ट्रेन की गति राघव को आज बहुत धीरे महसूस हो रही थी । रात का डिनर खत्म कर अभी वो बैठा ही था कि फिर उठ कर खड़ा हो गया और अपने केबिन में लगे मिरर में अपने आपको वो देखने लगा । 85 की उम्र में भी बाल पूरी तरह अभी सफेद नहीं हुए थे । उसने अपने बालों में एक बार हाथ फेरा और फिर बाहर जाकर डिब्बे का गेट खोल कर थोड़ी देर वहाँ खड़ा हुआ । ठंडी हवा के झोंको में थोड़ा खड़े होकर वापिस अपनी सीट पर आकर बैठ गया ।
अंधेरा बढ़ता जा रहा था ! और ट्रेन अपनी चिरपरिचित धुन के साथ आगे बढ़ती जा रही थी ।
ज्यूँ-ज्यूँ ट्रेन आगे बढ़ रही थी, राघव के मानस पटल पर लता की वो आख़िरी चीख की गूँज की खनक बढ़ रही थी ।
उस हादसे को आज पूरे 60 साल हो चुके थे । घड़ी की टिक-टिक उसकी धड़कन को बढ़ाती जा रही थी । घड़ी देखी तो उसमें नो बजने में अभी काफी वक़्त था। राघव फिर आज उसी ट्रेन के डिब्बे में था । वो अपनी सीट से फिर उठा और धीरे-धीरे चल कर गेट पर जाकर खड़ा हो गया ।
बारामती स्टेशन पर आज ट्रेन सही वक्त पर पहुंचने वाली थी । हर साल इसी रोज़ इसी उम्मीद पर राघव बारामती आता आता था । साठ साल के बाद भी उसने उम्मीद नहीं छोड़ी थी उसे यकीन था उसे उसकी लता उसे ज़रूर मिलेगी ।
घड़ी देखी अभी वक़्त था उसकी बैचेनी बढ़ती जा रही थी । वो सीट पर जैसे ही बैठा !! उसके सामने एक बहुत ही खूबसूरत जोड़ा सोने की तैयारी कर रहा था । लड़की के हाथों में नया-नया चूड़ा था ।
ट्रेन थोड़ा धीमी हुई तो देखा कोई छोटा सा स्टेशन था । शायद सिग्नल न मिलने की वजह रही होगी जो इतने छोटे स्टेशन पर ये ट्रेन रुक गयी ।
खिड़की के शीशे से बाहर देखा तो एक स्टाल पर गर्मागर्म चाय उबाल रही थी । नई दुल्हन उठी और अपने ऊपर की बर्थ पर लेटे अपने पति को बोल कर चाय लेने के लिए ट्रेन से नीचे की ओर जाने लगी ।
राघव ने जब देखा कि ये दुल्हन अकेली ट्रेन से नीचे उतरने वाली है तो उसके सामने लता का साठ साल पुराना , वो सीन चलचित्र की भांति उसके सामने घूम गया और वो अचानक जोर से चीख पड़ा--"नही लता नहीं~~~~~~फिर से नहीं उतरना?"--राघव कहता हुआ बहुत ही बैचेन कग रहा था ।
राघव को इस तरह चीखते देख वो दुल्हन घबरा गई और एक कोने में अपनी सीट पर दुबक कर बैठ गयी । ऊपर से उसका पति भी घबराकर नीचे उतर आया कि उसकी पत्नी ने ऐसा क्या कर दिया?
उसने एक बार अपनी दुल्हन की ओर देखा जो डर कर एक कोने में दुबक कर बैठ गयी थी । उसने उसे पहले हग किया फिर बुज़ुर्ग अंकल की ओर देखा । वो भी पूरी तरह पसीने से भीग चुका था । लेकिन वो कांप रहा था । उस नोजवान को माजरा कुछ समझ नहीं आया ।
राघव ने एक बार फिर उस नोजवान को कहा-- "इसको नीचे नही उतरने देना ? ट्रेन चल पड़ेगी । नीचे नही जाना~~~~~?"
वो नोजवान ने उस बुज़ुर्ग की ओर देखा और पूछा- "अंकल नहीं जाएगी वो नीचे !! आप टेंशन न लें !! लेकिन ये लता कौन है? मेरी पत्नी का नाम तो अंतिमा है ।"
राघव तब तलक थोड़ा नार्मल हो चुका था । उसने उस नोजवान की ओर देखा और हाथ जोड़कर अपने इस अप्रत्यशित कृत्य के लिए मुआफ़ी माँगने लगा तो उस नोजवान ने ऐसा करने से मना करते हुए पूछा--"अंकल बात क्या है ? मैं जब से ट्रेन में बैठा हूँ आप बार-बार गेट तक जाते हैं और थोड़ी देर वहां खड़े होकर वापिस आ जाते हैं । क्या कोई खास बात देखने जाते हैं ? और ये लता कौन है?"
