Thursday, May 28, 2015

दर्द के रिश्ते



एकांकी श्रंखला - 1

आज एक वृत-चित्र पेश करने से पहले इस कहानी का सार देना चाहता हूँ क्युकि वृत-चित्र के एकांकी के एपिसोड में भी उनके कुछ छोटे-छोटे हिस्से पेश किये जायेंगे जिस से आप कहानी का मर्म समझ सकें | एक-एक कर वो सभी एकांकी सीरीज धीरे-धीरे यहाँ पेश करूंगा | ये वो सीरीज हैं जो दूरदर्शन में पूरे सीरियल के लिए जमा हुए थे और पास भी हुए मगर किसी कारण वश यथावत स्थान न पा सके | आज आपके समक्ष उनकी कुछ-कुछ झलकियाँ प्रस्तुत हैं उनके सारांश सहित , आपका स्नेह पाने के लिए आपके हवाले |


            सारांश
                                 हर्ष महाजन                   
              दर्द के रिश्ते



             

                ये कहानी दर्शाती है की इंसान चाहे किसी भी मज़हब का हो, अमीर हो , गरीबी हो, इंसान तो इंसान ही है और उससे ऊंची है इंसानियत जो रिश्तों को कायम करती है इंसानियत और प्यार वो कड़ियाँ हैं जो सब रिश्तों से सब मजहबों से ऊपर है और यही इस दुनिया को कायम रखे हुए है | कहानी एक ऐसे पात्र की है जिसने कभी भूले से भी किसी को भी दुःख नहीं पहुँचाया | परन्तु भाग्य ने उसके भाग्य में सारे दुःख लिख दिए थे | राज मेहता , अपनी पत्नी विम्मी, माँ एवं दो अच्छों साक्षी व् शिखा के साथ सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा है | राज मेहता एक सफल बिजनस में है और घर में सभी प्रकार की सम्पन्नता मौजूद है | 

                     राज मेहता के एक जिगरी दोस्त अमज़द बेग की बिन ब्याई पत्नी थी अंजना बेग | अमजद बेग दस साल पहले एक्सीडेंट में मारा गया था | मरते-मरते अंजना बेग की ज़िम्मेदारी राज को सौंप गया था | अमजद बेग के देहांत के समय अंजना बेग गर्भवती थी | राज ने अपने दोस्त को दिए वचन को निभाने के लिए अंजना बेग को सभी सुविधाएं मुहैया करवाई | यहाँ तक कि उसके बच्चे के स्कूल के दाखिले के समय उसे अपना नाम तक दिया |
               एक बार अंजना बेग का लड़का इमरान जो की देहरादून के किसी स्कूल में पढता था | छुट्टियों में अपनी माँ से मिलने के लिए आना चाहता था और उसे लेने के लिए राज़ अपनी पत्नि मिनी से यह कह कर वह किसी ज़रूरी काम से बाहर जा रहा है | इमरान को लेकर अंजना के पास आता है लेकिन अचानक इमरान की तबियत खराब हो जाती है | उसके ईलाज की वजह से परेशान राज कई दिनों तक अपने घर संपर्क नहीं कर पाटा | लेकिन इस बीच वह लगा तार अपने आफिस जाता रहता है |
उसकी कोई सूचना न मिलने के कारण परेशान मिनी एक दिन आफिस चली जाती है | और उसे पता चलता है कि राज़ मेहता इसी शहर में है और रोज़ आफिस अ रहा है | अचानक मिनी की चाकर आते हैं और वह गिर पड़ती है |
                      इस घटना के बाद विन्नी की तबीअत लगातार गिरती जाती है | विम्मी को चेक अप के लिए डॉ के पास ले जाया जाता है जहां पता चलता है कि उसे ब्रेन ट्यूमर है | काफी ईलाज के बावजूद विम्मी बाख नहीं पाती और एक दिन उसका देहांत हो जाता है | उसके देहांत के बाद राज़ काफी टूट सा जाता है | उसके दोनों बच्चों के चेहरे से हंसी समाप्त हो जाता है | बच्चों का चेहरा और राज़ की हालत देखकर उसकी माँ उसे दूसरी शादी के लिए कहती है जिसके लिए वह राजी नहीं होता \| दूसरी तरफ अंजना बेग तराज़ से साफ़-साफ कहती है कि वह क्यूँ नहीं उस से शादी कर लेता ? जबकि उसने सिवाय अपनी रातों के वो सभी हक दे रखे हैं जो एक पत्नि को मिलने चाहिए | राज इसके लिए राजी नहीं होता और अपनी माँ की धार्मिक कट्टरता का वास्ता देता है | अपनी मान के काफी जिद्द करने के बाद राज शादी करने के लिए राजी हो जाता है और उसकी शादी आशा नाम की लड़की से हो जाती है जो एक गरीब परिवार से है | आशा एक सुशील लड़की है और नए घर में आते ही वह सारे घर अपना जादू कर देती | बच्चे शुरू में तो थोडा झिझकते हैं परन्तु बाद में वे भी उसे इस हद तक चाहने लगते वे एक दुसरे के बिना नहीं रह पाते |
                     आशा की छोटी बहिन मंजू जो कालेज में पढती है , की दोस्ती कुछ आवारा लड़कों के साथ है | जिस वजह से आशा उसे काफी डांटती रहती है | मंजू का एक दोस्त है विक्की , जो ऐयाश और बदमाश किस्म का लड़का है |

