Friday, July 9, 2021

ज़िगरी दोस्त

 

जिगरी दोस्त
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"लाला एक पाव मसूर की दाल देना"-- हरि को एक सुरीली आवाज  आई ।

हरि अभी दुकान में झाड़-पोंछ कर ही रहा था सुबह सुबह--

पीछे मुड़ के देखा तो अपने मोहल्ले में ही काम करने वाली कान्ता सामने खड़ी थी ।

उसने इंतज़ार करने को बोल हरि ने काम निपटा, धूप बत्ती जलाई । उसे दाल तौल के दे दी । पैसे लिए -- माथे से लगाये और गल्ले में डाल दिये ।

और गद्दी पर आकर बैठ गया ।

सुबह कई ग्राहक यूँ छूट-पुट सामान लेने आते रहे । इतने में सामने की गली से एक बुजुर्ग एक छोटे बच्चे को जबर्दस्ती खींचता हुआ ला रहा था ।

पास आया तो पता लगा कि वो बच्चा शायद स्कूल न जाने की जिद्द कर रहा था

इतने में वो उसकी दुकान के नज़दीक आ गया । यहीं पर उसके रिक्शे ने आना था । रिक्शा जैसे ही आया बच्चा ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा ।

आख़िर उस बुज़ुर्ग ने बच्चे से कहा- "बेटा पढ़ेगा तो बड़ा आदमी बनेगा न । नहीं तो मेरे जैसा ही बनेगा ?  या  फिर रेहड़ी  लगाएगा क्या ??"

नादान बच्चे को क्या मालूम कि वो क्या कह गए ।

वो बुज़ुर्ग उसको रिक्शा में बिठा चला गया ।

हरि अपनी पुरानी यादों में खोता चला गया । बुज़ुर्ग की बातें उसके मस्तिक्ष में छाने लगी ।
पुराने दिन--क्या मस्ती भरे दिन थे---हर विदा में  नाम था । क्रिकेट में अच्छा बॉलर था । आवाज़ इतनी अच्छी सभी दीवाने थे । पार्टियों में गाने गाकर छा जाया करता था ।

वर्ष 1973 -- वो ग्याहरवीं कक्षा में था ।
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उस दिन वो छत पर अपने बोर्ड के  इम्तिहान की तैयारी में मशगूल था कि अचानक उसका दोस्त राजेश साथ वाली छत से दीवार फाँद कर आया और बोला - "चल हरि खड़ा हो लिबर्टी पर बॉबी फ़िल्म लगी है । ताबड़ तोड़ फ़िल्म है सुना है बहुत ही बेहतरीन फ़िल्म है ।"

"नहीं यार"-- हरि ने मुँह बनाते हुए कहा--"इम्तिहान सर पे हैं मुझे कुछ नहीं आता । अब सब मटरगश्ती खत्म"

कह हरि फिर अपनी पढ़ाई में लग गया ।

राजेश ने उसे फिर कहा - "तू समझ नहीं रहा । मैं टिकट ले आया हूँ। बड़ी मुश्किल से मिली हैं । आजकल टिकट की ब्लैक चल रही है । लेकिन मैं तेरी खातिर ले आता हूँ।  तीन घंटे की ही तो बात है । फ़िल्म देख के सीधे घर ही आ जाएँगे । तुम आकर देर रात तक पढ़ लेना फिर । तेरा दिमाग तो अच्छा है ही"

दिमाग की बात तो तब होगी न जब मैं पढ़ूँगा ?

