बैडरूम- (भाग-4)
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लुधियाना- मॉडल टाउन
वक्त: सुबह - ढाई बजे
जगह: वही पुरानी पुश्तैनी हवेली ।
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पहली मंजिल पर बने अपने चार आलीशान कमरों में से एक में देवदत्त आधी रात, परेशान से पलंग पर कभी इधर कभी उधर करवटें बदल रहा था ।
नींद नदारद !!
आँखों से कोसों दूर लग रही थी ।
खुली आंखें, कभी कमरे की छत की तरफ निहारते हुए,
तो कभी साथ में बेसुध सोई, पत्नी सुहासिनी की तरफ ।
अज़ीब उलझनों से रूबरू हो रहे थे देवदत्त ।
अचानक सुहासिनी ने करवट बदली,
उन्नीदी सी हल्की सी नज़र उसकी देवदत्त पर पडी । तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठी ।
क्या हुआ ?
नींद नहीं आ रही क्या ??
चाँद की रोशनी खिड़की से अंदर की ओर झाँक रही थी । उसकी रोशनी में देवदत्त की नम आंखों ने न चाहते हुए भी चुगली कर दी ।
ये देख़ सुहासिनी का दिल सहम सा गया ।
उठ कर जल्दी से उन्हें हिलाया ।
सर पर धीरे-धीरे हाथ फेरते हुए कहा- आप चिंता न कीजिये, सब ठीक हो जाएगा ।
थोड़ा रुक कर सुहासिनी फिर बोली---आपके घर में ---आपके साथ इतना कुछ हुआ, पर आज तक आपने मेरे साथ कुछ भी साझा नही किया । कभी भी अपना दिल हल्का नहीं किया ।
कब तक अकेले ये सब ढ़ोते फिरोगे ?
देवदत्त अभी भी छत की तरफ शून्य में देख रहे थे ।
उनके चेहरे पर बार-बार पीड़ा के भाव आने जाने लगे ।
सुहासिनी रुक कर फिर बोली--
सब कुछ क्या अपने अंदर सीने में दबा कर ही रक्खोगे ?
सुहासिनी पलंग से उठी और साथ टेबल पर पड़े जग से एक गिलास पानी का देवदत्त को दिया ।
एक घूंट पी कर गिलास वापिस पकड़ा दिया ।
सुहासिनी ने हिम्मत कर देवदत्त से बोला--- मन हल्का करोगे तो अच्छा लगेगा ।
देवदत्त ने एक बार सुहासिनी की तरफ भीगी निगाहों से देखा जैसे सोच रहे हों कि बात करूँ या न करूँ ।
तो अचानक ही सुहासिनी भावुक हो अश्क़ों से उलझ गई । शायद ऐसा मौका पहली बार ही आया था जो देवदत्त ने ऐसी निगाहों से उसकी तरफ देखा हो ।
देवदत्त ने सुहासिनी के माथे पर एक छोटा सा प्यार का तोहफा दिया और मुसलसल बोलते चले गए -
सुहासिनी---- पता नहीं ----रात से ही
दिमाग में हज़ारों उलझते प्रश्न बार बार कौंध रहे हैं ।
मेरे साथ ही क्यूँ ऐसा होता आया है ?
भाई लक्ष्मी सदा से ही गिरगिट की तरह रंग बदलते आये हैं ।
बाऊजी जब विल बना रहे थे तो मैंने एक माकूल सलाह दी थी कि हम भाई बहिनों में सभी को बराबर हिस्सा लिख दीजियेगा । कोई झंझट ही नहीं रहेगा ।
ये सुन - बाऊ जी को बहुत अच्छा भी लगा था ।
हम तीन भाई और तीन बहने
छह ही तो थे ।
तीन भाई --प्रताप, लक्ष्मी और मैं
औऱ तीन बहिनें---राधा, कमला औऱ संतोष ।
लेकिन रात भी नहीं बीती ।
बाऊजी ने मुझे बुलाया और बताया कि विल में उन्होंने बहिनों का नाम न शामिल करने का सोचा है ।
इतना सुन सुहासिनी ने देवदत्त को बीच में ही टोका कि---बाऊजी ने अगर विल लिखनी ही थी तो चुपचाप लिखते न । जो उनके मन में था लिख देते । सबको बुलाकर पूछने की क्या ज़रूरत थी ?
देवदत्त थोड़ी देर चुप हो गए । फिर बात का संदर्भ समझाते हुए बोले --- असल हमारे बड़े भाई साहब औऱ भाई के बीच दुश्मनी भाव काफी मुखर हो चुका था जिसकी वजह से प्रताप भाई साहब घर छोड़ गए थे ।
ऐसी क्या बात हुई उन दोनों के बीच ? आपने तो आज तक कभी जिक्र ही नही किया और न किसी ओर ने बताया ??
