ऊपर देखा तो काले बादल मंडराने लगे थे । ठंडी-ठंडी बुहार आने लगी थी । हल्की-हल्की बूँदा-बांदी शुरू हो गयी थी । खड़े-खड़े चक्कर कुछ कम लगे तो सोचा कि पार्क के अंदर ही चल के बैठा जाए ।
अभी अंदर चलकर बैठने की सोच ही रहा था कि बूँदा-बाँदी तेज होने लगी । राजेश झुकते हुए और क्यारियां पार करते हुए पार्क में लगी बड़ी छतरी के नीचे जाकर बैठ गया । वहां सीमेंट की बड़ी छतरी के डंडे के सहारे अपनी पीठ टिका ली तो उसे आराम लगा ।

बरसात एक दम तेज हो गयी और धीरे-धीरे मूसलाधार बरसने लगी । पार्क पूरा खाली हो चुका था ।  इक्का दुक्का लोग बचे, जो बारिश बन्द होने की इंतजार करने लगे थे । काले बादलों से फलक पूरी तरह घिर चुका था । अंधेरा पूरा छाने लगा ।  बिजली गड़गड़ाने लगी ।

अभी बैठे हुए कुछ ही देर हुई तो अचानक राजेश की नज़र पार्क के एक कोने में एक सीट पर गयी जहाँ एक बुज़ुर्ग बगल में एक थैला दबाए मूसलाधार बरसात में सिकुड़ कर बैठा था । उसके साथ ही उसकी लाठी भी पड़ी थी । राजेश काफी देर से उसे देख रहा था वो बुज़ुर्ग बार-बार गेट की ओर देखकर फिर आराम से सीधे हो कर बैठ जाता । राजेश समझ तो रहा था कि हो न हो वो बुज़ुर्ग किसी न किसी का इंतज़ार तो कर ही रहा था ।

लेकिन राजेश को ये समझ नहीं आ रहा था कि वो बुज़ुर्ग वहाँ बरसात में क्यों बैठा इंतज़ार कर रहा है? बरसात से बचने के लिए यहाँ छतरी थी यहाँ क्यों नहीं आ गया ? ऐसे तो इतनी उम्र में भीग कर वो तो बीमार हो जाएगा ?

राजेश अपनी तबीयत तो भूल गया और उसकी चिंता उसे परेशान करने लगी ।

उसने अपना लंच बैग उठाया और छतरी का आसरा छोड़ वो पार्क के कोने में बैठे उस बुज़ुर्ग की ओर चल पड़ा । बरसात अभी भी तेज थी ।

भीगते हुए राजेश ने उस बुज़ुर्ग के पास पहुंच कर उन्हें हाथ जोड़ कर नमस्कार किया तो राजेश ने महसूस किया कि जैसे उस बुज़ुर्ग को राजेश का उनके पास आना या उनसे बात करना उन्हें अच्छा नहीं लगा ।

राजेश ने कोशिश करते हुए उस सीट के कोने में अपने को टिकाया और झुककर बैठ गया । बरसात तेज थी थोड़ी देर भीगने के बाद तबीयत खराब होने की वजह से उसे ठंड महसूस होने लगी थी ।
उस बुज़ुर्ग ने उसकी तरफ एक बार देखकर फिर गेट की ओर देखा और ऐसे लगा जैसे वो मायूस हो गया हो?
राजेश की उत्सुकता इसलिए बढ़ने लगी थी कि इतना बुज़ुर्ग इंसान जिसकी उम्र लगभग नब्बे साल तो होगी ही जिसे ऐसी बरसात में भीगने से बचना चाहिए वो मुसलसल बरसात में ही बैठा क्यूँ इंतज़ार कर रहा है । ज़रूर कोई बात तो है? उसने कोशिश कर पूछ ही लिया--"सर आप किसी का इंतज़ार कर रहे है ?"

बुज़ुर्ग ने माथे पर बल डाल कर कुछ अजीब सी नज़रों से उसे देखा और अपने बगल में दबाए थैले को और भी जोर से दबा कर फिर गेट की ओर देखने लगा । लेकिन फिर उसने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी की ओर देखकर उसने कलाई को झटकना शुरू किया । दो तीन बार झटका दिया और फिर कान पर लगाकर सुनने की कोशिश करने लगा । शायद उसे अपनी घड़ी पर डाउट होने लगा था कि वो बन्द तो नहीं ?

फिर दुबारा घड़ी उसने अपने कान से लगाकर सुनने की कोशिश की और  राजेश की तरफ बेचैन नज़रों से देखने लगा । जब घड़ी से कुछ सुनाई नहीं दिया तो उसने उसकी ओर मुड़कर पूछा-- "आपके पास घड़ी है ?"

