Wednesday, June 30, 2021

बैडरूम- भाग-5

 

बैडरूम- भाग-5
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                           नई दिल्ली  टी-3 इंद्रागांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट  पर उतरते ही मुकेश दत्त ने बाबूजी ( देवदत्त ) को फ़ोन लगाया और कई बार फ़ोन डायल किया मगर फोन स्विच ऑफ ही आता रहा । 

मुकेश का धैर्य अब जवाब देने लगा था । घर पहुँचने से पहले अपने आने की सूचना देना चाहता था ।

बड़े भाई राजेश से तो वह बात भी नहीं करना चाहता था ।

प्लेन में बेल्ट-6 की अनाउंसमेंट सुन वो अपने सामान की ओर अग्रसर हुआ ।  बार बार  फ़ोन ट्राई किये जा रहा था लेकिन स्विच ऑफ की आवाज सुन-सुन कर वो पकने लगा था । अब झुंझलाहट भी होने लगी ।

फिर उसने पत्नी एकता को काल मिलाया और उसे सूचित किया कि वो ठीक-ठाक पहुँच गया है । उसको  कहा कि बाबूजी का फ़ोन नहीं लग रहा तुम ही उधर से इतला दे देना और रखते रखते फिर कहा - "सुनों फ़ोन न लगे तो भाई साहब ( राजेश) को ही इत्तला कर देना ।"

मुकेश ने अपना सामान रेढू पर रखा औऱ टैक्सी स्टैंड से - विकास पूरी के लिए टैक्सी ले ली ।

टैक्सी में सफ़र शुरू होते ही उसके मस्तिष्क में जैसे हलचल होने लगी ।  सोचने लगा --चार साल हो चुके हैं उसे अपना घर छोड़े हुए ।

चार साल बाद घर जा रहा हूँ।

हर छह महीने बाद एयरपोर्ट के पास होटेल में रुक कर  कार्यवाही की तरह वहीं से वापिस अमेरिका लौट जाना !  जैसे एक प्रक्रिया सी बन गयी थी ।

टाटा समूह की नामी ग्रामी कंपनी में एक अच्छे पद पर पहुँच चुका था  मुकेश । ये सोचकर भी उसमें अहम भाव बढ़ने लगा था ।

मुकेश गहरी सोचों में डूबता चला गया ।

      एकता हर ट्रिप पर जोर देती थी कि बाबूजी को इस बार ज़रूर मिल के आना और हर बार मैं उसे कोई न कोई बहाना बनाकर बेवकूफ बना दिया करता था । लेकिन वो अंदर से सब समझ जाया करती थी ।

बाबूजी से एकता को बहुत प्यार था ।  वो भी तो उसका बहुत ख्याल रखते थे ।

इस बार तो एकता ने मुकेश को धमकी ही दे डाली थी । अबकि बार अगर बाबूजी के पास नहीं हो कर आये ? तो मैं अगली बार दिल्ली जाने के बाद वापिस नहीं आऊंगी ।

बस उसी का कहना मानते हुए  इस बार घर जाने को तैयार हो गया था ।

उसे अच्छी तरह याद है 25 जून 2017 का वो मनहूस दिन जिस दिन उसने घर छोड़ा था ।

छोटी सी ही तो बात थी !!

मैंने बाबूजी से यही तो बोला था कि दूसरे तल पर भी एक टॉयलेट बनवा दो, सुबह-सुबह सभी को नीचे आना पड़ता है और नीचे एक टॉयलेट में लाइन लग जाती है ।

लेकिन बाबूजी ने कहा था अगले साल देखेंगे ।
लेकिन भैया को पिछले साल एक बार ही कहने से पहले तल पर टॉयलेट बनवा दिया था ।

ये सोच मैंने भी कह दिया कि --"अगर नहीं बनवाना तो मैं भी यहाँ नहीं रहूँगा ।"

मेरी कम्पनी  मुझे यू.ए.स में चल रहे प्रोजेक्ट में भेजना चाहती थी और मैने अगले दिन हाँ करने के लिए सोच कर सो गया था ।

एकता उन दिनों मायके गयी हुई थी । बस सुबह उठा और ऑफिस जाते वक़्त बाबूजी को बोला --- बाबूजी मुझे कंपनी एक प्रोजेक्ट के लिए बाहर भेज रही है । अगर तंग होकर ही घर पर रहना है तो मै आज प्रोजेक्ट पर साईन कर दूँगा ।

लेकिन बाबूजी ने इस बात पर कोई जवाब ही नहीं दिया था ।

भाई राजेश भी मूक बने खड़े देखते रहे थे । उन्होंने भी किसी तरह की रोकने की कोई कोशिश नहीं की ।
उस दिन घर छोड़ते वक़्त बाबूजी ने, अगर एक बार भी, पीछे से आवाज लगायी होती तो-------।

तो मन कभी भी गगर से जाने की न सोचता ।

गुस्से में मेरे मुँह से काल ने वो शब्द निकलवा दिए पर----
मेरा मन कतई नहीं था बाबूजी औऱ माँ को ऐसे छोड़कर जाने का ।

न जाने उस दिन वक़्त ने क्या करवट ली कि कदम इतने भारी लगने लगे थे,  कि जैसे किसी ने जकड़ लिए हैं ।

आखिरी कदम तक--उम्मीद थी, कि बाबूजी मुझे किसी हालत में मुझे घर से दूर नहीं जाने देंगे ।

मुझे लगता था--- जैसे दुनियाँ में सबसे ज़्यादा प्यार बाबूजी,  मुझे ही करते हैं ।
 
ये कैसा वक़्त था --जो ख़ुद, मैंने ही खरीद लिया ।

लेकिन......आख़िरी कदम दहलीज़ से पार हो गया--- पीछे से कोई आवाज नहीं आई ।

औऱ उस दिन के बाद मैनें  कभी  फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा ।

इस बार एकता ने जोर देकर  कहा था कि घर होकर और बाबूजी से मिलकर आना ।

वो और बच्चे तो दो महीने पहले अपने भाई राकेश के साथ आ कर वापिस गयी थी ।

टैक्सी अभी भी फर्राटे भर रही थी । जैसे-जैसे टैक्सी आगे बढ़ रही थी मुकेश के दिल की धड़कन भी तेज़ हो रही थी । बाहर देखा तो सब कुछ बदल बदला सा नज़र आ रहा था । धौला कुआँ क्रास हो रहा था । इतने में फ़ोन की

घंटी बज उठी । देखा तो एकता का था ।

बोलो एकता बात हुई ??

