Sunday, March 5, 2023

गद्दार

 

देव नगर, करोलबाग की तंग सकरी गलियों की मिट्टी में नंगे बदन पला बड़ा राजू अब 12 साल का हो चुका था । चेहरे से सांवला, मगर सुंदर, इकहरा बदन, और हमेशा मुस्कराते हुए शरारतों में माहिर तो था ही, मगर पढ़ाई में भी वो अव्वल ही आया करता था ।

उसे अपनी लयाकत से ही मशहूर स्कूल रामजस हायर सेकेंडरी स्कूल न०-5 में दाखिला मिला था ।

दिनचर्या के हिसाब से स्कूल से आते ही गली के बच्चों को इकट्ठा करने में उसे सिर्फ पांच मिनट ही लगते थे । एक अलग स्टाइल से वो एक ऐसी सीटी बजाता की सभी बच्चे बाहर आ जाते और उसका धमाल चालू हो जाता ।

उसके पिता नवल चंदोलिया जी का हुनर भी बाकमाल था वो किसी के यहाँ चप्पलें बनाने का काम करते थे और उनकी बनाई हुई जनाना चप्पल का कोई मुकाबला ही नहीं था । जब भी वक़्त मिलता तो राजू भी उनके साथ चप्पलें बनाने चला जाया करता था ।

वो कभी किसी को भी किसी काम के लिए मना नहीं करता था । छोटा होते हुए भी सबको दुआ सलाम करता चलता था । सभी उसे प्यार करते थे ।

उन दिनों राजू के इम्तिहान नज़दीक थे  तो राजू के पिता ने उसे पढ़ाई में ज्यादा ध्यान देने को बोला और अपने साथ चप्पलें बनाने के लिए ले जाने से कुछ दिनों के लिए मना कर दिया तो राजू ने पूछ लिया --"क्यूँ पिता जी ?"

उसके अनपढ़ पिताजी ने जवाब दिया--"ये देख तेरे स्कूल से मेरे नाम ये पत्र आया है नुक्कड़ के मास्टर जी ने बताया कि उसमें लिखा है कि इस हफ्ते बहुत पढ़ाई होगी । अपने बच्चों को कोई भी छुट्टी नही करवाना ।"--अपनी अलमारी में से उन्होंने एक लिफाफा निकाला और राजू को दिखाते हुए बोले --"ये देखो"

राजू ने उनके हाथ में रामसज स्कूल नंबर-5 का लिफाफा देखा और हैरान हो गया कि ये लिफाफा सिर्फ उसके पिता जी के पास ही क्यों भेजा? बाकि तो किसी दोस्त ने इस बारे में उससे कोई बात नही की ?

उस वक़्त राजू कुछ बोला तो नहीं लेकिन उसका दिमाग़ घूम गया कि ऐसी कौन सी शरारत की कंप्लेंट थी जिस वजह से उसकी शिकायत घर पर आयी पिता जी को? इसी सोच में रात को वो सो गया।

राजू जब सुबह उठा और उठते ही उसने पहले अपना टाइम टेबल चेक किया ।

उस दिन बुधवार था  और टाइम टेबल में बुधवार को संस्कृत पढ़ाई जानी थी ।  छह घंटे संस्कृत में सिर खपाना था । तैयार होकर सुबह जब वो बाहर आया ।

तो

उसने उसी वक़्त गली में आकर अपनी चिरपरिचित सीटी बजाई । उसकी क्लास के चार बच्चे फौरन बाहर आ गए राजू शरारती और चंचल था मगर उडको सब चाहते थे ।

बगल के घर से सुंदर सबसे पहले बाहर निकल के आया । वो भी शरारती बच्चों में से एक था । उसने आते ही राजू को बोला--"यार आज संस्कृत की पढ़ाई है । इसके लिए इतनी देर बैठना अपने बस की बात नहीं है यार ? कुछ करो न भाई?"

"अरे संस्कृत तो सबसे आसान है ? उसमें तो मजा आता है बल्कि?"--राजू ने समझाते हए कहा ।

पीछे-पीछे अजय, पुन्नू और दिनेश भी आ गए । उन्होंने भी यही कहना शुरू कर दिया -- "सुंदर, सही कह रहा है राजू भाई । तुम आज तो कुछ ऐसा करो कि संस्कृत से जान छूट जाए आज बस!"

"तुम सब बेवकूफ हो क्या? पंद्रह दिन बाद इम्तिहान हैं और तुमको मज़ाक सूज रहा है?"

"छोड़ो यार तुम इम्तिहान विमतिहान!!  बस, कुछ करो तुम"--पुन्नू ने जोर देते हुए कहा ।

"चलो देखते हैं ।"--राजू ने कहा और फिर पूछा-"यार तुम पहले मुझे ये बताओ कि तुम्हारे पापा को भी कोई स्कूल से लेटर आया है क्या?"