उस नोजवान के थोड़ा सा कुरेदने पर राघव की आंखों से दबे हुए आँसू बाहर को छलक आये ।
उसने अपनी जेब से रुमाल निकाला और आंखों पर रखकर थोड़ा पंच किया फिर वापिस जेब में रखकर बोला--नही बेटा ऐसी कोई बात नहीं । तुम लोग नई-नई शादी कर एन्जॉय करने के लिए निकले हो । इस वक़्त उदासी की बातें अच्छी नहीं लगती ।"
राजेश ने फिर कहा--"अंकल मैं भी तो आपके बेटे जैसा हुँ मुझे अपने दिल की बात बताओगे तो मुझे भी अच्छा लगेगा । आपके दिल का बोझ भी थोड़ा सा हल्का होगा ।"
राघव ने अभी कुछ कहा ही नही था कि रुकी हुई ट्रेन पंद्रह सेकंड्स में ही चल पड़ी ।
ट्रेन चलते ही राजेश के मुंह से एकदम निकला - "ओ माय गॉड ट्रेन तो चल पड़ी? थैंक यू अंकल आपने अंतिमा को नीचे जाने से रोक लिया । इतनी रात को यहाँ सुनसान स्टेशन पर वो नीचे रह जाती तो क्या करती?"
राघव उसी वक़्त बोला- "मगर लता नहीं मानी थी और मना करने के बावजूद उतर गई थी । बड़ी ही चंचल थी ।"--कहते हुए राघव सिसक पड़ा और मुंह को दोनों हाथों से ढक कर उसने न जाने कितने ही आँसू बहा डाले ।
राजेश ने चैन की सांस लेते हुए राघव से पूछा-- "बताइए न अंकल?"
राघव ने अपना चेहरा फिर एक बार रुमाल से साफ किया और राजेश के सर पर हाथ फेरते हुए कहा- "अपनी पत्नी का खूब ख्याल रखना बेटा"
इतना कह फ़िर उसने बताया कि आज से 60 साल पहले वो भी इसी तरह अपनी नई दुल्हन लता के साथ दिल्ली जाने के लिए रवाना हुआ था । हमने
दिलो जान से एक दूसरे से प्यार किया था । बचपन से हमने एक साथ पढ़ाई की । इकट्ठे खेले.... बड़े हुए । जब एक दूसरे के बिना रहना मुश्किल हो गया तो फिर हम दोनों ने एक दिन शादी कर ली ।
शादी करके घर पहुंचे तो दोनों के घर वालों ने स्वीकार नहीं किया । बड़े भाई ने मां बाबूजी को इतना भड़का दिया कि बाबूजी ने घर के सामान का बंटवारा कर अलग रहने को बोल दिया ।
हम सामान लेकर किसी के रेफेरेंस पर बारामती आ गए । लेकिन वहां एक महीने में ही लगा कि वहाँ रहना मुश्किल है ।
पता चला कि दिल्ली दिल वालों की है वहां सबका गुजारा हो जाता है तो बस फिर क्या था । हम दोनों ने फिर दिल्ली जाने का फैसला किया ।
एक दोस्त से बात की ओर उसने हमें दिल्ली बुला लिया और अगले ही दिन हमने अपना सामान फिर से बांधा और दिल्ली की ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पहुंच गये ।
स्टेशन था बारामती ।
गाड़ी के आने का वक़्त रात नो बजे का था । हम स्टेशन पर काफी पहले ही पहुंच गए थे ।
प्लेटफ़ॉर्म पर इंतज़ार करते हुए काफी देर हो गयी थी इसलिए हम स्टेशन पर इंतज़ार करते हुए पसर गए ।
लेकिन अचानक जब ट्रेन बारामती स्टेशन पर आ रही है ये अनाउंसमेन्ट सुन कि ट्रेन आ रही है । वक़्त देखा रात के ग्यारह बज कर चालीस मिनट हो चुके थे ।
राघव ने बताया कि उसकी पत्नी लता के साथ उस वक़्त स्टेशन पर बे-परवाह ही बैठा था । ट्रेन को नो बजे आना था लेकिन किसी तकनीकी खराबी के कारण वो लेट थी ।
स्टेशन मास्टर से भी राघव को पक्का पता नही लग पा रहा था कि ट्रेन प्लेटफॉर्म पर कितने बजे आकर लगेगी । तबियत खराब होने की वजह से पत्नी लता को स्टेशन पर ही प्लेटफॉर्म पर सुला कर वो इंतज़ार कर रहा था लेकिन बेंच पर बैठे-बैठे उसे भी कभी-कभी नींद का झोंका आ रहा था ।
सामान इतना था कि चढ़ाने में दिक्कत न हो इसलिए वो अपने-आपको नींद से दूर रखना चाहता था और बार-बार पास रखी पानी की बोतल से अपनी आंखों पर बार-बार छींटे मार रहा था ।
घड़ी देखी ग्यारह चालीस होने वाले थे कि उसे लगा कि दूर से छुक-छुक की आवाज आ रही है और वो बड़ी तेजी से तेज होती जा रही थी । फिर अचानक हलचल हुई और ट्रेन की लाइटें साफ-साफ दिखाई दबने लगी और अचानक ट्रेन का आगमन हुआ और उसके दिलो दिमाग़ में से भगदड़ मच गई ।
राघव ने लता को जोर से हिलाकर उठाया तो वो घबराकर उठ बैठी और उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो बैठी कहां है । उसका सोच तंत्र एक दम खाली सा हो गया था । फिर अचानक जब वापिसी हुई तो वो फ़टाफ़ट उठी और राघव के साथ मिलकर उसने सामान समेट कर ट्रेन की ओर रुख किया ।
राघव की उम्र उस वक़्त 25 साल की थी । काफी ताकत थी शरीर में । वो बड़े-बड़े ट्रंक उठाने में सामर्थ्यवान था । लता भी बाइस पार कर चुकी थी । ट्रेन बारामती स्टेशन पर सिर्फ दो मिनट के लिए ही रुकनी थी । दोनों ने मिलकर अपना सामान जल्दी-जल्दी ट्रेन के डिब्बे में फेंकना शुरू कर दिया । राघव डर रहा था, कहीं उनकी ट्रेन या फिर कोई सामान छूट न जाये । उनके सिवा पूरा प्लेटफार्म खाली था । स्टेशन पर सिर्फ एक छोटा सा बल्ब ही जल रहा था । जिसकी रोशनी काफी कम थी । घर का तकरीबन सारा ज़रूरी सामान गठडियों में बंधा पड़ा था । इसलिए ट्रेन के डिब्बे में फेंकने में कोई दिक्कत भी नहीं हुई ।
ट्रेन चलने से पहले ही सारा सामान गाफी के अंदर था । उसी वक़्त ट्रेन ने एक लंबी सीटी दे दी । राघव ने देखा ट्रेन का गार्ड भी ऑफ़िस से भागता हुआ इंजन की ओर गया और डिब्बे में चढ़ कर उसने हरी झंडी दिखा दी ।
ट्रेन हिली तो राघव जोर से चीखा--"लता~~~~???" ---!!!
