लुधियाना मॉडल टॉउन में बनी एक बड़ी आलीशान हवेली, पुराने जमाने का कीलों वाला दरवाजा और ऊपर दीवार के दोनों ओर पिलर जिसपे संगमरमर के हाथी सुसज्जित थे । देवदत्त और सुहासिनी बाहर खड़े हुए उस दिन को याद कर रहे थे जिस दिन उनके पिता ने उन्हें ये कहा था कि मेरे अंतिम समय पर आने की कोई ज़रूरत नहीं ।
उस दिन को याद करते हुए देवदत्त की आंखें नम हो गयीं । सुहासिनी ने अपना हाथ पति के काँधे पर रखकर दबाया जैसे कह रही हो बस भूल जाओ वो सब और कहा घंटी दबाओ । मन पर काबू पाते हुए देवदत्त ने बटन दबा दिया ।
हवेली की शान-ओ-शौकत अभी तलक उसी तरह कायम थी जिसके बाहर अभी भी दादी का नाम लिखा था 'लीला देवी दत्त' निवास ।
देवदत्त ने रेनोवेशन के वक़्त ख़ुद खड़े हो कर अपने सामने बनवाया था ।
दरवाजा खुला ----कोटिलया भाभी सामने खड़ी थी
पाँव छू, दोनों बड़ा सा आँगन लाँघ ड्रॉइंग रूम में पहुंचे जहां भाई लक्ष्मी दत्त के साथ माँ कृष्णा देवी दत्त, शाही ठाट के साथ बैठीं थी । भाई लक्ष्मी दत्त ने देवदत्त को गले लगाया । सुहासिनी ने पाँव छू अपनी जगह ली ।
देव ऐसा क्या हुआ ? बिना भूमिका बांधे भाई लक्ष्मी ने एक सवाल दाग दिया ।
कोटिलया बीच में ही बोल उठी -- अजी आप हद करते हो देवर जी को चाय पानी तो पूछा नहीं और शुरू हो गए ।
पत्नी की बात सुन लक्ष्मी दत्त ने बात टाल कहा-- मैने तो यूँ ही पूछा आप चाय पानी इंतजाम करो न ।
कोटिलया ने देवरानी सुहासिनी को इशारा कर, अपने साथ बाहर ले आयी । नॉकर दयाल को चाय पानी पर लगा सुहासिनी को अपने कमरे में ले आयी ।
कमरे में आते ही सुहासिनी बोली ---भाभी पुराने दिन याद आ गए । ऐसे ही तुम मुझे कठिन परिस्तिथियों से बाहर निकाला करती थी ।
मेरा तो दम घुटा जाता है इन दोनों के बीच चलती बातचीत में । ---सुहासिनी ने फिर कहा ।
मैं समझती हूँ सुहासिनी ! तभी तो ले आई --- कोटिलया ने कहा ।
बच्चे कहां हैं भाभी ।
सुधीर तो बाहर गया अपने काम के सिलसिले में । बहु देविका को इस बार साथ ही ले गया है कहता कि इसे भी घुमा लाता हूँ ।
कबीर का तो तुम्हें पता है क्रिकेट से उसे फुरसत ही नहीं मिलती ।
बहु रीना कॉलेज गयी है । आज कोई स्पेशल लेक्चर देना था उसे ।
"और कृतिका ? वो कहां है ?" ---सुहासिनी ने बेटी के बारे में पूछा ।
वो~~~~~
मंगनी हो गयी है न । शर्माती है सामने आने से ---इसलिए तुम्हें देखते ही ऊपर जाकर टी वी देख रही होगी ।---कोटिलया ने कहा ।
फिर एक दम असल बात पे आते हुए कोटिलया ने पूछा--- बात क्या है कुछ बताओगी भी ?
जेठ जी ने तुम्हें बताया नहीं कुछ?
तुम भी अजीब बात करती हो । ये कभी बात करते हैं क्या ?
बस यही बताया कि देवर जी का फ़ोन आया है कि आ रहे हैं और आपका ऊपर का बंद पोर्शन की साफ़ सफाई करवा दी उन्होंने लेबर बुलाकर । अब पूछने की हिम्मत कौन करे । इन दोनों के बीच बोलना खतरे से खाली तो कभी था ही नहीं ।
कोई बात नहीं की ?
"नहीं" --तुम बताओ तफसील से क्या हुआ कोटिलया ने फिर पूछा ।
सुहासिनी ने अपने बेटे राजेश की सारी बात बता, कोटिलया से कहा कि --मैंने बहुत मना किया इन्हें ---लेकिन इन्होंने मेरी एक न सुनी । बहु बेटे के बाज़ार से लौटने से पहले ही वहां से मुझे साथ ले जल्द निकल लिए और जेठ जी को फ़ोन लगा दिया ।
राजेश का फ़ोन आया था क्या ?----सुहासिनी ने उत्सुकता से पूछा ।
हाँ !! आया था ।
जैसे देवर जी ने कहा था ---इन्होंने वही बता दिया, कि दादी को इमरजेंसी में हॉस्पिटल भर्ती कराना पड़ा । ----कोटिलया बोली ।
वो क्या बोला ?
