Wednesday, March 1, 2023

तीन उचक्के

 



रामु ने अपने मॉलिक गुप्ता जी को साइकिलें साफ करते हुए कहा -" सर जी आप भी कमाल हो ! एक साईकिल खरीदते हो, वो भी कूड़े के भाव और दो साथ में उठा लाते हो । ये कैसे कर लेते हो आप? उन्हें बिल्कुल भी पता नहीं चलता क्या ?"

"अरे भई यही तो हमारा शफ़ा है बेटा । अगर ये पता चल जाये तो फिर हमें बड़े वाला 'वो' कौन कहेगा" --हंसते हुए गुप्ता जी ने कहा ।

"सर जी 'वो' मतलब, बड़े वाला 'उचक्का'??-------!!!"--मसखरी करते हुए रामू ने पूछा ।

"हा हा हा हा"--हंसते हुए गुप्ता जी बोले---"अरे ऐसे बोलते हैं क्या सबके सामने?"

"सर जी ये तीनों लड़के गोलू, टिंकू और कल्लू को आपने इन नए लड़कों के पीछे लगा रखा है । वे उन्हें साइकिल रोज  किराए पे लेने के लिए मनाने में कामयाम भी होंगे के नहीं ?"

"अरे होंगे क्यों नहीं? कमीशन का लालच भी तो है ?"

उस दिन फत्ते, दुक्की और भीखू का वहाँ दसवां दिन था ।

सात साल का फत्ते पतला छरहरा बदन मगर चंचल और बेपरवाह मगर खुंदकी स्वभाव व व्यक्तित्व । एक बार जो दिल से उतार जाए बस उसकी शामत । सुबह अपने ज़रूरी कामों से फ़ारग हो उसने अपनी वही आसमानी छेदों वाली निक्कर और टी शर्ट पहन अपने पापा के रूम की ओर बढ़कर उनकी दीवार पर लगी घड़ी को देखता है और बड़बड़ाता है--"हम्म नो बजने ही वाले है"

एक दो बार फिर उसने अपने पापा के रूम की ओर देखा । पापा वाशरूम जा चुके थे । वो फ़टाफ़ट उनके रूम में जाकर कुछ ही पलों में बाहर आ गया और अब वो मुस्करा रहा था । उसने जल्दी से अपने दो रंगी फ्लीट पहने, जिनमें आगे पीछे छोटे-छोटे छेद भी थे ।

घर से निकलते वक्त उसने माँ से कहा --"अम्मा आज दुपहरिया को इंतजार न करियो, थोड़ा काम है करके ही आऊंगा"

"अच्छा बेटा फिर भी जल्दी आ जाइयो"

"ठीक है अम्मा.....!!!"--कहते हुए फत्ते घर से गाना गुनगुनाता हुआ और मुस्कराता हुआ शादीपुर चौक की ओर निकल जाता है जहाँ वो तीनों रोज़ इसी वक्त मिला करते थे ।

उसके घर से यानी बलजीत नगर से शादीपुर चौक की दूरी लगभग एक किलोमीटर की थी ।

उसे दूर से ही अपने दोनों जिगरी दोस्त दिखाई दे रहे थे । वो पहले ही वहां पहुंच कर इसका इंतजार कर रहे थे ।

दुक्की आठ साल का थोड़ा मोटा रंग काला वो अपने बदन पर धारीदार अंडरवियर और सफेद बनियान पहने था । हमेशा हर मौसम में उसकी यही ड्रेस थी चाहे गर्मी हो या ठंड ।

गरीबों के लिए शायद सब मौसम बराबर ही होते हैं ।  बड़ा ही गुस्सैल स्वभाव का था । बिना सोचे समझे पहले कर देता है फिर बाद में सोचता है । लेकिन फत्ते से डरता था । इंसान के सामने से चीज़ ऐसे गायब कर ले मगर पता भी न चले । उसके हाथ में ऐसी जादुगरी थी ।

उसके साथ ही भीखू नो वर्ष थोड़ा लंबे कद का पतली हड्डी, नीले कुर्ते के नीचे काली पेंट ! वो भी कई जगह से फटी हुई । गले में मल्टी कलर का रुमाल । सर पर दो-रंगी टोपी, ऊपर से काली नीचे से लाल । गज़ब का जेब तराश । जेब का सामान किसी भी जेब में हो मिंटो में बाहर कर इधर से उधर रखने में मास्टर । लेकिन आजकल वो धंधा बन्द कर तीनों ने अपना ग्रुप बनाकर इकट्ठे धंधा शुरू किया था ।