सारा सामान ट्रेन में आ चुका था । राघव की चीख सुन लता ने फट से ट्रेन का डंडा पकड़ डिब्बे की सीढ़ी पर पाँव रखा । ट्रेन अब धीरे-धीरे सरकने लगी थी और अपना सफर थोड़ा सा पटरी पर आगे सरक कर शुरू कर दिया था देखते ही देखते रेंगने भी लगी थी ।
कुछ देखकर लता के मुँह से अचानक निकला-- "ओह !!!"
"अब क्या हुआ?"---राघव ने उसकी ओर देखते हुए पूछा ।
"देखो ! बेलन तो रह ही गया वहॉं ?"--बेलन की ओर इशारा करती हुई लत्ता ने कहा ।
"अरे छोड़, रहने दे अब"--राघव ने जोर देकर कहा ।
"अरे धीरे ही तो है ट्रेन ? और वो देखो ! सामने ही तो पड़ा है बेलन, उठा लाती हूँ । नहीं तो दिक्कत होगी दिल्ली पहुंच कर !!!! वहां रोटी किससे बेलूँगी ?"-- कहते हुए लता फट से रेंगती हुई ट्रेन से नीचे उतर गयी ।
बेलन की ओर जाते-जाते उसने पीछे मुड़ कर राघव को मुस्कराते हुए कहा-- "काहे को डरते हो तुम इतना?"
उसने जैसे ही बेलन को उठाया राघव की तेज़ आवाज फिर से गूँजी-- "लता~~~??"
लता की स्पीड एक दम तेज हो गयी औऱ उसने भागते हुए बेलन को उठाया और वापिस ट्रेन की ओर भागी ।
लेकिन........तब........तक.......!!!! देर हो चुकी थी !!!
ट्रेन ने अचानक ही तेजी पकड़ ली ।
राघव, डिब्बे के गेट पर ही खड़ा हाथ आगे बढ़ाता रहा और घबराया हुआ बोलता रहा--- "लता-लता"
और----!!!
लता बिना हिम्मत हारे ट्रेन के साथ तब तक भागती रही जब तक प्लेटफॉर्म का फर्श पक्का था और उसे ये उम्मीद और पक्का विश्वास भी था शायद कि राघव तो उसे लेकर ही जायेगा ?
लेकिन प्लेटफार्म खत्म हो गया और उसकी उम्मीदें बिखर गयीं ।
सुनाता हुआ राघव फिर बीच में सिसक पड़ा ! और राजेश और उसके साथ उसकी नई दुल्हन अंतिमा भी एक दम सुन्न सी राघव को सुन रही थी । उनका मन भी बैचेन हो रहा था ये जानने को कि आखिर हुआ क्या था ।
न तो ट्रेन रुकी न ही वो (राघव) उतरा ।
चीखते हुए लता ने गला फाड़ कर आवाज भी लगाई तो काफी देर तलक वो आवाज फ़िज़ाओं में गूंजती रही ।
लता आंखों से तो ओझल हो गयी लेकिन उसकी वो चीख उसके मानस पटल में ऐसे दाखिल हो गयी कि उसे बार-बार सुनाई देने लगी थी ।
लता के सारे ख़्वाब उस बेलन में समाहित हो कर रह गए । दोनों एक दूसरे की आँखों से ओझल हो गये ।
रह गयी, तो बस, वो उम्मीदों के कुछ बिखरे हुए अहसासों के कुछ टुकड़े जिन्हें एक कुशल कारीगर की ज़रूरत थी जो कभी उन्हें जोड़ेगा । इसीलिए साठ साल से उन्हें अपने पास संभाल के रक्खा था ।
लता, हाथ में बेलन को राघव की ओर हाथ उठाये हुए, काफी देर तलक स्तब्ध औऱ निशब्द खड़ी देखती रही । जबकि गाड़ी उसकी आँखों की पहुँच से ओझल हो गयी थी । इस उम्मीद पर कि राघव अभी भी ट्रेन से कूद कर आएगा और कहेगा कि --जाने दे लता इस ट्रेन को । हम फिर से शुरू करते है ।
लेकिन----!!!