आने के लिए कह रहा था । इन्होंने मना कर दिया । अभी ऐसी कोई बात नहीं है ।-- कोटिलया ने बताया ।
अंदर से यकायक जोर जोर से आवाजें आना शुरू ही गई । दोनों अंदर की और दौड़ी ।
जेठ जी देवर पर गुस्सा हो बोल रहे थे । तुम्हें कम से कम बेटे राजेश से बात तो करनी चाहिए थी ? बहुत समझदार और फर्माबदार लड़का है । उसके मन में क्या है पूछना तो था न ?
तुम्हें मालूम है ?
सुधीर और कबीर दोनों कोई भी काम उसकी सलाह के बिना नहीं करते ।
लेकिन भाई साहब उसने हमारे लिए उस नए मकान में कोई कमरा रखा ही नहीं ?---देवदत्त ने इस बात पे जोर देते हुए कहा ।
लक्ष्मी दत्त ने बीच में ही बोलते हुए कहा----समझ तो मुझे भी कुछ नहीं आ रहा लेकिन ज़रूर हो सकता है देव, इसमें भी कोई राज़ हो । जब तक पूछोगे नहीं तो पता कैसे चलेगा ?
तुम्हारी इसी चुप रहने की आदत ने तुम्हें बाऊ जी से भी दूर कर दिया था ।
लेकिन भाई साहब आप जानते हो गलत मैं तब भी नहीं था ।
हाँ देव !! गलत नहीं थे तुम !!--मैं ही जानता हूँ । शुरू से पाक दिल रहे हो तभी मेरे चहेते रहे हो । लेकिन तुम्हारी ये चुप्पी का फ़ायदा सभी उठाते गए ।
लेकिन भाई साहब--देवदत्त बोलते बोलते रुक गए ।
बोलो बोलो देव क्या कहना चाहते हो ?
आप चाहते तो ये सब नहीं होता ।
अपने आप को संवारते हुए लक्ष्मी दत्त ने लंबी सांस ली और कहा---हाँ सच कह रहे हो देव । आज मुझे महसूस होता है घर के सबसे बड़े की अहमियत क्या होती है । घर बनाने में भी और ......।
(और उठ कर देव के गले लग गए । दोनों की आंखे नम हो गयीं ।)
मेरे थोड़े से स्वार्थ ने मुझे चुप रहने को मजबूर कर दिया था ।--लक्ष्मी दत्त कहता चला गया --- तूने हमेशा ही हर किसी के लिए सेक्रिफाईस किया ।
राधा/कमला/संतोष तीनों बहिनें हमेशा तेरी ही बात को आगे बढ़ाती रहीं । मुझे हमेशा ये अखरता था ।
लेकिन बाऊ जी?---"देव बीच में ही बोल उठा ।"---बाऊ जी तुम्हारी बात पर ही चला करते थे ।
हाँ -- मैं मानता हूँ । मुझे लालच आ गया था बच्चों की वजह से ।
बच्चे बड़े हो रहे थे । हवेली के छोटे छोटे हिस्से क्या करते ? --"लक्ष्मी दत्त ने फिर कहा" ----
उस दिन--- अगर मैं तुम्हें रोक लेता तो आज तुम सब इसी हवेली में हमारे साथ होते ।
भाई साहब !! मुझे ये ग़म नहीं के हम साथ नहीं ।
मुझे ग़म इस बात का है बाऊ जी के मन में मेरे लिए ज़ह्र आख़िरी वक़्त तक भी नहीं धुल पाया ।
नहीं देव ऐसी बात नहीं । तुम्हारे कहने पर बाऊजी ने उनको (बहनों को ) भी हवेली के हिस्से दिए थे जो वो परंपरा के चलते नहीं चाहते थे ।
क्यूँकि तुम नहीं चाहते थे -- देव सच्चाई उगलता रहा ।
यही समझ लो ।
लक्ष्मी बात को पूरी करते हुये----बाऊ जी को तीनों बहिनों ने मिल कर ख़ुद अपने-अपने हिस्से सरेंडर किये और उसके बाद हम चारों ने बाऊ जी से बात की । वो चाहते थे कि तुम वापिस आ जाओ । लेकिन तुमने हमसे कोई भी कांटेक्ट नहीं रखा । फिर वह कॅरोना सब कुछ लील गया ।
आज फ़िर तुम्हें कहता हूँ अपने बेटे राजेश के मामले में चुप नहीं रहना । बात करो उससे ।----लक्ष्मी दत्त ने जोर देते हुए कहा ।
देवदत्त, भाई लक्ष्मी दत्त की कही "चुप्पी वाली बात" पर सोचने पर मजबूर हो गए । ये बात दिल पर जैसे वार कर गयी ।
देवदत्त, सन्न हो, सोच में डूबता चला गया ।
हर्ष महाजन
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क्रमश:
भाग-3
प्रकाशित हो चुका है । आपका इन्तज़ार रहेगा ।
बहुत ही सुंदर भावा अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया अनिता सैनी जी ।
Deleteसादर