"हाँ-हाँ बोलियेगा?"

"वक़्त कितना हुआ है?"

"सर नो बजकर बत्तीस मिनट हुए हैं"--राजेश ने जेब से मिबाईल निकाल कर उसपर इस तरह हाथ किया कि वक़्त देखते वक़्त वो बरसात में भीग न जाये ।

"दस बत्तीस????".........!!!! एक दम हैरान होकर उस बुज़ुर्ग ने कहा ।

परेशानी उनकी पेशानी से साफ-साफ झलकने लगी थी और वो मन ही मन कुछ बड़बड़ाते हुए एकदम सीट से उठने लगे तो उनकी लाठी जो उनके साथ ही सीट पर पड़ी थी वो उन्हीं की टांग टच होने से नीचे ज़मीन पर गिर गयी ।

बरसात ने भी उसी वक़्त अपना जोर दिखाना शुरू कर दिया था ।

राजेश ने देखा कि उस बुज़ुर्ग को समझ नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करे । कभी वो अपने लाये उस थैले को अपनी बाजू के नीचे दबाता और कभी वो अपनी लंबी कुर्ते की कमीज के नीचे करता ।

कभी वो सीट पर बैठ जाता तो कभी खड़ा हो जाता ।..............!!!!

उसकी इस असमंझस की स्थिति को देखकर राजेश को ये तो समझ आने लगा था कि वो बुज़ुर्ग किसी न किसी परेशानी से ज़रूर जूझ रहा था । उसको न जाने क्यूँ उसकी ये परेशानी में अपनी बेबसी नज़र आने लगी थी । वो चाह तो ये रहा था कि वो बुज़ुर्ग उसको अपनी परेशानी जल्दी से बता दे तो वो उसकी हर हालत में हेल्प करेगा । इसी बात को सोचते हुए राजेश ने उनसे फिर पूछा-- "आप किसी का इंतजार कर रहे हैं ? क्या मैं कुछ मदद कर सकता हूँ?"

बस इतना पूछना था कि वो बुज़ुर्ग टूट गया औऱ अपने थैले को देखते हुए सिसकता हुआ बोल पड़ा-- "सारा खाना भीग गया । अब वो क्या खाएगी ? भूखी रह जायेगी वो आज----भूखी रह जायेगी बेटा वो क्या खाएगी ?"--कहता हुआ वो बुज़ुर्ग अपने आपको सिसकने से रोकते हुए बच्चों की तरह हिचकियाँ लेने लगा । मगर अपना दर्द और वेदना रोक पाने में असमर्थ रहा और धीरे-धीरे फुट-फुट कर रोने लगा ।

राजेश से रहा नहीं गया--"अंकल आप रो क्यों रहे हैं ? बताइए न क्या बात है ? क्या पता में आपकी कोई मदद कर पाऊं?"---------!!!!

"नहीं बेटा आप कुछ नहीं कर सकते । आज वो भूखी रह जायेगी । अब तो ग्यारह भी बज गए होंगे न ?"

"हाँजी अब तो ग्यारह दस हो गए अंकल, बताओ न क्या बात है? कौन भूखी रह जायेगी ? किसने आना था आपके पास?"--रोते हुए बुज़ुर्ग से राजेश ने एक बार फिर पूछा ।

"मेरी पत्नी बेटा"--मुँह नीचे करके कहता हुआ वो बुज़ुर्ग ऐसे लग रहा था जैसे शर्मिंदगी से ज़मीन में गड़ा जा रहा हो ।

"पत्नी ???"-------!!!!---राजेश के मुँह से हैरानी से निकला .....स

"हाँ बेटा !!~~~~ क्या बताऊँ!!- मेरी पत्नी रोज आठ बजे रोज़ इसी जगह मुझे मिलती है और ये दो फुल्के (थैला दिखाते हुए) उसके लिए ही लेकर आता हूँ। रात की भूखी होती है वो यहीं से खाकर वापिस  चली जाती है । पता नहीं उसे क्या हया होगा? वो अभी तक नहीं आई?"--बिलखते हुए बुज़ुर्ग राजेश को बताने लगता है।

"लेकिन पत्नी ने आना कहाँ से था? वो आपके साथ नहीं रहते क्या?"--कुछ न समझते हए राजेश ने फिर पूछा ।

"नहीं बेटा?  वो मेरे छोटे बेटे के साथ रहती है ।"

"औऱ आप?"

"बड़े बेटे के पास"--------!!!