एकता बोली--मुकेश !! वहां से कोई भी फ़ोन नहीं पिक कर रहा ।
बाबूजी का फोन मुझे भी स्विच ऑफ ही आ रहा है ।

भैया उठा नही रहे ।

भाभी कामिनी का मिला रही हूँ, वो भी आउट ऑफ रीच ही आ रहा है ।

जैसे ही मिलता है, मैं वापिस तुम्हें फ़ोन करती हुँ -- एकता थोड़ी अपसेट होते हुए कहा ।

ये सुन मुकेश भी थोड़ा  अपसेट हुआ कि आख़िर सब के फ़ोन अचानक क्यूँ पहुंच से बाहर हो गए ?

एक मन ये सोचने लगा----"कहीं मेरे आने की ख़बर तो नहीं लग गई इन्हें ?"
और जानकर सब हमारा फ़ोन न पिक कर रहें हों ?

दूसरा मन---"नहीं, नहीं ---ऐसा नहीं हो सकता । वो तो बल्कि मेरे आने से ख़ुश ही होंगे ।"

इसी दुविधा में टैक्सी में बैठा मुकेश घड़ी में टाईम देखने लगा ।

सुबह के छह बजे थे ।

ओ हो -- अभी तो वक़्त ही क्या हुआ है ? अभी तो सब सो ही रहे होंगे -- ये सोच मुकेश को जैसे कुछ तसल्ली हुई ।

विकास पूरी ब्लाक बी पहुँचते पहुँचते सात बज गए । मुकेश ने टैक्सी ब्लाक का मेंन गेट पार कर तीसरे मकान के आगे रुकवा दी । टैक्सी से उतर सामान उतरवाया और बिल देकर टैक्सी वाले को विदा कर अपने घर की ओर रुख़ किया ।

बाहर का गेट खोलने के लिए जैसे ही उसे अंदर धकेला --- उस पर ताला हिलने लगा ।

ये देख़ मुकेश इधर- उधर बगले झाँकने लगा ।

गली में दरवाज़े के आगे सामान रख  --- मुकेश सोचने लगा कि अब क्या किया जाए ।

इतने में पड़ौस से एक औरत सफाई करती हुई बाहर निकली । 

मुकेश ने उसे पहचान कर  आवाज लगाई --- "मालती आँटी ?"

मालती ने मुँह उठाकर उसकी ओर देखा और पहचानने की कोशिश करने लगी ।

ये देख़ - मुकेश ने ख़ुद अपनी पहचान बताई--- "आँटी मैं मुकेश ।"

"पहचाना नहीं मुझे ??"--मुकेश ने दोहराया ।

"ओ~~~~मुक्की ?"--मालती पहचानते हुए बोली ।

"अरे तुम कब आये ?"--- आगे आते हुए मालती बोली ।

सामान बाहर पड़ा देख़ वो बोली- 'तुम्हें नहीं पता?"

मुकेश ने प्रश्न भरी निगाहों से मालती की ओर देखा ।

"सारे अस्पताल गए हुए हैं" - मालती ने बताया ।

"अस्पताल ?" - हैरान होते हुए मुकेश ने पूछा ।

"पिन्टू गंगाराम अस्पताल में दाख़िल है ना ?''--मालती ने जैसे कोई राज़ खोला हो ।

"क्या हुआ उसे ?"

"कल सुबह वो बाहर कहीं से आये थे ।"- मालती फिर बोली और बोलती चली गयी ।

"गाड़ी से उतर वो सीधा दादू दादू कर अंदर भागा । नीचे कमरे में उन्हें न पाकर वो ऊपर भागा ।"

"उसे शायद पता था सुबह दादू छत पर पौधों को पानी देने ज़रूर जाते हैं ।"

'उन्हें जब वहां भी नहीं मिले तो वो फिर दादू दादू करता नीचे की ओर वापिस दौड़ा ।"

     "सीढ़ियां उतरते वक़्त वो बस संभाल न पाया, गिरता चला गया । सर बुरी तरह फट सा गया  उसका ।"

"फटाफट उसे अस्पताल ले गए ।  बेहोश हो गया था बेचारा । बहुत खून बह गया था ।"

रुक कर मालती फिर बोली: -- "हाँ चाबी दे गए हैं मुझे --आप सामान तो अंदर रखो ?"

"राजू (राजेश) को फ़ोन मिला लो न ?"- मालती फिर बोली ।

"आँटी सुबह से मिला रहा हूँ दोनों का फ़ोन नही लग रहा । न भाई का न भाभी का ।"---मुकेश ने कहा 

"मुझे जल्दी अस्पताल जाना चाहिए ।"

"हाँ हाँ आओ हमारे घर ही  फ्रेश हो कर चाय पीकर आप निकल जाना ।"

अस्पताल में कोई वार्ड वगैरह कुछ ????---मुकेश ने पूछा ।

मालती जितना जानती थी उतना बताने लगी---"हाँ रात को राजू सामान व कपड़े लेने आया था, तो बता तो रहा था किए को फ़ोन पर----कुछ नई बिल्ड़िंग में आई सी यू~~~"

"आई सी यू???"- मुकेश घबराया हुआ बोला ।

"आँटी फिर मैं जल्दी निकलता हूँ ।"

"उन्हें ज़रूरत पड़ सकती है ।"

"आप मेरा ये बैग आप ही अंदर रख देना ।"

कह कर फ़ोन पर टैक्सी बुक करवाता हुआ बाहर से ही मेन रोड़ की ओर निकल गया ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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क्रमश:

भाग-6
Coming soon


Tuesday, June 29, 2021

बैडरूम- (भाग-4)

 

बैडरूम- (भाग-4)

★★★★★★★★
लुधियाना- मॉडल टाउन
वक्त:         सुबह - ढाई बजे
जगह:        वही पुरानी पुश्तैनी हवेली ।
*************

           पहली मंजिल पर बने अपने चार आलीशान कमरों में से एक में देवदत्त आधी रात, परेशान से पलंग पर कभी इधर कभी उधर करवटें बदल रहा था ।

नींद नदारद !!
आँखों से कोसों दूर लग रही थी ।
खुली आंखें, कभी कमरे की छत की तरफ निहारते हुए,
तो कभी साथ में बेसुध सोई, पत्नी सुहासिनी की तरफ ।

अज़ीब उलझनों से रूबरू हो रहे थे देवदत्त ।

अचानक सुहासिनी ने करवट बदली,

उन्नीदी सी हल्की सी नज़र उसकी देवदत्त पर पडी । तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठी ।

क्या हुआ ?
नींद नहीं आ रही क्या ??

