Thursday, June 24, 2021

बैडरूम (भाग-1)

बाबू जी आपकी बहूत इज़्ज़त करता हूँ । सब कुछ आपका ही तो है राजेश ने अपनी बात रखते हुए कहा :--


आइये आगे देखते हैं :-


           राजेश जैसे ही आफ़िस से घर पहुँचा, उसकी पत्नी कामिनी ने अपनी बाई को आवाज़ लगा कर कहा - 'प्रिया' साहब के लिए चाय लेकर आओ और राजेश से बोली - आप फ्रेश हो लीजिये मैं टेबल पर  चाय लगवाती हूँ। 

     

          पिंटू पापा के आते ही उससे चिपट गया । पापा चाकलेट लाये हो ? राजेश ने जेब से दो चाकलेट निकाल कर उसे दे दीं ।


वो खुशी खुशी लेकर बाहर चला गया ।


    राजेश बैग हाथ में लिए हुए थोड़ा रुका और सामने बरामदे में आराम कुर्सी पर अख़बार का आनंद ले रहे अपने पिता की ओर मुख़ातिब हो बोला --- 'बाबू जी' आप जल्दी से तैयार हो जाओ आज कोठी पर चलना है सब तैयारी हो चुकी हैं । कोई कमी अगर रह गयी हो तो शिफ्ट होने से पहले ही देख़ लेते हैं बाद में दिक्कत होगी ।


बाबू जी उतावले हो बोले - अभी?


हाँ बाबू जी -- "राजेश ने खुशी खुशी कहा "।   

फिर कहा-- अभी तीन दिन की छुट्टियाँ पारित हुई हैं, आगे छुट्टियाँ नहीं मिल पायेंगी  और कामिनी भी कुछ दिनों के लिए अपनी मम्मी के पास इंदौर जाना चाहती है । इसलिए सोचता हूँ कल ही शिफ्ट कर लें । मूवर्स एंड पैकर्स से बात हो गयी है कल वो सुबह आ जायेगा ।


हद है ?--- "बाबू जी बोले"


अभी तुमने कहा कोठी देखने जाना है उसमें कोई कमी न हो और अगर कोई कमी निकल आयी तो ?-- "बाबू जी ने असमंजस में होते हुए कहा"


राजेश बोला-----वैसे तो बाबू जी कोई कमी निकलेगी नहीं । अलबत्ता अगर कोई बड़ी कमी निकल भी आई तो देख़ लेंगे । मूवर्स एंड पैकर्स वाला अपना ही आदमी है दिन बदल लेंगे ।


इतने में प्रिया चाय ले आयी और सभी डाइनिंग टेबल पर  आ गए  । इधर-उधर देखता हुआ राजेश बोला-मम्मी किधर है नज़र नहीं आ रहीं ?


बेटा वो मालती (पडौसन) के यहाँ पोता हुआ है न--- उसे देखने गयी है बस आती ही होगी ।


अभी इतना कहना ही था माँ सुहासिनी गेट से अंदर दाख़िल हुई ।


माँ को देखते ही राजेश ने कोठी देखने जाने की बात कही ।


ये सुन सुहासिनी ने अपने पति देवदत्त की ओर देखा । उन्होंने सर हिलाते हुए समझा दिया जैसे सब बात हो चुकी है ।


     चाय से फ़ारग हो वो सभी कोठी को देखने गए । उनके घर से वो 45 किलोमीटर थी । सभी बड़े ख़ुश थे ।


राजेश ने गाड़ी कोठी के ठीक एकदम सामने गेट के सामने रोकी । सबसे पहले राजेश के पिता देवदत्त गाड़ी से उतरे । सामने खड़े हो कोठी को निहारने लगे । कहा तो कुछ नही पर अंदर ही अंदर बेटे की पसंद की दाद देने लगे । गेट की दीवार पर एक छोटे संगमरमर के पत्थर पर लिखे नाम को देखा "कृश्णा देवी दत्त निवास" तो मन अंदर से प्रफुल्लित था । दादी का वर्चस्व अभी तक कायम था । हालांकि आजकल वो देवदत्त के बड़े भाई  लक्ष्मी दत्त के पास रह रही थी ।


माँ सुहासिनी तो जैसे फूली नहीं समा रही थी और बोल उठी अब आएगा न रहने का मजा । पड़ोसियों को ज़रूर बुलाएंगे एक दिन --- बड़ी अपनी अपनी हाँका करतीं थीं ।

       सुहासिनी ने अपनी सभी ग्रह प्रवेश की विधियां पूरी कर, घर के अंदर प्रवेश किया । अंदर घुसते ही दायीं तरफ उसे मन्दिर दिखाई दिया । माँ तो जैसे---- उसे सब कुछ ही मिल गया । सुंदर मूर्तियों से सुसज्जित ....


