Tuesday, February 28, 2023

पैन्ट्री ब्वाय राजू

 




       अमित उस दिन बहुत खुश था और ख़ुशी में दिल्ली से मुंबई का सफ़ऱ इस तरह कट रहा था जैसे  सदियाँ बीत गयी हों इस छुक-छुक करती गाड़ी में । 

आज ज़िन्दगी में पहली बार रेलगाड़ी के फर्स्ट ए०सी० कम्पार्टमेंट में सफर करते हुए उसे अपने बूढ़े माँ-बाप की खुशियाँ दिखाई दे रहीं थीं । उस बंद केबिन में अकेला बैठ कर सोच रहा था कि अब उसकी माँ लोगों के घरों में बर्तन माँजने नहीं जाया करेगी।  उसके बीमार पिता को दवाइयों के लिए इंतज़ार नहीं करना पड़ा करेगा ।

इसी उधेड़बुन में उसका ये आधुनिक सफ़ऱ उसके दिल में उमंग भर कर धीरे-धीरे कटने लगा था ।

गाड़ी में अपने कंपार्टमेंट में उन गद्देदार सीटों को और साफ-सुथरे बिस्तर और तौलियों को देखकर उनमें मजदूरी कर रहे अपने माँ-बाप की तस्वीरों को वो देख रहा था और उन्हें अपने सीने से लगाकर चूम रहा था जिन्होनें उसे यहाँ तक पहुंचाया था ।

        हाथ में प्रताप इंडस्ट्रीस के मुम्बई यूनिट में सीनियर मैनेजर की पोस्ट का नियुक्ति पत्र हाथ में लेकर सोच रहा था कि वह घर जाकर सबसे पहले उसे अपने माँ-बाप के पैरों में रखकर उनसे आशीर्वाद लेकर ही अपना नया ऑफिस जॉइन करेगा ।

जैसे-जैसे गाड़ी की सीटी की आवाज सुनाई देती अमित उसे सुनकर बड़ा खुश होता ।

गाड़ी में जो खाना भी मिला उसमें भी उसे बार-बार अपने माँ-बाप की तस्वीरें मजदूरी करते हुए ही दिखाई दे रहीं थीं । तभी उसके केबिन के दरवाजे को किसी ने दस्तक दी । अमित ने दरवाजा खोला तो सामने शाम की चाय लेकर एक पैंट्री बॉय खड़ा था ।

उसने झट से पूछा- "सर आप शाम की चाय के साथ कटलेट ब्रेड बटर लेंगे या पोहा?"

अमित ने इन सबका जवाब न देते हुए उस पैंट्री बॉय को ही पूछ लिया--"तुम्हारा नाम क्या है?

अमित ने जैसे ही उसको नाम पूछा वो घबराकर बोला-"सर कुछ गलती हो गई क्या मुझसे?"

अमित हंसते हुए बोला- "अरे नहीं नहीं भैया बस वैसे ही पूछा ?"

"राजू सर,राजू नाम है मेरा"

"वाह !! फिल्मी डायलॉग की तरह बोले हो भैया !!आओ अंदर मेरे पास तो बैठो".....!!!

मुस्कराता हुआ पैंट्री बॉय अंदर बैठते हुए अमित की शक्ल देख रहा था कि अब वो क्या पूछने वाले हैं । उसी वक़्त उसके बैठते-बैठते अमित ने उससे पूछ लिया--"कब से कर रहे हो यहाँ पर काम?"

"सर दो बरस हो गए?"

"यहाँ कैसे लग गए नॉकरी पे ?"

"सर बापू जी कुली थे । बहुत फेमस थे । फिर थोड़ा उदास होकर---वो नहीं रहे न ----- तो इसी गाड़ी के पैंट्री के ठेकेदार ने मुझे नॉकरी पर रख लिया"

"बापू नहीं रहे? मतलब उन्हें क्या हुआ?"

गमगीन होता हुआ राजू बोला--"सर दो साल हो गए इसी गाड़ी में सामान चढ़ाते हुए गाड़ी चल पड़ी तो पाँव स्लिप हो गया और वो गिर पड़े । लंबा गमछा गाड़ी के नीचे था गाड़ी के संग-संग लुढ़कते ही चले गए जब तलक किसी ने गाड़ी की चैन खींची हमारे बापू को हमारे सामने ही सामने गाड़ी अपने नीचे ही ले गयी । जब तक गाड़ी रुकी सब कुछ खत्म हो चुका था ।"

"ओह!!....!! और माँ ?"