तीनों दोस्तों में फत्ते सबका मास्टर था । उसी की सलाह पर तीनों ज्यादातर काम के लिए आगे बढ़ते थे ।

चौक पर पहुंचते ही तीनों एक दूसरे से तपाक से गले मिले ।

नज़रों ही नज़रों में उनकी बात हुई और फत्ते कनिंग हँसी हँसते हुए जेब से एक सो के नोट को थोड़ा सा ऊपर कर के दिखाते हुए इस तरह से पेश आता है जैसे सुबह-सुबह कोई जंग जीत कर उसने ये नॉट कमाया हो । नॉट देख दोनों ऐसे मुस्कराते हैं जैसे उनमें कोई एनर्जी आ गयी हो ।

दुक्की और भीखू दोनों कठपुतली कालोनी के माने हुए दबंग बच्चों में से थे । उसके इलाके में कोई भी बच्चा अगर सर उठाने की कोशिश करता तो ये दोनों अपनी दादागिरी से उसे अपने अंडर कर लिया करते थे । वहां की हर झुग्गी में इन दोनों द्वारा इधर-उधर से उठाया हुआ कोई न कोई सामान ज़रूर पड़ा था । क्योंकि ये जो भी सामान जहां से भी मौका मिलता उठा कर ले आते । पहले चोर बाजार में कोशिश करते बेचने की । अगर नही बिकता तो वहां जिसकी भी झुग्गी में जगह होती उसी में रख देते ।

तीनों को अपने इलाके में सबने लफंगों की उपाधि से नवाजा हुआ था ।

शादी पुर चौक से तीनों ने गीता कॉलोनी जाने के लिए पहले 740 नंबर की बस पकड़ी और मेंन रोड पर उतर कर रिक्शा कर गीता कालोनी उसी जगह साइकिल की दुकान से थोड़ी दूरी पर खड़े होकर उन लड़कों का इंतजार करने लगे जिस दुकान से वो तीनों लोकल लड़के रोज किराये पर साईकिल लिया करते थे ।

इन तीनों को उस दिन गीता कालोनी आते हुए और उनके साथ साइकिल पर साथ घूमते हुए दसवां दिन था । टारगेट पक्का हो चुका था ।  अब एक्शन की तैयारी करनी थी ।

वहां खड़े हुए अभी कुछ देर ही हुई थी कि फत्ते की नज़र ने उन्हें दूर से ही पहचान लिया और अपने दोनों साथियों को भी चौकन्ना कर दिया और उन्हें समझाने लगा-- "देखो वो आ रहे हैं । उन्हें पता नहीं लगना चाहिए कि हमने उन्हें देख लिया है । समझे?

फत्ते ने अपनी जेब से कुछ कंचे निकाले औऱ बाकि दोनों को भी थोड़े-थोड़े पकड़ा दिए । फिर वहीं ज़मीन में एक  पिल्लू ( घुच्चिक) बना कर उनको दिखाने के लिए खेलने लगे ।

वो तीनों वहां के लोकल बच्चे थे वो जब पास से गुजरे तो उनमें से एक ने अपने साथी से कहा--"अबे टिंकू? यार ये तीनों लड़के फिर आज आ गए?"

हाँ कल्लू ये तो अब रोज ही यहाँ मिलते हैं ? लगता है ये नए आये हैं कालोनी में ।

गोलू थोड़ा आगे आता हुआ दुक्की से पूछते हुए-- "तुम यहीं आसपास रहते हो क्या?"

"हाँ हम वहॉं डी ब्लॉक में नए आये हैं । खेलने के लिए वहां कोई निकलता ही नहीं इसी लिए इधर ही आ जाते हैं"-- "दुक्की कंचे मास्टर लाइन से पिल्लू की ओर फैकता हुआ बताता है ।"

वो तीनों बच्चे थोड़ी देर वहीं खड़े-खड़े उनकी गेम देखते हैं ।

"चलो यार फिर साइकिल वाला गुप्ता लंच पर चला जायेगा यार?"--टिंकू ने गोलू का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचता हुआ बोला ।

चलते-चलते गोलू ने फत्ते से पूछा-- "क्या आज तुम हमारे साथ साइकिल के लिए नहीं चलोगे क्या?"