सुहासिनी तो बस भाव विभोर हो गयी ।


पिंटू इधर-उधर उछल कूद करने लगा ।


राजेश ने माँ को इतना खुश देख

कामिनी की तारीफ करते हुए कहा .....ये सब कामिनी ने ही जोर देकर बनवाया कि माँ के लिए हमारी तरफ से तौफा होगा ।


सुहासिनी ने कामिनी को प्यार से देखते हुए कोटि-कोटि दुआएं दीं ।


और अंदर दाखिल होते हुए सब लोग आँगन से होते हुए बाकी जगह देखने लगे । राजेश ने माँ और बाबू जी को अपना बैडरूम दिखाया जिसमें डबल बैड,  उस पर करीने से बिछी चादर ।


पलंग के पीछे की दीवार पर राजेश और कामिनी की शादी की बहुत बड़ी तस्वीर । 


सब मिलाकर कमरा बहुत ही सुंदर लग रहा था ।


राजेश ने अपने बैड रूम के आगे बने डाईंग रूम में प्रवेश किया । इतना बड़ा ड्राइंग रूम?---माँ बोल उठी ।


"हाँ माँ"----राजेश एकदम बोल उठा ।---"आजकल ऐसा ही बनता है ।"


डाईंग रूम में पाँच छः कुर्सियाँ पड़ीं थी । उनकी तरफ इशारा करते हुए राजेश ने कहा---बाबू जी आप सब यहाँ बैठो में अभी कुछ मीठा लेकर आता हूँ ।


 कामिनी राजेश को आवाज़ लगाते हुए बोली --मैं भी साथ चलती हूँ । तुम्हें कुछ नही पता चलेगा । 


माँ बड़ी खुश नजर आ रही थी और कुर्सी पर बैठते हुए बोली-- अजी सुनते हो ?

देवदत्त ने सुहासिनी की ओर देखते हुए कहा --- 'हाँ सुहासिनी'  ---एक लंबी साँस लेते हुए देवदत्त बोले---मंदिर तो बड़ा ही जबरदस्त बना है सुहासिनी, लेकिन !!


लेकिन? ---सुहासिनी ने आश्चर्य चकित हो पूछा ।---लेकिन क्या ??


'सुहासिनी'----फिर एक लंबी साँस लेते हुए देवदत्त ने कहा---मंदिर तो बहुत खूबसूरत बना है लेकिन-- हमारा बैड रूम कहाँ बना ?


"बैड रूम ?" - सुहासिनी को ऐसे  लगा जैसे  शरीर में 440 वाट का एक दम करंट सा दौड़ गया हो ।


हाँ--सुहासिनी--- हमारा बैडरूम

कहते हुए देवदत्त बहुत ग़मगीन थे ।


सुहासिनी कुर्सी पर बैठी सन्न सी एक टक देवदत्त की ओर देखती रह गयी । आँखों से दो मोती धीरे से लुढकते हुए उसके आँचल में आ गिरे । 


~ हर्ष महाजन ~


भाग-2

प्रकाशित ही चुका है देखिएगा ज़रूर >

8 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-0६-२०२१) को 'आख़री पहर की बरसात'(चर्चा अंक- ४१०७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  2. आदरनीय अनीता सैनी जी आपने मेरी रचना को 'आख़री पहर की बरसात'(चर्चा अंक- ४१०७) पर स्थान दिया । उड़के लिए धन्यवाद ।
    शुक्रिया ।

    सादर

    ReplyDelete
  3. नई पीढ़ी के बीच पुरानी को जब अपनी जगह तलाशनी होती है तब की पीड़ा बयान कर पाना बेहद कठ‍िन होता है, सुहास‍िनी और देवदत्‍त हम सबके ल‍िए कुछ ना कुछ सबक जरूर छोड़ गए। बहुत ही बढ़‍िया ल‍िखा हर्ष जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बेहद शुक्रिया आपका आदरनीय अलकनंदा सिंह जी आपको ये जहAनई पसंद आयी । आइंदा भी आइयेगा ।
      ओहिर आऊंगा कुछ और नया लेकर ।

      सादर

      Delete
  4. तो माँ बाबूजी का बैडरुम बनाया ही नही हवेली में!...
    बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी लघु कथा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरनीय सुधा देवरानी जी आपका तहे दिल शुक्रिया आपकी आमद और पसंदगी के लिए ।

      सादर

      Delete