"सर वो अपाहिज़ घर संभालती है औऱ मेरी एक छोटी बहन है 'उमा' जिसे मैं पढ़ा रहा हूँ अभी वो सातवीं क्लास में पढ़ती है । बहुत लायक है साहब । उसे मैं बड़ी शख्सियत बनाऊँगा"

उसके ये लफ्ज़ सुन अमित को अपने माँ-बाप की याद आ गयी । वो भी यही कहा करते थे लोगों को कि वो अपने बेटे को बहुत बड़ा आदमी बनाऊँगा औऱ उसे बड़ा बनाते-बनाते अपनी पूरी ज़िंदगी ही दाव पे लगा दी । ये सोचते-सोचते अमित ने फिर राजू से पूछा----

"माँ को क्या हुआ था ? वो कैसे-----?"

राजू, अमित की बात पूरी होने से पहले ही बोल पड़ा-- "बहुत लंबी कहानी है सर , सारी बता नहीं पाऊँगा वक़्त नहीं है लेकिन छोटे में बताता हूँ" औऱ कहानी सुनाते हुए उसने मुँह नीचे कर लिया । उसने कहना शुरू किया --"सर मैं उन दिनों देहरादून बोर्डिंग स्कूल में था"

"क्या?"--बोर्डिंग् स्कूल का नाम सुनकर अमित एकदम हैरान हो गया ।

"जी हाँ सर"---कहते हुए राजू की आंखें नम थीं ।औऱ उसने आगे कहना शुरू किया --"सर, पहले सुन लीजिये वक़्त नहीं है अभी फिर ठेकेदार आ जायेगा"

"हाँ कहो"

सर मेरे बापु बहुत बड़ी कंपनी में डिपुटी मैनेजर थे । उस कम्पनी का सारा हिसाब किताब उन्हीं के हाथों में था । उनके नीचे बहुत से वर्कर काम करते थे । कंपनी का मालिक मेरे बापू जी पर बहुत विश्वास करते थे । वो एक दिन टूर पर गए । तो मौका पाकर एक दिन मेरे बापूजी का एक विश्वास पात्र क्लर्क ने बापू जी की दराज में से साईंन किये हुए चैक चुरा कर कम्पनी एकाउंट से चालीस लाख रुपये निकलवा लिए । जब तक पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी । तो आखिर में चोरी के इल्जाम में बापू जी को चार साल की सजा हो गयी । लेकिन सर कंपनी मॉलिक को अंदर से बापू जी की शराफत पर भरोसा था लेकिन पुलिस के पास सारे सपूत मेरे बापू जी के खिलाफ ही थे । बापूजी को जेल हो गयी ।

बापूजी जब जेल में थे मैं देहरादून में पढ़ाई कर रहा था । मेरी माँ अकेली (राजू उस वक़्त रो रहा था) हम खाने को मोहताज हो गए ।

गाज़ियाबाद में हमारा बड़ा मकान था । उसके बिजली के बिल, पानी जे बिल , मेरी फीस अब माँ कहां से देती ?

हमारी गाज़ियाबाद में आसपास अच्छी साख थी लेकिन माँ ने सारी शर्म छोड़ लोगों के घरों में काम करना शुरू कर दिया । माँ को तीन चार अच्छे घर मिल गए । गुजारा अच्छा चलने लगा । स्कूल के ऑफिस से पता चला कि मेरी फीस भी मेरी माँ वक़्त पर भिजवाने लगी थी। लेकिन न जाने स्कूल के बच्चों को कहां से पता चला और वो मुझे स्कूल में "ओ चोर की औलाद"  चिढ़ाने लगे थे । मेरा ध्यान अब टेंशन में बीतने लगा । लेकिन मैंने भी ठान लिया कि उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लूँगा और मैनें उनकी परवाह करनी बन्द कर दी और अपने आपको होस्टल के कमरे में ही बंद कर लिया ।

उन दिनों मेरे बाहरवीं के बोर्ड के इम्तिहान चल रहे थे और गाज़ियाबाद से खबर आई मेरी माँ जिस घर में काम करती थी उसकी तीसरी मंजिल से छलांग लगाकर उन्होंने आत्महत्या की कोशिश की थी ।

वहाँ के स्थानीय लोगों ने औऱ पुलिस ने मिलकर उन्हें अस्पताल पहुंचाया और पुलिस ने बापू जी को खबर कर दी और उन्होंने पैरोल पर बाहर आकर उनका इलाज करवाया । लेकिन बापू जी ने मेरी पढ़ाई खराब न हो इसलिये जब वो कुछ ठीक हो गयी तब खबर भिजवाई और मां से स्कूल के ऑफिस के फोन पर ही बात भी करवा दी ।"

अमित से रहा नहीं गया और उसने भीगी आंखों से राजू को पूछा--"कि माँ ने आत्महत्या के लिए इतना बड़ा कदम उठाया क्यूँ ?"