                      मंजू एक बार अपनी बहिन आशा के यहाँ आती है | जहाँ वह अपनी चुलबुली बातों से हंसी का माहौल बनाती है जिस कारण वह सकी चहेती बन जाती है | मंजू वापिस आकर वहाँ इ सब बातें अपने दोस्त विक्की को बताती है | उसकी बातें सुन कर विक्की राज के दोनों बच्चों को अगवाह करने की एक योजना बताता है लेकिन इसका पता मंजू को नहीं लगने देता |

                    एक दिन मौका पाकर विक्की दोनों बच्चों को अगवा कर लेता जय और दुसरे शर ले जाता है जहां से करीब एक हफ्ते बाद संपर्क करता है और फिरौती की रकम की मांग करता है | पोलिस अपना जाल बिछाती है और विक्की के साथी को गिरफ्तार कर लेती है | विक्की का साथी ज़हर का केप्सूल खाकर अपनी जान दे देता है | अपने साथी की गिरफ्तारी की खबर सुनकर विक्की घबरा जाता है और यह फैसला करता है कि वह चुपचाप इन दोनों बच्चों को मार देगा और वापिस अपने शहर काला जाएगा | जिस से किसी को उसके इस काले कारनामे की भनक नहीं लगेगी |
                   विक्की एक दिन दोनों बच्चों को एक रेलवे लाईन पर लिटाकर चाकुओं से गोदकर भाग जाता है | लेकिन शायद भाग्य को कुछ ओर ही मंज़ूर था दोनों बच्चों में जान शेष रह जाती है और उन पर लोगों की नज़र पड जाती है जो समय रहते उन्हें अस्पताल में भरती करवा देते हैं | उनकी स्थिति काफी नाज़ुक थी | उस अस्पताल में राज मेहता की बहिन और उसका पति डॉ थे | वे दोनों ही बच्चों को देखकर पहचान जाते हैं और चौंक जाते हैं | वे राह मेहता को खबर करते हैं | राज और आशा अस्पताल पहुँचते हैं उधर बच्चों की खबर सुनकर अंजना बेग भी अस्पताल पहुँच जाती है | वहाँ डॉ राज से कहते हैं बच्चों की स्थिति बहुत खराब है और “ओ नेहेटिव” ग्रुप खून की ज़रुरत पड़ेगी | उस्ला इन्तिजाम करें | अस्पताल में जितना भी खून था इन बच्चों को दिया जा चूका है | बच्चों की हालत को देखते हुए अस्पतान में मौजूद हर शख्स अपना खून देने के लिए तैयार हो जाता है लेकिन किसी का भी खुन उनसे मिलान नहीं करता | स्थिति काफी खराब हो जाती है | तभी अंजना बेग कुछ फैसला करती है और राज से कहती है कि खून की वजह से उसके बच्चे नहीं मरेंगे | वह वहाँ से इमरान के स्कूल फोन करती है और प्रिंसिपल से इमरान को फ़ौरन अस्पताल भेजने के लिए कहती है | इमरान के पहुँचने से पहले ही साखी मृत्यु हो चुकी थी | साखी की लाश को देखते ही आशा के मुँह से एक चीख निकलती है और चीख के साथ आशा साक्षी की लाश पर ढेर हो जाती है और प्राण त्याग देती है |
                तभी स्कूल का प्रिंसिपल इमरान को लेकर अस्पताल पहुँचता है | अंजना इमरान को लेकर आपरेशन थियेटर के बाहर पहुँचती है और डॉ श्रीवास्तव को इमरान का खून चेक करने के लिए कहती है | इमरान का खून मैच कर जाता है और इमरान अपना खून शिखा को दे देता है |
खून देने के बाद जब इमरान आपरेशन थियेटर से बाहर आता है उस समय अंजना बेग नमाज पढती हुई दुआएं मांग रही होती है | इमरान पीछे से अंजना के कंधे पर हाथ रख कर कहता है अम्मीजान मैं आ गया | और उसे शिखा के ठीक होने का समाचार सुनाता है और पूछता है -“माँ , मैंने किसे खून दिया है” | उसकी बात सुनकर माँ उसे सीने से लगाकर कहती है, “बेटा यह तेरी अनकही बहिन है “ | जिसे तूने ज़िंदगी दी है |  

      _______________________________________________  ..........  क्रमश:
                           


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contd.............

Sunday, May 17, 2015

विश्वास

                    