"ओह !!!!"---राजेश ने ह्म्म्म करते हुए गर्दन हिलाई और सीधा ऐसे बैठते हुए उनकी तरफ देखा जैसा वो सारी बात समझ गया हो और फिर धीरे से बुज़ुर्ग से पूछा---"आप दोनों एक ही बेटे के पास क्यों नहीं रहते ?"---अंदर की बात जानने के लिए राजेश ने फिर भी ये प्रश्न पूछ ही लिया ।

बुज़ुर्ग ने कांपते हुए स्वर में राजेश से कहा-- "बेटा !!! मुझे कहना तो नहीं चाहिए--(सिसकते हुए)--ऐसी औलाद खुदा किसी को न दे । इससे अच्छा इंसान बे-औलाद ही रहे तो अच्छा है ।"

"क्यों अंकल ऐसा क्या हुआ ?"

"बेटा आख़िरी उम्र में हमारे करोड़पति बेटों ने हमें बांट लिया । सारी उम्र सारी ज़िन्दगी इनके लिए हमने कुर्बान कर दी और देखो न ~~~~~~"--हाथ में पकड़े गीले थैले को दिखाता है वो रोने लगा और आगे कहने लगा-- मैं डाटा कंपनी में सिविल इंजीनियर था । मेरी पत्नी सीमांत कॉलेज की प्रिंसिपल थी । हम दोनों ने अपने बच्चों को इस काबिल बनाया की वो हमारे बुढापे का सहारा बनेंगे । मैनें और मेरी पत्नी ने इन दोनों के केरियर की खातिर अपनी हर प्रोमोशन ठुकरा दी औऱ लोन ले ले कर दोनों को एमबीए करवाया । अच्छे घरों में शादियां करवा दी ।  जब तक ये दोनों नॉकरी करते थे तो सब ठीक था ।

हम दोनों बड़े बेटे के साथ रहते थे । लेकिन धीरे-धीरे बड़े बेटे ने अपना बिसिनेस शुरू किया ओर खुदा की महर हुई बिसिनेस चल निकला। आमदनी बढ़ने लगी । जैसे जैसे आमदनी बढ़ने लगी न जाने क्या हुआ उनका दिल धीरे-धीरे छोटा होने लगा । शुरू-शुरू में उन्हें बिसिनेस टूर पर जाना होता कभी हमें छोटे बेटे के पास छोड़ कर चले जाते और कभी हम अकेले घर पर रहते । धीरे-धीरे उम्र बढ़ती गयी फिर जब भी टूर पर जाते तो पीछे से उनकी माँ को घर का सारा काम करने में दिक्कत आने लगी । कोई नॉकर रखने नहीं देते थे । मेरी पेंशन और पत्नी की भी अपनी पेंशन है  पर उनका सारा हिसाब बेटों के पास ही है । अब धीरे-धीरे जब वो छोटे बेटे के पास छोड़ के जाने लगे तो एक दिन छोटे बेटे ने अपनी मम्मी से कहा-- "जब बाहर ऐश करने जाना होता है तो उन्हें वो उनके पास छोड़ जाते है । ये क्या तरीका हुआ ?"

उसकी मम्मी ने कहा भी--"नहीं बेटा वो अपने बिसिनेस टूर पे जाते हैं ।

"आपको नहीं पता मम्मी"

इतना सुन उसकी मम्मी ने भी कहा-"अगर ऐसा भी है तो तू भी तो हमारा ही बेटा न?"

ज़िन्दगी इसी खटपट में कट रही थी पर हम दोनों इकट्ठे तो थे और खुश भी थे ।

लेकिन इन दोनों भाइयों में हमारी वजह से झगड़ा इतना बड़ गया कि वो अब एक दूसरे के नाम से भी चिढ़ने लगे थे ।

"फिर एक दिन----!!!!"---कहते हुए वो बुज़ुर्ग फिर रो पड़ा ।

"फिर एक दिन क्या? अंकल जी?"---राजेश अभी तक बिना टोके उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी सुन रहा था और अंदर से उसे उनके बेटों पर गुस्सा भी आ रहा था ।

बुज़ुर्ग अपनी भूखी पत्नी के पार्क में आने की चिंता में भी था औऱ गेट की ओर भी देख रहा था कि शायद वो आ ही जाए?