सुहासिनी अब परेशान सी दिखने लगी ।
देवदत्त ने फिर आगे कहा--- मैं उस वक़्त बहुत छोटा था । लेकिन वो भयानक मंज़र याद करते हुए आज भी दिल दहल जाता है । तुम्हारे आने से बहुत पहले की बात है ।
बहुत लंबी कहानी है इस बारे में फिर कभी बात करेंगे ।
"लेकिन"-- सुहासिनी ने फ़िर कहा -----
"जब मेरी शादी हुई तो वो हमारे साथ ही तो थे भूतल पर ।
हम पहले तल पर और लक्ष्मी जेठ जी दूसरे तल पर । हाँ -- मेरे आने के बाद दो तीन साल बाद ही वो चले गए थे ।"
हाँ--देवदत्त ने कहा ।
अब सुहासिनी --- देवदत्त को ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगी ।
देवदत्त ने आगे कहा----
इसलिए बाऊजी सब को बताकर विल लिखना चाहते थे ।
उनकी तबियत ठीक नहीं रहती थी और बाद में झगड़े न हों । शायद उन्हें अहसास होगा इस बात का ।
देवदत्त बिना ये महसूस किए कि सुहासिनी क्या सोच रही है ? अपनी बात कहते चले गए । बाऊजी ने विल ।
दीवार की तरफ देखते हुए देवदत्त फिर बोले---
बहिनों का क्या क़सूर था ?
बाऊजी का दिमाग क्यूँ बदला ? औऱ किसने बदला ?
भाई साहब ने रातो रात बाऊजी का दिमाग ऐसे कैसे बदल दिया था ?
हालांकि सबसे बड़े भाई प्रताप दसवीं पास थे ।
मगर भाई लक्ष्मी तो पढ़े लिखे भी नहीं थे ।
लेकिन शातिर बहुत थे ।
जब मैंने उस विल पर आपत्ति की तो ---- बाऊजी ने सीधा फरमान सुना दिया कि जो कह दिया वैसे ही होगा ।
इस बात पर मैंने गुस्से में कह दिया ---मुझे भी फिर कुछ नहीं चाहिए । मैंने ये सोचकर कहा कि इस बात से बाऊजी पर असर होगा वो मान जाएंगे ।
लेकिन ऐसा कुछ न हुआ ।
मैंने फिर जोर से कहा--- "मैं भी अब यहाँ से चला जाऊँगा ।"
मेरे ऐसा कहने पर भी बाऊजी पर जैसे कोई असर ही नहीं हुआ ।
भाई लक्ष्मी ने न जाने ऐसा क्या जादू किया था उन पर ।
भाई लक्ष्मी भी वहीं खड़े मौन हो मेरा ये फैसला सुन रहे थे ।
वो भी एक शब्द न बोले ।
सबसे बड़े भाई साहब प्रताप बहुत पहले घर छोड़ कर कनाडा चले गए थे ये तुम्हें पता ही था ।
बड़े भाई लक्ष्मी ने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया.........?
ते सभी प्रश्नों के साथ
अगले दिन मैंने तुम्हारे साथ अपना आत्म सम्मान लिए ये घर छोड़ दिया ।
आज सताईस साल हो गए उस बात को----जब मैंने ये आलीशान घर छोड़ा । भूले नहीं जाते वो पल ।
छोटे छोटे तीन बच्चों के साथ बिना कोई सामान उठाये इस घर को अलविदा बोल दिया था ।
जब घर छोड़ा ---उस वक़्त भी भाई साहब मूक क्यूँ बने रहे ?
"ये तो हमें भी समझ नहीं आया था" --सुहासिनी बीच में ही बोली ।
जब अपना उल्लू सीधा हो गया , बच्चे पढ़ लिख गए ? बाऊजी को नाकारा कर सारा धंधा अपने हाथ में ले, जैसे तैसे अपनी गलती मान कर हमसे रिश्ता तो कायम कर ही लिया उन्होंने ।
लेकिन वो मेरे दिल में जगह तो नहीं बना पाए और न ही बना पाएंगे ।
एक लंबी सांस लेते हुए देवदत्त ने आगे कहा--
सत्ताईस साल....बाऊ जी को याद कर आँखे अब भी नम हो जाती हैं । उन्हें नाज़ था लक्ष्मी भाई साहब पर । पता नहीं क्या विश्वास था ? लेकिन अचानक वी दुनियाँ छोड़ गए और कॅरोना का हवाला देकर किसी को बुलाया भी नहीं ?
उनके जाने के वाद तो----
बार-बार भाई मुझे फ़ोन कर कर लुधियाना बुलाते---- पर मेरा मन यहाँ आने को इज़ाज़त ही नहीं देता था ।
इतिहास किस तरह अपने आप को दोहराता है ।
कहते कहते देवदत्त दो बार सिस्के औऱ फिर बोले----
सुहासिनी -----हमने !!