चाँद की रोशनी खिड़की से अंदर की ओर झाँक रही थी । उसकी रोशनी में देवदत्त की नम आंखों ने न चाहते हुए भी चुगली कर दी ।

ये देख़ सुहासिनी का दिल सहम सा गया ।

उठ कर जल्दी से उन्हें हिलाया ।

सर पर धीरे-धीरे हाथ फेरते हुए कहा-  आप चिंता न कीजिये, सब ठीक हो जाएगा ।

थोड़ा रुक कर सुहासिनी फिर बोली---आपके घर में ---आपके साथ इतना कुछ हुआ, पर आज तक आपने मेरे साथ कुछ भी साझा नही किया । कभी भी अपना दिल हल्का नहीं किया ।
कब तक अकेले ये सब ढ़ोते फिरोगे ?

देवदत्त अभी भी छत की तरफ शून्य में देख रहे थे ।

उनके चेहरे पर बार-बार पीड़ा के भाव आने जाने लगे ।

सुहासिनी रुक कर फिर बोली--
सब कुछ क्या अपने अंदर सीने में दबा कर ही रक्खोगे ?

सुहासिनी पलंग से उठी और साथ टेबल पर पड़े जग से एक गिलास पानी का देवदत्त को दिया ।

एक घूंट पी कर गिलास वापिस पकड़ा दिया ।

सुहासिनी ने हिम्मत कर देवदत्त से बोला--- मन हल्का करोगे तो अच्छा लगेगा ।

देवदत्त ने एक बार सुहासिनी की तरफ भीगी निगाहों से देखा जैसे सोच रहे हों कि बात करूँ या न करूँ ।

तो अचानक ही सुहासिनी भावुक हो अश्क़ों से उलझ गई । शायद ऐसा मौका पहली बार ही आया था जो देवदत्त ने ऐसी निगाहों से उसकी तरफ देखा हो ।

देवदत्त ने सुहासिनी के माथे पर एक छोटा सा प्यार का तोहफा दिया और मुसलसल बोलते चले गए -

सुहासिनी---- पता नहीं ----रात से ही
दिमाग में हज़ारों उलझते प्रश्न बार बार कौंध रहे हैं ।

मेरे साथ ही क्यूँ ऐसा होता आया है ? 

भाई लक्ष्मी सदा से ही गिरगिट की तरह रंग बदलते आये हैं ।

बाऊजी जब विल बना रहे थे तो मैंने एक माकूल सलाह दी थी कि हम भाई बहिनों में सभी को बराबर हिस्सा लिख दीजियेगा । कोई झंझट ही नहीं रहेगा ।

ये सुन - बाऊ जी को बहुत अच्छा भी लगा था ।

हम तीन भाई और तीन बहने
छह ही तो थे ।
तीन भाई --प्रताप, लक्ष्मी और मैं
औऱ तीन बहिनें---राधा, कमला औऱ संतोष ।

लेकिन रात भी नहीं बीती ।

बाऊजी ने मुझे बुलाया और बताया कि विल में उन्होंने बहिनों का नाम न शामिल करने का सोचा है ।

इतना सुन सुहासिनी ने देवदत्त को बीच में ही टोका कि---बाऊजी ने अगर विल लिखनी ही थी तो चुपचाप लिखते न । जो उनके मन में था लिख देते । सबको बुलाकर पूछने की क्या ज़रूरत थी ?

देवदत्त थोड़ी देर चुप हो गए । फिर बात का संदर्भ समझाते हुए बोले --- असल हमारे बड़े भाई साहब औऱ भाई के बीच दुश्मनी भाव काफी मुखर हो चुका था जिसकी वजह से प्रताप भाई साहब घर छोड़ गए थे ।

ऐसी क्या बात हुई उन दोनों के बीच  ? आपने तो आज तक कभी जिक्र ही नही किया और न   किसी ओर ने बताया ??

सुहासिनी अब परेशान सी दिखने लगी ।

देवदत्त ने फिर आगे कहा--- मैं उस वक़्त बहुत छोटा था । लेकिन वो भयानक मंज़र याद करते हुए आज भी दिल दहल जाता है । तुम्हारे आने से  बहुत पहले की बात है ।
बहुत लंबी कहानी है इस बारे में फिर कभी बात करेंगे ।

"लेकिन"-- सुहासिनी ने फ़िर कहा -----
"जब मेरी शादी हुई तो वो हमारे साथ ही तो थे भूतल पर ।
हम पहले तल पर और लक्ष्मी जेठ जी दूसरे तल पर । हाँ -- मेरे आने के बाद दो तीन साल बाद ही वो चले गए थे ।"

हाँ--देवदत्त ने कहा ।

अब सुहासिनी --- देवदत्त को ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगी  ।

देवदत्त ने आगे कहा----
इसलिए बाऊजी सब को बताकर विल लिखना चाहते थे ।
उनकी तबियत ठीक नहीं रहती थी और बाद में झगड़े न हों । शायद उन्हें अहसास होगा इस बात का ।

देवदत्त बिना ये महसूस किए कि सुहासिनी क्या सोच रही है ? अपनी बात कहते चले गए । बाऊजी ने विल  ।

दीवार की तरफ देखते हुए देवदत्त फिर बोले---

बहिनों का क्या क़सूर था ?
बाऊजी का दिमाग क्यूँ बदला ? औऱ किसने बदला ?

भाई साहब ने रातो रात बाऊजी का दिमाग ऐसे कैसे बदल दिया था ?