इस वक़्त राजू कहानी सुनाता हुआ पूरा टूट चुका था ।  वो जैसे-जैसे इस कहानी के साथ आगे बढ़ रहा था उसकी आँखों के आगे वही सीन बार-बार चल रहा था । वो उन्हीं बेदनाओं और संवेदनाओं से गुज़र रहा था । पीड़ा का एक अथाह सागर उसके मानस पटल पर छा रहा था ।

थोड़ी देर चुप रह कर उसने अपने आपको संभाला और फिर आगे कहना शुरू किया --"सर जिस घर में ये हादसा हुआ उस घर में मेरी माँ सभी घरों से काम निपटाने के बाद ही जाया करती थी ।

बड़े ही अच्छे दंपत्ति थे और दोनों ही बड़ी अच्छी पोस्ट पर लगे थे । इलाके के बड़े प्रतिष्ठित लोगों में उनका नाम शुमार था । उनके दो छोटे-छोटे बच्चे थे "शगुन और प्रीति" बहुत ही सुंदर और सुशील अपनीं माँ की तरह । उनके घर से मेरी माँ को बहुत प्यार मिला और वो मम्मी के हालात को समझते हुए उनसे बहुत लगाव भी हो गया था । दोनों बच्चे भी मेरी माँ के बिना नहीं रहते थे । लेकिन उस काली रात को......!!!" ---कहता हुआ राजू सिसक पड़ा ।

अमित ने भी आंसू टपकाते हुए उसकी पीठ पर हाथ रखा और अपने पास पड़ी बिसलरी की बोतल उसके हाथ में थमा दी ।

राजू ने भी उसमें से दो घूंट पीकर अपनी कहानी आगे शुरू की-- "दो दिन पहले उस दंपत्ति में से जो बच्चों की माँ थी वो अपने मायके इंदौर अपने भतीजे के मुंडन सरेमोनी में चली गयी थी  । साहब बच्चों के साथ घर पर अकेले थे । मॉलकिन मेरी माँ को घर में सबका ख्याल रखने को बोल कर गयी थी ।

उस दिन शनिवार का मनहूस दिन था । साहब ने अपने बच्चों को रौनक दिखाने के लिए घर में एक पार्टी रखी । एक दिन पहले ही साहब ने माँ को एक फिरोजी कलर की साड़ी लाकर दी जिस पर काले मोतियों का वर्क था, और कहा था-- "स्नेहा !! कल घर में एक छोटी सी गैट-टुगेदर (पार्टी) रखी है तुम ये पहन के आना" और माँ वही साड़ी पहन कर उस पार्टी में गयी थी और पार्टी में खूब धूमधाम हूई औऱ खूब दारू भी चली ।  उस पार्टी में दस जोड़े आये । उनके छोटे-छोटे बच्चे भी थे । सबका खाना मां ने पहले ही तैयार कर लिया था । पार्टी में दारू का दौर खत्म हुआ औऱ डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया गया । सभी खाना खाने में मस्त थे ।

अचानक एक चीख की लंबी आवाज और सब के मुँह खुले के खुले रह गए । अचानक सब नीचे की ओर भागे । माँ तीसरी मंजिल से नीचे गिर कर बेसुध पड़ी थी । लोगों ने बाद में बताया कि पहले नीम के पेड़ पर बड़ी जोर से हलचल हुई फिर नीचे धड़ाम से गिरने की आवाज हुई औऱ धीरे-धीरे भीड़ इकट्ठा हो गयी"

अमित पसीने-पसीने हो गया था और हल्क सूख चुका था । बड़ी मुश्किल से अमित पूछ पाया-- "फ़िर?"---------!!!!

"नहीं नहीं !! तुम जो सोच रहे हो वैसा तो बिल्कुल भी नहीँ था । लेकिन मेरी माँ ने आत्महत्या भी नहीं की थी । ये मुझे मालूम है ।

साहब भी बहुत ही शरीफ आदमी थे । लेकिन पुलिस साहब को गिरफ्तार कर के थाने ले गयी और एक और दाग हमारी फेमिली की झोली में आ गिरा --"बदचलन का"--जिसे धो पाना अब किसी के बस की बात नहीं थी ।"

"ओह !! गॉड !!"--अमित अब सोच रहा था कि उसका अपना औऱ उसकी फेमिली का दुख तो राजू की फैमिली के दुख के आगे तो कुछ भी नहीं है? अमित ने फिर 'सिसकते हुए राजू' को पानी की बोतल पकड़ाई ।

राजू ने फिर दो घूंट पीए और बोतल वापिस सीट पर रख दी और आगे बताया --"बापू जी को जेल में सजा काटते दो साल हो चुके थे कि अचानक केस ने पलटा खाया और बापू जी पैरोल से जैसे ही छह महीने बाद मम्मी का इलाज करवा कर वापिस जेल गए तो उसके तीन महीने बाद ही वो जेल से रिहा हो गए और छुड़वाने के लिए उसी कम्पनी के मॉलिक ने ही केस वापिस लेकर उन्हें झेल से बाहर निकलवाया ।