कुछ ही पलों में सभी भ्रम टूट कर चकनाचूर होकर बिखर गए ।
💐💐💐
बहुत आवाजें लगायीं राघव ने "लता-लता"-- लेकिन उसने उसकी एक नहीं सुनी और हमेशा की तरह उसने अपने मन की सुन बेलन उठाने के लिए ट्रेन से नीचे उतर गई ।
ट्रेन में इक्का दुक्का सवारियाँ ही थीं जो जाग रहीं थीं बाकि सभी लोग अपने-अपने बिस्तरों में गहरी नींद सो रहे थे । ट्रेन ने जैसे ही तेजी पकड़ी राघव घबरा गया और उसे समझ ही नही आ रहा था कि वो क्या करे ।
सारे रास्ते में राघव का सामान बिखरा पड़ा था । आने जाने वालों को भी दिक्कत हो रही थी ।
ट्रेन की सभी बत्तियां पैसेंजर्स ने सोते वक्त वैसे ही बुझा रखीं थी । इक्का दुक्का लोग थे जो मोबाइल देखते हुए जाग रहे थे । उन्होने जब राघव को चीखते हुए लता को आवाज मारते सुना तो वो फौरन उठ कर आये और स्थिति को भांप कर उन्होंने गेट वाले केबिन से ट्रेन की चेन इतनीं जोर से खींची कि वो हाथ में ही आ गयी ।
एक दूसरे लड़के ने अपने केबिन से भी चेन खींची । लेकिन दुर्भाग्य-वंश वो चेन भी टूट गयी । राघव परेशान हो गया था । एक बार तो उसने सोचा कि वो ट्रेन से ही कूद जाए लेकिन गेट पर पहुंच कर ट्रेन की स्पीड देखकर हिम्मत ही नहीं हुई । उसका मन बैचैन अंधेरे की वजह से ज्यादा था । उसे लता की फिक्र हो रही थी । वो इस घुप अंधेरे में उस स्टेशन पर अकेली होगी ।
अचानक ट्रेन बीच रास्ते में रुक गयी । अब सामान इतना था कि रास्ते में कैसे उतारे? लेकिन उतरने के लिए मौका अच्छा था । अभी वो सोच ही रहा था कि दो पुलिस वाले, एक टी०टी० के साथ बाहर की तरफ से डिब्बे के अंदर घुसे ।
चेन पुलिंग की इन्क्वायरी कर रहे थे।
सभी से पूछा गया, तो उन्होंने कारण बताया तो चैन पुलिंग की मुआफ़ी तो मिल गयी लेकिन फाइल बन्द करने के लिए टी०टी० ने राघव से टिकट दिखाने को कहा ।
राघव ने अपनी जेब टटोलनी तो उसे याद आया कि टिकेट्स तो लता के पास हैं?
पेनल्टी के साथ देने के लिए उसके पास इतने पैसे भी जेब में नहीं थे कि टिकट् ले सके। पर्स भी लता के पास ही था । टी०टी० ने फौरन ट्रेन छोड़ने का फरमान जारी कर दिया ।
कोई चारा न देख राघव को सामान ट्रेन में ही छोड़ उतरना पड़ा ।
उतरते वक़्त, ..ट्रेन से चेन पुल करने वाले लड़के की आवाज आई--"चिंता न करना अंकल टी०टी० की मदद से दिल्ली जाकर सामान को माल खाने भिजवा देंगे ।"
💐💐💐
गाड़ी से राघव उतर तो गया । उस बियाबान जंगल से बाहर निकलना मुश्किल था । लेकिन लता के प्यार ने उसे इतनी हिम्मत दी कि वो अंधेरे में ही सड़क मार्ग की ओर चल पड़ा । आधे घन्टे में वो हाइवे पर पहुंच चुका था ।
एक घंटे बाद काफी मशक्कत के बाद एक पेट्रोल पंप पर पहुंच उसने वहां पर मौजूद कर्मचारी से मिन्नत कर किसी बस में बारामती स्टेशन के लिए बस में बिठवा दिया ।
काफी जद्दोजहद के बाद जब वो बारामती स्टेशन पर पहुंचा तो उस वक़्त सुबह के छह बज चुके थे । वहां अब भी वैसा ही सन्नाटा पसरा पड़ा था । अभी छः घंटे पहले की ही तो बात थी ।
बदहवास राघव स्टेशन पर इधर से उधर लता-लता पुकारता रहा । लेकिन कहीं से कोई आवाज नहीं आयी । लेकिन दूर उसे वही बेलन उसी जगह पड़ा दिखाई दिया । ये वही जगह थी जहाँ से लता गला फाड़ कर चीखी थी ।
वहॉं पड़ा बेलन ऐसे कग रहा था जैसे पुकार रहा हो "आ जाओ राघव मुझे ले जाओ" ।
अपनी इतनीं कहानी सुनाकर राघव ने अपने बैग से वही बेलन निकाला जो उसी तरह चमक रहा था जैसे पैंसठ साल पहले उसने अपनी चमक से लता को बुलाया था ।
उसी वक़्त ट्रेन रुकी राघव ने देखा सामने बाहर बारामती स्टेशन लिखा था ।
उसने अपना बैग उठाया और राजेश और अंतिमा को बाय-बाय करता हुआ बारामती स्टेशन पर उतर गया उसे एक बार फिर तलाश करने ।
💐💐💐
~~समाप्त~~
हर्ष महाजन
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