हालांकि सबसे बड़े भाई प्रताप दसवीं पास थे ।
मगर भाई लक्ष्मी तो पढ़े लिखे भी नहीं थे ।
लेकिन शातिर बहुत थे ।

जब मैंने उस विल पर आपत्ति की तो ---- बाऊजी ने सीधा फरमान सुना दिया कि जो कह दिया वैसे ही होगा ।

इस बात पर मैंने गुस्से में कह दिया ---मुझे भी फिर कुछ नहीं चाहिए । मैंने ये सोचकर कहा कि इस बात से बाऊजी पर असर होगा वो मान जाएंगे ।

लेकिन ऐसा कुछ न हुआ ।

मैंने फिर जोर से कहा---  "मैं भी अब यहाँ से चला जाऊँगा ।"

मेरे ऐसा कहने पर भी बाऊजी पर जैसे कोई असर ही नहीं हुआ ।
भाई लक्ष्मी ने न जाने ऐसा क्या जादू किया था उन पर ।

भाई लक्ष्मी भी वहीं खड़े मौन हो मेरा ये फैसला सुन रहे थे ।
वो भी एक शब्द न बोले ।

सबसे बड़े भाई साहब प्रताप बहुत पहले घर छोड़ कर कनाडा चले गए थे ये तुम्हें पता ही था ।

बड़े भाई लक्ष्मी ने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया.........?

ते सभी प्रश्नों के साथ
अगले दिन मैंने तुम्हारे साथ अपना आत्म सम्मान लिए ये घर छोड़ दिया ।

आज सताईस साल हो गए उस बात को----जब मैंने ये आलीशान घर छोड़ा । भूले नहीं जाते वो पल ।

छोटे छोटे तीन बच्चों के साथ बिना कोई सामान उठाये इस घर को अलविदा बोल दिया था ।

जब घर छोड़ा ---उस वक़्त भी भाई साहब मूक क्यूँ बने रहे ?

"ये तो हमें भी समझ नहीं आया था" --सुहासिनी बीच में ही बोली ।

जब अपना उल्लू सीधा हो गया , बच्चे पढ़ लिख गए ? बाऊजी को नाकारा कर सारा धंधा अपने हाथ में ले,  जैसे तैसे अपनी गलती मान कर हमसे रिश्ता तो कायम कर ही लिया उन्होंने ।

लेकिन वो मेरे दिल में जगह तो नहीं बना पाए और न ही बना पाएंगे ।
एक लंबी सांस लेते हुए देवदत्त ने आगे कहा--
सत्ताईस साल....बाऊ जी को याद कर आँखे अब भी नम हो जाती हैं ।  उन्हें नाज़ था लक्ष्मी भाई साहब पर । पता नहीं क्या विश्वास था ? लेकिन अचानक वी दुनियाँ छोड़ गए और कॅरोना का हवाला देकर किसी को बुलाया भी नहीं ?

उनके जाने के वाद तो----
बार-बार भाई मुझे फ़ोन कर कर लुधियाना बुलाते---- पर मेरा मन यहाँ आने को इज़ाज़त ही नहीं देता था ।

इतिहास किस तरह अपने आप को दोहराता है ।

कहते कहते देवदत्त दो बार सिस्के औऱ फिर बोले----

सुहासिनी -----हमने !!

अपने एक-एक बच्चे को बड़ी तन्मयता से पढ़ाया लिखाया । बड़ा बनाया । मुकेश दत्त एम.बी. ए कर के टाटा में नॉकरी करता हुआ अमेरिका निकल गया ।

एक बार क्या गया बस वहीं का हो गया । उससे तो मुझे पहले ही कोई उम्मीद नहीं थी ।

"मगर -- राजेश"----इतना कह कर देवदत्त फिर परेशान हो उठे ।

सुहासिनी अब तक जो चुप चाप सुन रही थी अचानक टूट कर सुबक पड़ी औऱ बोली--- आप भी तो ----जब छोटे ने -- जाने की बात कही थी--तो मौन ही रहे थे न ?

कहते हुए रो पड़ी औऱ कहा-
"है तो आप ही का बेटा न वो ।"

देवदत्त वह बोले:-----
"हाँ ---सुहासिनी"---कहा न--- "इतिहास अपने आप को दोहराता ज़रूर है ।"

"पर राजेश ?"---कहते हुए प्रश्न चिन्ह की तरह सुहासिनी की तरफ देख देवदत्त बोला ।

'अब भी तो वही कर रहे हो' -- सुहासिनी अटकते हुए बोली ।

बिना उसे कुछ कहे आप वहाँ से क्यूँ निकले ?

देखते तो सही वो क्या करता है ?

फिर इस उम्र में भी क्या कोई कमी है आपके पास ?

जी.एम. के पद से सेवा निवृत्त हुए हो । अच्छी पेंशन मिलती है । आहे उसके बाद भी अच्छी कम्पनी में अच्छे पद पर हो । सेवा निवृत्त के बाद भी मोटी इनकम है ।
बेटी - 'लता' की अच्छे घर में शादी भी कर दी । दामाद भी हमारी बहुत इज़्ज़त करता है ।

तीनों ही बच्चे कभी भी पलट के हमारे आगे नहीं बोले ।

"अब और क्या चाहिए आपको" - सुहासिनी ने कहते हुए समझाया ।
सामने घड़ी पर सुहासिनी की नज़र पड़ी तो चोंक गयी...
(सुबह के छह बज चुके थे ।)
चलो उठो अब:-

'सबसे अच्छा परिवार है हमारा' - कहते हुए जैसे ही सुहासिनी उठी ।
बाहर से जेठ लक्ष्मी दत्त की मोटी आवाज कमरे तलक चलती हुई आई -- देवदत्त, बहु ठीक ही तो कह रही है ।

'सबसे अच्छा परिवार है हमारा'
औऱ बहुत बड़ा परिवार है ।

जेठ जी की आवाज सुन सुहासिनी उठ के बाहर निकल गयी ।

औऱ देवदत्त  एकदम उठ के बैठ गए ।

लक्ष्मी भाई फिर बोले--- 'देवदत्त'  अब तुम भी सब यहीं आ जाओ । इतना बड़ा घर है । जब से गये हो तुम्हारी भाभी रोज़ आपकी धरोहर (घर) की साफ सफाई ज़रूर करवाती है ।
कहती है पता नही किस दिन देवर जी आ जायें ।
देखो न आपका बैडरूम कितना सजा के रखा है ।

देवदत्त बोले--- हाँ भाई साहब सजा तो है लेकिन:-

_*किसी घर में एक साथ रहना परिवार नहीं कहलाता । एक दूसरे को समझना और एक दूसरे की परवाह करना परिवार कहलाता है ।*_

भाई लक्ष्मी, देवदत्त की बात सुन एक दम चुप हो गए ।

ये बात उन्हें गहरी चोट कर गयी ।
उदास स्वर में बोले:- तो तुमने हमें मुआफ़ नहीं किया ?