------------राजू छठी कक्षा में पढता था | स्कूल से छुट्टी होने के पश्चात वह प्रतिदिन घर की तरफ जाते हुए आधे रास्ते में ही चौक के बाईं ओर बनी भगवान् राम की मूर्ती पर अपने फुट्टे से चोट मारता और उसी रास्ते पर आये एक छोटे से तालाब के पास थोड़ी देर रुकता , घूरता और कंकड़ फेंकता हुआ घर पहुंचता | वह ज़िन्दगी में सब कुछ भूल सकता था पर यह दिन चर्या नहीं भूलता था | चुपचाप रहना उसका स्वभाव बन चूका था | उसके दोस्त भी उसकी इस आदत से परेशान थे | उन्हें राजू का पुराना स्वभाव भूला नहीं था, जब वह हमेशा हँसता खेलता था और सबको हँसता रहता था | वह एक पल भी चुप नहीं रह सकता था |
------------एक दिन उसकी कक्षा की ही एक छात्रा, जिसका नाम करुना था, ने रोका और चुप रहने के कारण पूछा | करुना को कक्षा में प्रवेश लिए अभी एक महीना ही हुआ था ओर वो भी ज्यादा बोलने में विश्वास नहीं रखती थी | पुराने स्कूल में उसके साथी उसे मिस सीरियस कहा करते थे | लेकिन राजू को उसने अपने से भी एक कदम आगे पाया | करुना के पूछने पर राजू ने उसकी तरफ देखा | राजू के चहरे पर कई प्रकार के भाव आये | चेहरे के भावों में प्रतीत हो रहा था जैसे इस प्रश्न ने उसे कहीं गहरी चोट दी है, कुछ बोलना चाहता है पर बोल नहीं पाता और आगे की ओर चल पड़ता है | करुना अपने प्रश्न के घेरे में ही उलझ जाती है | वो अपने को प्रश्न का उत्तर न मिलने पर ज़लील हुआ समझने लगती है | करुना को अपना अंतर्मन परेशान करने लगा | वह राजू को समझाना चाहती थी | उसका स्वभाव जो बाकि बच्चों से पता चला था, वह उसके आज के स्वभाव से काफी भिन्न था | परेशान मन को लिए, आज वह अपने घर जाने के बजाय राजू के पीछे चल दी | आगे-आगे राजू चल रहा था ओर पीछे-पीछे करुणा | उसकी हर हरकत नोट करते हुए करुणा उसके घर तक जा पहुंची | राजू ने जब अपने घर जाकर जैसे मुड़कर अपना दरवाजा बंद करना चाहा –तो वो करुणा को सामने देख हैरान रह गया | राजू बुत की तरह खड़ा उसे यूँ ही देखता रहा | वह तो सुध ही भूल चुका था कि करुणा को क्या कहे | करुणा एक टक उसे देख रही थी और उम्मीद कर रही थी कि राजू उसे अंदर आने के लिए पूछेगा | लेकिन राजू यूँ ही जड़वत खड़ा रहा | करुना खडी –खड़ी पानी होती रही और आखिर उसकी आँखों से आंसू बह निकले | आंसू देख राजू घबरा गया और एक दम बोल उठा – ‘आप अंदर आइये न, रोईयेगा नहीं, प्लीस’ | करुणा को जैसे बहुत बड़ी चीज़ मिली हो | वह खुश हो गयी और राजू के संग उसके घर प्रवेश कर गयी | राजू ने उसे बिठाया, पानी पिलाया और कारण पुछा | करुणा ने वही प्रश्न दोहराया | राजू समझ गया कि करुणा बिना जाने, चैन से नहीं बैठेगी | उसने भी करुणा की उत्सुकता का कारण पुछा | छोटी सी उम्र की करुणा इस बात का जवाब न दे पाई | वो नहीं जानती थी इसका कारण | पर, मन बैचेन था | राजू उसके सामने ही ज़मीन पर बैठता हुआ, अपनी व्यथा सुनाने लगा |
------------राजू ने बताया, दो वर्ष पुरानी बात है, मैं चौथी क्लास में पढता था | मेरे साथ मेरा एक मित्र श्याम जो मेरे पड़ोस में ही रहता था, मेरी ही कक्षा में था | हम बड़े गहरे मित्र थे | बड़ा विश्वास था मुझे मेरे भगवान् पर | चौबीस घंटे मेरी जुबान पर भगवान् का ही नाम रहा करता था | मेरी माँ भी बड़ी अन्ध-विश्वासी थी | मैं उसे पूजा पाठ करते देखता रहता – मुझे ये सब अच्छा लगता, मैं भी करता | हर मंगलवार को मैं प्रसाद भी चढ़ाया करता था | कभी सोमवार को शिवजी की प्रतिमा पर पानी या कच्ची लस्सी भी चढ़ाया करता था | मन करता, तो कभी संतोषी माँ के व्रत रखा करता | इतनी छोटी उम्र में ये सब करता देख मेरे साथी मुझे चिढाते भी और बहुत से बच्चे मुझे सराहते भी | मैंने कभी किसी की परवाह नहीं की | श्याम, जिसे मैं प्यार से श्यामू भी कहा करता था , उसको मेरी इस पूजा का विरोध करना, जैसे आदत बन चुकी थी | मुझे स्कूल ले जाने के लिए मेरे घर दो घंटे पहले ही आ जाया करता, क्यूंकि मैं पूजा न कर सकूं | लेकिन मैं भी ढीठ था | पूजा करके ही, घर से निकलता था | मेरे कहने का तात्पर्य ये है कि श्यामू पूरी तरह से नास्तिक था | वो मुझे भी यही समझाया करता था की पूजा करने से कुछ प्राप्त नहीं होता, ये सब ढकोंस्ले-बाजी है | मैं भी एक कान से सुनता और दूसरे कान से निकाल देता था
------------करुणा ने राजू को बीच में ही टोकते हुए पूछा कि “श्याम क्यूँ नहीं भगवान् को मानता था ?” उसके साथ क्या ऐसा बीता – “कि वो नास्तिक बन गया ?” राजू ने आगे - बताया, श्यामू कहा करता था, कि भगवान् कभी भी किसी को कुछ नहीं दे सकता, क्यूंकि वह है ही नहीं | बचपन में ही उसकी माँ चल बसी थी | जब वह तीसरी मे पहुंचा तो उसके पिताजी, उसी तालाब में डूब कर मर गए, जिस तालाब को हम रास्ते में देखते आये हैं | वह इसे भुतिहा तालाब कहता था | स्कूल से फीस माफ़ थी किताबें मिल जाती थीं | घर के खर्च के लिए लोगों के कपडे प्रेस करता था | एक दिन उसके और मेरे बीच ऐसे ही लड़ाई हो गई | श्यामू और मैं स्कूल से आ रहे थे – उसने मुझे कहा – राजू तू एक दिन मानेगा की भगवान् है ही नहीं – तू भी भगवान् से नफ़रत करने लगेगा – नहीं करेगा तो मैं तुझे मजबूर कर दूंगा | लेकिन मैंने उसे याद दिलाया कि वह तो आज शहर छोड़ के जाने वाला है तो मुझे कैसे मजबूर करेगा | क्यूंकि उसने मुझे कहा था कि शर्मा जी जिनके वह कपडे प्रेस करता है, उनकी कोई संतान नहीं है—वो उसको अपना बेटा बनाकर बहार ले जायेंगे | तो उसने मुझे जवाब दिया था की वो उसे बाहर से ही बस में कर के मजबूर कर देगा और कहता हुआ खिलखिला कर हंस पडा | मुझे बहुत बुरा लगा | मैंने उसे कई बार समझाया, देख श्यामू अगर त्य्झे भगवान् की अराधना नहीं करनी तो तू मत कर, लेकिन मुझे रोकने का क्या तात्पर्य है ? तो उसने जवाब दिया था कि उसकी ज़िंदगी तबाह करने वाला ही भगवान् है | इस तरह बहस करते हुए हम दोनों उस तालाब तक जा पहुंचे थे | हमारी बहस भी जोर पकड़ चुकी थी | हम बहस करते हुए हाथापाई पर उतर आये | मुझे इतना गुस्सा आया उसे चलते चलते जोर से धक्का दे दिया | श्यामू सीधा तालाब में जा गिरा | मैं घबरा गया | घबराहट में मैंने जोर-जोर से श्यामू - श्यामू आवाजें लगायी चिल्लाया भी | पर वो तो शायद अंदर ही कहीं गायब हो चूका था | आसपास कोई न था | मेरा जिगरी दोस्त डूब चुका था | मैं वहाँ से घबरा के घर की ओर भागा | पापा को बताया | पापा तैरना जानते थे | कपडे उतार कर तालाब में कूदे, ढूंढा , लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा | हार कर हम घर वापिस आ गए | श्यामू अंदर से, ऐसे गायब हुआ जैसे किसी भूत ने उसे कहीं गायब कर दिया हो | मेरे हाथों मेरा दोस्त मारा जा चुका था | पापा ने किसी से ज़िक्र करने को मना कर दिया था | पुलिस का झंझंट सहने की शक्ति न मुझमें थी, न मेरे पापा में | श्यामू जीत गया था | मुझे नफरत हो गई भगवान् से | कहता हुआ राजू, जोर जोर से रोने लगा |................................................................................


