Friday, February 24, 2023

अनक और नफरत (Ego &Hate)

 



    शहर में बड़ा घर हो तो फिर क्या कहने । घर में राजेश की शादी का माहौल था । सब तरफ धूम-धाम चल रही थी । अभी शादी को एक महीना बाकि था । कोई कपड़े लेने में मस्त तो कोई राशन इकट्ठा करने में । 

राजेश के पापा केवल सिंह स्वभाव से बहुत ही गुस्से वाले मगर बहुत ही प्यार करने वाले औऱ भावुक इंसान थे । केवल सिंह ज़मीदार थे मगर आलसी थे । उनके दो भाई भी थे जिनसे अपने गुस्से के चलते नाता तोड़ चुके थे । उम्र 50 की आते आते सठियाने भी लगे थे । ज़मीन पट्टे पर दे रखी थी तो अब उन्हें भी राजेश ही देखता था । अपनी इस पुश्तैनी हवेलीनुमा घर का केवल सिंह अब अकेला ही वारिस था क्योंकि उनके पिता ने अपने होते  हुए ही जायदाद का बंटवारा कर दिया था । उन्हें केवल सिंह का पता था कि बाद में यही क्लेश करेगा ।

           उसे मधुरिमा की ख़ूबसूरती ने इस तरह मोह लिया था कि उसने उसे देखते ही  शादी के लिए हाँ कह दी थी । मधुरिमा बहुत पढ़ी लिखी लड़की थी उसके पिता बहुत बड़े व्यापारी थे । वक़्त ने दोनों को दो खूबसूरत बच्चे दिए । राजेश और स्वाति । राजेश पढ़ लिख कर  एन०डी०ए० में दाखिला लेकर एक फौजी बनना चाहता था । लेकिन पापा के गुस्से का शिकार हो उसने अपनी इच्छा के विरुद्ध एक अच्छी कंपनी में नॉकरी जॉइन कर ली । लेक़िन पापा केवल सिंह को अपने बेटे की शादी को लेकर बहुत ही खुशी थी । माँ मधुरिमा पढ़ी लिखी थी इस लिए उसे बच्चों के लिए कुछ चीजों को लेने के लिए, मनवाने के लिए कई बार पति से नोंक-चोंक भी हो जाया करती थी । खास बात ये थी कि केवल सिंह की अगर पूछ लो तो दिख खोल के खर्च कर दिया करता था । ज्यादा पढ़े लिखे न होने की वजह से बहुत सी चीजों और दुनियाँदारी से अनजान केवल सिंह,  से मधुरिमा छोटी मोटी खटपट होना आम सी बात थी । हर बात में केवल सिंह का अहम आड़े आ जाता था । कोई भी काम घर के लिए अच्छा भी है अगर मधुरिमा ने खुद कर लिया तो हंगामा । वही काम अगर केवल से पूछ कर करो तो वो उसकी तारीफ किये नहीं थकता था । पापा के इस स्वभाव से बच्चे भी उद्धिग्न थे लेकिन डर के मारे चुप रहा करते थे । वो दोनों अंदर से पापा की आदत से परेशान रहते थे । कई बार तो किसी छोटी सी बात पर भी केवल सिंह का गुस्सा नोक झोंक का कारण बन जाता था और इसी वजह से पापा का दो तीन दिन के लिए कोप भवन में बैठ जाना आम सी बात थी । बच्चे कई बार, घर से भाग जाने की प्लानिंग भी करते थे लेकिन मम्मी की वजह से मन मसोस कर रह जाते थे । मम्मी से बहुत प्यार करते ठगे दोनों ।

शादी का माहौल था । घर में पहली शादी थी । अब घर में शादी है तो हर किसी काम के लिए उनसे पूछ-पूछ के करना तर्क संगत तो नहीं था न । फिर भी जितना भी हो सकता था बच्चे और मधुरिमा कोशिश यही करते कि केवल सिंह से पूछ लिया जाए । एक दिन वो दोस्तों में बिजी थे तो मधुरिमा ने अपनी बहु को फ़ोन कर बाज़ार बुला लिया और वहाँ ले जाकर मधुरिमा उसकी पसंद की दो सिल्क की साड़ियाँ खरीद लायी ।