यह धारावाहिक एक काल्पनिक रचना है और इसमें दिखाए गए सभी पात्र और पात्रों के नाम,स्थान और इसमें होने वाली सभी घटनाएं पूर्णतया: काल्पनिक हैं । इस धारावाहिक/कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या घटना या स्थान से समानता पूर्णत: संयोग मात्र ही हो सकता है । इस धारावाहिक का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति, धार्मिक समूह सम्प्रदाय, संस्था, संस्थान, राष्ट्रीयता या किसी भी व्यक्ति वर्ग , लिंग जाति या धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कतई नहीं है ।
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ट्रेन की गति राघव को आज बहुत धीरे महसूस हो रही थी । रात का डिनर खत्म कर अभी वो बैठा ही था कि फिर उठ कर खड़ा हो गया और अपने केबिन में लगे मिरर में अपने आपको वो देखने लगा । 85 की उम्र में भी बाल पूरी तरह अभी सफेद नहीं हुए थे । उसने अपने बालों में एक बार हाथ फेरा और फिर बाहर जाकर डिब्बे का गेट खोल कर थोड़ी देर वहाँ खड़ा हुआ । ठंडी हवा के झोंको में थोड़ा खड़े होकर वापिस अपनी सीट पर आकर बैठ गया ।
अंधेरा बढ़ता जा रहा था ! और ट्रेन अपनी चिरपरिचित धुन के साथ आगे बढ़ती जा रही थी ।
ज्यूँ-ज्यूँ ट्रेन आगे बढ़ रही थी, राघव के मानस पटल पर लता की वो आख़िरी चीख की गूँज की खनक बढ़ रही थी ।
उस हादसे को आज पूरे 60 साल हो चुके थे । घड़ी की टिक-टिक उसकी धड़कन को बढ़ाती जा रही थी । घड़ी देखी तो उसमें नो बजने में अभी काफी वक़्त था। राघव फिर आज उसी ट्रेन के डिब्बे में था । वो अपनी सीट से फिर उठा और धीरे-धीरे चल कर गेट पर जाकर खड़ा हो गया ।
बारामती स्टेशन पर आज ट्रेन सही वक्त पर पहुंचने वाली थी । हर साल इसी रोज़ इसी उम्मीद पर राघव बारामती आता आता था । साठ साल के बाद भी उसने उम्मीद नहीं छोड़ी थी उसे यकीन था उसे उसकी लता उसे ज़रूर मिलेगी ।
घड़ी देखी अभी वक़्त था उसकी बैचेनी बढ़ती जा रही थी । वो सीट पर जैसे ही बैठा !! उसके सामने एक बहुत ही खूबसूरत जोड़ा सोने की तैयारी कर रहा था । लड़की के हाथों में नया-नया चूड़ा था ।
ट्रेन थोड़ा धीमी हुई तो देखा कोई छोटा सा स्टेशन था । शायद सिग्नल न मिलने की वजह रही होगी जो इतने छोटे स्टेशन पर ये ट्रेन रुक गयी ।
खिड़की के शीशे से बाहर देखा तो एक स्टाल पर गर्मागर्म चाय उबाल रही थी । नई दुल्हन उठी और अपने ऊपर की बर्थ पर लेटे अपने पति को बोल कर चाय लेने के लिए ट्रेन से नीचे की ओर जाने लगी ।
राघव ने जब देखा कि ये दुल्हन अकेली ट्रेन से नीचे उतरने वाली है तो उसके सामने लता का साठ साल पुराना , वो सीन चलचित्र की भांति उसके सामने घूम गया और वो अचानक जोर से चीख पड़ा--"नही लता नहीं~~~~~~फिर से नहीं उतरना?"--राघव कहता हुआ बहुत ही बैचेन कग रहा था ।
राघव को इस तरह चीखते देख वो दुल्हन घबरा गई और एक कोने में अपनी सीट पर दुबक कर बैठ गयी । ऊपर से उसका पति भी घबराकर नीचे उतर आया कि उसकी पत्नी ने ऐसा क्या कर दिया?
उसने एक बार अपनी दुल्हन की ओर देखा जो डर कर एक कोने में दुबक कर बैठ गयी थी । उसने उसे पहले हग किया फिर बुज़ुर्ग अंकल की ओर देखा । वो भी पूरी तरह पसीने से भीग चुका था । लेकिन वो कांप रहा था । उस नोजवान को माजरा कुछ समझ नहीं आया ।
राघव ने एक बार फिर उस नोजवान को कहा-- "इसको नीचे नही उतरने देना ? ट्रेन चल पड़ेगी । नीचे नही जाना~~~~~?"
वो नोजवान ने उस बुज़ुर्ग की ओर देखा और पूछा- "अंकल नहीं जाएगी वो नीचे !! आप टेंशन न लें !! लेकिन ये लता कौन है? मेरी पत्नी का नाम तो अंतिमा है ।"
राघव तब तलक थोड़ा नार्मल हो चुका था । उसने उस नोजवान की ओर देखा और हाथ जोड़कर अपने इस अप्रत्यशित कृत्य के लिए मुआफ़ी माँगने लगा तो उस नोजवान ने ऐसा करने से मना करते हुए पूछा--"अंकल बात क्या है ? मैं जब से ट्रेन में बैठा हूँ आप बार-बार गेट तक जाते हैं और थोड़ी देर वहां खड़े होकर वापिस आ जाते हैं । क्या कोई खास बात देखने जाते हैं ? और ये लता कौन है?"