भीखू लापरवाही से बीच में ही बोला--"भाई तुम तो मजे से चला लेते हो और हम पीछे-पीछे भागते रहते है तो थक जाते हैं । आज तुम जाओ चला लो और फिर यहीं आ जाना "

गोलू फिर बोला--"चलो न दोस्त? इकट्ठे चलते है मजा आएगा"

टींकू, गोलू को साइड में ले जाकर  कहने लगा--"छोड़ो न उसको? क्यों टाइम बर्बाद कर रहे हो? चलो ...!!!"

गोलू ने उसको कान में समझाते हुए कहा-- "अरे पागल वो हमारा किराया रोज देता है । गुप्ता जी की कमीशन भी हाथ से निकल जायेगी? समझा करो ।  जब तक चलता है तो चलाने में क्या हर्ज है?"

फिर गोलू टिंकू और कल्लू , तीनों ने सिर मिलाकर थोड़ी सलाह की ओर फिर गोलू ने फत्ते से कहा--"तुम भी औऱ हम भी आज से  हम सारे अलग-अलग साइकिल लेकर चलाएंगे.....!! ठीक है?"

फिर भीखू बोला-- "यार हमसे तो वो सिक्योरिटी रखने को बोलता है?"

कुछ सोचते हुए गोलू बाकि दोनों की तरफ देखता हुआ फिर बोला--चिंता मत करो तुम, आज से तुमसे वो सिक्योरिटी नहीं मांगेगा ।

थोड़ी देर में छह साइकिलें गीता कालोनी की सड़कों पर औऱ आसपास घूमने लगीं । साइकिलें जमा करवाते वक़्त फिर सबका किराया फत्ते ने दिया और वापिस चल दिए ।

दुकान मॉलिक गुप्ता जी ने गोलू को पूछा--"अरे ये नए लड़के कौन हैं जो तुम्हारे साथ आते हैं । पैसे वाले हैं क्या?"

"हमारे पड़ौस में नए आएं है अंकल, हाँ पैसे वाले तो हैं । कबाड़ का बहुत बड़ा काम हैं इनके बापू का"

"अच्छा? ....!!!पर तो यूँ ही पहन रखे इन्होंने?"

"अरे बताया न कबाड़ का काम है इनका"--गोलू को कोई जवाब नहीं सूझा तो कह दिया ।

फत्ते दूर खड़ा उनकी ये वार्तालाप सुन रहा था । गोलू पास आया तो फत्ते ने पूछा--"क्या कह रहा था?"

"अरे ऐसे ही बस----अच्छा याद आया !!! तुम्हारे पिता जी काम क्या करते हैं?"

"कबाड़ का बिज़नेस है न"

"ओ तेरे की?---!!! यही तो बतोला मारा मैनें गुप्ता जी के साथ तुम्हारे बारे में?"

"क्या मतलब?"

"छोड़ो अब !! सब ठीक हो गया !!!"

फत्ते अपने साथियों को देख मुस्कराता है ।

भीखू औऱ फत्ते ने दूर से दुकान के मॉलिक गुप्ता जी को राम-राम की, और बाहर निकल गए ।

जब इसी तरह आते-आते चार पांच दिन हो गए तो फत्ते ने उसके बाद एक दिन औऱ भी जल्दी जाने का प्रोग्राम बनाया और गुप्ता जी की दुकान पर साइकिल लेने पहुंच गए। दुकान यो खुली थी पर गुप्ता जी अभी घर से नहीं आये थे ।
फत्ते दुकान में गया और गुप्ता जी के चेले को बोला-- "गुप्ता जी नहीं आये अभी?"

"आज वो थोड़ा लेट आएँगे, आज तुम जल्दी आ गये साइकिल लेने?"

"हाँ आज स्कूल की छुट्टी थी हमने सोची जल्दी चला लेते है आज  धूप से भी बच जाएँगे"

"चलो ले लो आप चुन लो जो लेनी है । रोज ही तो लेते हो ।"

बस फिर क्या था । तीनों ने नई-नई तीन साइकिलें चुनी और दो तीन चक्कर उस दुकान के आसपास लगाए फिर ये गए और वो गए----!!!
थोड़ी ही देर में वो आई०टी०ओ पार कर गए ।
वहां से उन्होंने अजमेरी गेट का रुख किया फिर वो लालकिले के पीछे निकल कर चोर बाजार पहुंचे और एक हजार में तीनों साइकिलों का सौदा कर लिया और बेच वो सीधे शादीपुर चौक पहुंचे और पहले भठूरे वाले से एक-एक प्लेट भठूरे लिए औऱ तबियत से पेट भर कर खाएं ।