                    शाम को खुशी-खुशी मधुरिमा ने बताया कि वो दो साड़ियाँ लायी है देखो तो जरा । उस वक़्त तो उन्होंने कह दिया बहुत अच्छी है । मगर धीरे-धीरे न जाने क्या-क्या सोचकर उनका चेहरा रूठा-रूठा नज़र आने लगा । सबने सोचा होगा कुछ अपने आप ठीक हो जायेंगे । क्योंकि उनको जितना मनाओ वो उतना ही और गुस्सा करने लगते थे। अगर कोई नही पूछता तो धीरे-धीरे अपने आप ठीक हो जाते थे । रात को भी चुपचाप खाना खाया और सो गए । सुबह होते ही फ़टाफ़ट उठे और नहा धोकर तैयार हो लिए । वैसे वो आराम से ही उठते थे । फिर हर छोटी बात पर भी गुस्सा होने लगे । मधुरिमा ने चाय लाकर दी तो एक घूँट पीते ही कप उठा कर फेंक दिया और कहा--"ये भी कोई चाय है?" बाकि सब समझ गए कि कोई न कोई बात हो गयी है । गुस्से में ये भी नहीं देखते थे कि घर में अपना ही फंक्शन चल रहा है और रिश्तेदार आये हुए हैं । मधुरिमा ने बहुत समझाया कि बहु के पसंद के हैं लेकिन नहीं माने औऱ घर से निकल गए ।

पहले भी कई बार ऐसे ही घर से निकल जाया करते थे तो दो या तीन दिन बाद वापिस आ जाया करते थे । सोचा कि गए है अपने आप जब गुस्सा शांत होगा आ जाएंगे । लेकिन दिन बीतता गया वो नही आये । धीरे-धीरे दिन बीतने लगे । पच्चीस दिन होने को आये वो नहीं आये । खबर तेज़ी से फैलती हुई बहु के घर तक पहुंची तो रिश्ता टूटने का संदेसा आ पहुंचा ।

घर में ऐसे हो गया जैसे मातम छा गया हो ।

रिश्तेदार सब परेशान । सबने मिल के पोलिस में रिपोर्ट लिखवाने की सलाह दी । लेकिन उसकी पत्नी और बच्चों ने  रिपोर्ट लिखवाने से भी मना कर दिया । पापा को दोनों बच्चे पहले ही पसंद नहीं करते थे । मगर उनकी इस हरकत से  दोनों  की नफ़रत और भी प्रगाड़ होती चली गई । राजेश की नफ़रत तो इतनी बढ़ गयी कि उसने उनकी सभी तस्वीरें तक जला डालीं ।

             रिश्तेदार धीरे-धीरे सभी अपने घर रवाना हो गए । घर अब बिल्कुल खाली हो चुका था । राजेश और स्वाति ने अपना-अपना आफिस फिर से जॉइन कर लिया । ज़िन्दगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट आयी । 

घर में जितने भी फ़ोन थे सब के सब बंद करवा दिए गए । नए सिम लेकर उन्हें इस्तेमाल करना शुरू किया ।

तीन साल बीत चुके थे । सब लोग केवल सिंह का अस्तित्व तक भूल चुके थे । राजेश अब ज़मीदारी से थक चुका था । वो इससे निजात पाने की जुगत पर काम करने लगा । मुसीबत अब ये थी कि वो सारी ज़मीनें उसके पापा के नाम पर थीं । उसने मम्मी से इस बारे में बात की तो उसने कहा-- "बेटा जैसे दिल को शांति मिले वैसे ही करो । कोई बन्दिश नहीं है ।"

