Wednesday, June 30, 2021

बैडरूम- भाग-5

 

बैडरूम- भाग-5
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                           नई दिल्ली  टी-3 इंद्रागांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट  पर उतरते ही मुकेश दत्त ने बाबूजी ( देवदत्त ) को फ़ोन लगाया और कई बार फ़ोन डायल किया मगर फोन स्विच ऑफ ही आता रहा । 

मुकेश का धैर्य अब जवाब देने लगा था । घर पहुँचने से पहले अपने आने की सूचना देना चाहता था ।

बड़े भाई राजेश से तो वह बात भी नहीं करना चाहता था ।

प्लेन में बेल्ट-6 की अनाउंसमेंट सुन वो अपने सामान की ओर अग्रसर हुआ ।  बार बार  फ़ोन ट्राई किये जा रहा था लेकिन स्विच ऑफ की आवाज सुन-सुन कर वो पकने लगा था । अब झुंझलाहट भी होने लगी ।

फिर उसने पत्नी एकता को काल मिलाया और उसे सूचित किया कि वो ठीक-ठाक पहुँच गया है । उसको  कहा कि बाबूजी का फ़ोन नहीं लग रहा तुम ही उधर से इतला दे देना और रखते रखते फिर कहा - "सुनों फ़ोन न लगे तो भाई साहब ( राजेश) को ही इत्तला कर देना ।"

मुकेश ने अपना सामान रेढू पर रखा औऱ टैक्सी स्टैंड से - विकास पूरी के लिए टैक्सी ले ली ।

टैक्सी में सफ़र शुरू होते ही उसके मस्तिष्क में जैसे हलचल होने लगी ।  सोचने लगा --चार साल हो चुके हैं उसे अपना घर छोड़े हुए ।

चार साल बाद घर जा रहा हूँ।

हर छह महीने बाद एयरपोर्ट के पास होटेल में रुक कर  कार्यवाही की तरह वहीं से वापिस अमेरिका लौट जाना !  जैसे एक प्रक्रिया सी बन गयी थी ।

टाटा समूह की नामी ग्रामी कंपनी में एक अच्छे पद पर पहुँच चुका था  मुकेश । ये सोचकर भी उसमें अहम भाव बढ़ने लगा था ।

मुकेश गहरी सोचों में डूबता चला गया ।

      एकता हर ट्रिप पर जोर देती थी कि बाबूजी को इस बार ज़रूर मिल के आना और हर बार मैं उसे कोई न कोई बहाना बनाकर बेवकूफ बना दिया करता था । लेकिन वो अंदर से सब समझ जाया करती थी ।

बाबूजी से एकता को बहुत प्यार था ।  वो भी तो उसका बहुत ख्याल रखते थे ।

इस बार तो एकता ने मुकेश को धमकी ही दे डाली थी । अबकि बार अगर बाबूजी के पास नहीं हो कर आये ? तो मैं अगली बार दिल्ली जाने के बाद वापिस नहीं आऊंगी ।

बस उसी का कहना मानते हुए  इस बार घर जाने को तैयार हो गया था ।

उसे अच्छी तरह याद है 25 जून 2017 का वो मनहूस दिन जिस दिन उसने घर छोड़ा था ।

छोटी सी ही तो बात थी !!

मैंने बाबूजी से यही तो बोला था कि दूसरे तल पर भी एक टॉयलेट बनवा दो, सुबह-सुबह सभी को नीचे आना पड़ता है और नीचे एक टॉयलेट में लाइन लग जाती है ।

लेकिन बाबूजी ने कहा था अगले साल देखेंगे ।
लेकिन भैया को पिछले साल एक बार ही कहने से पहले तल पर टॉयलेट बनवा दिया था ।

ये सोच मैंने भी कह दिया कि --"अगर नहीं बनवाना तो मैं भी यहाँ नहीं रहूँगा ।"

मेरी कम्पनी  मुझे यू.ए.स में चल रहे प्रोजेक्ट में भेजना चाहती थी और मैने अगले दिन हाँ करने के लिए सोच कर सो गया था ।