------------करुणा ने उसके सर पर हाथ रख कर चुप होने को कहा, और पूछा, कि - क्या वो तैरना नहीं जानता था ? राजू ने कहा – जब श्यामू डूबा, तो वह तैरना नहीं जानता था | अगर जानता तो श्यामू को ज़रूर बचा लेता | इसलिए उसने बाद में तैरना सीखा | करुणा ने राजू को समझाया- कि उसे इस प्रकार नास्तिक नहीं बनना चाहिए | यह तो एक हादसा था जो गलती से हो गया | लेकिन राजू नहीं माना | उसने जवाब में यही कहा कि जिस भगवान् की वह पूजा करता था , उसने उसकी कोई सहायता नहीं की, बल्कि उसने श्यामू को डुबो दिया | इसलिए वो रोज़ बेनागा फुट्टे की एक चोट भगवान् को लगा कर आता है | करुणा ने राजू को फिर रास्ते नें तालाब के पास रोज़ थोड़ी देर रुकने का कारण पूछा - तो राजू ने जवाब में कहा कि अब भी इसी उम्मीद से उसके पास खड़ा होता हूँ कि शायद श्यामू उसमें से बाहर निकले गा और उसके गले से लग जाएगा | अब भगवान् पर विश्वास तभी हो सकता है जब श्यामू तालाब से बाहर निकले |