देवदत्त ने ये सुन कहा- अगर ऐसी कोई बात होती तो क्या मैं यहॉं आता ?
लेकिन भाई साहब--सताईस साल ज़िन्दगी के यूँ ही निकल गए ।

भाई लक्ष्मी ने देवदत्त को पलंग से खींच कर गले से लगाया औऱ पीठ थपथपाते हुए कहा --सब ठीक हो जाएगा ।

चलो नीचे चलो बेटे राजेश का कई बार फ़ोन आ लिया । उसको फ़ोन कर लो । बोल रहा था तुम्हारा फ़ोन बन्द आ रहा है ।

तुमने आफ कर रखा है क्या?

नहीं बस वो चार्जर ही नही लाये न हम--धीरे से देवदत्त ने बोला ।

चलो नीचे चल के चार्ज कर लेना ।
नीचे पहुँचते ही राजेश का फ़ोन फिर दनदना उठा । लक्ष्मी दत्त ने फ़ोन उठाने की बजाय सीधे देवदत्त के हाथ में दे दिया ।

देवदत्त ने फ़ोन कान से लगाया ही था उधर से चीखने चिल्लाने की आवाज़ें आने लगी ।

क्या हुआ ??---क्या हुआ??
उधर से कामिनी की एक ही आवाज़ आयी वो~~~~बाऊजी ~~~पिंटू....

ये सुन देवदत्त वहीँ छाती पर हाथ रख नीचे झुकते चले गए ।

क्या हुआ---क्या हुआ---

चारों ओर गूँजने लगा ।



-----हर्ष महाजन

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भाग-5

प्रकाशित हो चुका है । 


बैडरूम - ( भाग-3 )


          राजेश और कामिनी को बाज़ार में  कुछ साजो सामान लेते हुए वक़्त कुछ ज़्यादा ही लग गया । सामान लेकर कोठी पर वो वापिस लौटे ।
थोड़ा अंधेरा हो चुका था । लेकिन कोठी का दरवाजा खुला था ।

दोनों हैरान इस बात से थे कि बाबू जी ने घर की लाइट भी नहीं जलाई । अंधेरे में ही बैठे हैं?

पिंटू सो चुका था ।

राजेश दिमाग में किसी अनहोनी का अंदेशा लिए अंदर की ओर बढ़ा । कामिनी भी पीछे पीछे आगे बढ़ी ।

मगर अंदर कोई भी नहीं था ।

न माँ न बाबू जी ।

सारी खुशियाँ पलक झपकते ही  काफ़ूर हो चुकी थीं ।

पिंटू को पलंग पर लिटा राजेश-- बाहर की ओर भागा ---

लेकिन

सारी गली शांत पड़ी थी । इधर-उधर देखा तो उसकी नज़र सामने कोठी की छत पर एक बुजुर्ग पौधों को पानी की फुहार कर रहे थे ।

प्रश्न चिन्ह निगाहों से राजेश ने उनकी ओर देखा ।

तो उस बुज़ुर्ग ने अपनी उम्र के अनुभव से राजेश की परेशानी को समझते हुए  राजेश को ऊपर से ही बताया कि कुछ देर पहले एक ऑटो आया था । एक बुजुर्ग दंपति आपके घर से निकल कर  उस ऑटो से गए हैं ।

राजेश उस शख्स को धन्यवाद देता हुआ अंदर आ गया ।

हैरान परेशान राजेश बुदबुदाता हुआ ...कमाल है....बिना बताए ...न फ़ोन किया....औऱ चले गए । कुछ समझ नही आया .....

कामिनी ने राजेश को बुदबुदाते हुए देख पूछा-- क्या हुआ? कुछ पता चला ?

हद है कामिनी...देखो न ( हकलाते हुए) बाबू जी बिना बताए चले गए ।

कामिनी ने ढांढस बंधाते हुए कहा ---- यहीं कहीं गए होंगे फ़ोन क्यूँ नहीं कर लेते ?

हाँ.. हाँ...करता हूँ। ( घबराहट में राजेश भूल ही गया कि फ़ोन से पूछने का विकल्प उसके पास था)

अभी फ़ोन करने ही लगा था कि राजेश का मोबाइल बज उठा । नंबर देखा तो राजेश की जैसे बाछें खिल उठीं ।

बाबूजी का फ़ोन कामिनी की ओर देख कर राजेश ने फ़ोन उठाया ।

हेलो ...बाबूजी कहाँ चले गए आप ?

हम कितना परेशान हो रहे हैं यहॉं  आपको मालूम है ?

उधर से बाबूजी ने कुछ बोला....

राजेश एक दम परेशान हो उठा..
पूछा----क्या हुआ दादी को?

थोड़ी देर बाबूजी कुछ कहते रहे और राजेश सुनता रहा ।

फोन बंद कर राजेश एक दम निढाल हो कुर्सी पर बैठ गया ।

ये देख अब कामिनी भी परेशान हो गई । उसने राजेश से पूछा हुआ क्या?

कुछ बताइए भी ?

कामिनी वो... दादी जी को... हॉस्पिटल ले गए हैं ..लुधियाना ।
औऱ---औऱ

बाबू जी लुधियाना के लिए निकल गए हैं ।

ऐसे कैसे?...कामिनी घबराई हुई बोली...कम से कम फ़ोन कर के बता तो देते । हम भी साथ चलते ?