तहसील में जब बात की तो उन्होंने कहा या तो डेथ सर्टिफिकेट लाओ या पापा की गुमशुदगी की रिपोर्ट के सात साल बाद ही आप इस जमीन का कुछ कर सकते हैं । इस बात पर राजेश ने जोर से माथे पर हाथ मारा और मुँह से ओहो निकल गया । ढीला हो वो तहसील से बाहर निकल  पछताता हुआ बाहर आया औऱ सोचने लगा अच्छा भला सब उस वक़्त बोल रहे थे कि रिपोर्ट  लिखवा लो लेकिन हमने अपनी नफ़रत के चलते नहीं लिखवाई । अब ज़मीनों का ख्याल दिमाग़ से छोड़ वो घर की ओर चल दिया ।

घर पर जब आकर अपनी बहन और मम्मी को सारी बात बताई तो उन दोनों ने भी यही सलाह दी कि अब जो हो गया सो हो गया । हमें कम से कम अब रिपोर्ट तो लिखवा ही देनी चाहिए । वक़्त आएगा तो कुछ न कुछ तो होगा न । अगले दिन तीनों ने थाने जाकर रिपोर्ट लिखवाने की बात की तो उन्हें काउंटर से उस लेडी ने उजागर सिंह को गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखने को कहा । उजागर सिंह दस साल से रिपोर्टें ही दर्ज करता रहा है । जब राजेश उसे रिपोर्ट लिखवाने गया तो उजागर ने  आश्चर्य से राजेश से पूछा--"अब कौन भाग गया?"

राजेश ने अजीब सी नज़रों से न समझते हुए उजागर सिंह को देखा । स्वाति साथ खड़ी थी वो पापा की फ़ोटो दिखाती हुई बोली--"सर पापा की गुमशुदगी की रिपोर्ट है जो हमने तीन साल पहले नहीं लिखवाई थी अब लिखवा रहे हैं"

उजागर सिंह मुस्कराता हुआ बोला कि --"आप लोगों की यादाश्त थोड़ी कमजोर हो गयी है"--- वो पुरानी फाइल ढूँढता हुआ फिर बोला--"मुझे डेट बताओ तुम?"

मधुरिमा ने फिर कहा-- 'सर गलती हो गयी थी रिपोर्ट नहीं लिखवाई थी"

उजागर बोला--"देखो मैडम ! मेरी यादाश्त बहुत तेज़ है जो फ़ोटो आप दिखा रहे हैं इसका नाम केवल सिंह है न?"

तीनों ने एक दम कहा --"हाँ-हाँ आपको कैसे मालूम ?"

"क्योंकि मैंने ही रिपोर्ट लिखी थी"-उजागर ने कहा ।

फ़ाइल मिल गयी थी और रिपोर्ट जो लिखी थी उजागर ने वो भी दिखा दी । उसने बताया रिपोर्ट लिखवाने वाले का नाम "विक्रम सिंह राठौड़"

मधुरिमा और बच्चों के मुँह से एक दम निकला---पापा? ---नानू?

उन्होंने उसकी नकल की फीस जमा करवाई और अप्लाई कर दिया ।

       कुछ दिन ही बीते थे स्वाति का रिश्ता आया । जब लड़के देखने वाले आये तो पता लगा कि वो लड़का राहुल उसके कॉलेज में उसी के साथ ही पढ़ता था । दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह जानते थे और एक दूसरे को पसंद भी करते थे लेकिन पापा के स्वभाव की वजह से स्वाति ने कभी कोई कदम आगे नहीं बढ़ाया था । उसे देख स्वाति भी खुश थी ।

सभी की मर्ज़ी से रिश्ता पक्का हुआ दो महीने में शादी भी हो गयी । राहुल इनकम टैक्स में ऑफिसर पोस्ट पे था । पोस्टिंग जमशेदपुर थी और स्वाति भी वही चली गई ।

राजेश की ज़िंदगी सामान्य तरीके से मम्मी की जरूरतें पूरी करते हुए होने लगी । मधुरिमा ने कई किट्टी पार्टियां जॉइन कर लीं । रोज़ ही पार्टियों के दौर चलने लगे । एक डर की ज़िंदगी से निकल वो आज़ाद पंछी की तरह जीने लगे । दो साल में ही मधुरिमा ने अपनी एक  सहेली की बेटी अनुपमा, जो कॉलेज में लेक्चरर थी, उससे राजेश की भी शादी करवा दी । राजेश के पापा के जाने के छः साल बाद सारे मुहल्ले में अब वो सबसे ज्यादा सम्मानित व खुशहाल परिवार था ।
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            केवल सिंह का क्या हुआ?