उस नोजवान के थोड़ा सा कुरेदने पर राघव की आंखों से दबे हुए आँसू बाहर को छलक आये ।
उसने अपनी जेब से रुमाल निकाला और आंखों पर रखकर थोड़ा पंच किया फिर वापिस जेब में रखकर बोला--नही बेटा ऐसी कोई बात नहीं । तुम लोग नई-नई शादी कर एन्जॉय करने के लिए निकले हो । इस वक़्त उदासी की बातें अच्छी नहीं लगती ।"
राजेश ने फिर कहा--"अंकल मैं भी तो आपके बेटे जैसा हुँ मुझे अपने दिल की बात बताओगे तो मुझे भी अच्छा लगेगा । आपके दिल का बोझ भी थोड़ा सा हल्का होगा ।"
राघव ने अभी कुछ कहा ही नही था कि रुकी हुई ट्रेन पंद्रह सेकंड्स में ही चल पड़ी ।
ट्रेन चलते ही राजेश के मुंह से एकदम निकला - "ओ माय गॉड ट्रेन तो चल पड़ी? थैंक यू अंकल आपने अंतिमा को नीचे जाने से रोक लिया । इतनी रात को यहाँ सुनसान स्टेशन पर वो नीचे रह जाती तो क्या करती?"
राघव उसी वक़्त बोला- "मगर लता नहीं मानी थी और मना करने के बावजूद उतर गई थी । बड़ी ही चंचल थी ।"--कहते हुए राघव सिसक पड़ा और मुंह को दोनों हाथों से ढक कर उसने न जाने कितने ही आँसू बहा डाले ।
राजेश ने चैन की सांस लेते हुए राघव से पूछा-- "बताइए न अंकल?"
राघव ने अपना चेहरा फिर एक बार रुमाल से साफ किया और राजेश के सर पर हाथ फेरते हुए कहा- "अपनी पत्नी का खूब ख्याल रखना बेटा"
इतना कह फ़िर उसने बताया कि आज से 60 साल पहले वो भी इसी तरह अपनी नई दुल्हन लता के साथ दिल्ली जाने के लिए रवाना हुआ था । हमने
दिलो जान से एक दूसरे से प्यार किया था । बचपन से हमने एक साथ पढ़ाई की । इकट्ठे खेले.... बड़े हुए । जब एक दूसरे के बिना रहना मुश्किल हो गया तो फिर हम दोनों ने एक दिन शादी कर ली ।
शादी करके घर पहुंचे तो दोनों के घर वालों ने स्वीकार नहीं किया । बड़े भाई ने मां बाबूजी को इतना भड़का दिया कि बाबूजी ने घर के सामान का बंटवारा कर अलग रहने को बोल दिया ।
हम सामान लेकर किसी के रेफेरेंस पर बारामती आ गए । लेकिन वहां एक महीने में ही लगा कि वहाँ रहना मुश्किल है ।
पता चला कि दिल्ली दिल वालों की है वहां सबका गुजारा हो जाता है तो बस फिर क्या था । हम दोनों ने फिर दिल्ली जाने का फैसला किया ।
एक दोस्त से बात की ओर उसने हमें दिल्ली बुला लिया और अगले ही दिन हमने अपना सामान फिर से बांधा और दिल्ली की ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पहुंच गये ।
स्टेशन था बारामती ।
गाड़ी के आने का वक़्त रात नो बजे का था । हम स्टेशन पर काफी पहले ही पहुंच गए थे ।
प्लेटफ़ॉर्म पर इंतज़ार करते हुए काफी देर हो गयी थी इसलिए हम स्टेशन पर इंतज़ार करते हुए पसर गए ।
लेकिन अचानक जब ट्रेन बारामती स्टेशन पर आ रही है ये अनाउंसमेन्ट सुन कि ट्रेन आ रही है । वक़्त देखा रात के ग्यारह बज कर चालीस मिनट हो चुके थे ।
राघव ने बताया कि उसकी पत्नी लता के साथ उस वक़्त स्टेशन पर बे-परवाह ही बैठा था । ट्रेन को नो बजे आना था लेकिन किसी तकनीकी खराबी के कारण वो लेट थी ।
स्टेशन मास्टर से भी राघव को पक्का पता नही लग पा रहा था कि ट्रेन प्लेटफॉर्म पर कितने बजे आकर लगेगी । तबियत खराब होने की वजह से पत्नी लता को स्टेशन पर ही प्लेटफॉर्म पर सुला कर वो इंतज़ार कर रहा था लेकिन बेंच पर बैठे-बैठे उसे भी कभी-कभी नींद का झोंका आ रहा था ।
सामान इतना था कि चढ़ाने में दिक्कत न हो इसलिए वो अपने-आपको नींद से दूर रखना चाहता था और बार-बार पास रखी पानी की बोतल से अपनी आंखों पर बार-बार छींटे मार रहा था ।
घड़ी देखी ग्यारह चालीस होने वाले थे कि उसे लगा कि दूर से छुक-छुक की आवाज आ रही है और वो बड़ी तेजी से तेज होती जा रही थी । फिर अचानक हलचल हुई और ट्रेन की लाइटें साफ-साफ दिखाई दबने लगी और अचानक ट्रेन का आगमन हुआ और उसके दिलो दिमाग़ में से भगदड़ मच गई ।
राघव ने लता को जोर से हिलाकर उठाया तो वो घबराकर उठ बैठी और उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो बैठी कहां है । उसका सोच तंत्र एक दम खाली सा हो गया था । फिर अचानक जब वापिसी हुई तो वो फ़टाफ़ट उठी और राघव के साथ मिलकर उसने सामान समेट कर ट्रेन की ओर रुख किया ।
राघव की उम्र उस वक़्त 25 साल की थी । काफी ताकत थी शरीर में । वो बड़े-बड़े ट्रंक उठाने में सामर्थ्यवान था । लता भी बाइस पार कर चुकी थी । ट्रेन बारामती स्टेशन पर सिर्फ दो मिनट के लिए ही रुकनी थी । दोनों ने मिलकर अपना सामान जल्दी-जल्दी ट्रेन के डिब्बे में फेंकना शुरू कर दिया । राघव डर रहा था, कहीं उनकी ट्रेन या फिर कोई सामान छूट न जाये । उनके सिवा पूरा प्लेटफार्म खाली था । स्टेशन पर सिर्फ एक छोटा सा बल्ब ही जल रहा था । जिसकी रोशनी काफी कम थी । घर का तकरीबन सारा ज़रूरी सामान गठडियों में बंधा पड़ा था । इसलिए ट्रेन के डिब्बे में फेंकने में कोई दिक्कत भी नहीं हुई ।
ट्रेन चलने से पहले ही सारा सामान गाफी के अंदर था । उसी वक़्त ट्रेन ने एक लंबी सीटी दे दी । राघव ने देखा ट्रेन का गार्ड भी ऑफ़िस से भागता हुआ इंजन की ओर गया और डिब्बे में चढ़ कर उसने हरी झंडी दिखा दी ।
ट्रेन हिली तो राघव जोर से चीखा--"लता~~~~???" ---!!!