गेट की ओर देखते-देखते उन्होंने आगे कहना शुरू किया--फिर ----वो हो गया !! जो इन बूढ़ी हड्डियों के लिए नहीं होना चाहिए था । कहता हुआ बुज़ुर्ग फिर सिसक पड़ा और अश्क़ों को बरसात में भी अपने कुर्ते की आस्तीन से पोंछते हुए आगे कहने लगा--बड़े वाले लड़के ने एक दिन सुबह-सुबह हम दोनों को उठा दिया और बोला बाऊ जी तैयार हो जाओ आज आप दोनों का अस्पताल में मेडिकल टेस्ट करवाना है कितने दिनों से तुम खांस रहे हो ।
हम दोनों खुश हो गए कि बेटे को अपने बूढ़े मां बाप की चिंता तो हुई औऱ फिर हम दोनों तैयार हो गए ।
अस्पताल से टेस्ट करवाकर जब लौट रहे थे तो बहु ने कहा --"वरुण? मम्मी और बाऊ जी को राहुल के घर ही छोड़ देते हैं न ? परसों हमने बाहर जाना है तो इस तैअफ़ फिर आना पड़ेगा ?"

"हाँ, हाँ रेणु ये ठीक रहेगा"

बड़े बेटे वरुण ने बहु कि हाँ में हाँ मिलाई औऱ कुछ ही देर में हम छोटे बेटे की दहलीज पे खड़े थे ।  बहु ने डोर बेल्ल बजायी और छोटी बहू ने दरवाजा खोला ।
हमें बाहर खड़ा देख उसके चेहरे पर अजीब से तेवर आ गए और उसने फट से कहा--"अब फिर से आ गए?"

बड़े बेटे ने तपाक से कहा---
"कैसी बातें कर रही हो अंतरा?"--औऱ फिर आगे उसने कहा--"बुजुर्गों से ऐसे बात करते है?"

"भाई साहब !!मेरा मुँह न ही खुलवाईये तो अच्छा है ?"

बस फिर क्या था । बड़ी बहु भी शुरू हो गयी और सफाई देने के लिए उसने कहा-- "अरे हमने बाहर जाना था परसों। बाऊजी जी को खांसी हो रही थी टेस्ट करवाने अस्पताल आये थे तो सोचा परसों दुबारा आना पड़ेगा इसी लिए हमने सोचा रास्ते में छोड़े जाते हैं?"

"अच्छा-अच्छा? पहले से छोड़ने का प्रोग्राम नहीं था?"--तंज करते हुए छोटी बहू ने कहा ।

"हाँ और नहीं तो क्या?"--बड़ी बहुबात को निपटता देख बोली ।

"औऱ वो जी अटैची साथ अपने आप चल के आ गयी क्या बाऊजी की?"-छोटी बहु ने हमारे आईचे खड़े बड़े बेटे के हाथ में हमारी अटैची देखते हुए कहा ।

बड़ी बहू तो ऐसे छुओ हो गयी जैसे सांप ने काट लिया हो और अपने पति वरुण की ओर बड़े गुस्से में आंखें फाड़ के देखने लगी ।

अटैची देखकर हम दोनों का तो हलक ही सूख गया । इसका मतलब हमारा बड़ा बेटा हमसे झूठ बोल के लाया । हमें यहाँ छोड़ने की तैयारी पहले से ही थी ।

उतनी देर में अंदर खड़ा हमारा छोटा बेटा भी बोलना शुरू हो गया । सारे मोहल्ले में हमारा मजाक ही हो गया ।

झगड़ा इतना हो गया कि वहीं बाहर खड़े-खड़े दोनों भाइयों की अदालत ने अपने फैसले में हमारा 'एक जिस्म दो जान' को दो हिस्सों में बंटवारा कर दिया।

हम दोनों ने हाथ जोड़ कर कहा भी कि हमारे लिए तुम आपस में झगड़ा मत करो । हमें अकेला छोड़ दो अलग राह लेंगे ।  हमारी पेंशन इतनी है कि हम अकेले ही गुजारा कर लेंगे ।

लेकिन दोनों ने एक साथ मिलकर जोर से कहा-- नहीं, आप हमारे होते हुए ,अकेले नहीं रहेंगे और फिर लोग क्या कहेंगे ? अब फैसला हो चुका है ।

औऱ

बड़े बेटे वरुण ने मेरा हाथ पकड़ा औऱ अपनी गाड़ी में बिठा कर चल दिया और मेरी पत्नी वहीं झुकी हुई मेरी ओर कदम बढ़ाने लगी तो उसकी आँखों से गिरते आंसू किसी को भी नज़र नहीं आये ।

फिर छोटे बेटे ने उनकी पतली हड्डियों को बाजू से एक बोझ की तरह पकड़ा और अपने घर के अंदर ले गया ।

हमने अपनी पेंशन बुक तक देखे अर्से बीत गए । मेरी पेंशन बड़े लड़के के पास और पत्नी की पेंशन छोटे के पास ।

"अब छोटा लड़का अपनी माँ को कुछ खाने को इसलिए नहीं देता कि तंग आकर वो खुद ही अपने बड़े लड़के के पास चली जाए ।"----कहता हुआ बुज़ुर्ग फिर गेट की ओर देखने लगा और जोर से रोते हुए कहने लगा--"कहीं वो दुनियाँ से--------!!!!"