केवल सिंह पत्नी से लड़ कर घर से ये सोचकर निकल गया कि बाहर पार्क में जाकर दो घंटे आराम करके वहीं के ढाबे से चाय नाशता  तक करूँगा तब तक मधुरिमा की अक्ल भी ठिकाने लग जायेगी । फिर अपने आप फोन करती फिरेगी ।

पार्क में लेटे-लेटे केवल सिंह की आँख लग गयी । क्यूँकि रात को परेशानी इतनी हुई कि नींद नहीं आयी । अपने अहम की बेइंतहा चिंता जो थी वो भी एक अबला नारी और अपने ही बच्चों से ।

जब जाग खुली तो शाम के चार बजे चुके थे । मोबाईल को चेक किया तो उसमें कोई भी मिस्ड कॉल नहीं थी । वो हैरान था । किसी ने भी उसे काल नहीं किया ? उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था ।

उसने सोचा हो सकता है कि नेटवर्क न मिला हो ? अब खुद को समझाने के लिए कई चीजें सोचने लगा । अभी भी उसे यकीन था उसका बेटा और बेटी तो बड़े ही फर्माबदार हैं, और बेटे की तो शादी भी है वो कैसे भूल सकता है ? उसे तो मेरी बहुत जरूरत होगी? उसको जब अहसास होगा तो वो ज़रूर फोन करेगा ।

लेकिन रात नो बज गए कोई फोन नहीं आया।  सुबह का भूखे पेट केवल सिंह ने हार कर चाय वाले के पास जाकर चाय के साथ दो परांठे बनवाये  फिर मन को और कड़ा कर चायवाले को बोला चार पैक भी कर दो ।

पैक करवाते-करवाते दिमाग़ अब और भी कड़ा कर अहम/ईगो को सातवें आसमान पर ले जाकर खड़ा कर, खुद से बातें करने लगा कि अब फोन आया, तो मैं ही नहीं उठाऊँगा और बस स्टॉप की ओर चल दिया ये सोचकर वहां पर पहुँचते-पहुँचते तो फोन आ ही जायेगा । लेकिन फोन नहीं आया ।

सोचते-सोचते, दिल को तसल्ली देते देते, अगले दिन तक केवल हरिद्वार पहुंच चुका था । पन्द्रह दिन में एक बार हुड़क उठती कि फोन तो आना चाहिए पर नहीं आया ।

वहां कभी एक धर्मशाला कभी दूसरीं कभी तीसरी बदलते दो साल बीत गए वो अब थक चुका था । इस दौरान कई पंडे उसके दोस्त भी बने कई फिर केवल के गुस्से की वजह से छूट भी गए । कई लोगों से दुश्मनी भी हुई । अब मन में बुरे विचार भी आने लगे कि कहीं किसी को उस दिन कुछ हो न गया हो ? शायद इसी वजह से फोन न किया हो ?

रोज़ ही ऐसा कुछ सोचते-सोचते उसे नींद आ जाती और वो खर्राटे लेने लगता । वक़्त बीतता गया और वो हरिद्वार में हर आने वाले पर नज़र रखता कोई, शायद अपना ही निकल आये । रोज़ सुबह उठ के फोन चेक करता । छह साल बीत गए अब तक उसे अपने जैसे बस दो दोस्त ही मिले, जिनकी कहानी लगभग इसी की तरह थी । तीनों ने मिलकर फिर एक कमरा किराये पर लिया । बाकी दोनों दोस्त कभी-कभी अपने बच्चों से बात कर लिया करते थे तो उस वक़्त केवल कान लगाकर उन्हें बात करते हुए सुन लिया करता था ।