सारा सामान ट्रेन में आ चुका था । राघव की चीख सुन लता ने फट से ट्रेन का डंडा पकड़ डिब्बे की सीढ़ी पर पाँव रखा । ट्रेन अब धीरे-धीरे सरकने लगी थी और अपना सफर थोड़ा सा पटरी पर आगे सरक कर शुरू कर दिया था देखते ही देखते रेंगने भी लगी थी ।
कुछ देखकर लता के मुँह से अचानक निकला-- "ओह !!!"
"अब क्या हुआ?"---राघव ने उसकी ओर देखते हुए पूछा ।
"देखो ! बेलन तो रह ही गया वहॉं ?"--बेलन की ओर इशारा करती हुई लत्ता ने कहा ।
"अरे छोड़, रहने दे अब"--राघव ने जोर देकर कहा ।
"अरे धीरे ही तो है ट्रेन ? और वो देखो ! सामने ही तो पड़ा है बेलन, उठा लाती हूँ । नहीं तो दिक्कत होगी दिल्ली पहुंच कर !!!! वहां रोटी किससे बेलूँगी ?"-- कहते हुए लता फट से रेंगती हुई ट्रेन से नीचे उतर गयी ।
बेलन की ओर जाते-जाते उसने पीछे मुड़ कर राघव को मुस्कराते हुए कहा-- "काहे को डरते हो तुम इतना?"
उसने जैसे ही बेलन को उठाया राघव की तेज़ आवाज फिर से गूँजी-- "लता~~~??"
लता की स्पीड एक दम तेज हो गयी औऱ उसने भागते हुए बेलन को उठाया और वापिस ट्रेन की ओर भागी ।
लेकिन........तब........तक.......!!!! देर हो चुकी थी !!!
ट्रेन ने अचानक ही तेजी पकड़ ली ।
राघव, डिब्बे के गेट पर ही खड़ा हाथ आगे बढ़ाता रहा और घबराया हुआ बोलता रहा--- "लता-लता"
और----!!!
लता बिना हिम्मत हारे ट्रेन के साथ तब तक भागती रही जब तक प्लेटफॉर्म का फर्श पक्का था और उसे ये उम्मीद और पक्का विश्वास भी था शायद कि राघव तो उसे लेकर ही जायेगा ?
लेकिन प्लेटफार्म खत्म हो गया और उसकी उम्मीदें बिखर गयीं ।
सुनाता हुआ राघव फिर बीच में सिसक पड़ा ! और राजेश और उसके साथ उसकी नई दुल्हन अंतिमा भी एक दम सुन्न सी राघव को सुन रही थी । उनका मन भी बैचेन हो रहा था ये जानने को कि आखिर हुआ क्या था ।
न तो ट्रेन रुकी न ही वो (राघव) उतरा ।
चीखते हुए लता ने गला फाड़ कर आवाज भी लगाई तो काफी देर तलक वो आवाज फ़िज़ाओं में गूंजती रही ।
लता आंखों से तो ओझल हो गयी लेकिन उसकी वो चीख उसके मानस पटल में ऐसे दाखिल हो गयी कि उसे बार-बार सुनाई देने लगी थी ।
लता के सारे ख़्वाब उस बेलन में समाहित हो कर रह गए । दोनों एक दूसरे की आँखों से ओझल हो गये ।
रह गयी, तो बस, वो उम्मीदों के कुछ बिखरे हुए अहसासों के कुछ टुकड़े जिन्हें एक कुशल कारीगर की ज़रूरत थी जो कभी उन्हें जोड़ेगा । इसीलिए साठ साल से उन्हें अपने पास संभाल के रक्खा था ।
लता, हाथ में बेलन को राघव की ओर हाथ उठाये हुए, काफी देर तलक स्तब्ध औऱ निशब्द खड़ी देखती रही । जबकि गाड़ी उसकी आँखों की पहुँच से ओझल हो गयी थी । इस उम्मीद पर कि राघव अभी भी ट्रेन से कूद कर आएगा और कहेगा कि --जाने दे लता इस ट्रेन को । हम फिर से शुरू करते है ।
लेकिन----!!!