अभी उसने इतना ही कहा राजेश ने उनके मुंह पर हाथ रखते हुए कहा--"नहीं अंकल ऐसा मत सोचो, हो सकता है कोई काम आ गया हो?"

"नहीं वो भूखी बेचारी लाचार को क्या काम हो सकता है ?"

"जैसे आज बरसात आ गयी? हो सकता है इसी वजह से न आई हो?"

"नहीं ? हमने ये प्रॉमिस किया था कुछ भी हो जाये आना ज़रूर है । कोई आंधी तूफान हमें नहीं रोक सकता । लगता है आज वो----!!!!"--कहता हुआ  वो बुज़ुर्ग ने राजेश के हाथ से लाठी ली और जैसे ही जाने को हुआ ।

तो पीछे से आवाज आई --"अजी सुनो !! कहाँ चल दिये ?.........!!!"

राजेश ने देखा एक बहुत ही सुंदर बुढ़िया । झुकी हुई गर्दन, छरहरा बदन । उम्र लगभग नब्बे साल !!
नैन नक्श पतले पतले आगे आते हुए फिर बोली-- "इतना ही इंतज़ार बस?"

अपनी बुढ़िया को देख वो बुज़ुर्ग सब गिले-शिकवे भूल गया । लाठी हाथ से छूट गयी । टेढ़े-मेढ़े चलते हुए उसने उसे अपनी आघोष में इस तरह लिया जैसे बरसों उससे बिछुड़ा मिला हो ।

राजेश अब सीट से दूर खड़ा इत्मीनान से ये मधुर मिलन देख कर अश्क़ों को बहाता हुआ बहुत ही खुशी महसूस कर रहा था और सोच रहा था कि कितने कायर और मक्कार होंगे वो बच्चे जिन्होंने इन दो पाक और पवित्र रूहों को उम्र के आखिरी पड़ाव में एक दूसरे से अलग कर रखा है ।

इतने में राजेश ने देखा कि उस बुज़ुर्ग ने झट से अपने कांपते हाथों से अपने थैले से वो कागज का पुलिंदा निकाला जिसमें वो अपनी बुढ़िया के लिए दो परांठे लेकर आया था । कागज खोला तो परांठे बरसात से गल चुके थे । वो बुज़ुर्ग कभी परांठों की तरफ तो कभी अपनी बुढ़िया की ओर देखने लगा और फिर आंसू बहाता हुआ बोला--"अब ये क्या हो गया?"---शर्मिंदगी महसूस करता हुआ फिर अपने परांठे की ओर देखने लगा ।

राजेश सब समझ गया । उसने अपने बैग से अपना लंच बॉक्स निकाला और बुज़ुर्ग अंकल के पास जाकर उनके पाँवों को हाथ लगाकर पूछते हुए बोला--"अगर माँ को खाना खिलाने का सौभाग्य आज आप मुझे दे दो तो खुदा कसम मैं अपने आपको बड़ा भाग्यवान समझूंगा ।"--कहते हुए राजेश उस बुज़ुर्ग के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया ।

उस वक़्त उस बुज़ुर्ग की आंखें भर-भर कर बहुत कुछ कहना चाहती थीं और मुसलसल  बयाँ कर रहीं थीं कि ऐसे प्यार को पाने के लिए उनकी आंखें तरस गयीं थी ।

उस दिन के बाद वो बुज़ुर्ग जोड़ी को राजेश ने कभी5जमK उस पार्क में आने नहीं दिया ।

~~समाप्त~~

हर्ष महाजन

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

यह कहानी एक काल्पनिक रचना है और इसमें दिखाए गए सभी पात्र और पात्रों के नाम,स्थान और इसमें होने वाली सभी घटनाएं पूर्णतया: काल्पनिक हैं । इस कहानी/ धारावाहिक का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या घटना या स्थान से समानता पूर्णत: संयोग मात्र ही हो सकता है । इस धारावाहिक का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति, धार्मिक समूह सम्प्रदाय, संस्था, संस्थान, राष्ट्रीयता या किसी भी व्यक्ति वर्ग , लिंग जाति या धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कतई नहीं है ।
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

No comments:

Post a Comment