पता चला वो क्लर्क दुबारा चैक चुराता हुआ रंगे हाथों जब पकड़ा गया तो उसने पुलिस की थर्ड डिग्री के आगे बाकि के सभी जुर्म भी कबूल कर लिए । उसमें मेरे बापू जी का भी केस सॉल्व हो गया ।

उसके बाद तीन साल तक बापू जी ने मेरी माँ का इलाज करवाया । मेरी माँ ठीक तो हो गयी । लेकिन  मम्मी के इलाज में ग़ाज़ियाबाद का मकान सस्ते दामों में बिक गया ।

बापु जी की ज़िन्दगी और कैरियर दोनों ही तबाह हो चुके थे ।

तब तक बापू जी को एक ठेकेदार ने मजदूर की नोकरी देकर ईंटे ढोने का काम दे दिया था । अपने साथ काम करने वाले एक मजदूर की सहायता से  बापूजी मेरी छोटी बहिन के साथ मिंटो रोड़ पुल के नीचे एक झुग्गी में आ गए और इतनी मेहनत से काम कर के मुझे उन्होंने एम०बी०ए तक करवा दिया । मैनें आई०ए०एस० दो बार पास किया लेकिन मुझे साक्षात्कार में बापूजी और माँ के जीवन में दिए गए दाग ने कभी.........!!!!"---कहते हुए वो चुप हो गया ।

अभी वो आगे कुछ कहने वाला ही था कि उसका ठेकेदार उसे ढूँढता हुआ आया और चिल्लाता हुआ बोला-- "राजू तुम्हें पता भी है पैसेंजर की कितनी कम्प्लेंट्स इकट्ठी हो गयी हैं । किसी के पास उनका खाना नहीं पहुंचा?"

राजू फट से उठा और वहां से हवा की तरह ये कहता हुआ गाड़ी के अंदर बहुत दूर निकल गया--"सर चिंता न करो अभी दस मिनट में सभी पैसेंजर्स की कंप्लेंट रिवर्स हो जाएगी--"

अमित के हाथ में राजू की दी हुई शाम की चाय की ट्रे एक कहानी कहती हुई उसे देख रही थी । उस ट्रे को देखते हुए उसकी खुशियाँ न जाने कहाँ गायब हो चुकी थी । काफी देर तक अमित अपने केबिन का दरवाजा खोल कर बाहर खड़ा उस ओर देख रहा था जिस ओर वो कहता हुआ दौड़ गया था कि दस मिनट में...........!!!!

वापिस आकर अमित अपने बिस्तर पर लेट तो गया मगर सारी रात करवट बदलता रहा । सुबह हो गयी ।

सुबह उठ कर अमित उसकी राह देखता रहा । लेकिन वो नहीं आया । उसकी तमन्ना घी कि वो भी राजू को अपनी बेबसी की कहानी सुनाता ।उसे अंधेरी उतारना था लेकिन राजू से मिलने की खातिर वो बाँधरा तक चला गया था औऱ गाड़ी वहीं तक जानी थी ।

सब लोग उतर गए लेकिन अमित राजू का इंतजार करता हुआ सबसे आखिर में उतरा !! लेकिन उदास उतरा !!

अमित अपनी नॉकरी से खुश था लेकिन राजू के मिलने के बाद इतना नहीं था ।

उसके दिमाग़ में सिर्फ एक ही प्रश्न घूम रहा था कि राजू ने ये क्यों कहा--"कि जो तुम सोच रहे हो वैसा बिल्कुल नहीं है ? माँ ने आत्महत्या भी नहीं की थी"

"फिर क्या हुआ था उसकी माँ को ?"

अमित अब भी कई बार सुबह टहलता हुआ स्टेशन चला जाता है और उसी गाड़ी में कई बार जाकर राजू को ढूँढने की कोशिश करता है कि कहीं उस से मुलाक़ात हो जाये ।

~~समाप्त~~

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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यह कहानी एक काल्पनिक रचना है और इसमें दिखाए गए सभी पात्र और पात्रों के नाम,स्थान और इसमें होने वाली सभी घटनाएं पूर्णतया: काल्पनिक हैं । इस धारावाहिक का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या घटना या स्थान से समानता पूर्णत: संयोग मात्र ही हो सकता है । इस धारावाहिक का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति, धार्मिक समूह सम्प्रदाय, संस्था, संस्थान, राष्ट्रीयता या किसी भी व्यक्ति वर्ग , लिंग जाति या धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कतई नहीं है ।
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