------------ये बातें सुन करुणा परेशान हो उठी | वह सोचने लगी शायद राजू, कुछ दिमाग से भी कमज़ोर हो चूका है | उसने राजू को समझाया कि जाने वाले कभी वापिस नहीं आते | राजू ने फिर वही जवाब दिया | कि खोया हुआ विश्वास भी कभी वापिस नहीं आता | राजू काफी भावुक स्थिति में था | इस स्थिति को बदलने के लिए करुणा ने राजू से पूछा है | क्या उसे मछली पकड़ना अच्छा लगता है ? तो राजू ने जवाब दिया, हाँ उसे अच्छा लगता था | लेकिन श्यामू तो है नहीं –इसलिए किसके साथ जाता | सो मछली पकड़ना भी बंद कर दिया था | करुणा ने उस से कहा –चलो हम दोनों मिलकर मछली पकड़ते हैं | राजू को अपना पुराना वक़्त याद आने लगा | कुछ सोचते हुए उठा और घर के स्टोर से दो बासुरियां उठाई , एक खुद ली और एक करुणा को दी | दोनों तालाब पर जा पहुंचे | दोनों ने अपनी बांसुरी का काँटा पानी में उतारा और बातें करने लगे | थोड़ी देर बाद करुणा के कांटे में मछली फंसी और धागा नीचे डूब गया | करुणा ने उसे खींचा और एक झटके के साथ मछली कांटे के साथ बाहर निकली | काफी बड़ी मछली थी लेकिन झटका लगते ही करुणा का सोने का बंद जो हाथ में पहना था, तालाब में जा गिरा | अब करुणा एक दम घबरा गई और तालाब में गिरते-गिरते बची | करुणा रुआंसी- सी हो गई | राजू यह देख एक दम तालाब में कूद पडा | तालाब का पानी ऊपर से काफी मिला था | अंदर पहुँच कर उसने देखा नीचे की सताह का पानी काफी साफ़ है | बंद सामने पडा हुआ चमकने लगा | उसने जैसे ही उसकी तरफ हाथ बढाया तो उसका हाथ आगे बढ़ने से इनकार करने लगा | उसको लगा जैसे उसे किसी ने पीछे से दबोच रखा है | काफी कोशिश की छुटने की , लेकिन ग्रिफ्ट बड़ी मज़बूत थी | बाहर बैठी करुणा परेशान होने लगी | राजू को तालाब में कूदे हुए, तीन-चार मिनट हो चुके थे | राजू नीचे पानी में जूझ रहा था | तालाब में भूत का प्रभाव उसे य|द् आने लगा था | वो सोचने लगा, श्यामू भी इसी तरह गरिफ्त में आया होगा | लेकिन उसने कहीं पडा था ज़िंदगी में कभी हिम्मत नहीं हरनी चाहिए | अपनी तरफ से आखिरी सांस तक लड़ना चाहिए | यह सोच कर उसने जोर से झटका लगाया | झटका लगने से उसकी कमीज़ फटने की आवाज़ आयी और हाथ सीधे बंद पर जा पडा | बंद हाथ में आने के बाद उसने अपने आप को ऊपर उठाने की कोशिश की | लेकिन उसकी कमीज़ वहाँ लगे एक सरिये में बुरी तरह अड़ी होने के कारण, वह वहाँ उलझ कर रह गया | इतने में कोई व्यक्ति बाईं तरफ से आया और उसको छुड़ाता हुआ, ऊपर ले गया और तालाब से बाहर निकाला | तब तक राजू सांस उखड चुकी थी | और पेट में पानी पानी जा चूका था | उस व्यक्ति ने उसको उल्टा कर पेट से पानी निकला | थोड़ी देर में राजू को होश आया | उसने आँखें खोली तो सामने श्यामू को खड़ा पाया | उसको देखते ही वह अपनी आखों को मलने लगा | उसे विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि श्यामू सामने खड़ा है | दोनों एक दुसरे से लिपट गए | राजू भगवान् को जैसे ही गाली निकलने लगा तो श्यामू ने उसके मुख पर हाथ रखते हुए कहा –कि राजू यही वो भगवान् है जिसने तुझे बचाया है | एक बार फिर राजू हैरान सा श्यामू की शक्ल देखने लगा | श्यामू ने आगे कहा –मुझे अच्छा घर देने वाला वही भगवान् है | श्यामू बोल रहा था तो राजू हैरानी से सोच रहां था कि वह तो डूब चूका था ? फिर वो यहाँ कैसे पहुँच गया ? श्यामू ने उसकी हैरानी को समझते हुए बताया की उस रोज़ जैसे वो धक्का देकर भागा था वह तालाब से निकला और देखा की वो श्यामू-श्यामू करता घर की तरफ भाग रहा है | तो मैं यह सही मौका जानकार वहीँ से शर्मा जी के बताये स्थान पर पहुंचा | जहाँ से मुझे उनके साथ बाहर आना था | और तूने ये समझा होगा कि मैं डूब गया | राजू उस से यह कहता हुआ फिर लिपट गया कि उसने उसे बहुत सताया है और रोते-रोते उसे धन्यवाद करने लगा की उसने आज उसकी जान बचा ली |तो इसके जवाब में श्यामू ने जवाब दिया , नहीं राजू, तेरी पूजा भी दिल से थी और नफरत भी | जब तो भगवान् की पूजा करता था, तो भी प्रतिदिन बेनागा | और जब नफरत करता था तो भी लगन से बे-नागा भगवान् की मूर्ती को फुट्टे से चोट मारता था | तेरी इसी भक्ति को देखकर भगवान् हमेशा तुझसे खुश हुए और रात को मेरे सपने में आकर मुझे झिंझोड़ा , उठ श्यामू तेरा दोस्त डूब रहा है | मैं जल्दी से उठा : दिमाग परेशान हो गया | जल्दी से बस पकड़ सीधा उस तालाब पर पहुंचा | श्यामू ऊपर भगवान् की तरफ हाथ फैलाता हुआ और फिर हाथ जोड़ता हुआ बोला , हे भगवान्- हमारी गलतियों को माफ़ करना | मेरा यार मुझे वापिस देकर तूने मुझे धन्य कर दिया | कहते हुए श्यामू की आँखों से मोती झड़ने लगे |

करुणा दोनों दोस्तों का यह मिलाप देख भाव-विभोर हो रही थी |

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Friday, May 1, 2015

कटी पतंग


  (कहानी)
हर्ष महाजन
प्रकाशित
1988
 

      कटी पतंग
                          
सुलेखा अपने घर का सारा काम काज निपटा कर दहलीज़ पर अपने बेटे को ले आ बैठी | यही समय होता था की वह थोडा आराम कर लिया करती थी | धूप सेकने का कुछ समय वह रोज़ निकाल लिया करती थी | आराम करते हुए वह अपने पति का स्वेटर भी आजकल बुन रही थी | बेटा राजू, जो इस समय आठवें साल से गुजर रहा था, अपने दोस्तों के साथ घर के आगे बने मैदान में पतंग उड़ाते हुए बच्चों को देख रहा था | वह कभी मैदान में पतंग उडाती हुई किसी एक टोली के पास खड़ा हो जाता तो कभी दूसरी | उसे पतंगों से इतना प्यार था की वह तब तक घर नहीं लौटता, जब तक आसमान में एक भी पतंग दिखाई देती |