अजय एकदम बोला--"तुम्हें तो ज़रूर आया होगा न?"

"हाँ, पर तुम्हें कैसे पता?"

"अरे सभी होशियार बच्चों को लेटर भेजे हैं कि वो स्कूल बिल्कुल न मिस करें । क्योंकि उन्हीं बच्चों से स्कूल की रेपुटेशन बनेगी न?"

"ओह ! अच्छा !!!"

दिनेश चुपचाप खड़ा था । वो स्वभाव से बहुत ही सेंसेटिव था । छोटी-छोटी बातों को भी बहुत सोचता था ।  उसने भी सब की हाँ में हाँ मिलाई । वो भी बहुत होशियार था और राजू के नज़दीक ही उसके नंबर आते थे । छमाही में भी उसकी द्वितीय स्थान आया था । लेकिन उसके घर में स्कूल से कोई लेटर नहीं आया था । इस बात को भी उसने दिल से लगा लिया और उसकी आंखें नम हो गयी ।

ये देख राजू समझ गया कि दिनेश कुछ छुपा रहा है तो उसने उसको पूछ लिया कि क्या बात है ? काफी पूछने के बाद उसने बताया कि वो लेटर उसे क्यों नहीं आया ?

अजय ने जब उसे समझाया कि इस लेटर की बात उसने ऐसे ही बनाई है । इसकी कोई न कोई शिकायत ज़रूर हुई होगी बेवकूफ । हर बात तू दिल पे क्यूँ ले लेता है यार ?

पुन्नू ने जब अजय को पूछा--" तुमने बताया क्यों नहीं कि लेटर तो हमको भी आया था?"

"अरे यार वो दिनेश और भी परेशान हो जाता न?"

अजय के इतना समझाने से दिनेश ठीक हो जाता है ।

इम्तिहानों से पहले स्कूल में बड़े ज़रूरी पाठ पढ़ाये जा रहे थे । साथ सब्जेक्ट थे और सात दिन जाना था ।  पढ़ाई का आखिरी हफ्ता था । फिर उसके बाद हफ्ता भर छुट्टी--- !! फिर इम्तिहान शुरू थे ।

लेकिन उस दिन तो हद हो गयी ।  सुबह 7 बजे का स्कूल था । राजू जब सुबह उठा और उठते ही उसने पहले अपना टाइम टेबल चेक किया

उस दिन बुधवार था  और सच में टाइम टेबल में बुधवार को संस्कृत पढ़ाई जानी थी ।  छह घंटे संस्कृत में सिर खपाना था । वो सोच रहा था उसके दोस्त कह तो सही रहे थे । उसने अपने खुराफाती दिमाग़ को सक्रिय करने की कोशिश की ।

कुछ सोच कर अब वो मुस्कराने लगा था ।

उसने सभी दोस्तों को बोला कि वक़्त पर ही स्कूल पहुँचे और किसी को ये पता नहीं चलना चाहिए कि वो संस्कृत पढ़ने में इंटरेस्टेड नहीं हैं ।

राजू ने घर से एक कैंची उठाई और सुबह-सुबह उस पनवाड़ी की दुकान पर गया जिससे वो अपने पिता जी के लिए बीड़ी लेकर आता था और उसने उसकी सिगरेट सुलगाने वाली लटकी थोड़ी रस्सी काट ली औऱ उस वक़्त उसका दिमाग़ फूल खुराफ़ातिया दिमाग़ हो चुका था ।

सुबह स्कूल वो थोड़ा लेट पहुँचा तो मेंन गेट बंद हो चुका था ।  गेट पर बैठे चपड़ासी रामकिशन  ने अंदर आने से मना करते हुए कहा कि प्रिंसिपल साहब का हुक्म है कि किसी को भी लेट एंट्री नहीं देनी है ।

इतनीं बात सुन राजू मुस्कराने लगा ।

रामकिशन को बड़ा अजीब लगा और उसने राजू से पूछ लिया--"तुम मुस्करा क्यों रहे हो?"

राजू फिर मुस्कराते हुए बोला - "अरे मेरी ऐसी हिम्मत कि मैं तुम्हारे आगे मुस्कराऊं ? बस एक बार गणेश सर से पूछ लो कि राजू चला जाये घर?"

रामकिशन जब पूछ के आया तो आकर उसने गेट खोल दिया ।

जब राजू क्लास में पहुँचा तो पूरी क्लास के बच्चे बोल उठे---"आ गया, आ गया, आ गया"

संस्कृत के टीचर रमेश ने पूछा--"अरे बेटा लेट क्यों हो गए?"

