Thursday, February 23, 2023

वो आंखें

 








              कमला देवी सादिक सेकण्डरी स्कूल में प्रिंसिपल के रूम के बाहर एक बैंच पर बैठी अपनी बारी का इंतजार कर रही थी । उन्हें यहॉं उसके पौत्र गुलशन के सिलसिले में प्रिंसिपल दवे ने तलब किया था ।

              चौरासी की दहलीज़ पार चुकी कमला देवी ज़िन्दगी में मिली ठोकरों को झेलती अब तक थक चुकी थी ।

          मद्रास से आये दो महीने हो चुके थे । उम्र के आखिरी पड़ाव पे खड़ी अपने पौत्र गोलू का हर वो ख्वाब पूरा करना चाहती थी जो इस उम्र के बच्चे चाहते हैं । इसी लिए पिछले महीने उसे इस स्कूल में दाख़िल करवाया था ।

         आठ महीने की उम्र में ही गोलू (गुलशन) ने अपने माँ, बाप औऱ दादा को एक रोड एक्सीडेंट में खो दिया था । अब करने कराने वाली सिर्फ इकलौती दादी कमला देवी ही थी ।

         आमदनी के नाम पर पति की पेंशन जो तकरीबन बावन सो मिल जाया करती थी । किसी तरह गुज़ारा हो जाता था । इन्हीं ख्यालों में थी कि चपड़ासी ने आवाज़ लगाई की माता जी आपको प्रिंसिपल साहिबा ने बुलाया है ।

कमला देवी धीरे-धीरे उठी । पर्स को बगल में दबा कर प्रिंसिपल दवे के सामने पहुँची । बड़े अदब से उन्हें नमस्कार किया  । प्रिंसिपल दवे  ने उनकी उम्र देख उन्हें बड़े इज़्ज़त मान से कुर्सी पर बैठने को कहा औऱ चाय पानी पूछा ।

      कमला देवी ने प्रश्न भरी दृष्टि से प्रिंसिपल दवे की ओर देखा तो उन्होंने बात शुरू की ।

         "आप उनकी??"--प्रिंसिपल ने जानने की कोशिश की ।

        "मैं गुलशन की दादी हूँ इसका सब कुछ मैं ही हूँ " -- कमला देवी ने कहा ।

               प्रिंसिपल दवे ने सब कुछ समझते हुए कहा --- "देखिये आपको बुलाने का मकसद आपका ये बताना था कि आपके पौत्र गुलशन की बहुत शिकायत आ रही हैं ।"

                कमला देवी उनकी इस बात पर थोड़ी सहम कर  प्रिंसिपल की तरफ प्रश्न भरी नज़रो से देखती रही औऱ प्रिंसिपल बोलती रही ।

            प्रिंसिपल ने आगे कहा-- "अज़ीब सी हरकतें करता है आपका बच्चा । इसका आपको इलाज करवाना चाहिए ।"

थोड़ा रुक कर दवे ने फिर कहा--

    "कलास में बैठे-बैठे अचानक कई बार कुछ ऐसा कहना शुरू कर देता है कि सब बच्चों का ध्यान पढ़ाई से भटक जाता है । जैसे-- क्लास के बाहर कोई कबूतर दिखाई दे गया तो एकदम -- देखो-देखो कबूतर कुछ खा रहे है । ऐसी हरकतें कि जैसे उसने ये चीजें कहीं देखी ही न हों । औऱ ऐसी बातों पर सब बच्चे हंसना शुरू कर देते हैं । लेकिन पढ़ाई में लगभग ठीक है । आप समझ रही हैं न मेरी बात को ।"

     कमला देवी अपनी कुर्सी पर बैठी तमाम बातें औऱ शिकायते इत्मिनान से सुनती रहीं ।

कुछ न बोली ।

     फिर दवे ने आगे कहा----"आप इसे किसी अच्छे अस्पताल में दिखाइए । इसका इलाज हो जायेगा औऱ आख़िर में कमला देवी की ओर सीधे हो पूछा--क्या आप कुछ कहना चाहेंगी  श्रीमती कमला देवी जी ?"