उसके बाद फत्ते ने दुकान से निकल शादीपुर मेट्रो स्टेशन के नज़दीक जाकर रुक गए और कहा --"यहीं बाँट लेते हैं । लेकिन पहले तुम्हें मैं हिसाब बता दूं ।"

दुक्की और भीखू ने भी आगे आकर फत्ते के साथ सिर जोड़ लिया। तब फत्ते ने बताया --"मेरे रोज के दस रुपये औऱ तीस टका ब्याज ।  एक महीना हो गया चलते हुए तो तीन सो हो गए मूल के । संग ब्याज होई गया सो रुपये । टोटल हो गया चार सो । अब लगा लो के तीन बार मुझे पिता जी ने  जेब से दस रुपये निकालते हुए पकड़ लिया ।  पचास रुपये की मेरी धुनाई । तीन बार के हो गए डेढ़ सो । अब टोटल हो गए साढ़े पांच सो । अब उसने पहले एक हजार से साढ़े पांच सो रुपये निकाल कर अपनी जेब में डाल लिए  और बाकि जो बचे वो थे साढ़े चार सो । अब साढ़े चार सो का बंटवारा करने के लिए जैसे ही फत्ते झुका--तो दुक्की और भीखू की नजरें आपस में टकरायीं । भीखू ने दांत भीचते हुए दुक्की को कहा- 'इसे आज कूट देंगे?"
जैसे ही दुक्की ने झुके हुए फत्ते को मारने के लिए हाथ उठाया तो फत्ते ने उठते हुए दोनों को डेढ़ डेड सो रुपये हाथ में दिए और उनको वार्निंग देते हुए कहा कि--"जो तुम्हारे मन में चल रहा है न? इसे भूल जाओ । वरना इस सड़क का रास्ता ही भूल जाओगे, समझे?"--कहते हुए फत्ते ने सड़क पार की और जाते-जाते फ़िर कह गया--"कल का नोएडा के प्रोग्राम है वक़्त पे आ जाना ?"

💐💐💐
गुप्ता जी  अपनी दुकान पर रिक्शा ले के पहुंचे तो अपने एम्प्लोयी को आवाज लगाते हुए बुलाया --अरे हो रामू ?"

"जी सर जी?"

"ये लो आज अपनी दुकान के लिए तीन साइकिल और लाया हूँ। बिल्कुल सेम टू सेम हैं । सिर्फ बारह सो में नई की नई । पर पैसे एक के दे के आया हूँ । सिर्फ चार सौ । अब छह का एक सेट ही अलग हो गया हमारे पास । अच्छा चूना लगा के आया हूँ आज मैं उसे ।"---गुप्ता जी हंसते हुए अंदर अपनी सीट के पास जा खड़े हुए ।

रामु ने बिना उनकी बात की ओर ध्यान दिए उन्हें बताया कि वो तीनों लड़के किराये पर साइकिल लेने के लिए आये थे और आकर तीन साइकिलें ले गए थे । ढाई घंटे हो चुके हैं अभी तक तीनों ही वापिस नही आये ।

"क्या कहा?  वापिस नहीं आये?"---गुप्ता जी ने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा---"लगा गए चूना ?"

गुप्ता ने उसे डांटते हुए बोला--"पहले क्यों नहीं बताया ? उनके दोस्तों को पूछा था क्या ?

"लेकिंन आपके वो तीनों लड़के भी आज कहाँ आए?"

"नहीं आये? उनको तो वक़्त पर ही छोड़ दिया था मैनें? वो क्यों नहीं आये?"

"मतलब ? वो आपके साथ थे?---रामू साइकिलों पर नज़र दौड़ाता हुआ ।

साइकिलों को चैक करते हुए रामू ने चीखते हुए कहा-- "सर जी ये तो वही साइकिलें हैं हमारी वाली । जो वो लड़के किराये पर ले गए थे?"

"ओह नो----!!!!!"--सर पर फिर हाथ मारते हुए गुप्ता जी धड़ाम से कुर्सी पर जा बैठे ।

रामु फिर बोला-- "सर जी वो उचक्के तो आपसे भी बड़े उचक्के निकले?"
💐💐💐
क्रमशः

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