               
   सुलेखा स्वेटर बुनते हुए अपने बच्चे को निहार रही थी और अपने भविष्य के सपनों में अपने बुदापे का सहारा देख रही थी | वह अपनी गुजरती ज़िन्दगी से बहुत ही खुश थी | उसका पति, घर से चार किलोमीटर दूर एक लक्कड़ काटने वाली फेक्टरी में काम करता था, जहाँ से उसे अच्छी तनख्वाह मिल जाती थी | घर परिवार का खर्च उठाकर वह दोनों बहुत सा हिस्सा बचा भी लिया करते थे | परिवार में तीन लोगों के इलावा और कोई भी नहीं था उनमें वो खुद , उसका पति, राम किशन और बेटा  राजू | पति रामकिशन बड़ा ईमानदार और मेहनती व्यक्ति था | उसका मालिक, जिसकी फेक्टरी में वह काम किया करता था रामकिशन के  काम से बहत खुश था इसलिए मालिक ने उसको गाज़ियाबाद के छोटे से गाँव, महाराजपुर में  दो कमरों का मकान रहने के लिए दे दिया था | इसकी वज़ह से उसकी आर्थिक स्थिति काफी मज़बूत हो गई थी | उनकी सम्पन्नता देखकर आसपास की पडौसन उससे जला करती थीं | इसको भांपकर वह मन ही मन खुश भी हुआ करती थी | उसके ख़्वाबों की लड़ी तब टूटी जब राजू रोता हुआ आया और माँ से बोला माँ-माँ मुझे भी पतंग ले दो न | वो लोग मुझे पतंग नहीं दिखाते | सुलेखा बोली कोई बात नहीं बेटे पापा अभी शाम को आ जायेंगे और तुझे बहुत सारी  पतंग ले देंगे | अच्छे बच्चे रोते नहीं हैं बेटे | माँ के प्यार से पुचकारने से बच्चा चुप होकर वापिस बच्चो के बीच चला गया | सुलेखा ने जाते हुए बच्चे से नज़र हटा कर अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर नज़र डाली जिसमें  दुपहर के दो बजे थे | उसके पति को घर लौटने में अभी चार घंटे बाकि थे | वह अभी सोच ही रही थी कि बाज़ार जाकर अगले दिन के लिए तरकारी भाजी आदि ले आये | क्यूंकि शाम को उसके पति उसे घर से बाहर निकलने नहीं देते थे | इतने में पडौस में रहने वाली एक महिला उसके पास आकर बोली भई सुलेखा क्या कर रही हो ?  सुलेखा बोली – करना क्या है रामकली, बस शाम तक का वक़्त काट रही हूँ | "भई लगता है कि मियाँ बिन दिल नहीं लगता"—रामकली चटकारे लेते हुए बोली | "नहीं- नहीं  ऎसी बात तो नहीं है"--- बात को आगे न बढ़ाते हुए सुलेखा ने कहा – "तुम बताओ तुम कहाँ चली इतना सज़-धज कर" | रामकली बोली--" मैं तो लाजो को लेने उसके घर जा रही हूँ | वहां से हम दिल्ली में चांदनी चौक जायेंगे | वहाँ सुना है एक योगी महाराज आये हैं | जो कि बिना कुछ लिए दिए भविष्य का सब हाल बता देते हैं | अगर तुमने चलना है तो चल हमारे संग |तेरे उनके आने से पहले ही घर लौट आयेंगे" |
                सुलेखा को अपने भविष्य के बारे में जानने में वैसे भी बड़ी जिज्ञासा लगी रहती थी | सो वह दो मकान छोड़ कर, अपने पति रामकिशन के दोस्त रमेश के यहाँ गई और राजू का ध्यान रखने को कहकर, रामकली के साथ चल दी | वहाँ से तीनों सहेलियां दिल्ली के चांदनी चौक में उस योगी के पास पहुंची |  वहाँ काफी संख्या में लोग बैठे थे | लेकिन इसके बावजूद वहाँ शोरगुल नहीं था | वह तीनों भी उनके बीच जा बैठी | योगी महाराज आँख बंद कर अपना आसन जमाये बड़े सहज भाव से अपने एक शिष्य के द्वारा एक एक करके सब को अपने पास बुला रहे थे | योगी महाराज की उम्र लगभग ३० और ३५ वर्ष के बीच लग रही थी | देखने में एक साधारण से पुरुष लग रहे थे | उनके और लोगों के बीच इतना फासला ज़रूर था कि उनके पास बैठे व्यक्ति के अतिरिक्त उनकी आवाज़ किसी दुसरे को सुनाई नहीं पड रही थी | पता नहीं सुलेखा को अपने भविष्य के बारे में योगी के पास जाते हुए बहुत डर सा महसूस हो रहा था | धड़कन अभी से तेज़ हुई जा रही थी | हालांकि अभी ये भी मालूम नहीं था कि उसका नम्बर आएगा भी के नहीं | अभी वह ये सब सोच ही रही थी कि गुरु जी के शिष्य ने आवाज़ लगाई ‘सुलेखा देवी’ !!!
              सुलेखा, अपना नाम उस व्यक्ति के मुख से सुनकर हैरान हो कर इधर-उधर देखने लगी | वह सोचने लगी कि किसी ओर सुलेखा देवी को बुलाया होगा, लिहाजा वो अपनी जगह पर वैसे ही बैठी रही | दो तीन आवाज़ लगाने पर भी जब वह नहीं उठी तो योगी महाराज जी ने खुद सुलेखा देवी की तरफ उंगली का इशारा करते हुए आगे आने को कहा | यह देख सुलेखा ने पहले पीछे मुड कर देखा फिर अपने वक्ष पर हाथ रख कर , अपने को संबोधित कर कहा ‘मैं’ ??  दिमाग से चारो खाने चित वो उनकी ओर चल दी और पास जाकर हाथ जोड़कर बैठ गई | योगी महाराज ने उसी प्रकार अपनी आँखें मूँद ली और कुछ क्षण बाद सुलेखा को बोले –बेटा तुम सीधे घर जाओ | तुम्हारी इस वक़्त घर में बहुत आवश्यकता है | सुलेखा पहले ही बहुत घबरा रही थी | अब इस बात पर महाराज जी के इस कथन से पसीना-पसीना हो गई | चाहते हुए भी मुँह से एक शब्द भी न निकल पाया | बिना आँखे खोले योगी महाराज बोले –बेटा  ज़िंदगी में घबराना नहीं , अभी बहुत कुछ झेलना बाकी है | बहुत लम्बी ज़िंदगी है जो अकेले ही गुजारनी है | घर जाओ वहां तुम्हारी इस वक़्त बहुत ज़रुरत है |