राजेश कामिनी से सहमत था । और कहा बाबू जी ने कहा उन्होंने बहुत बार फ़ोन किया पर हमारा फ़ोन अनरीचेबल था ।

कामिनी---हाँ हम बेसमेंट में थे न ....

औऱ सलाह दी----
आप ऐसा करो ताऊ जी को फ़ोन लगाओ ।

उनसे बोलो हम आ रहे हैं

कामिनी की सलाह मान--

राजेश ने ताऊ जी को लुधियाना फ़ोन लगा दिया ।

हर्ष महाजन
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आगे:
भाग-4 प्रकाशित हो चुका है ।


Saturday, June 26, 2021

बैडरूम - ( भाग-2 )

 

                     लुधियाना मॉडल टॉउन में बनी एक बड़ी आलीशान हवेली, पुराने जमाने का कीलों वाला दरवाजा और ऊपर दीवार के दोनों ओर पिलर जिसपे संगमरमर के हाथी सुसज्जित थे । देवदत्त और सुहासिनी बाहर खड़े हुए उस दिन को याद कर रहे थे जिस दिन उनके पिता ने उन्हें ये कहा था कि मेरे अंतिम समय पर आने की कोई ज़रूरत नहीं ।
उस दिन को याद करते हुए देवदत्त की आंखें नम हो गयीं । सुहासिनी ने अपना हाथ पति के काँधे पर रखकर दबाया जैसे कह रही हो बस भूल जाओ वो सब और कहा घंटी दबाओ । मन पर काबू पाते हुए देवदत्त ने बटन दबा दिया ।

हवेली की शान-ओ-शौकत अभी तलक उसी तरह कायम थी जिसके बाहर अभी भी दादी का नाम लिखा था 'लीला देवी दत्त' निवास ।

देवदत्त ने रेनोवेशन के वक़्त ख़ुद खड़े हो कर अपने सामने बनवाया था ।

दरवाजा खुला ----कोटिलया भाभी सामने खड़ी थी

पाँव छू, दोनों बड़ा सा आँगन लाँघ ड्रॉइंग रूम में पहुंचे जहां भाई लक्ष्मी दत्त के साथ माँ कृष्णा देवी दत्त, शाही ठाट के साथ बैठीं थी । भाई लक्ष्मी दत्त ने देवदत्त को गले लगाया । सुहासिनी ने पाँव छू अपनी जगह ली ।

देव ऐसा क्या हुआ ? बिना भूमिका बांधे भाई लक्ष्मी ने एक सवाल दाग दिया ।

कोटिलया बीच में ही बोल उठी -- अजी आप हद करते हो देवर जी को चाय पानी तो पूछा नहीं और शुरू हो गए । 

पत्नी की बात सुन लक्ष्मी दत्त ने बात टाल कहा-- मैने तो यूँ ही पूछा आप चाय पानी इंतजाम करो न ।

कोटिलया ने देवरानी सुहासिनी को इशारा कर, अपने साथ बाहर ले आयी । नॉकर दयाल को चाय पानी पर लगा सुहासिनी को अपने कमरे में ले आयी ।

कमरे में आते ही सुहासिनी बोली ---भाभी पुराने दिन याद आ गए । ऐसे ही तुम मुझे कठिन परिस्तिथियों से बाहर निकाला करती थी ।

मेरा तो दम घुटा जाता है इन दोनों के बीच चलती बातचीत  में । ---सुहासिनी ने फिर कहा ।

मैं समझती हूँ सुहासिनी ! तभी तो ले आई --- कोटिलया ने कहा ।

बच्चे कहां हैं भाभी ।

सुधीर तो बाहर गया अपने काम के सिलसिले में । बहु देविका को इस बार साथ ही ले गया है कहता कि  इसे भी घुमा लाता हूँ ।

कबीर का तो तुम्हें पता है क्रिकेट से उसे फुरसत ही नहीं मिलती ।
बहु रीना कॉलेज गयी है । आज कोई स्पेशल लेक्चर देना था उसे ।

"और कृतिका ? वो कहां है ?" ---सुहासिनी ने बेटी के बारे में पूछा ।

वो~~~~~
मंगनी हो गयी है न । शर्माती है सामने आने से ---इसलिए तुम्हें देखते ही ऊपर जाकर टी वी देख रही होगी ।---कोटिलया ने कहा ।

फिर एक दम असल बात पे आते हुए कोटिलया ने पूछा--- बात क्या है कुछ बताओगी भी ?

जेठ जी ने तुम्हें बताया नहीं  कुछ?

तुम भी अजीब बात करती हो । ये कभी बात करते हैं क्या ?

बस यही बताया कि देवर जी का फ़ोन आया है कि आ रहे हैं और आपका ऊपर का बंद पोर्शन की साफ़ सफाई करवा दी उन्होंने लेबर बुलाकर । अब पूछने की हिम्मत कौन करे । इन दोनों के बीच बोलना खतरे से खाली तो कभी था ही नहीं ।

कोई बात नहीं की ?

"नहीं" --तुम बताओ तफसील से क्या हुआ कोटिलया ने फिर पूछा ।

सुहासिनी ने अपने बेटे राजेश की सारी बात बता, कोटिलया से कहा कि --मैंने बहुत मना किया इन्हें ---लेकिन इन्होंने मेरी एक न सुनी । बहु बेटे के बाज़ार से लौटने से पहले ही वहां से मुझे साथ ले जल्द निकल लिए और जेठ जी को फ़ोन लगा दिया ।

राजेश का फ़ोन आया था क्या ?----सुहासिनी ने उत्सुकता से पूछा ।

हाँ !! आया था ।

जैसे देवर जी ने कहा था ---इन्होंने वही बता दिया, कि दादी को इमरजेंसी में हॉस्पिटल भर्ती कराना पड़ा । ----कोटिलया बोली ।

वो क्या बोला ?

आने के लिए कह रहा था । इन्होंने मना कर दिया । अभी ऐसी कोई बात नहीं है ।-- कोटिलया ने बताया ।

अंदर से यकायक जोर जोर से आवाजें आना शुरू ही गई । दोनों अंदर की और दौड़ी ।

जेठ जी देवर पर गुस्सा हो बोल रहे थे । तुम्हें कम से कम बेटे राजेश से बात तो करनी चाहिए थी ? बहुत समझदार और फर्माबदार लड़का है । उसके मन में क्या है पूछना तो था न ?