लेकिन हरि के मन में भी चोर जागने लगा और सोचने लगा कि बॉबी फ़िल्म दुबारा पता नहीं कब लगेगी । चलो देख ही लेते हैं ।

राजेश को अब चिढ़ होने लगी औऱ फिर बोला- "देख हरि ये दोस्ती है क्या? वक़्त पड़ने पर दगा दे तू ? चल उठ"

कह राजेश ने बांह से पकड़ उसे उठा दिया ।

फ़िल्म देख़ दोनों मस्ती मारते हुए रात गयारह बजे घर पहुँचे ।

आगे की तरह पिता जी से डाँट खाई और सो गया ।

अब ये सिलसिला होना उसके साथ आम सी बात थी । राजेश उसका जिगरी दोस्त था । उसकी बात टालने की उनकी कभी हिम्मत न हूई । राजेश भी कभी उसकी बात नहीं टालता था ।

इसी आपादापी में, वक़्त रेत की तरह हाथ से फिसलता जा रहा था । इम्तिहान की तैयारी पीछे छूटती जा रही थी ।

राजेश के पिता का तो बहुत ही बड़ा बिज़नेस था । कपड़े के जाने माने व्यापारी थे । पैसे की कोई कमी नहीं थी ।

कमी तो हरि को भी नहीं थी लेकिन फिज़ूल खर्ची से बचने की कोशिश करता था ।

इम्तिहान वाले दिन हरि बहुत घबराया हुआ था । वाणिज्य का इम्तिहान औऱ उसे ऐसा लगता था कि जैसे उसे कुछ नहीं आता था । छमाही इम्तिहान में  फेल होने जैसे ही नंबर आये थे । इस बार किसी तरह वो अच्छे नंबरों से पास होना चाहता था । पढ़ के वो कुछ बनना चाहता था । स्कूल जाते हुए  रास्ते में उसे राजेश मिला ।

उसने उसे समझाया - "घबराओ मत सब ठीक हो जायेगा ।"

राजेश का सेंटर दूसरे स्कूल में था । वो बेफिक्र सा अपनी साइकिल पर फर्राटे से निकल गया ।

किसी तरह इम्तिहान खत्म हो गए ।

2 जून 1973

उस दिल रिजल्ट आना था । स्कूल पहुंचे तो वहॉं भीड़ लगी थी । हरि एक तरफ खड़ा हो गया । दिल घबरा रहा था ।

अचानक पीछे से आवाज़ आयी -- "मुबारक हो भाई"

मुड़ के देखा तो उसकी  क्रिकेट की टीम का कप्तान राहुल था ।

उसके गले लग के उसने उसको भी बधाई दी ।

आगे बढ़ के उसने फिर ख़ुद अपना रिजल्ट देखा ।

वो पास था ।

लेकिन नंबर 54 प्रतिशत ही थे ।

वो सोच रहा था कि बिना पढ़े इतने नंबर आ गए । अगर पढ़ लेता तो अच्छे नंबर आ जाते ।

इंजीनिरिंग करने का ख्वाब पाला था उसने ।

शाम को राजेश मिला उसके 62 प्रतिशत मार्क्स थे । ये सुन हरि को अंदर से महसूस हुआ कि इसी की वजह से तो उसके नंबर कम आये थे ।

रात को उस दिन फिर दोस्तों ने जश्न मनाया । हरि के मन में ठेस थी । उसने कई पुराने ग़मगीन गाने सुनाए । लेकिन महफ़िल में फिर भी चार चांद लग गए ।

कॉलेजों के फार्म भरे जा रहे थे ।
बड़ी मशक्कत के बाद  तीसरी लिस्ट में साऊथ के एक कॉलेज "रामलाल आनंद कालेज"  में बी.काम (पास) स्ट्रीम में उसे एडमिशन मिल गया ।

राजेश को नार्थ के "खालसा कॉलेज" में बी.काम (आनर्स ) में एडमिशन मिल गया ।

दोनों ने कॉलेज जाना शुरू कर दिया । हुनर के चलते एक साल के भीतर-भीतर हरि का नाम कॉलेज के हर विद्यार्थी की ज़ुबाँ पे था ।

क्रिकेट के मैचों की वजह से फिर हरि औऱ राजेश की मुलाकातें होने लगीं । राजेश खालसा कालेज की टीम में सेलेक्ट हुआ था ।

हरि के प्रति उसके कॉलेज के विद्यार्थियों की निष्ठा देख़ अब राजेश को भी रश्क होने लगा । लेकिन वो ख़ुश था कि हरि की वजह से उसको भी लोग अब जानने लगे थे ।