                   सुलेखा घब्रई हुई वहां से अपनी सहेलियों की परवाह किये बिना निकली और बस अड्डे से बस पकड़ अपने गाँव आकर रुकी | घर के नज़दीक पहुंची तो उसके होश फाख्ता हो गए | उसके घर के आसपास काफी भीड़ थी | उसका दिल धक् से रह गया | वहां लोग उसी के इंतज़ार में थे | उनमें से एक शख्स ने उसे झट से बताया कि उसके पति राम किशन का आरे से, एक हाथ और एक पाँव कट गया है | उसे अस्पताल ले गए हैं | ये सुन उसके हाथ पाँव फूलने लगे | लोगों के दिलासा देने पर अधमरी सी सुलेखा किसी तरह उस अस्पताल पहुंची | वहाँ की खस्ता हालत देखकर सुलेखा ने हिम्मत दिखाकर उसे एक प्राईवेट अस्पतान में भर्ती करवाया |
                  ज़िंदगी और मौत में काफी कशमकश के बाद अपाहिज होकर एक हाथ और एक पाँव के साथ तीन महीने बाद वह घर वापिस घर लौटा | अप्रैल का महीना था..गर्मी बढ़ने लगी थी | अगले तीन महीनों में घर की सारी  जामा पूँजी बीमारी में समाप्त हो चुकी थी | इस हालत में रामकिशन का मालिक कब तक साथ निभाता | लिहाजा उसने भी मकान खाली करने का नोटिस दे दिया | नौकरी तो पहले ही जा चुकी थी अब बे-घर होने का समय भी आ गया  |किसी तरह सुलेखा ने रिश्तेदारों की मार्फ़त दिल्ली में करोल बाग़ के नज़दीक  देवनगर में एक कमरा किराए परले लिया | जिसका किराया मकान मालिक के घर बर्तन सफाई तथा खाना पकाने के काम से चुकाना था | इसके इलावा दो सो रूपये तय हुआ | यह कमरा उस मकान की चौथी मंजिल पर था | कमरे के आगे खाली छत थी | जहां रामकिशन बैसाखी के सहारे इधर-उधर घूम लेता था | वह अपनी ज़िंदगी से काफी बेजार हो चूका था | तथा स्वभाव से भी काफी चिडचिडा भी हो चुका था | बात-बात पर अपनी पत्नी और बच्चे को डांट दिया करता था | सुलेखा सुबह शाम नीचे मालिक के यहाँ काम करती तथा खाने के वक़्त ऊपर अपने पति तथा बच्चे को खाना दे जाया करती |
                 इसी बीच दो महीने और बीत गए | कड़कती धुप शुरू हो चुकी थी | बरसाती में वैसे भी गरमी जियादा लगती थी | इस तरह ज़िंदगी बीतने लगी | राजू रोज़ सकूल से आता और छत पर पतंगों की ओर देखता रहता | कभी-कभी कोई पतंग उसकी छत पर आ जाती , वह बहुत खुश हो जाता | उसे इधर-उधर भाग कर कभी उडाता और कभी छत से नीचे की ओर लटकाता | पतंग फट जाती तो पापा के पास पतंग की फरमाईश करता | पापा उसे डांट देते तो बहार लौट आता | फिर मायूस होकर आसमान पर फिर से पतंगों को निहारता रहता | उसकी छत काफी हवादार थी | क्यूंकि उनके मकानों के दोनों ओर कोई मकान नहीं था | एक तरफ सड़क थी तथा दूसरी और एक मंजिल का खाली मकान था जो एक खंडहर में तब्दील हो चूका था क्यूंकि उसमें कोई रहता नहीं था | उसकी मकान की छत भी टूटी हुई थी | राजू कभी सड़क की तरफ झांकता कभी उस खंडहर की तरफ | क्यूंकि जो पतंग कट कर आती – वह कभी सड़क की तरफ चली जाती तो कभी उस खँडहर में गिर जाती | राजू मन मसोस कर रह जाता और मायूस होकर उस खंडहर में पड़ी पतंग को देखता रहता | उसके मायूस चेहरे को देखकर उसकी माँ मन ही मन घुट्ती रहती---- मगर क्या करती | उसके लिए गृहस्ती चलाना इतना मुश्किल हो गया था कि पतंग खरीदने के लिए चाह  कर भी पैसे नहीं निकाल पाती थी | राजू माँ के पास पतंग के लिए मांग करने आता तो माँ उसे अगले दिन लाने के लिए कह कर बहला फूसला देती | राजू अगले दिन की इंतज़ार में,  वो दिन भी ख़ुशी से गुज़ार देता |
                         दिन पर दिन बीतते पतंगों को उड़ाने का महान दिन १५ अगस्त समीप आ गया | सुबह-सुबह अर्थात १४  अगस्त को जब राजू उठा तो उठते ही माँ से कहने लगा कि  माँ – माँ आज तो मुझे पतंग ले दोगी न ? मैं कल पतंग उड़ाऊँगा कल १५ अगस्त है न | माँ ने बच्चे के सर पर हाथ फेरकर कहा – हाँ बेटे तू जब स्कूल से आएगा तो तुझे बाज़ार से बहुत सी पतंगे ला दूंगी | राजू ख़ुशी ख़ुशी स्कूल चला गया और दोस्तों को अपनी ख़ुशी में शामिल किया | स्कूल में १४ अगस्त को आज़ादी का कार्यक्रम था जिसमें उसने भी भाग लिया और उसने पतंग के ऊपर ही एक कविता भी वहाँ सुनाई | जिसके बोल थे ---