कुछ ही पलों में सभी भ्रम टूट कर चकनाचूर होकर बिखर गए ।
💐💐💐
बहुत आवाजें लगायीं राघव ने "लता-लता"-- लेकिन उसने उसकी एक नहीं सुनी और हमेशा की तरह उसने अपने मन की सुन बेलन उठाने के लिए ट्रेन से नीचे उतर गई ।
ट्रेन में इक्का दुक्का सवारियाँ ही थीं जो जाग रहीं थीं बाकि सभी लोग अपने-अपने बिस्तरों में गहरी नींद सो रहे थे । ट्रेन ने जैसे ही तेजी पकड़ी राघव घबरा गया और उसे समझ ही नही आ रहा था कि वो क्या करे ।
सारे रास्ते में राघव का सामान बिखरा पड़ा था । आने जाने वालों को भी दिक्कत हो रही थी ।
ट्रेन की सभी बत्तियां पैसेंजर्स ने सोते वक्त वैसे ही बुझा रखीं थी । इक्का दुक्का लोग थे जो मोबाइल देखते हुए जाग रहे थे । उन्होने जब राघव को चीखते हुए लता को आवाज मारते सुना तो वो फौरन उठ कर आये और स्थिति को भांप कर उन्होंने गेट वाले केबिन से ट्रेन की चेन इतनीं जोर से खींची कि वो हाथ में ही आ गयी ।
एक दूसरे लड़के ने अपने केबिन से भी चेन खींची । लेकिन दुर्भाग्य-वंश वो चेन भी टूट गयी । राघव परेशान हो गया था । एक बार तो उसने सोचा कि वो ट्रेन से ही कूद जाए लेकिन गेट पर पहुंच कर ट्रेन की स्पीड देखकर हिम्मत ही नहीं हुई । उसका मन बैचैन अंधेरे की वजह से ज्यादा था । उसे लता की फिक्र हो रही थी । वो इस घुप अंधेरे में उस स्टेशन पर अकेली होगी ।
अचानक ट्रेन बीच रास्ते में रुक गयी । अब सामान इतना था कि रास्ते में कैसे उतारे? लेकिन उतरने के लिए मौका अच्छा था । अभी वो सोच ही रहा था कि दो पुलिस वाले, एक टी०टी० के साथ बाहर की तरफ से डिब्बे के अंदर घुसे ।
चेन पुलिंग की इन्क्वायरी कर रहे थे।
सभी से पूछा गया, तो उन्होंने कारण बताया तो चैन पुलिंग की मुआफ़ी तो मिल गयी लेकिन फाइल बन्द करने के लिए टी०टी० ने राघव से टिकट दिखाने को कहा ।
राघव ने अपनी जेब टटोलनी तो उसे याद आया कि टिकेट्स तो लता के पास हैं?
पेनल्टी के साथ देने के लिए उसके पास इतने पैसे भी जेब में नहीं थे कि टिकट् ले सके। पर्स भी लता के पास ही था । टी०टी० ने फौरन ट्रेन छोड़ने का फरमान जारी कर दिया ।
कोई चारा न देख राघव को सामान ट्रेन में ही छोड़ उतरना पड़ा ।
उतरते वक़्त, ..ट्रेन से चेन पुल करने वाले लड़के की आवाज आई--"चिंता न करना अंकल टी०टी० की मदद से दिल्ली जाकर सामान को माल खाने भिजवा देंगे ।"
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गाड़ी से राघव उतर तो गया । उस बियाबान जंगल से बाहर निकलना मुश्किल था । लेकिन लता के प्यार ने उसे इतनी हिम्मत दी कि वो अंधेरे में ही सड़क मार्ग की ओर चल पड़ा । आधे घन्टे में वो हाइवे पर पहुंच चुका था ।
एक घंटे बाद काफी मशक्कत के बाद एक पेट्रोल पंप पर पहुंच उसने वहां पर मौजूद कर्मचारी से मिन्नत कर किसी बस में बारामती स्टेशन के लिए बस में बिठवा दिया ।
काफी जद्दोजहद के बाद जब वो बारामती स्टेशन पर पहुंचा तो उस वक़्त सुबह के छह बज चुके थे । वहां अब भी वैसा ही सन्नाटा पसरा पड़ा था । अभी छः घंटे पहले की ही तो बात थी ।
बदहवास राघव स्टेशन पर इधर से उधर लता-लता पुकारता रहा । लेकिन कहीं से कोई आवाज नहीं आयी । लेकिन दूर उसे वही बेलन उसी जगह पड़ा दिखाई दिया । ये वही जगह थी जहाँ से लता गला फाड़ कर चीखी थी ।
वहॉं पड़ा बेलन ऐसे कग रहा था जैसे पुकार रहा हो "आ जाओ राघव मुझे ले जाओ" ।
अपनी इतनीं कहानी सुनाकर राघव ने अपने बैग से वही बेलन निकाला जो उसी तरह चमक रहा था जैसे पैंसठ साल पहले उसने अपनी चमक से लता को बुलाया था ।
उसी वक़्त ट्रेन रुकी राघव ने देखा सामने बाहर बारामती स्टेशन लिखा था ।
उसने अपना बैग उठाया और राजेश और अंतिमा को बाय-बाय करता हुआ बारामती स्टेशन पर उतर गया उसे एक बार फिर तलाश करने ।
💐💐💐
~~समाप्त~~
हर्ष महाजन
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