एकता उन दिनों मायके गयी हुई थी । बस सुबह उठा और ऑफिस जाते वक़्त बाबूजी को बोला --- बाबूजी मुझे कंपनी एक प्रोजेक्ट के लिए बाहर भेज रही है । अगर तंग होकर ही घर पर रहना है तो मै आज प्रोजेक्ट पर साईन कर दूँगा ।

लेकिन बाबूजी ने इस बात पर कोई जवाब ही नहीं दिया था ।

भाई राजेश भी मूक बने खड़े देखते रहे थे । उन्होंने भी किसी तरह की रोकने की कोई कोशिश नहीं की ।
उस दिन घर छोड़ते वक़्त बाबूजी ने, अगर एक बार भी, पीछे से आवाज लगायी होती तो-------।

तो मन कभी भी गगर से जाने की न सोचता ।

गुस्से में मेरे मुँह से काल ने वो शब्द निकलवा दिए पर----
मेरा मन कतई नहीं था बाबूजी औऱ माँ को ऐसे छोड़कर जाने का ।

न जाने उस दिन वक़्त ने क्या करवट ली कि कदम इतने भारी लगने लगे थे,  कि जैसे किसी ने जकड़ लिए हैं ।

आखिरी कदम तक--उम्मीद थी, कि बाबूजी मुझे किसी हालत में मुझे घर से दूर नहीं जाने देंगे ।

मुझे लगता था--- जैसे दुनियाँ में सबसे ज़्यादा प्यार बाबूजी,  मुझे ही करते हैं ।
 
ये कैसा वक़्त था --जो ख़ुद, मैंने ही खरीद लिया ।

लेकिन......आख़िरी कदम दहलीज़ से पार हो गया--- पीछे से कोई आवाज नहीं आई ।

औऱ उस दिन के बाद मैनें  कभी  फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा ।

इस बार एकता ने जोर देकर  कहा था कि घर होकर और बाबूजी से मिलकर आना ।

वो और बच्चे तो दो महीने पहले अपने भाई राकेश के साथ आ कर वापिस गयी थी ।

टैक्सी अभी भी फर्राटे भर रही थी । जैसे-जैसे टैक्सी आगे बढ़ रही थी मुकेश के दिल की धड़कन भी तेज़ हो रही थी । बाहर देखा तो सब कुछ बदल बदला सा नज़र आ रहा था । धौला कुआँ क्रास हो रहा था । इतने में फ़ोन की

घंटी बज उठी । देखा तो एकता का था ।

बोलो एकता बात हुई ??

एकता बोली--मुकेश !! वहां से कोई भी फ़ोन नहीं पिक कर रहा ।
बाबूजी का फोन मुझे भी स्विच ऑफ ही आ रहा है ।

भैया उठा नही रहे ।

भाभी कामिनी का मिला रही हूँ, वो भी आउट ऑफ रीच ही आ रहा है ।

जैसे ही मिलता है, मैं वापिस तुम्हें फ़ोन करती हुँ -- एकता थोड़ी अपसेट होते हुए कहा ।

ये सुन मुकेश भी थोड़ा  अपसेट हुआ कि आख़िर सब के फ़ोन अचानक क्यूँ पहुंच से बाहर हो गए ?

एक मन ये सोचने लगा----"कहीं मेरे आने की ख़बर तो नहीं लग गई इन्हें ?"
और जानकर सब हमारा फ़ोन न पिक कर रहें हों ?

दूसरा मन---"नहीं, नहीं ---ऐसा नहीं हो सकता । वो तो बल्कि मेरे आने से ख़ुश ही होंगे ।"

इसी दुविधा में टैक्सी में बैठा मुकेश घड़ी में टाईम देखने लगा ।

सुबह के छह बजे थे ।

ओ हो -- अभी तो वक़्त ही क्या हुआ है ? अभी तो सब सो ही रहे होंगे -- ये सोच मुकेश को जैसे कुछ तसल्ली हुई ।