मेरे घर जब आई पतंग
पापा को न भाई पतंग |
छुप-छुप मैंने जब उड़ाया,
खुशियों के रंग लाई पतंग |

एक छोटा सा इनाम लेकर वो जब घर पहुंचा तो  माँ को चारपाई पर लेता देखकर थोडा घबरा सा गया | क्यूंकि अपनी छोटी सी ज़िंदगी में उसने माँ को इस समय कभी चारपाई पर आराम करते नहीं देखा था | वह जल्दी-जल्दी भागता हुआ माँ के पास आया और नन्हा सा इनाम माँ को दिखाते हुए पुछा माँ- माँ आपको क्या हुआ | सुलेखा ने उसका इनाम हाथ में लेकर देखा और शाबाशी दी और धीमी सी आवाज़ में बोली कुछ नहीं हुआ बेटा थोडा सा बुखार है | राजू मन ही मन उदास हो गया | उसकी सारी उमीदों पर पानी फिर गया | वो समझ चुका था कि अब उसकी पतंग नहीं आएगी | वह चुपचाप माँ के सर पर हाथ सहलाता हुआ छत की तरफ चल दिया | माँ का अहसास आँखों से टपकने लगा | लेकिन वह कुछ नहीं कर सकती थी | पैसे के अभाव में उसे बच्चे के सामने बीमारी का नाटक करना पड़ेगा ...ऐसा कभी उसने सपने में भी नहीं सोचा था | अगला दिन १५ अगस्त था | सूबह -सुबह राजू  ७  बजे उठा और अपने लिहाज़ से सबसे अच्छे कपडे निकाल कर नहा धोकर तैयार हो गया और छत पर खड़ा हो गया | बहुत सारी पतंगे आसमान में झूल रही थीं | हवा काफी तेज़ थी | उसकी नज़र एक रंग बिरंगी पतंग पर थी | जो देखने में बहुत सुंदर नज़र आ रहा ही | वह पतंग उसकी छत के आसपास इधर-उधर मंडरा रही थी | उसकी बड़ी तमना थी कि यह पतंग उसके पास होती | क्यूंकि वह कई पतंगों को काट रही थी और जो पतंग कट जाती वह पतंग उसकी छत के ऊपर से होकर गुज़र जाती | राजू छत पर इधर-उधर भागता मगर कोई भी पतंग उसके हाथ न लगती | माँ जब ये सब देखती उसकी आँखों में हलके से आंसू गाल से नीचे लुडक जाते | आज वह राजू के लिए मालिक से छुट्टी भी ले चुकी थी और चारपाई पर बैठी राजू को ही देख रही थी | राजू इधर-उधर भागकर फिर उसी रंग-बिरंगी पतंग की तरफ देखने लगता जो उसके मन-पसंद की थी | इतने में उसने देखा वह पतंग किसी ओर पतंग के साथ गुत्थमगुत्था होकर उसकी छत की तरफ झुकी और कट गई | राजू का दिल धक् से रह गया और वह उस पतंग की तरफ लपका | वह पतंग उस खंडहर के ऊपर लहर रही थी | राजू ने अपना हाथ आगे बढाया | राजू को इस तरह पतंग के पीछे भागता देखकर सुलेखा एकदम उसकी ओर लपकी मगर तब तक राजू की एक लंबी चीख माँ की चीख के साथ मिल चुकी थी | इतनी भयानक चीख सुन बिजली की फूर्ती से राजू के पापा ने अपनी बैसाखी उठाई और वह भी उस ओर लपके जिस ओर की मुंडेर से राजू नीचे गिरा था | भावावेश में जैसे ही उसने नीचे झाँका , नीचे का द्रश्य देखकर रामकिशन वहीँ ढेर हो गया | सुलेखा यह सब देख खामोश हो गई | क्यूंकि अब उसकी ज़िंदगी एक कटी पतंग बन चुकी थी | वह देख रही थी जिस पतंग के पीछे राजू भागा था वही पतंग उसके शिथिल शरीर पर पड़ी थी |
             आज भी बरसों बाद उस योगी महाराज के शब्द उसके दिमाग में घुमते हैं कि        " ज़िंदगी में कभी घबराना नहीं | अभी बहुत कुछ झेलना बाकी है | बहुत लम्बी ज़िंदगी है जो अकेले गुजारनी है |"

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