तुम्हें मालूम है ?
सुधीर और कबीर दोनों कोई भी काम उसकी सलाह के बिना नहीं करते ।

लेकिन भाई साहब उसने हमारे लिए उस नए मकान में कोई कमरा रखा ही नहीं ?---देवदत्त ने इस बात पे जोर देते हुए कहा ।

लक्ष्मी दत्त ने बीच में ही बोलते हुए कहा----समझ तो मुझे भी कुछ नहीं आ रहा लेकिन ज़रूर हो सकता है देव, इसमें भी कोई राज़ हो । जब तक पूछोगे नहीं तो पता कैसे चलेगा ?
तुम्हारी इसी चुप रहने की आदत ने तुम्हें बाऊ जी से भी दूर कर दिया था ।

लेकिन भाई साहब आप जानते हो गलत मैं तब भी नहीं था ।

हाँ देव !! गलत नहीं थे तुम !!--मैं ही जानता हूँ । शुरू से पाक दिल रहे हो तभी मेरे चहेते रहे हो । लेकिन तुम्हारी ये चुप्पी का फ़ायदा सभी उठाते गए ।

लेकिन भाई साहब--देवदत्त बोलते बोलते रुक गए ।

बोलो बोलो देव क्या कहना चाहते हो ?

आप चाहते तो ये सब नहीं होता  ।

अपने आप को संवारते हुए लक्ष्मी दत्त ने लंबी सांस ली और कहा---हाँ सच कह रहे हो देव । आज मुझे महसूस होता है घर के सबसे बड़े की अहमियत क्या होती है । घर बनाने में भी और ......।

(और उठ कर देव के गले लग गए । दोनों की आंखे नम हो गयीं ।)

मेरे थोड़े से स्वार्थ ने मुझे चुप रहने को मजबूर कर दिया था ।--लक्ष्मी दत्त  कहता चला गया --- तूने हमेशा ही हर किसी के लिए सेक्रिफाईस किया ।
राधा/कमला/संतोष तीनों बहिनें हमेशा तेरी ही बात को आगे बढ़ाती रहीं । मुझे हमेशा ये अखरता था ।

लेकिन बाऊ जी?---"देव बीच में ही बोल उठा ।"---बाऊ जी तुम्हारी बात पर ही चला करते थे ।

हाँ -- मैं मानता हूँ । मुझे लालच आ गया था बच्चों की वजह से ।

बच्चे बड़े हो रहे थे । हवेली के छोटे छोटे हिस्से क्या करते ? --"लक्ष्मी दत्त ने फिर कहा" ----
उस दिन--- अगर मैं तुम्हें रोक लेता तो आज तुम सब इसी हवेली में हमारे साथ होते ।

भाई साहब !! मुझे ये ग़म नहीं के हम साथ नहीं ।
मुझे ग़म इस बात का है बाऊ जी के मन में मेरे लिए ज़ह्र आख़िरी वक़्त तक भी नहीं धुल पाया ।

नहीं देव ऐसी बात नहीं । तुम्हारे कहने पर बाऊजी ने उनको (बहनों को ) भी हवेली के हिस्से दिए थे जो वो परंपरा के चलते नहीं चाहते थे ।

क्यूँकि तुम नहीं चाहते थे -- देव सच्चाई उगलता रहा ।

यही समझ लो ।

लक्ष्मी बात को पूरी करते हुये----बाऊ जी को तीनों बहिनों ने मिल कर ख़ुद अपने-अपने हिस्से सरेंडर किये और उसके बाद हम चारों ने बाऊ जी से बात की । वो चाहते थे कि तुम वापिस आ जाओ । लेकिन तुमने हमसे कोई भी कांटेक्ट नहीं रखा । फिर वह कॅरोना सब कुछ लील गया ।

आज फ़िर तुम्हें कहता हूँ अपने बेटे राजेश के मामले में चुप नहीं रहना । बात करो उससे ।----लक्ष्मी दत्त ने जोर देते हुए कहा ।

देवदत्त, भाई लक्ष्मी दत्त की कही "चुप्पी वाली बात"  पर सोचने पर मजबूर हो गए । ये बात दिल पर जैसे वार कर गयी ।

देवदत्त, सन्न हो, सोच में डूबता चला गया ।

हर्ष महाजन
◆◆◆◆◆◆◆◆◆
क्रमश:

भाग-3
प्रकाशित हो चुका है । आपका  इन्तज़ार रहेगा ।


Thursday, June 24, 2021

बैडरूम (भाग-1)

बाबू जी आपकी बहूत इज़्ज़त करता हूँ । सब कुछ आपका ही तो है राजेश ने अपनी बात रखते हुए कहा :--


आइये आगे देखते हैं :-


           राजेश जैसे ही आफ़िस से घर पहुँचा, उसकी पत्नी कामिनी ने अपनी बाई को आवाज़ लगा कर कहा - 'प्रिया' साहब के लिए चाय लेकर आओ और राजेश से बोली - आप फ्रेश हो लीजिये मैं टेबल पर  चाय लगवाती हूँ। 

     

          पिंटू पापा के आते ही उससे चिपट गया । पापा चाकलेट लाये हो ? राजेश ने जेब से दो चाकलेट निकाल कर उसे दे दीं ।


वो खुशी खुशी लेकर बाहर चला गया ।


    राजेश बैग हाथ में लिए हुए थोड़ा रुका और सामने बरामदे में आराम कुर्सी पर अख़बार का आनंद ले रहे अपने पिता की ओर मुख़ातिब हो बोला --- 'बाबू जी' आप जल्दी से तैयार हो जाओ आज कोठी पर चलना है सब तैयारी हो चुकी हैं । कोई कमी अगर रह गयी हो तो शिफ्ट होने से पहले ही देख़ लेते हैं बाद में दिक्कत होगी ।


बाबू जी उतावले हो बोले - अभी?