बड़ी शालीनता से कमला देवी ने अपनी बात रखी औऱ कहा---
"दवे जी चार साल पहले बहादुरगढ़ रोड़ पर एक कार औऱ एक टैंकर का एक बहुत ज़बरदस्त एक्सीडेंट हुआ था । गोलू उस वक़्त चार साल का था । जिसमें गोलू के सिवाय सारी फ़ैमिली ख़त्म हो गयी, गोलू यानि गुलशन ।"

"मैं घर पर थी इसलिए यहॉं आपके साथ खड़ी हूँ ।"

थोड़ा रुकते हुए साँस लेकर कमला देवी फिर बोली-- "उस एक्सीडेंट में गोलू बच तो गया लेकिन उसकी दोनों आँखें चली गईं । मैनें गोलू की आँखों को कहाँ-कहाँ नहीं दिखाया । इन्डिया में कोई जगह नहीं छोड़ी, जहाँ कुछ पता चला वहाँ इसे दिखाने ले गयी । लेकिन कहीं से कुछ आराम न मिला । दो साल पहले आख़िर में सीतापुर में नेत्र अस्पताल टेराबाद जो पूरे भारत में जाना जाता है वहॉं मुझे कामयाबी मिली । वहाँ गोलू का नाम रजिस्टर हो गया औऱ  इसका इलाज़ हुआ । हर महीने इसे वहाँ दिखाने जाना पड़ता था ।  मैं खुद ही इसे किसी न किसी किसी तरह ले जाती रही । दो महीने पहले जब हम वहाँ गए तो डॉक्टर ने मुआयना कर उस दिन बताया कि  गोलू के आँख के पीछे के ज़ख़्म पूरी तरह भर गए है इसका अभी आपरेशन करना पड़ेगा । मैं बहुत खुश थी ।"
आगे फिर कहा---
      "मैडम दवे जी उस अस्पताल से जब छुट्टी मिली तो बाहर निकल कर इसने नई दुनियाँ में जन्म लिया । दो महीने पहले जब मैं दिल्ली पहुँची तो सबसे पहले मुझे मेरे इस स्कूल का ख्याल आया । मैनें अपनी प्राथमिक शिक्षा यहीं से ही ली थी । उस वक़्त इस स्कूल की प्रिंसिपल रेखा टिक्कू जी हुआ करतीं थी । हमसे बहुत प्यार करती थी ।"

मैडम दवे श्रीमती कमला देवी की कहानी सुन बहुत भावुक हो गयी थी । उसने अपना चश्मा उतारा और नम आँखों को अपने रुमाल से साफ करने लगी ।

उसने अपना पैड उठाया और उस पर कुछ लिख कर श्रीमति कमला देवी की तरफ बढ़ाया औऱ खड़े होकर बड़े अदब से हाथ जोड़ कर कहने लगीं -- "मुझे मुआफ़ कर दीजियेगा ।"

कमला देवी परेशान सी मैडम दवे की तरफ देखते-देखते उनके हाथों से वो कागज़ लिया औऱ समझ नहीं पाई की मैडम दवे क्या चाहती हैं ।

वो कागज़ लेकर जब कमला देवी ने उस पर नज़र डाली तो खुशी का ठिकाना न रहा ।

कमला देवी ने उसमें जो पढ़ा उन्हें खुद भी विश्वास नहीं हुआ ।

वज़ीफ़े के साथ-साथ हायर सेकेंडरी तक गुलशन की पढ़ाई का पूरा खर्चा भी आज से ये स्कूल ही  उठाएगा ।

कमला देवी की आंखें बरबस ही बरसने लगीं और कुर्सी से उठ हाथ जोड़ कर खडी हो गयी ।

हर्ष महाजन
◆◆◆


No comments:

Post a Comment