मन तो केवल सिंह का भी खूब करता था अपनी पत्नी और बच्चों से बात करने को । लेकिन ईगो इतनी बड़ी थी कि उसे बात करने से रोक देती थी । कई बार उसने उनके नंबर को डायलिंग स्क्रीन पर डायल करने के लिए रखा भी, लेकिन ईगो सामने आते ही स्क्रीन खाली कर दिया करता था । इसी उलझन में आठ साल बीत गए ।

एक दिन केवल सिंह सुबह-सुबह उठ के नहाने के लिए अकेले ही हर की पौड़ी पहुंच गया । वहाँ गिनती के कुछ ही लोग डुबकी लगाने के लिए आये हए थे । केवल ने अपनी चप्पल  उतारी और हर की पौड़ी पर अभी चार सीढियां ही उतरा था कि पैर फिसला औऱ सीधा गंगा के बीच पहुँच गया । लंबी चीख निकली लेकिन सुनता कौन । जो थे किसी को तैरना ही नहीं आता था । केवल सिंह लहरों में फंसता ही चला गया । बड़े हाथ पैर मारे लेकिन धीरे-धीरे मौत की आगोश में जाने लगा तो भगवान  को याद कर कहने लगा - "है भगवान सिर्फ एक मौका दे दे सिर्फ एक मौका मैं अपनी मधुरिमा औऱ बच्चों से सिर्फ एक बार बात कर लूँ फिर चाहे मुझे के जाना ।"

      लेकिन गंगा का बहाव इतना तेज था उसने उसे कई किलोमीटर तक यूँ ही बहाकर ज़ोर से पटक दिया । केवल सिंह देख रहा था वो निश्चल होता जा रहा है । कुछ देर बाद उसने देखा इसकी बॉडी के साथ तीन बॉडी ओर बह रही रही हैं । उसे महसूस हुआ वो चारो किसी जाल पर जाकर फंस गए हैं ।

अगले दिन उन चारों बॉडी को निकाल कर किसी ने बाहर रखा और चादरें डाल दी । पहली बॉडी ने दूसरीं बॉडी से पूछा- यार ये बता तुझे लंबू कौन लगाएगा? --- उसने कहा मेरा बेटा है । पहले वाले ने कहा बड़े ही किस्मत वाले हो मेरे रिश्तेदार देखो वो इतने सारे खड़े हैं । इलेक्ट्रिक शव दहन की तैयारी कर रहें हैं ।

दूसरीं बॉडी ने तीसरी से पूछा --तुम्हें कौन लगाएगा ? उसने कहा-मेरे तीन बच्चे हैं दो बेटे दोनों बाहर अफ्रीका में है  उनके पास तो वक़्त ही नहीं है बहुत काम है उन दोनों के पास । लेकिन वो ख्याल बहुत रखते है मेरा । फिर उदास होकर बोला पर वो लंबू लगाने तो नही आ सकते । लेकिन मेरी बेटी है न वो ही सब कुछ करेगी । बहुत प्यार करती है मुझसे । पहली और दूसरीं बॉडी ने कहा तुम तो सबसे ज्यादा लक्की हो कि तुम्हारे पास बेटी है ।

तीसरी बॉडी जब चौथी बॉडी यानि केवल की बॉडी से पूछने लगी, तो केवल जोर से चिल्लाया मेरा बेटा ही मुझे लंबू लगाएगा । मेरा बेटा ही लंबू लगाएगा ।

केवल सिंह इतनी जोर से चिल्लाया कि उसके दोस्त घबरा के उठ बैठे और चिल्ला रहे केवल को हिला कर उठाने लगे ।

केवल उठा तो इधर-उधर देखते हुए अपना फ़ोन ढूँढने लगा । साथियों ने पूछा ---क्या हुआ, कुछ बुरा सपना देखा क्या? केवल डरा हुआ था उसने रोते हुए वो सारा सपना हुबहू सुनाया । उसके दोस्तों ने उसे समझाया -"तुम घर एक बार फोन कर लो शांति हो जाएगी । हो सकता है उन्होंने फोन किया हो और किसी वजह से न मिला हो ?"