"सर पिता जी की ताबियत ठीक नहीं थी । दवाई दिलवा कर आया हूँ"

राजू मुस्कराता हुआ अपनी सीट पर पहुंच गया ।

वाह बड़े फर्माबदार बच्चे हो, बहुत अच्छे ।

ये सुन सुंदर, अजय और पुन्नू अब राजु के खुराफाती दिमाग़ का करिश्मा देखना चाहते थे ।
सुंदर ने पुन्नू को दो-दो सौ रुपये के पांच नोट दिखाये और इशारा किया कि पांच मूवी की टिकट के पैसों का इंतजाम हो गया ।

क्लास चलते हुए पंद्रह मिनट हो गए । पुन्नू बेचैन होने लगा कि अभी तक तो कुछ भी नहीं हुआ । एक घंटा हो गया ।

चारो एक दूसरे की तरफ देखने लगे । सुंदर के दो सीट आगे दिनेश बैठा था उसे इशारा करते हुए सुंदर ने कहा--"राजू को तो हिलाओ ?"

अभी बातचीत करते-करते एक घंटा और बीत गया । अजय ने खुंदक से बोला-- "यार ये लोग झूठ क्यों बोलते हैं?"

अजय ने अभी इतना ही बोला था कि बड़ी जोर से ऐसा धमाका हुआ जैसे कोई गोली चली हो?

धमाका सुन सब स्तब्ध रह गए  । अध्यापक रमेश ने कुछ देर इंतज़ार कर फिर पढ़ाना शुरू किया । उसी वक़्त दूसरा धमाका हुआ ।

इस दूसरे धमाके का कुछ ऐसा असर हुआ कि सारे अध्यापक अपनी क्लासों से बाहर आ गए । कुछ ही सेकण्ड्स के बाद एक के बाद एक धमाके होने लगे । टीचर्स डर के मारे ड्राईंग रूम में दुबक गए ।
बच्चे इधर से उधर भागते नज़र आने लगे । इसी भगदड़ में दो तीन बच्चे गेट के बाहर से स्कूल ड्रेस में घुसे और स्कूल के कॉरिडोर में लगा घंटा बजा दिया । सारी क्लासेस के बच्चे स्कूल के बाहर की ओर भागे ।

सारा स्कूल लिबर्टी हॉल पर नून शो की कतार में था । स्कूल ड्रेस देख लिबर्टी के मैनेजर ने रामजस स्कूल के प्रिंसिपल को फोन लगा दिया ।

अगले दिन चार बच्चों के घर फिर स्कूल से लेटर पहुंचता है ।

दिनेश के घर अबकी बार फिर लेटर नहीं पहुंचता ।

राजू,अजय, पुन्नू और सुंदर चारों को एक-एक साल के लिये रस्टीकेट कर दिया जाता है ।

राजू के हाथ में जब एक साल के लिए रस्टिकेशन का लेटर आया तो उसे वो सारा सीन आंखों के आगे घूम गया ।

जब सबने राजू को घेर कर रिक्वेस्ट की कि उनको संस्कृत से उस दिन निजात दिला दे तो सबको वक़्त पर स्कूल जाने को कह राजू पनवाड़ी के पास पहुंचा । दिनेश का दिमाग भी तेज था । वो देखना चाहता था कि वो क्या करता है । वो भी उसके पीछे जा पहुंचा । राजू ने जब पनवाड़ी से रस्सी लेकर जैसे ही पीछे मुड़ा, पीछे दिनेश उसकी ओर देख कर मुस्करा रहा था । उसने उससे पूछा कि ये रस्सी किस लिये?
राजू ने उसे बताया कि वो छोटी छोटी रस्सी काटकर उसके साथ बम फिट कर देगा और धीरे-धीरे ये बम फटते जाएंगे ।

पनवाड़ी के दो छोटे भाइयों को ड्रेस अभी दे जाऊंगा और उसे पहनकर ये लोग स्कूल आएंगे और इशारा करने पर वो घंटा बजा देंगे । इतना सुन उसनेबाड़ी तारीफ की ।

इम्तिहान अपने वक़्त पर सम्पन्न हो गए ।

दिनेश उस साल स्कूल में सातवीं के चारों सेक्शनों में टॉप आने के बावजूद भी किसी ने उसे बधाई नहीं दी । न किसी टीचर ने न किसी बच्चे ने ।

रिजल्ट कार्ड लेकर जब वो स्कूल से निकला । उसे यूँ प्रतीत हो रहा था कि चारों तरफ से बच्चों की नजरें उसी पर टिक कर कह रहीं थी तू गद्दार है दिनेश !!!
💐💐💐

~~समाप्त~~

हर्ष महाजन

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यह कहानी एक काल्पनिक रचना है और इसमें दिखाए गए सभी पात्र और पात्रों के नाम,स्थान और इसमें होने वाली सभी घटनाएं पूर्णतया: काल्पनिक हैं । इस धारावाहिक का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या घटना या स्थान से समानता पूर्णत: संयोग मात्र ही हो सकता है । इस धारावाहिक का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति, धार्मिक समूह सम्प्रदाय, संस्था, संस्थान, राष्ट्रीयता या किसी भी व्यक्ति वर्ग , लिंग जाति या धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कतई नहीं है ।

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