Friday, July 9, 2021

वार्ड नंबर 23

 



            उस दिन राजेश जल्दी में था तो नाश्ता छोड़ ऑटो लेकर वो नई दिल्ली स्टेशन पहुँचा, भागते हुए ट्रैन पकड़ ही ली । आज ड्यूटी पानीपत लगी थी ।

सीट मिलते ही भूख की तरफ ध्यान गया ।

ट्रैन में कोल्ड ड्रिंक बेचले वाले की आवाज़ धीरे-धीरे पास आने लगी । हर माल मिलेगा 10 रुपैया , हर माल मिलेगा 10 रुपैया । हमारे कम्पार्टमेंट में आते ही उसने उसे आवाज़ दी - ए कैम्पा ? 

राजेश ने एक फैंटा औऱ दो वेफर्स के पैकेट लिए औऱ 10-10 के तीन नॉट दिए ।

"क्या बाऊजी आप भी न !! पहली बार इस गाड़ी मा बैठे हो का" -- मुस्कराता हुआ वो वेंडर फिर उसे बोला ।----"10 रुपैया में भी कोई चीज़ आता है का ?"

      साथ में बैठे हुए पैसेंजर भी सभी हँस पड़े औऱ जिस-जिस ने जो लिया उसके वो बिना पूछे पैसे भी देते जा रहे थे और वो वेंडर आराम से बिना कुछ कहे लेता भी जा रहा था ।

राजेश ने उसे कहा तू खुद ही तो आवाज़ लगा रहा था हर माल मिलेगा 10 - 10  रुपये ?

वो मजाकिया अंदाज में बोला - बाऊजी ऐसा नहीं बोलेंगे तो आप जैसे लोग बुलायेंगे कैसे ??

"अच्छा कितने पैसे हुए बताओ ?" --राजेश ने पूछा ।

"साहब 70 रुपैया दे दो बस?"- उसने लापरवाही से कहा ।

राजेश ने उसे 70 रुपये दिए और वो चला गया ।

भूख लगी थी सो राजेश जल्दी-जल्दी फैंटा के साथ वेफर्स खाने लगा ।

थोड़ी देर के सफ़र के बाद साथ बैठे हुए शख्स ने पूछ ही लिया -- क्या आप पहली बार इस गाड़ी में चल रहे हो?

हाँ में सर हिलाते हुए राजेश ने उसे भी शालीनता से वेफर्स आगे करते हुए, भी पूछ लिया ।

उसने हाथ से,उसके  हाथ को पीछे करते हुए मना किया  -- नहीं आप खाइये ।

उसने फिर बताया ये राजू था जिससे आपने ये खाने का सामान लिया है । ये किसी अमीर बाप की औलाद है । एम.बी.ए है ।

        ये सुन राजेश को जैसे झटका सा लगा । उसके हाथ में पकड़े वेफर्स मुँह तक न पहुँच पाए और उससे वापिस पूछ लिया ।

एम.बी.ए ?? यहॉं कैसे पहुँच गया ये?- राजेश ने उत्सुकता वंश पूछा ।

"बेरोजगारी इसे यहॉं ले आयी" - उस शख्स ने कहा औऱ आगे बताने लगा --
       एक दिन राजू फ़ुर्सत में था औऱ गाड़ी में पैसेंजर भी बहुत कम थे तो उसने अपनी बर्बादी की कहानी अपनी ज़ुबानी हमको सुनाई थी ।