हाँ बाबू जी -- "राजेश ने खुशी खुशी कहा "।   

फिर कहा-- अभी तीन दिन की छुट्टियाँ पारित हुई हैं, आगे छुट्टियाँ नहीं मिल पायेंगी  और कामिनी भी कुछ दिनों के लिए अपनी मम्मी के पास इंदौर जाना चाहती है । इसलिए सोचता हूँ कल ही शिफ्ट कर लें । मूवर्स एंड पैकर्स से बात हो गयी है कल वो सुबह आ जायेगा ।


हद है ?--- "बाबू जी बोले"


अभी तुमने कहा कोठी देखने जाना है उसमें कोई कमी न हो और अगर कोई कमी निकल आयी तो ?-- "बाबू जी ने असमंजस में होते हुए कहा"


राजेश बोला-----वैसे तो बाबू जी कोई कमी निकलेगी नहीं । अलबत्ता अगर कोई बड़ी कमी निकल भी आई तो देख़ लेंगे । मूवर्स एंड पैकर्स वाला अपना ही आदमी है दिन बदल लेंगे ।


इतने में प्रिया चाय ले आयी और सभी डाइनिंग टेबल पर  आ गए  । इधर-उधर देखता हुआ राजेश बोला-मम्मी किधर है नज़र नहीं आ रहीं ?


बेटा वो मालती (पडौसन) के यहाँ पोता हुआ है न--- उसे देखने गयी है बस आती ही होगी ।


अभी इतना कहना ही था माँ सुहासिनी गेट से अंदर दाख़िल हुई ।


माँ को देखते ही राजेश ने कोठी देखने जाने की बात कही ।


ये सुन सुहासिनी ने अपने पति देवदत्त की ओर देखा । उन्होंने सर हिलाते हुए समझा दिया जैसे सब बात हो चुकी है ।


     चाय से फ़ारग हो वो सभी कोठी को देखने गए । उनके घर से वो 45 किलोमीटर थी । सभी बड़े ख़ुश थे ।


राजेश ने गाड़ी कोठी के ठीक एकदम सामने गेट के सामने रोकी । सबसे पहले राजेश के पिता देवदत्त गाड़ी से उतरे । सामने खड़े हो कोठी को निहारने लगे । कहा तो कुछ नही पर अंदर ही अंदर बेटे की पसंद की दाद देने लगे । गेट की दीवार पर एक छोटे संगमरमर के पत्थर पर लिखे नाम को देखा "कृश्णा देवी दत्त निवास" तो मन अंदर से प्रफुल्लित था । दादी का वर्चस्व अभी तक कायम था । हालांकि आजकल वो देवदत्त के बड़े भाई  लक्ष्मी दत्त के पास रह रही थी ।


माँ सुहासिनी तो जैसे फूली नहीं समा रही थी और बोल उठी अब आएगा न रहने का मजा । पड़ोसियों को ज़रूर बुलाएंगे एक दिन --- बड़ी अपनी अपनी हाँका करतीं थीं ।

       सुहासिनी ने अपनी सभी ग्रह प्रवेश की विधियां पूरी कर, घर के अंदर प्रवेश किया । अंदर घुसते ही दायीं तरफ उसे मन्दिर दिखाई दिया । माँ तो जैसे---- उसे सब कुछ ही मिल गया । सुंदर मूर्तियों से सुसज्जित ....


सुहासिनी तो बस भाव विभोर हो गयी ।


पिंटू इधर-उधर उछल कूद करने लगा ।


राजेश ने माँ को इतना खुश देख

कामिनी की तारीफ करते हुए कहा .....ये सब कामिनी ने ही जोर देकर बनवाया कि माँ के लिए हमारी तरफ से तौफा होगा ।


सुहासिनी ने कामिनी को प्यार से देखते हुए कोटि-कोटि दुआएं दीं ।


और अंदर दाखिल होते हुए सब लोग आँगन से होते हुए बाकी जगह देखने लगे । राजेश ने माँ और बाबू जी को अपना बैडरूम दिखाया जिसमें डबल बैड,  उस पर करीने से बिछी चादर ।


पलंग के पीछे की दीवार पर राजेश और कामिनी की शादी की बहुत बड़ी तस्वीर । 


सब मिलाकर कमरा बहुत ही सुंदर लग रहा था ।


राजेश ने अपने बैड रूम के आगे बने डाईंग रूम में प्रवेश किया । इतना बड़ा ड्राइंग रूम?---माँ बोल उठी ।


"हाँ माँ"----राजेश एकदम बोल उठा ।---"आजकल ऐसा ही बनता है ।"


डाईंग रूम में पाँच छः कुर्सियाँ पड़ीं थी । उनकी तरफ इशारा करते हुए राजेश ने कहा---बाबू जी आप सब यहाँ बैठो में अभी कुछ मीठा लेकर आता हूँ ।


 कामिनी राजेश को आवाज़ लगाते हुए बोली --मैं भी साथ चलती हूँ । तुम्हें कुछ नही पता चलेगा । 


माँ बड़ी खुश नजर आ रही थी और कुर्सी पर बैठते हुए बोली-- अजी सुनते हो ?

देवदत्त ने सुहासिनी की ओर देखते हुए कहा --- 'हाँ सुहासिनी'  ---एक लंबी साँस लेते हुए देवदत्त बोले---मंदिर तो बड़ा ही जबरदस्त बना है सुहासिनी, लेकिन !!


लेकिन? ---सुहासिनी ने आश्चर्य चकित हो पूछा ।---लेकिन क्या ??


'सुहासिनी'----फिर एक लंबी साँस लेते हुए देवदत्त ने कहा---मंदिर तो बहुत खूबसूरत बना है लेकिन-- हमारा बैड रूम कहाँ बना ?


"बैड रूम ?" - सुहासिनी को ऐसे  लगा जैसे  शरीर में 440 वाट का एक दम करंट सा दौड़ गया हो ।


हाँ--सुहासिनी--- हमारा बैडरूम

कहते हुए देवदत्त बहुत ग़मगीन थे ।


सुहासिनी कुर्सी पर बैठी सन्न सी एक टक देवदत्त की ओर देखती रह गयी । आँखों से दो मोती धीरे से लुढकते हुए उसके आँचल में आ गिरे । 


~ हर्ष महाजन ~


भाग-2

प्रकाशित ही चुका है देखिएगा ज़रूर >