विकास पूरी ब्लाक बी पहुँचते पहुँचते सात बज गए । मुकेश ने टैक्सी ब्लाक का मेंन गेट पार कर तीसरे मकान के आगे रुकवा दी । टैक्सी से उतर सामान उतरवाया और बिल देकर टैक्सी वाले को विदा कर अपने घर की ओर रुख़ किया ।

बाहर का गेट खोलने के लिए जैसे ही उसे अंदर धकेला --- उस पर ताला हिलने लगा ।

ये देख़ मुकेश इधर- उधर बगले झाँकने लगा ।

गली में दरवाज़े के आगे सामान रख  --- मुकेश सोचने लगा कि अब क्या किया जाए ।

इतने में पड़ौस से एक औरत सफाई करती हुई बाहर निकली । 

मुकेश ने उसे पहचान कर  आवाज लगाई --- "मालती आँटी ?"

मालती ने मुँह उठाकर उसकी ओर देखा और पहचानने की कोशिश करने लगी ।

ये देख़ - मुकेश ने ख़ुद अपनी पहचान बताई--- "आँटी मैं मुकेश ।"

"पहचाना नहीं मुझे ??"--मुकेश ने दोहराया ।

"ओ~~~~मुक्की ?"--मालती पहचानते हुए बोली ।

"अरे तुम कब आये ?"--- आगे आते हुए मालती बोली ।

सामान बाहर पड़ा देख़ वो बोली- 'तुम्हें नहीं पता?"

मुकेश ने प्रश्न भरी निगाहों से मालती की ओर देखा ।

"सारे अस्पताल गए हुए हैं" - मालती ने बताया ।

"अस्पताल ?" - हैरान होते हुए मुकेश ने पूछा ।

"पिन्टू गंगाराम अस्पताल में दाख़िल है ना ?''--मालती ने जैसे कोई राज़ खोला हो ।

"क्या हुआ उसे ?"

"कल सुबह वो बाहर कहीं से आये थे ।"- मालती फिर बोली और बोलती चली गयी ।

"गाड़ी से उतर वो सीधा दादू दादू कर अंदर भागा । नीचे कमरे में उन्हें न पाकर वो ऊपर भागा ।"

"उसे शायद पता था सुबह दादू छत पर पौधों को पानी देने ज़रूर जाते हैं ।"

'उन्हें जब वहां भी नहीं मिले तो वो फिर दादू दादू करता नीचे की ओर वापिस दौड़ा ।"

     "सीढ़ियां उतरते वक़्त वो बस संभाल न पाया, गिरता चला गया । सर बुरी तरह फट सा गया  उसका ।"

"फटाफट उसे अस्पताल ले गए ।  बेहोश हो गया था बेचारा । बहुत खून बह गया था ।"

रुक कर मालती फिर बोली: -- "हाँ चाबी दे गए हैं मुझे --आप सामान तो अंदर रखो ?"

"राजू (राजेश) को फ़ोन मिला लो न ?"- मालती फिर बोली ।

"आँटी सुबह से मिला रहा हूँ दोनों का फ़ोन नही लग रहा । न भाई का न भाभी का ।"---मुकेश ने कहा 

"मुझे जल्दी अस्पताल जाना चाहिए ।"

"हाँ हाँ आओ हमारे घर ही  फ्रेश हो कर चाय पीकर आप निकल जाना ।"

अस्पताल में कोई वार्ड वगैरह कुछ ????---मुकेश ने पूछा ।

मालती जितना जानती थी उतना बताने लगी---"हाँ रात को राजू सामान व कपड़े लेने आया था, तो बता तो रहा था किए को फ़ोन पर----कुछ नई बिल्ड़िंग में आई सी यू~~~"

"आई सी यू???"- मुकेश घबराया हुआ बोला ।

"आँटी फिर मैं जल्दी निकलता हूँ ।"

"उन्हें ज़रूरत पड़ सकती है ।"

"आप मेरा ये बैग आप ही अंदर रख देना ।"

कह कर फ़ोन पर टैक्सी बुक करवाता हुआ बाहर से ही मेन रोड़ की ओर निकल गया ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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क्रमश:

भाग-6
Coming soon


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