अपने एक-एक बच्चे को बड़ी तन्मयता से पढ़ाया लिखाया । बड़ा बनाया । मुकेश दत्त एम.बी. ए कर के टाटा में नॉकरी करता हुआ अमेरिका निकल गया ।
एक बार क्या गया बस वहीं का हो गया । उससे तो मुझे पहले ही कोई उम्मीद नहीं थी ।
"मगर -- राजेश"----इतना कह कर देवदत्त फिर परेशान हो उठे ।
सुहासिनी अब तक जो चुप चाप सुन रही थी अचानक टूट कर सुबक पड़ी औऱ बोली--- आप भी तो ----जब छोटे ने -- जाने की बात कही थी--तो मौन ही रहे थे न ?
कहते हुए रो पड़ी औऱ कहा-
"है तो आप ही का बेटा न वो ।"
देवदत्त वह बोले:-----
"हाँ ---सुहासिनी"---कहा न--- "इतिहास अपने आप को दोहराता ज़रूर है ।"
"पर राजेश ?"---कहते हुए प्रश्न चिन्ह की तरह सुहासिनी की तरफ देख देवदत्त बोला ।
'अब भी तो वही कर रहे हो' -- सुहासिनी अटकते हुए बोली ।
बिना उसे कुछ कहे आप वहाँ से क्यूँ निकले ?
देखते तो सही वो क्या करता है ?
फिर इस उम्र में भी क्या कोई कमी है आपके पास ?
जी.एम. के पद से सेवा निवृत्त हुए हो । अच्छी पेंशन मिलती है । आहे उसके बाद भी अच्छी कम्पनी में अच्छे पद पर हो । सेवा निवृत्त के बाद भी मोटी इनकम है ।
बेटी - 'लता' की अच्छे घर में शादी भी कर दी । दामाद भी हमारी बहुत इज़्ज़त करता है ।
तीनों ही बच्चे कभी भी पलट के हमारे आगे नहीं बोले ।
"अब और क्या चाहिए आपको" - सुहासिनी ने कहते हुए समझाया ।
सामने घड़ी पर सुहासिनी की नज़र पड़ी तो चोंक गयी...
(सुबह के छह बज चुके थे ।)
चलो उठो अब:-
'सबसे अच्छा परिवार है हमारा' - कहते हुए जैसे ही सुहासिनी उठी ।
बाहर से जेठ लक्ष्मी दत्त की मोटी आवाज कमरे तलक चलती हुई आई -- देवदत्त, बहु ठीक ही तो कह रही है ।
'सबसे अच्छा परिवार है हमारा'
औऱ बहुत बड़ा परिवार है ।
जेठ जी की आवाज सुन सुहासिनी उठ के बाहर निकल गयी ।
औऱ देवदत्त एकदम उठ के बैठ गए ।
लक्ष्मी भाई फिर बोले--- 'देवदत्त' अब तुम भी सब यहीं आ जाओ । इतना बड़ा घर है । जब से गये हो तुम्हारी भाभी रोज़ आपकी धरोहर (घर) की साफ सफाई ज़रूर करवाती है ।
कहती है पता नही किस दिन देवर जी आ जायें ।
देखो न आपका बैडरूम कितना सजा के रखा है ।
देवदत्त बोले--- हाँ भाई साहब सजा तो है लेकिन:-
_*किसी घर में एक साथ रहना परिवार नहीं कहलाता । एक दूसरे को समझना और एक दूसरे की परवाह करना परिवार कहलाता है ।*_
भाई लक्ष्मी, देवदत्त की बात सुन एक दम चुप हो गए ।
ये बात उन्हें गहरी चोट कर गयी ।
उदास स्वर में बोले:- तो तुमने हमें मुआफ़ नहीं किया ?
देवदत्त ने ये सुन कहा- अगर ऐसी कोई बात होती तो क्या मैं यहॉं आता ?
लेकिन भाई साहब--सताईस साल ज़िन्दगी के यूँ ही निकल गए ।
भाई लक्ष्मी ने देवदत्त को पलंग से खींच कर गले से लगाया औऱ पीठ थपथपाते हुए कहा --सब ठीक हो जाएगा ।
चलो नीचे चलो बेटे राजेश का कई बार फ़ोन आ लिया । उसको फ़ोन कर लो । बोल रहा था तुम्हारा फ़ोन बन्द आ रहा है ।
तुमने आफ कर रखा है क्या?
नहीं बस वो चार्जर ही नही लाये न हम--धीरे से देवदत्त ने बोला ।
चलो नीचे चल के चार्ज कर लेना ।
नीचे पहुँचते ही राजेश का फ़ोन फिर दनदना उठा । लक्ष्मी दत्त ने फ़ोन उठाने की बजाय सीधे देवदत्त के हाथ में दे दिया ।
देवदत्त ने फ़ोन कान से लगाया ही था उधर से चीखने चिल्लाने की आवाज़ें आने लगी ।
क्या हुआ ??---क्या हुआ??
उधर से कामिनी की एक ही आवाज़ आयी वो~~~~बाऊजी ~~~पिंटू....
ये सुन देवदत्त वहीँ छाती पर हाथ रख नीचे झुकते चले गए ।
क्या हुआ---क्या हुआ---
चारों ओर गूँजने लगा ।
-----हर्ष महाजन
◆◆◆
भाग-5
प्रकाशित हो चुका है ।
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