अब कभी म्यूसिक की वजह से तो कभी क्रिकेट की वजह से, तो कभी कॉलेज के कई और क्रिया-कलापों की वजह से हरि के लेक्चर मिस होने लगे थे ।

इम्तिहान के दिनों में भी कभी-कभी मैच की प्रैक्टिस के लिए बुला लिया जाता ।

फिर रातों को देर रात तक पढ़ाई ।

वक़्त फिर हाथों से खिसकना शुरू हो गया । कोर्स ज़ियादा वक़्त कम । दिमाग अच्छा होते हुए कहाँ चूक ही रही थी हरि को ये सब समझ तो आता था लेकिन देखते देखते वक़्त खिसकता ही चला जाता था । 

न चाहते हुए भी पार्टियों  में उसे बुलाया जाना । क्योंकि उसके बिना पार्टियों में रौनक ही नहीं होती थी ।

कॉलेज में मशहूर होकर भी वो सब कुछ जैसे खोता चला गया ।

एक तरफ इतना आउट स्टैंडिंग स्टूडेंट के ढ़ेरों सर्टिफिकेट्स दूसरी तरफ स्टडी में गिरता ग्राफ ।

धीरे-धीरे कॉलेज के आखिरी साल औऱ आख़री महीनों में सभी स्टूडेंट अपनी अपनी पढ़ाई में व्यस्त होते चले गए । मिलना मिलाना कम होता गया ।

हरि ने सोचा था अब जाकर लेक्चररों से कुछ हेल्प ले लूंगा । लेकिन जब स्टूडेंट्स ने आना बंद कर दिया तो भी अब कम ही आते थे ।

धीरे-धीरे उसे वक़्त की नज़ाक़त का अहसास होने लगा था लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।

फाइनल इम्तिहान हुए । फिर वही 54 परसेंट मार्क्स ।

राजेश बड़ा ख़ुश था 72% मार्क्स लेकर पास हुआ ।

इतने में जोर से हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी वो (हरि) अपने ख्वाबों से अचानक बाहर निकला ।

उसकी दुकान के सामने एक बहुत बड़ी सफेद रंग की आड़ी गाड़ी आकर खड़ी हुई । बार-बार हॉर्न की आवाज ने हरि का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया  ।

दरवाजा खुला एक कोट पेंट में एक अंग्रेज की तरह इंसान बाहर आया । पहचानते देर नहीं लगी ।
वो राजेश ही था ।
दोनों बड़ी गर्म जोशी से मिले । हरि उसे आने घर ले गया । पुराने दिन याद करते हुए उन्होंने आज पार्टी देकर जश्न किया ।

लेकिन आज जश्न में वो मज़ा नहीं था जो उन दिनों आया करता था । आज दोनों ने शराब पी । दोनों की वजह अलग अलग थी ।

राजेश खुशी में पी रहा था  और हरि अपनी नाकामयाबी पर ।

फिर वह दर्द भरे नग्में ।

अपना गोल न पाने की कसक ।

पूछने पर----
राजेश ने बताया-कि कॉलेज करने के बाद वो अमेरिका चला गया । वहीं एम.एस. किया । थोड़ी देर जॉब की  । फैमिली को वहीं बुला लिया था । अब  वहीं पर  पापा का बिजनेस फल फूल रहा है मैं वही सब देख रहा हूँ ।

"तुम बताओ जैसे गुज़र रही है ?" --राजेश ने हरि के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा ।

  मत पूछ दोस्त--मेरा वक़्त औऱ मेरा कॅरिअर रेत की तरह मुट्ठी से फिसलता ही चला गया । देख लो पापा की परचून की दुकान फर्राटे से चला रहा हूँ।

ये कह हरि ख़ुद ही जोर से हा हा हा कर हँसने लगा ।

लेकिन उसकी हँसी में उसकी रज़ा बिल्कुल भी शामिल नहीं थी ।

----हर्ष महाजन

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5 comments:

  1. Replies
    1. ज़र्रानावाज़ी जा शुक्रिया !!

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  2. बहुत बहुत आभार आपका आदरनीय

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