                केवल ने उसी वक़्त ईगो त्याग कर सबसे पहले मधुरिमा को फोन लगाया । आठ साल बाद ईगो ने थोड़ा रंग बदला लेकिन तब तक सब कुछ बदल चुका था । मधुरिमा का नंबर रोंग नंबर निकला । बारी-बारी से सभी के नंबर गलत निकले । कोई दूसरा ही बोलता था । कुछ अनहोनी सोच उसने अपनी पोटली बांधी औऱ भगवे कपड़े पहने ही दिल्ली रवाना हो गया ।

अपनी हवेली के बाहर खड़ा हो वो देख रहा था । सब कुछ बदल चुका था । घर की दीवार के साथ जो नीम का दरख़्त था जिसकी छांव में रोज़ शाम को केवल चाय पीता था वो अब वहां नही था । दरवाजे के साथ बैठने के लिए दोनों तरफ चबूतरी थी वो सब गायब थीं । यानि के जो जो केवल की पसंद थी सब गायब थीं । दादाओं के वक़्त से हवेली तोतिया रंग से पुता करती थी लेकिन अब वो पीले समोसम से बड़ी शानदार लग रही थी ।

इतने में एक टैक्सी आकर दरवाजे के आगे रुकी । केवल ने अपने आपको थोड़ा साइड में किया और देखने लगा । हवेली से एक नोजवान, एक सुंदर सी लड़की के साथ दो तीन सूटकेस लेकर बाहर निकला और टैक्सी में सामान रखने लगा । केवल सिंह देख रहा था कि वो तो उसका बेटा राजेश ही है । लेकिन ये लड़की वो तो नहीं लग रही जिससे शादी हुई थी ? राजेश ने सामान लाद कर अपनी पत्नी अनुपमा को आवाज लगाई । अनुपमा और राजेश ने अभी अभी बाहर आई अपनी मम्मी के पाँव छुए औऱ गाड़ी में बैठ गए ।

केवल सिंह जल्दी से आगे बढ़ा कि बेटे को निकलने से पहले एक बार मिल लूँ। गाड़ी तक पहुंचने से पहले ही गाड़ी चल पड़ी । राजेश ने चलती गाड़ी से ही आवाज लगाते हुए मम्मी को आवाज लगाई -- "अम्मी अमेरिका पहुंच कर फोन करूँगा और मम्मी इन बाबा को खाना ज़रूर खिला कर भेजना भूखे लगते हैं ।"

राजेश ने कहा तो मधुरिमा ने बाबा को आवाज लगाई जो पहले ही मधुरिमा की ओर देख रहे थे ।
केवल सिंह अपनी बड़ी हुई दाढ़ी और आँखों पर लगे चश्में के पीछे से देख रहा था कि मधुरिमा तो एक दम बदल चुकी है । मॉडर्न हो चुकी है । क्या सच में मुझसे इतने दुखी थे? जो मुझे याद तक नहीं किया ?

मधुरिमा ने उसकी तरफ देखते हुए बाबा बने केवल को आवाज लगाई--"अरे बाबा आओ न ? खाना खा के जाओ ।"

                          केवल ने दूर से ही मधुरिमा को दोनों हाथों से आशीर्वाद देते हुए वापिस मुड़ कर, ये सोचते हुए चल दिया कि जिस घर से मैनें कभी किसी को एक अन्न का दाना दान में नहीं दिया उस दहलीज़ से गरीबों को अन्न बांटा जा रहा है । इतनी बरकत दी है खुदा ने तो ऐसे खुशहाल घर को फिर से क्यूँ ग्रहण लगने दूँ ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'

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Disclaimer
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All characters, places and events depicted in this web series/drama/serial are entirely fictitious. Any similarity to actual events or persons, living or dead, is purely coincidental.


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