इसको बचपन से नंबर गेम बहुत पसन्द था।  उस दिन उसने कहा:-

             23 नंबर का मेरी ज़िंदगी में बहुत महत्व रहा है औऱ वार्ड नंबर 23 का तो कुछ खास ही महत्व रहा था ।  जहां पर मेरी ज़िन्दगी ही बदल गई ।
   मेरे साथ जब-जब नंबर 23 का खेल चला  तो माँ ने भी मुझे बताया कि मेरा जन्म भी (लंबी सांस लेते हुए) वार्ड नंबर 23 में ही हुआ ।  सोचो तो-- ज़िन्दगी की शुरुआत यहीं से हुई । उस वक़्त पँजाब के बीचों-बीच पटियाला शहर के ब्लॉक 23 में हनारी रिहाईश रही ।
               रोड के साथ लगने के कारण हमारे निगम में भी खास अहमियत रही । मगर, जितनी इस वार्ड की अहमियत राजनीति कारों को थी उतनी मेरे लिए भी क्यूँकि ये भी वार्ड नंबर 23 में ही पड़ता था मेरा फ़ेवरिट नंबर-23  । लेकिन यह वार्ड उतना ही अविकसित भी था । वार्ड में आने पर ऐसा लगता था जैसे यहॉं के लोग अनदेखी का शिकार थे ।
         स्कूल में भी रोल नंबर 23 रहा । जब ग्याहरवीं का बोर्ड का इम्तिहान हुआ तो भी आखिरी दो डिजिट 23 ही रहे । रोल नंबर 29023 था ।
आगे की पढ़ाई दिल्ली में हुई । इत्तफ़ाक़ देखो खालसा कॉलेज में एडमिशन हुआ तो 23 जुलाई को ही फीस जमा हुई ।
जब कॉलेज आना जाना शुरू हुआ तो बस नंबर  23 सीधे इंद्रपुरी से मोरिस नगर खालसा कालेज जाया करती थी ।
मेरी मोटर साइकिल का नंबर भी यही निकला  DHY 23 ..
जब इतना कुछ कुदरत द्वारा ही होने लगा तो मेरी दिलचस्पी भी इसमें ही होने लगी ।
अब जो भी चीज़ लेनी होती तो दिलचस्पी 23 नंबर में ही होने लगी ।
एक दिन लाटरी का टिकट खरीदा ।  उस पर नंबर देखा तो वो भी 23.
सोचा कि देखते हैं कि लाटरी लगती है कि नहीं ?
ये सोच दिलचस्पी औऱ भी बढ़ गयी ।
रिजल्ट आया तो 1 करोड़ की लॉटरी मेरे नाम निकली । मन में कई अरमान पल रही थी सोचा पूरे लूँगा ।
             अब तलक मैं एम.बी.ए की पढ़ाई पूरी कर चुका था । लाटरी ने मेरा दिमाग एक दम बदल दिया था । अच्छी अच्छी कंपनियों की नॉकरी मैंने ठुकरा दी थी ।

          अब तक मुझे ये अहसास होने लगा था कि नंबर 23 मेरी जिंदगी का अब अहम हिस्सा है । अब मुझे ओर कुछ बड़ा करना है इसी धुन में दिन बीतने लगे ।

मैंने अपनी ज़िंदगी का रुख़ अब 'घोड़ों की रेस' की ओर मोड़ दिया ।
धीरे-धीरे मैं बर्बाद होता चला गया । यहॉं तक कि अब घर से पैसे मिलने भी बंद हो गये । पिता जी तो बहुत ही ख़फ़ा हो गए थे । मुझे देखते ही आग बबूला हो जाते थे ।
रेस का चस्का ऐसा लगा कि उधार इतना हो गया कि अब जूते पड़ने की नोबत आ गयी । पिता की गुडविल की वजह से जिन्होंने मुझे उधार दिया । अब वो तकाज़ा करने घर पहुंचने लगे ।
         आख़िर पिता जी ने एक दिन अचानक मुझे घर से निकाल दिया । घर से निकाले जाने का मुझे
इतना सदमा लगा कि मैं वो सह न सका ।

         उसके बाद का कुछ अर्सा मेरी यादाश्त से ही बाहर हो गया । जब मुझे अपने आप का अहसास होना शुरू हुआ तो मैंने अपने आपको आगरा के मानसिक अस्पताल में पाया । जिसे आओ लोग पागल खाना कहते हैं ।

                    देखो न !! वहां भी नंबर 23 ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा । मैं जहाँ दाख़िल था ! उसका नाम वार्ड नंबर 23 था । ये वार्ड उस अस्पताल का सबसे खतरनाक वार्ड था । चार साल वहाँ रहा ।
वहॉं भी मेरे कुछ दोस्त बने जो धीरे-धीरे ठीक हो रहे थे ।
जिस दिन मुझे छुट्टी मिली और मैं अस्पताल से बाहर आया तो मेरी दुनियाँ बदल चुकी थी । मैं बिल्कुल अकेला था । मेरे पास अब वही सामान था जो मुझे दाख़िल करते वक़्त जमा हुआ होगा । पैसों के नाम पर कुल तेहरह सौ रुपये ।

सवाल ये था कि कहाँ जाऊँ ? इसी धुन में में स्टेशन पहुँचा । अभी सोच ही रहा था किधर जाऊँ ?

चलते-चलते एक कुली से टकरा गया । उसने भी चलते चलते कहा भाई देख़ के चलो औऱ आगे बढ़ गया । मैंने उसे आवाज़ लगाई - हे भाई !

आवाज सुन वो पीछे मुड़ा औऱ बोला खाली नही हूँ। मैंने उसे रोका । मेरी नज़र उसके टोकन बैज पर पड़ी । फिर इत्तफ़ाक़ देखो वो भी नम्बर 23.
मैंने उसे आने साथ काम लगाने के लिए पूछा । उसने मना करते हुए कहा दिया कि अब कहाँ है साहब । बहुत मुश्किल है । कोई जगह खाली नही है पर मैं काम के लिए आपकी हेल्प कर सकता हूँ।
वो मुझे ले ताज एक्सप्रेस में चढ़ गया ।
उस गाड़ी में एक बुजुर्ग था जो चाय- चाय की आवाज़ लगा रहा था । उसके साथ उसने मिलवाया । उसकी सिफारिश से अब मैं यहॉं हूँ ।

लेकिन नंबर 23 जब जब मेरी ज़िंदगी में खुद आया तो फायदा हुआ लेकिन मैंने जब चाह कर लाने की कोशिश की तो बर्बाद हो गया ।

तभी दोस्त में हमेशा यही बोलता हूँ -- हर माल मिलेगा 10 रुपैया - हर माल मिलेगा 10 रुपैया ।

इतने में गाड़ी रुकी --सामने देखा तो पानीपत ।

राजेश ने अपना बैग उठाया और ट्रेन से नीचे उतरते हुए देख रहा था कि राजू भी साथ वाले डिब्बे से नीचे उतरा । 

राजेश की उससे बात करने की इच्छा थी । इसलिए उसे आवाज़ लगाई ।
वो पास आया तो राजेश ने  पूछा--- राजू ! तुम्हारा असली नाम क्या है ?

राजू ने हंसते हुए जवाब दिया-- राजू ही है सर !!
यही नाम है ।

ज़ोर देने पर राजू दर्द महसूस करते हुए बोला--राजू ही रहने दो साहब । अगर असल नाम बाहर आया तो दिल्ली शहर का बहुत बड़ा नाम बदनाम हो जाएगा सर ।

जाने दो -जाने दो !!

फिर मुलाकात होगी उसी ट्रैन में ।--राजू कहता हुआ और हाथ से बाय-बाय करता हुआ दूर निकल गया ।

--हर्ष महाजन

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12 comments:

  1. वाह लाजबाव सृजन

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय विनभारती जी💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(३०-१२ -२०२१) को
    'मंज़िल दर मंज़िल'( चर्चा अंक-४२९४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया ज्योति जी !!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरनीय

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  5. बहुत दिलचस्प हृदय स्पर्शी कथा।

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  6. बहुत सुन्दर रोचक एवं हृदयस्पर्शी सृजन।

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